अल्हड़ बीकानेरी हफ़्तों उनसे मिले हो गए विरह में पिलपिले हो गए सदके जूड़ों की ऊँचाईयाँ सर कई मंजिलें हो गए डाकिए से ‘लव’ उनका हुआ खत ...
अल्हड़ बीकानेरी
हफ़्तों उनसे मिले हो गए
विरह में पिलपिले हो गए
सदके जूड़ों की ऊँचाईयाँ
सर कई मंजिलें हो गए
डाकिए से ‘लव’ उनका हुआ
खत हमारे ‘डिले’ हो गए
परसों शादी हुई, कल तलाक
क्या अजब सिलसिले हो गए
उनके वादों के ऊँचे महल
क्या हवाई किले हो गए
नौकरी रेडियो की मिली
गीत उनके ‘रिले’ हो गए
हाशिये पर छपी जब ग़ज़ल
दूर शिकवे-गिले हो गए
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ऋषि गौड़
अध्यापक
आज का सफल अध्यापक
जिसकी कक्षा में
छात्र हों कम
किंतु घर पर
संख्या हो व्यापक
विद्यार्थी
आधुनिक विद्यार्थी
एकलव्य की भांति
नहीं देता अंगूठा काटकर
वरन्
चुकाता है गुरूदक्षिणा
अंगूठा दिखाकर
---,
ओमप्रकाश आदित्य
कविता का चीख-रस
छंद को बिगाड़ो मत, गंध को उजाड़ो मत
कविता-लता के ये सुमन झर जाएंगे
शब्द को उघाड़ो मत, अर्थ को पछाड़ो मत,
भाषण-सा झाड़ो मत गीत मर जाएंगे
हाथी-से चिंघाड़ो मत, सिंह से दहाड़ो मत
ऐसे गला फाड़ो मत, श्रोता डर जाएंगे
घर के सताए हुए आए हैं बेचारे यहाँ
यहाँ भी सताओगे तो ये किधर जाएंगे
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काका हाथरसी
कविता का भाव
सम्मेलन के मंच पर काका किया किलोल
कुश्ती लड़ने लग गए रूपक, उपमा, श्लेष।
रूपक, उपमा, श्लेष, लगाकर तुक के धक्के,
छंद छोड़, छः छः लाइन के मारे छक्के।
अनुप्रास, कल्पना, कवित्व, कमाल देखिए,
यह तो मेरी ‘दुलकी’ है, ‘रोहाल’ देखिए।
---,
कुंज बिहारी पांडेय
बेकाम कविता
मुझसे एक ने पूछा-
‘आप क्या करते हैं?’
मैंने कहा- ‘कविता करता हूं।’
‘कविता तो ठीक है,
आप काम क्या करते हैं?’
मुझे लगा,
कविता करना
कोई काम नहीं है।
कविता वह करता है,
जिसको कोई काम नहीं है।
---,
जैमिनी हरियाणवी
चूहे तुमको नमस्कार है
चुके नहीं इतना उधार है
महँगाई की अलग मार है
तुम पर बैठे हैं गणेश जी
हम पर तो कर्जा सवार है, चूहे तुमको नमस्कार है।
भक्त जनों की भीड़ लगी है
खाने की क्या तुम्हें कमी है
कोई देवे लड्डू, पेड़े
भेंट करे कोई अनार है, चूहे तुमको नमस्कार है।
परेशान जो मुझको करती
पत्नी केवल तुमसे डरती
तुम्हें देखकर हे चूहे जी
चढ़ जाता उसको बुखार है, चूहे तुमको नमस्कार है।
आफिस-वर्क एकदम निल है
फिर भी ओवरटाइम बिल है
बिल में घुसकर पोल खोल दो
सोमवार भी रविवार है, चूहे तुमको नमस्कार है।
कुर्सी है नेता का वाहन
जिस पर बैठ करे वह शासन
वहाँ भीड़ है तुमसे ज्यादा
कह कुर्सी का चमत्कार है, चूहे तुमको नमस्कार है।
राजनीति ने जाल बिछाए
मानव उसमें फंसता जाए
मानवता तो नष्ट हो रही
पशुता में आया निखार है, चूहे तुमको नमस्कार है।
---,
दिनकर सोनवलकर
नेताजी की मगरमच्छ से बातचीत
“यार मगर,
थोड़े आँसू
उधार दे दो अगर-
तो हम
देश की दुर्दशा पर
बहा आएँ”
सूखी आँखों से
मगर ने कहा-
“आपने बड़ी देर कर दी हुजूर,
सारा स्टाक तो
दूसरी पार्टी वाले
ले गए हैं।”
---,
प्रदीप चौबे
आत्मालाप
यमराज ने
यमदूत से कहा – ‘चार्ट के मुताबिक
एक बहुत बड़ा दलबदलू नेते
आज हिंदुस्तान में नहीं रहा
इससे पहले कि उसकी आत्मा
विधानसभा के चक्कर लगाए
तू फौरन जा
और उसकी आत्मा को लेकर यहाँ आ।’
यमदूत बोला – ‘आप भी
क्या मजाक करते हैं परमात्मा!
हिंतुस्तान का नेता और
उसके भीतर आत्मा!’
---,
बरसानेलाल चतुर्वेदी
रस परिवर्तन
थूककर चाटना
साहित्य में वीभत्स रस माना जाता है
राजनीति में
अब उसे शृंगार रस मान लिया गया है।
---,
मधुप पांडेय
विचित्र विवशता!
