फ टर्र फटर्र करती उस पुलिसिया फटफटी की आवाज ने पूरे गाँव को इत्त्ला कर दी थी कि गाँव में पुलिस दरोगा आज फिर आया है। इसके पहले गाँव में प...
फटर्र फटर्र करती उस पुलिसिया फटफटी की आवाज ने पूरे गाँव को इत्त्ला कर दी थी कि गाँव में पुलिस दरोगा आज फिर आया है। इसके पहले गाँव में पुलिस दरोगा कभी नहीं आए । चरण्या की मौत के बाद तो पुलिस ने इस गाँव में आने का जैसे बहाना ही ढूंढ लिया था। जब चाहे तब पुलिस चली आने लगी। चरण्या को मरना था सो वह मर गया पर ये पुलिस है कि बाल की खाल निकालने में लगी है।
चरण्या यानी किशनदास काका का एकलौता बेटा चरणदास। उनका सहारा। किशनदास तो पहले ही औलाद के लिए खूब तरसे। राजा दशरथ की तरह पुत्रयेष्टी यज्ञ कराने की ताकत तो थी नहीं, बेचारे ने हर देवी देवता के मंदिर में माथा टेका। कितनी ही मन्नत मानी,तब जा कर अधबुढापे में औलाद का मुह देखना नसीब हो पाया, और बुढापे में उसकी मौत हो गई। किशनदास की पत्नी को तो अपनी बहु का मंह देखना भी नसीब नहीं हो पाया। अपने बेटे का जीवनसंसार बसाने की हसरत दिल में लिए ही इस दुनिया से उस दुनिया में चली गई।
चरण्या छोटा नहीं था जब उसकी मां की मौत हुई थी। किशनदास काका ने उसे बड़े जतन से पाला था वे उसमें अपनी पत्नी की छांव निहारा करते थे चरण्या में। नीच जाति का होने के बावजूद उन्होंने चरण्या की खातिर बड़े और ऊंचे ऊंचे ख्वाब देखे थे। चरणदास कहे तो माँ की कमी या किशनदास काका के अतिस्नेह के फलस्वरुप अपने पिता की आंकाक्षाओं के अनुरुप नहीं ढ़ल सका। पांच जमात से ज्यादा पढ़ नहीं सका। मां के वियोग में चरणदास के मानसिकता भी अपने हमउम्र बच्चों से अलग ही रही। कहते है कि उसकी माँ को उपरी हवा लग गई थी और उसकी हरकतें भी पागलों की भांति हो गई थी। वह चरण्या को गोद में बिठाए रखती उसे अपनी नजरों से तनिक भी ओझल नहीं होने देती। कभी उसे पटे पर बिठा कर उसकी पूजा करती तो कभी उसे राजा बता कर गांव के बच्चों को उसे सलाम करने को कहती। कुछ लोग इसे माँ की ममता का अतिरेक कहते तो कुछ की निगाह में ये पागलपन था। लोगों ने किशनदास को समझाया भी कि वो अपने बेटे को अपनी पत्नी से थोड़ा दूर रखा करे उसकी इस तरह की हरकतों का असर चरणदास के दिमाग पर भी पड़ेगा। मगर किशनदास एक माँ के वात्सल्य को समझता था उसने अपनी पत्नी से चरणदास को दूर नहीं किया, क्योंकि अर्धविक्षिप्त हो चुकी उसकी पत्नी में अभी भी माँ की ममता बाकी थी और वह उसे इससे महरुम नहीं करना चाहता था।
सोलह अठारह का रहा होगा चरण्या जब उसकी पागल माँ ने दम तोड़ा था । चरण्या अपनी मां की मौत के बाद से खामोश सा रहने लगा था। किशनदास तो जैसे टूट ही गया। एक तो बुढ़ापा उसके शरीर को तोड़े जा रहा था और ऐसे में चरण्या की फ्रिक। बड़ी मन्नतों और दुआओं से मांगे गए चरणदास का उसके बाद उसका क्या होगा?
