1सबके पास उजाले हों - मानवता का संदेश फैलाते, मस्जिद और शिवाले हों। नीर प्रेम का भरा हो सब में, ऐसे सब के प्याले हों।। होली जैसे रंग ...
1सबके पास उजाले हों -
मानवता का संदेश फैलाते, मस्जिद और शिवाले हों।
नीर प्रेम का भरा हो सब में, ऐसे सब के प्याले हों।।
होली जैसे रंग हो बिखरे, दीपों की बारातें सजी हों,
अंधियारे का नाम ना हो, सबके पास उजाले हों।।
हो श्रद्धा और विश्वास सभी में, नैतिक मूल्य पाले हों।
संस्कृति का करे सब पूजन, संस्कारों के रखवाले हों।।
चौराहों पे न लुटे अस्मत,दुःशासन ना फिर बढ़ पाए,
भूख,गरीबी,आतंक मिटे,ना देश में धंधे काले हों।।
सच्चाई को मिले आजादी और लगे झूठ पर ताले हों।
तन को कपड़ा,सिर को साया, सबके पास निवाले हों।।
दर्द किसी को छू न पाए, न किसी आंख से आंसू आए,
झोंपड़ियों के आंगन में भी खुशियों की फैली डाले हों।।
‘जिए और जीने दे’ सब ना चलते बरछी भाले हों।
हर दिल में हो भाईचारा नाग न पलते काले हों।।
नगमों -सा हो जाए जीवन, फूलों से भर जाए आंगन,
सुख ही सुख मिले सभी को, एक दूजे को संभाले हों।।
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2कैसे आज गुनगुनाऊं मैं
बिखेर चली तुम साज मेरा
अब कैसे गीत गाऊं मैं ।
तुमने ही जो ठुकरा दिया
अब किससे प्रीत लगाऊं ।।
सूना-सूना सब तुम बिन
रात अंधियारी फीके दिन ।
तुम पे जो मैंने गीत लिखे
किसको आज सुनाऊं मैं ।।
बिखरी-बिखरी सब आशाएं
घेरे मुझको घोर निराशाएं ।
नौका जो छूट गई है मुझसे
अब कैसे साहिल पाऊं ।।
रूठे स्वर,रूठी मन वीणा
मुश्किल हुआ तन्हा जीना।
कहो प्रिये ! अब तुम बिन
कैसे आज गुनगुनाऊं मैं ।।
सताती हर पल तेरी यादें
बीता मौसम, बीती बातें ।
टूटी कसमें,टूटे सब वादे
साथी किसपे मर जाऊं मैं ।।
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3 बचपन
कहता है मन।
काश ! लौटे फिर
बीता बचपन।।
छोटा सा गांव।
मासूम चेहरा
वो ख्वाब सलौने।।
खिलता मधुवन।
बाबू जी की डांट
अमा का चुंबन।।
चांदी का पलना।
रेशम की डोर
ममता का झरना।।
सपनों की रानी।
कागज की नाव
सावन का पानी।।
खुशी का तराना।
शरारत का दौर
हँसी का खजाना।।
झिलमिल तारे
माँ की गोद
वो अजीब नजारे।।
मौसम सुहाना।
काश! लौटे
वो दौर पुराना।।
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4आओ मेरे श्याम
महाभारत हो रहा देखो अविराम।
आओ मेरे कृष्णा,आओ मेरे श्याम ।।
शकुनि चालें चल रहा है
पांडुपुत्रों को छल रहा है
अधर्म की बढ़ती ज्वाला में
संसार अब जल रहा है
बुझा डालो जो आग लगी है
जलधारा बरसाओ मेरे श्याम ।।
शासक आज बने हैं शैतान
मूक,विवश है संविधान
झूठ तिलक लगवा रहा
बचा न सच का मान
गूंज उठे फिर आदर्शी स्वर
वो मोहक बांसुरी बजाओ मेरे श्याम।।
दुःशासन की क्रूर निगाहें
भरती हर पल कामुक आहें
कदम-कदम पर खड़े लुटेरे
शीलहरण की कहे कथाएं
