लघु कथा :- श्रद्धांजलि नगर के प्रतिष्ठित साहित्यकार की मृत्यु हो गई। आज शोक-सभा है। विविध संस्थाओं और विधाओं से संबद्ध अनेकों...
लघु कथा :-
श्रद्धांजलि
नगर के प्रतिष्ठित साहित्यकार की मृत्यु हो गई। आज शोक-सभा है। विविध संस्थाओं और विधाओं से संबद्ध अनेकों लेखक, साहित्यविद्, गणमान्य लोग उपस्थित हैं। विविध संस्थाओं से प्राप्त शोक-संदेश पढ़े जा रहे हैं। शोक-संदेशों में दिवंगत साहित्यकार के कृतित्व या उससे मिलने वाली प्रेरणा का जिक्र नहीं है, वरन् उनसे अपने संबंधों का अतिश्योक्तिपूर्ण बखान ही किया जा रहा है। किसी संदेश में तो उन्हें प्रातःवंदनीय तक कहा गया, किसी में उनके जाने से साहित्य जगत अनाथ होने की बात कही गयी।
संदेश पढ़े जाने के दौरान भी कुछ संस्थाओं के स्वयंभू पदाधिकारी शोक-सभा के आचरण को भूलकर बीच में ही वक्ता को रोकते हुए पहले उनका संदेश पढ़ने को कहने लगे। कुछ ने तो स्वयं माईक पकड़कर अपना संदेश पढ़ना शुरू कर दिया।
शांतिपाठ से शोक-सभा सम्पन्न हुई। अब लोग समूहों में खड़े अपनी-अपनी रचनाशीलता का बखान व स्वार्थचर्चा में व्यस्त हो गए हैं। एक समूह में कुछ वरिष्ठ साहित्यकार बतिया रहे हैं। एक-‘यार, एक सौ चालीस किताबों में बुड्ढे ने लिख क्या होगा!‘, दूसरा-‘सब इधर का उधर किया होगा, वरना इन्हें साहित्य की समझ ही कितनी थी।‘, तीसरा-‘गोष्ठी में नाश्ता करा करा के साहित्यकार बन गए।‘, चौथा-‘पुरस्कार कैसे मिले ये मत पूछो, सब पैसों की माया है।‘
यह सब सुन रहे एक पत्रकार से रहा नहीं गया। वह बोला-‘भद्रजनों, आपको ये इतने अयोग्य लगते थे तो आप यहां शोक-सभा में आए ही क्यों?‘ एक लेखक मसखरी में हंसते हुए बोला-‘यार, लोगों को शक्ल दिखानी पड़ती है।‘
लघु कथा :-
पुण्य
सेठजी अपनी कोठी में यज्ञ-पूजा करवा रहे हैं। इक्यावन संभ्रान्त पंडि़तों को बुलाया गया। सबने मिलकर सेठजी की सुख-शांति के लिए यज्ञ किया और फिर विविध स्वादिष्ट व्यंजनों का भरपेट सेवन किया। अंत में सेठजी ने उन्हें कीमती शॉल, धोती-कुर्ता, चांदी का सिक्का और सुन्दर लिफाफे में ग्यारह सौ एक रूपये भेंट दिए। पंडि़तों ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हुए सेठजी से कहा-‘सेठजी, आज आपने बड़े पुण्य का काम किया है।‘
कोठी से कुछ दूर ही एक अनाथालय है, जिसमें मूक-बधिर व विमंदित बच्चे रहते हैं। वहां एक भिखारी बच्चों को कपड़े और खाने-पीने की वस्तुएं दे रहा था। बच्चे उस भिखारी के साथ बहुत प्रसन्न थे। पता लगा कि वह भिखारी लगभग प्रत्येक माह वहां आता है। जगह-जगह घुमकर उसे भीख में जो कपड़े और रूपये-पैसे मिलते हैं, उसमें से वह अपने उपयोग के लिए जरूरी कपड़े रखता, अपनी बीमार पत्नि के इलाज के लिए गांव में पैसे भेजता और फिर शेष कपड़े यहां बच्चों में बांट देता। जो पैसे उसके पास बचे रहते उससे बच्चों के लिए खाने-पीने की वस्तुएं और किताबें ले आता। कहता-‘इन बच्चों को खुश देखकर मुझे बड़ी शांति और सुकून मिलता है। लगता है जैसे कई जन्मों का पुण्य मिल गया।‘