यह चिन्ता उसे दिनरात गलाए जा रही थी। चरणदास का व्यवहार भी उसके संगीसाथियों से जुदा था। न वह घर से बाहर जाता न किसी के साथ उठता बैठता। बस घर में गुमसुम सा बैठा रहता। हां घर के कामकाज सब कर लेता। गाँव के लोगों ने किशनदास को समझाया कि वह चरण्या की शादी कर दे तो उसका अकेलापन भी दूर हो जाएगा और घर में बहू के आ जाने से रौनक भी बढ़ जाएगी और चरण्या इस तरह अकेले नहीं रहेगा।
किशनदास को ज्यादा दौड़धूप नहीं करना पड़ी । पांच गाँव छोड़ कर ही एक रिश्ता चरण्या के लिए मिल गया। सुदंर सी एक बहू ने किशनदास के यहाँ कदम रख कर औरत विहीन घर को संभाल लिया था नाम था उसका नथिया।
कोई ऐसे ही थोड़े मर जाता है․․․․․․․․․? पुलिस दरोगा ने खटिया पर बीमार पड़े किशनदास से घुड़क कर पूछा। मगर उसकी निगाहें,खटिया के पास खड़ी उसकी बहू के भरेपूरे शरीर को निहार रही थी। चेहरे पर घूंघट होने के बावजूद नथिया पुलिस दरोगा की नीयत को भांप कर घर के अन्दर चली गई।
किशनदास जबरन आवाज निकालने की कोशिश करते हुए बोला- साहब मैं क्या जानूं ․․․ वो क्यों मर गया। जवान बेटे की अर्थी उठाने वाले इन बूढ़े कंधों को अगर मालूम होता तो मैं उसे मरने ही क्यों देता। बड़ी मन्नतों और दुआओं के बाद भगवान ने हमें दिया था चरण्या को और उसी ने छीन लिया। भगवान उसकी जगह मुझे उठा ले जाते। अब तो उठने बैठने के लायक भी नहीं रहा। ये खटिया ही सहारा है। पहले बीबी और अब जवान बेटे की खातिर रो रो कर ये आँखें भी साथ छोड़ गई। बहू लाया था , उस बेचारी पर भी बोझ बन गया हूँ।
कानून तो अपना काम करेगा ही । कानून का काम है चरण्या की मौत की वजह का पता लगाना। वही पता करने आए हैं। जरा उसकी औरत को बुलाओ पूछताछ करनी होगी न।
रात को तेरे साथ था․․․․․․․․ दरोगा ने रौबदार आवाज में उससे सपाट पूछा, मगर निगाहें गड़ा कर ।
नथिया ने आँचल पल्ला ठीक करते हुए धीर से कहा․․․․ हाँ।
तेरा झगड़ा हुआ था उसके साथ ․․․․․․पूछते हुए दरोगा ने नथिया को उपर से नीचे तक खा जाने वाली निगाहों से भूखे भेड़िए की मानिन्द देखा।
नहीं․․․․․․․․․․․․․ फिर धीरे से बुदबुदाई नथिया।
दरोगा के सवालों से किशनदास को ऐसे लगा मानों कोई उसके शरीर से मांस की बोटी नोंच रहा है। नकारा हो चुके उसके शरीर को हजारों नश्तरों से रेत रहा था कोई। वह कहराते हुए बोला- काहे का झगड़ा दरोगा साहब । दो ही जन तो थे। लोग लुगाई में भी कोई झगड़ा होता है क्या?