खोए ना लाज कोई पांचाली
फिर आकर चीर बढ़ाओ मेरे श्याम।।
आग लगी नंदन वन में
रूदन हो रहा वृंदावन में
नित जन्मते रावण-कंस
बढ़ रहा पाप भुवन में
मिटे अनीति,अधर्म,अंधकार सारे
आकर आशादीप जलाओ मेरे श्याम।।
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5हरियाणवी कविता
हाथ जोड़ कहूं अमा मेरी
मैं हूं बिन जन्मी नादान,इबै ना मारै मनै।
सै छह महीने का गर्भ तेरा
ना छीनै माँ तू नसीब मेरा
अमा मेरी मैं हूं तेरी संतान, इबै ना मारै मनै।
मैं भी तेरै आंगण खेलूगी
तेरे दुखड़े मिलके झेलूंगी
अमा मेरी बात मेरी मान, इबै ना मारै मनै।
मान मनै भी धन तू अपणा
पूरा करूं तेरा हर सपना
अमा के तनै नुकसान, इबै ना मारै मनै।
बदल्या टेम सै लीक तोड़ तूं
अपणी बिटिया तै प्रीत जोड़ तूं
अमा मेरी मैं हूं तेरी जान, इबै ना मारै मनै।
6बड़े बने ये साहित्यकार
बंटते बंदर बांट पुरस्कार।
दौड़ रहे है पीछे-पीछे ,बड़े बने ये साहित्यकार।।
पुरस्कारों की दौड़ में खोकर
भूल बैठे हैं सच्चा सृजन
लिख के वरिष्ठ रचनाकार
करते है वो झूठा अर्जन
मस्तक तिलक लग जाए,चाहे गले में हार ।
बड़े बने ये साहित्यकार।।
अब चला हाशिये पे गया
सच्चा कर्मठ रचनाकार
राजनीति के रंग जमाते
साहित्य के ये ठेकेदार
बेचे कौड़ी में कलम,हो कैसे साहित्यिक उद्धार।
बड़े बने ये साहित्यकार।।
देव-पूजन के संग जरूरी
मन की निश्छल आराधना
बिन दर्द का स्वाद चखे
नहीं होती पल्लवित साधना
बिना साधना नहीं साहित्य,झूठा है वो रचनाकार।
बड़े बने ये साहित्यकार।।
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7कर मानव से प्यार
कर मानव विचार।
मानव रूप है ईश्वर का,कर मानव से प्यार।।
जग में कुछ नहीं तेरा
फिर क्यों रे तेरा मेरा
आखिर सांसें खोल छोड़ेगी
छूट जाएगा ये बसेरा
छोड़ यहां से जाएगा,संगी साथी यार।
कर मानव से प्यार।।
पढ़े तूने गीता और वेद
बढ़ते गए मन के भेद
सुबह शाम की रे पूजा
मनवा नहीं हुआ सफेद
ढ़ाई अक्षर प्रेम के,ला दे जीवन में झंकार।
कर मानव से प्यार।।
दुखियों को गले लगा ले
बेगानों को भी अपना ले
मोह माया के बंधन तोड़
सद्भावों के नगमें गा ले
समझ पराया दुख अपना,गिरा घृणा की दीवार।
कर मानव से प्यार।।
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8मतलब के सब यार
फैला रिश्तों का बाजार।
मतलब के सब रिश्ते नाते,
मतलब के सब यार।।
मतलब का है लेना देना
मतलब के सब बोल
स्वार्थ के संग तुल गए
आज संबंध सब अनमोल
दिल के भाव सूख गए,
मुरझा गया है प्यार।
मतलब के सब यार।।
भूल बैठे त्याग- कर्त्तव्य
सबको अधिकार लुभाए
भौतिक सुख की लालसा
पल-पल डसती जाए
अपनेपन का रंग लुटा,
हैं फीके-फीके त्योहार।
मतलब के सब यार ।।
रूठा-रूठा मुखिया से
परिवारजनों का मन
पत्नी सुख साथिन हुई
पुत्र चाहता बस धन
फैल गया जीवन में,
अब धन का व्यापार।