लघु कथा :-
भागवत्
सांयकाल जब मैं दफ्तर से लौट रहा था, मैंने देखा कि कॉलोनी के पार्क में एक बड़ा से पाण्ड़ाल लग रहा है। बड़े मंच के लिए तख्ते लगाए जा रहे है। कुछ लोग सजावट, सफाई इत्यादि में जुटे हुए हैं। इतनी हलचल देखकर मैं उत्सुकतावश पार्क तक गया। स्कूटर बाहर खड़ा करके मैं पार्क के भीतर गया। मंच के तख्तों के पास ही एक व्यक्ति लापरवाही से तख्त पर पाँव पसारे बैठा बीड़ी पी रहा था। मैं उसकी ओर बढ़ा, तभी एक अन्य व्यक्ति फूल-मालाओं की गठड़ी उठाकर पास से गुजरा। फूलों की महक तो मुझे महसूस नहीं हुई, किन्तु शराब की तीखी दुर्गन्ध से मन विचलित हो गया। कुछ सहज हुआ तभी एक ओर से किसी के जोर-जोर से चिल्लाने के स्वर सुनाई दिए। वहाँ गया तो देखा कि सफेद चमकीला कुर्ता-पाजामा पहने, गले में रामनाम का दुपट्टा डाले आयोजक सा लगने वाला व्यक्ति एक मजदूर को डाट रहा था। वह हर वाक्य में दो-चार भद्दी गालियाँ बोल रहा था। मजदूर ड़रते हुए हाथ जोड़कर अनुनय-विनय कर रहा था।
यह सब देख मुझसे रहा नहीं गया - '' भाई साहब, इसे क्यूं इतना डांट रहे हो। क्या हुआ․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․ और आज यहाँ क्या होने वाला है?''
उसने झुंझलाकर फिर से भद्दी गालियां बकी, फिर बोला- ''देखिये हमको, रात को भागवत कथा का शुभारम्भ है और इसने अभी तक लाइटें नहीं लगाई, महक नहीं लगाये। मेरी इन्सल्ट करवाएगा साला․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․इसकी तो․․․․․․․․․․․․․․․․․․․।''
वह फिर गालियां बकने लगा।
मेरे लिए असह्य हो गया। मैं बाहर निकलता सोच रहा था कि इन लोगों के मन की शुद्धि और सद्व्यवहार सीखने के लिए वाकई भागवत कथा होना जरूरी है।
लघु कथा :-
क्यों ?
पत्नी के साथ बैठकर अखबार पढ़ रहा था। मुखपृष्ठ पर छपी खबर ने चौंका दिया। आदिवासी गांव में एक स्त्री को चुड़ैल मानकर उसे पेड़ से बांधकर पीटा गया। खबर के साथ छपे चित्र में पेड़ से बंधी विवश स्त्री बिलख रही थी और तमाम ग्रामीण पुरूष उसे घेरे डण्डों से पीट रहे थे।
‘‘उफ! इक्कीसवीं सदी में ये सब ․․․․․․․․․․․․․․․․․ ! इसे अंधविश्वास कहूं या अत्याचार।․․․․․․․․․․․․․ आश्चर्य इस बात का है कि जहां मीडीया पहुंच गया, वहां कानून क्यूं नहीं पहुंच पाता।‘‘
पत्नी ने याद दिलाया-‘‘अभी पिछले महीने भी तो किसी गांव में एक विधवा स्त्री को डायन बताकर निर्वस्त्र कर घुमाया गया और फिर तपती सलाखों से दागा गया था․․․।‘‘
यह सब सुन रही मेरी 15 वर्षीया पुत्री ने बीच में ही प्रश्न किया-‘‘पापा, यह सब केवल स्त्रियों के साथ ही क्यूं होता है․․․․․․․․․․․․․․․ किसी पुरूष के साथ क्यूं नहीं ?‘‘