औलाद नहीं है क्या․․․․․․․․․․दरोगा ने खटिया पर पड़े बूढ़े को पानी का लोटा थमाने आई नथिया के छाती के उभारों को निहारते हुए पूछा। नथिया से दरोगा की ललचाई निगाहें छिप न सकी वह चुपचाप घर के भीतर लौट आई।
दरोगा ने जैसे दुख की सीवन उधाड़ दी थी और नथिया को दुख के दरिया में धकेल दिया था। नथिया उस दरिया में दूर तक बहती चली गई। दो साल ही तो हुए है नथिया को इस घर में ब्याहे हुए और इन दो सालों में उसने क्या क्या नहीं देखा उसकी दुनिया बसने से पहले ही उजड़ गई। बिदाई के समय मां ने कहा था बेटी ससुराल की इज्जत अपनी इज्जत समझना,और भी नसीहतें जो एक मां अपनी बेटी को देती है। मां बाप के यहाँ हंसती खेलती नथिया यहाँ आ गई। न सास न ननद। अकेली । साथ थी तो बस उस पर छाई अल्हड़ जवानी और उसे बाँटने आई थी वह चरण्या के साथ।
शिवजी की तरह जटाओं में समेटने के लायक नहीं था चरण्या जो नथिया जैसी उफनाती नदी को बान्ध सके। यह उसे पहले दिन ही पता चल गया था। इज्जत की डोर और संस्कारी मां के संस्कारों के बन्धन में बंधी नथिया ने कभी भी अपने यौवन उफान को बहने नहीं दिया। मगर दिल में एक कसक बनी रही। शादी के दो सालों बाद भी माँ न बन पाने का गम नथिया को तो था। यह बात चरण्या भी समझने लगा था। उसमें एक अपराध भाव घर करते जा रहा था। नथिया की आँखें, उससे उसका हक माँगती दिखाई देती। वह अब पथिया से दूर दूर रहने की कोशिश करता। उससे नजरें मिलती तो झेंप जाता। चरण्या का अधिकांश समय किशनदास की सेवा-चाकरी में कटता और नथिया अपने को गृहगहस्थी में व्यस्त रखने की कोशिश करती, बचाखुचा समय वह भी ससुर की तीमारदारी में लगा देती। किशनदास उससे कहता तो कुछ नहीं मगर उसे नथिया के दुख का अहसास था। उसने अपनी पत्नी में जो तड़प औलाद के लिए देखी थी ,वही तड़प वह अपनी बहू में भी देख कर दुख से दोहरा हुआ जा रहा था।
उस दिन तो किशनदास ने चरण्या को डाँटते हुए ही कहा था- तेरी माँ बहू का मुंह देखे बिना ही मर गई , मेरे प्राण भी पोते को देखे बिना ही यमराज ले जाएगें। अब दिन ही कितने बचे है। पिछले जन्मों का पाप है जो इस जनम में कुल की वृद्धि नहीं हो पा रही। चरण्या चुपचाप मुंड़ी झुकाए सुनता रहा बापू को कोई जवाब नहीं दिया था उसने। नथिया भी चुपचाप ही रही वो क्या बोलती। उसकी सूनी गोद उसे ललकार रही थी। वह चाहती थी कि उसका पति उसके बच्चे का पिता बने। सूने घर में बच्चे की किलकारी गूंजे, मगर उसके अकेले के बूते यह संभव तो था नहीं सबकुछ। जमीन कितनी ही उपजाउ क्यों न हो बिना बीज के फसल थोड़े ही उग जाती है। नथिया कसमसा कर रह जाती और नसीब का खेला समझ कर चुप हो जाती।
उस दिन चरण्या बड़ा खुश था। जमीन का एक टुकड़ा बेचा था उसने । बापू का इलाज शहर ले जा कर करवाने के लिए। उसने नथिया से खीर पूरी बनाने इच्छा जाहिर की । जब भी चरण्या खुश होता था खीर पूरी जरुर बनवाता था। बार त्यौहार को तो खीर पूरी बनती मगर जब खुशी का अवसर आता तब भी।
सामने खीर पूरी का थाली देख कर चरण्या को माँ की याद आ गई। माँ भी तो पूरी खीर की ही तरह थी। माँ के हाथ से खूब खाई थी खीरपूरी। माँ के गुजरने के बाद दो तीन बार ही खाई होगी खीरपूरी ।