मतलब के सब यार।।
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9सरस्वती वंदना
माँ वीणा वादिनी मधुर स्वर दो
हर जिह्वा वैभवयुक्त कर दो।
मन सारे स्नेहमय हो जाए
ऐसे गुणों का अमृत भर दो।।
माँ वीणा की झंकार भर दो
जीवन में नवल संचार कर दो।
हर डाली खुशबूमय हो जाए
ऐसे सब गुलजार कर दो।।
अंतस तम को दूर कर दो
अंधकार को नूर कर दो।
मन से मन का हो मिलन
भेद सारे चूर कर दो।।
गान कर माँ रागिनी का
भान कर माँ वादिनी का।
पूरी हो सब कामनाएं
दो सुर माँ रागिनी का ।।
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10अब कौन बताए
चेहरे हैं सब क्यों मुरझाए, अब कौन बताए।
क्यों फैले दहशतगर्दी के साये, अब कौन बताए।।
कभी होकर देश पे कुर्बान जो अमर हुए थे
सपूत वही आज क्यों घबराये, अब कौन बताए।
कौन है कातिल भारत माँ के सब अरमानों का
है हर चेहरा नकाब लगाए, अब कौन बताए।
लिांू क्या कहानी मैं वतन पे मिटने वालों की
वो तो मर के भी मुस्काए, अब कौन बताए।
ये शदों की आजाद शमां यूं ही जलती जाएगी
बुझे न दिल की आग बुझाए, अब कौन बताए।
इस माटी में जन्मा एक रोज इसी में मिल जाऊंगा
अरमां ये काम देश के आए, अब कौन बताए।
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माँ
माँ ममता की खान है
माँ दूजा भगवान है।
माँ की महिमा अपरंपार
माँ श्रेष्ठ-महान है।।
माँ कविता,माँ है कहानी
माँ है दोहों की जुबानी।
माँ तो सिर्फ माँ ही है
न हिन्दुस्तानी,न पाकिस्तानी।।
माँ है फूलों की बहार
माँ है सुरीली सितार।
माँ ताल है माँ लय है
माँ है जीवन की झंकार।।
माँ वेद है माँ ही गीता
माँ बिन ये जग रीता।
माँ दुर्गा, माँ सरस्वती
माँ कौशल्या, माँ सीता।।
माँ है तुलसी की चौपाई
माँ है सावन की पुरवाई।
माँ कबीर की वाणी है
माँ है कालजयी रूबाई।।
माँ बगिया है माँ कानन
माँ बसंत सी मनभावन।
आखिर देवों ने भी माना
माँ शद बड़ा है पावन।।
माँ प्रेम की प्रतिमूर्ति
माँ श्रद्धा की आदिशक्ति।
माँ ही हज माँ ही मदीना
माँ से बड़ी न कोई भक्ति।।
माँ है सृष्टि का आगाज
माँ है वीणा की आवाज।
माँ है मन्दिर,माँ मस्जिद
माँ प्रार्थना,माँ है नमाज।।
माँ है गंगा सी अनूप
माँ धरती पे हरी धूब।
माँ दुख हरणी माँ कल्याणी
अजब निराले माँ के रूप।।
-डॉ0 सत्यवान वर्मा सौरभ
कविता निकेतन,बड़वा भिवानी
हरियाणा-127045
अंधियारे का नाम न हो सबके पास उजाले हो
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता बधाई।
सभी कवितायें बहुत अच्छी हैं. बस मुझे गिला रहता है जब कुरान-गीता, मन्दिर-मस्जिद की बात समझाई जाती है. हिन्दू कभी मस्जिद तोड़कर मन्दिर नहीं बनाता, हिन्दू कभी दंगे भड़काने में विश्वास नहीं रखता, फिर भी.
जवाब देंहटाएंaapki kavita maa bahoot achhi lagi~ sunil kumar bhiwani
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