लघु कथा :-
सस्ता
आज बाजार में बड़ा हल्ला हो रहा था। सुना है मंहगाई में कुछ कमी हुई है। बड़े मैदान पर चल रही सभा में नेताजी जोर-जोर से बता रहे थे-‘‘ये हमने कर दिखाया है․․․․․रसोई गैस में 20 और पेट्रोल-डीजल में 5-5 रूपये की कमी की है․․․․․․․․हवाई जहाज का किराया भी हमने 30 प्रतिशत कम कर दिया है․․․․․․․․․․․․जमीनों की कीमतें और सीमेंट-सरिये की कीमतें भी कम हो रही हैं․․․․․․․․हमने जनता की सुविधा का पूरा ध्यान रखा है․․․․․․․․․․․․इससे गरीब जनता को राहत मिलेगी․․․․․․․․․․․।‘‘
किसना दिन भर ठेले पर माल ढ़ोता यह सब सुनकर बहुत खुश था। वह सोच रहा था-‘‘आज मेरी मजूरी में से चार-पांच रूपये तो बच ही जाएंगे।‘‘
शाम को वह जल्दी-जल्दी राशन की दुकान पहुंचा। वहां भी कुछ लोग मंहगाई में राहत होने की ही चर्चा कर रहे थे। किसना खुश होता हुआ बोला-‘‘सेठजी, मुझे तो आटा-दाल ही चाहिए․․․․․․․․․इसमें कितने कम हुए․․․․․․․․․।‘‘ उसकी बात सुन सेठजी सहित वहां खड़े सभी लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े।
लघु कथा :-
भाषा
भव्य शपथग्रहण समारोह चल रहा था। अहिन्दी भाषी क्षेत्र के साथ-साथ अधिकांश हिन्दी भाषी क्षेत्र के मंत्री भी अंग्रेजी में शपथ ले रहे थे। सभी सहजतापूर्वक सुन रहे थे और औपचारिक तालियां भी बज रही थीं।
एक दक्षिण प्रांतीय महिला ने जब हिन्दी भाषा में शपथ लेना शुरू किया तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। कुछ शब्दों का उच्चारण ठीक से न बोल पाने पर भी उसने संभल-संभल कर हिन्दी में शपथ पूर्ण की। हॉल में बैठे सभी गणमान्य व्यक्ति इससे खुश होकर देर तक तालियां बजाते रहे और उस महिला की प्रशंसा करने लगे। कोई कह रहा था-‘‘वाह! हिन्दी में शपथ लेकर आपने तो कमाल कर दिया․․․।‘‘
टेलिविजन पर यह सब देख रहे मेरे 11 वर्षीय पुत्र ने अनायास पूछा-‘‘पापा, हमारी राष्ट्रभाषा तो हिन्दी ही है ना․․․․․․․․․?
लघु कथा :-
हंसी
जब जतिन वह बैंक पहुँचा तो वहाँ अधिक भीड़ नहीं थी। बैंक अभी खुला ही था। सफाई कर्मी फर्श साफ कर रहा था। फर्श पर गीले के कारण फिसलन हो गई थी।
जतिन संभलता हुआ आगे बढ़ा, तभी उसके पास से जा रहा एक अधेड़ फिसल कर गिर गया॥ उसके कुछ कागजात भी इधर-उधर बिखर गए। यह देख जतिन को जोर से हंसी आ गई। अधेड़ ने तनिक नाराजगी से उसकी ओर देखा, फिर चुपचाप अपने कागजात उठाकर बाहर चला गया।
जतिन इस घटना पर मुस्कुराता हुआ सीढ़ी चढ़ने लगा। लापरवाही से पैर रखने के कारण उसका संतुलन बिगड़ गया और वह धड़ाम से गिर गया। अब आस-पास खड़े अन्य लोग हंस रहे थे।
बहुत अच्छी हैं और हमारे आस-पास ही घटित होने वाली भी..
जवाब देंहटाएंआज के समाज की विद्रूपता को दर्शाती सार्थक लघु कथाये |
जवाब देंहटाएं