उधर प्रशासन को
चुस्त बनाने के
अथक प्रयास हो रहे हैं
और इधर आप
टेबुल पर सिर रख कर
आराम से सो रहे हैं!
उत्तर मिला-
“अब आप ही बताएँ!
ऑफ़िस में ‘तकिया’
कहाँ से लाएँ?”
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माणिक वर्मा
कुछ दोहे फागुनी
कीचड़ उसके पास था, मेरे पास गुलाल,
जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल।
जलीं होलियाँ हर बरस, फिर भी रहा विषाद,
जीवित निकली होलिका, जल-जल मरा प्रहलाद।
पानी तक मिलता नहीं, कहाँ हुस्न और जाम,
अब लिक्खें रूबाईयाँ, मिया उमर खय्याम।
होरी जरे गरीब की, लपट न उठने पाए,
ज्यों दहेज बिन गूजरी, चुपचुप चलती जाए।
वो सहमत और फाग से, वे भी मेरे संग?
कभी चढ़ा है रेत पर, इंद्रधनुष का रंग।
आज तलक रंगीन है, पिचकारी का घाव,
तुमने जाने क्या किया, बड़े कहीं के जाव।
उनके घर की देहरी, फागुन क्या फगुनाए,
जिनके घर की छाँव भी, होली-सी दहकाय।
जिन पेड़ों की छाँव से, काला पड़े गुलाल,
उनकी जड़ में बारवे, अब तो मट्ठा डाल।
तू राजा है नाम का, रानी के सब खेत,
उनको नखलिस्तान है, तुमको केवल रेत।
---,
विश्वनाथ शर्मा ‘विमलेश’
अफसर कौ गुस्सौ
एक अफसर गुस्सै सैं लाल पीला हो रया था
इतणा रंग बदलरया था कि
आपो ही खो रया था
कोई बोल्यो – “आनैं ठंडो पाणी प्यावो”
दूसरो बोल्यो – “आपै गुलाब जल छिड़काओ”
तीसरो नेक इलाज बतायो-
“रै आकें कन्नैं सें ये खरबूजा हटावो!”
---,
शैल चतुर्वेदी
अपने आप से
राजनीति पर लिखी गई कविता
कविता नहीं समाचार है
सवेरे का समाचार
शाम को पुराना हो जाता है
मगर तुम
पाँच साल पुराने समाचार को
कविता की साड़ी पहनाकर
मंच पर नचाते रहे
दंगा शांत हो गया
मगर शोर मचाते रहे!
कविता को जहर देकर
चुटकुलों को दूध पिलाते रहे
और दिल्ली की तुक,
बिल्ली से मिलाते रहे।
शब्द की देवी का अपमान एक बार हुआ
तुम बार-बार करते रहे
कविता खत्म होने के बाद
तालियों का इंतजार करते रहे।
---,
सरोजिनी प्रीतम
मिलावट
पिता को सम्मुख पाकर
उसके चेहरे का रंग उड़ गया
प्रेमिका थी वह
उसका प्रेम सच्चा था
रंग ही कच्चा था.
---,
सुरेन्द्रमोहन मिश्र
प्रयोगवादी नायक
छन्द योजना से
जो पूर्ण अज्ञेय हो
परम्पराएँ तोड़ना ही
जिसका ध्येय हो
जो हिंदी से अच्छी अंग्रेज़ी जानता हो
वात्स्यायन के सूत्रों को सर्वश्रेष्ठ मानता हो
तार सप्तक के
किसी भी भाग से बंधा हुआ हो
विदेशी सर्दी से
जिसका गला रुंधा हुआ हो
जो छन्दहीन पंक्तियों को
बेसुरा गाता है
ऐसा नायक प्रयोगवादी कहलाता है।
---,
हुल्लड़ मुरादाबादी
नाजायज बच्चे
परेशान पिता ने
जनता के अस्पताल में फोन किया
“डाक्टर साहब
मेरा पूरा परिवार बीमार हो गया है
बड़े बेटे आंदोलन को बुखार
प्रदर्शन को निमोनिया
तथा
घेराव को कैंसर हो गया है
सबसे छोटा बेटा ‘बंद’
हर तीन घंटे बाद उल्टियाँ कर रहा है
मेरा भतीजा हड़ताल सिंह
हार्ट अटैक से मर रहा है
डाक्टर साहब, प्लीज जल्दी आइए
प्यारी बिटिया ‘सांप्रदायिकता’ बेहोश पड़ी है
उसे बचाइए।”
डाक्टर बोला, “आई एम सौरी
मैं सिद्धांतवादी आदमी हूँ
नाजायज बच्चों का इलाज नहीं करता हूँ।”
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साभार – श्रेष्ठ हास्य व्यंग्य कविताएँ, संपादक – काका हाथरसी, गिरिराज शरण.
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन, चावड़ी बाजार दिल्ली-6
bahut acchhi rachnayen hain... dhanyavaad..
जवाब देंहटाएंवह बहोत खूब....!
जवाब देंहटाएंबहोत अच्छी रचनाए है ! बहोत बहोत धन्यवाद !
सुधीर दत्ता राजकोट
अच्छा संकलन
जवाब देंहटाएंकविता हो तो ऐसी , दिल खुश हो गया
जवाब देंहटाएंNice poetry, I liked Allhad Bikaneri very much.
जवाब देंहटाएंजबरदस्त
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