क्या हुआ ․․․․․․․․․․। खाते काहे नाहीं․․․․․․ नथिया खीर पूरी की थाली में सिर गड़ाए चरण्या से चहक कर बोली । चरण्या बोला कुछ नहीं चुपचाप खाने लगा।
नेद तो जैसे नथिया से रुठने की आदी हो गई थी ,जितना वह उसे बुलाती उजना ही वह उससे दूर भागती। करवट बदल रही नथिया ने बिस्तर पर पड़े चरण्या के शरीर से सटते हुए उसकी छाती पर हाथ फेरते हुए उसकी मर्दानगी को चेताने का प्रयास किया,मगर उसे हर बार की तरह नाकामयाबी ही हाथ लगी। चरण्या चुपचाप ही रहा वह सो नहीं सोच रहा था। पता नहीं क्या? थकहार कर नथिया सो गई और जब सुबह उसकी आँख खुली तो उसका दुनिया लुट चुकी थी । उसकी मांग में भरा सिंदूर उड़ चुका था। चरण्या की काया छपरे की बल्ली से लटकी बड़ी भयावह लग रही थी उसकी जबान बाहर निकली थी । वह चीख उठी थी उसकी चीख पूरे गाँव में फैल गई।
फटर्र फटर्र करती पुलिसिया फटफटी की आवाज ,बेटे के गम में खटिया पकड़ चुके किशनदास के कानों में भी पड़ी। दरोगा फिर आ गया। उसका बेब तो चला गया अब काहे को परेशान कर रहे है । फटफटी उसी के घर के आगे रुकी। भरी दोपहरी में दरोगा का आना किशनदास को अच्छा नहीं लगा । आंगन में खटिया पर पड़े किशनदास ने बहू को आवाज लगाई ।
ससुर की गुहार पर ‘‘हौव'' कहते हुए अपने कपड़े ठीक करते हुए नथिया को आते देख दरोगा की आँखों में चमक बढ़ गई।
दरोगा आए हैं पानी ला दे बिटिया। खटिया से न उठ पाने के बावजूद किशनदास ने दरोगा के प्रति सम्मान जताया।
केस का खात्मा करना है किशनदास। लिखा पढ़ी तो पूरी करना ही होगी।
सरकार जैसा चाहे करें । मेरा तो सबकुछ खत्म हो गया । बेचारी बहू के बारे में सोचता हूं तो कलेजा मुह को आता है। किशनदास ने लाचारी दिखाते हुए कहा।
बच्चे नहीं हुए ना․․․․․․․․․․․ पानी का लौटा देने आई नथिया के हाथ को छूने की कोशिश दरोगा ने की तो शेरनी की तरह नथुने फूला कर, आँखें तरेर कर दरोगा की हरकत का प्रतिकार कर उसने चेता दिया कि वह अनाथ हुई है कमजोर नहीं।
दरोगा बेशर्मों की तरह किशनदास पर अहसान जताते हुए बोला - गर्मी है कि जान निकले ले रही है। तुम्हारे केस का खत्मा न करना होता तो कौन साला इतनी भरी दोपहरी में इतनी दूर यहां आता। कोई बताने को भी तैयार नहीं है कि क्यों मर गया साला। जो यो ही मर जाते है गीदड़ होते है। गीदड़ों से भी शेरनी गाभन होती है भला। दरोगा पर असली रंग चढ़न लगा था। उसका इस तरह अनाप शनाप बोलना नथिया को बुरा लगा,मगर वह बोली कुछ नहीं।
मौका ए वारदात का नक्शा बनाना है चलो वह जगह बताओ जहाँ वो लटका था नामर्द। नथिया को दरोगा ने कहा। किशनदास की मजबूरी थी सो नथिया के सामने दरोगा को उसके कमरे में ले जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। न चाहते हुए भी आगे आगे नथिया और उसके पीछे पीछे दरोगा उस कमरे में आ गए जहाँ चरण्या ने आत्महत्या की थी। दरोगा ने झप्पटा मार कर नथिया को अपनी बाहों में पकड़ लिया। नथिया को उसके इरादे पहले ही नेक नहीं लग रहे थे। उसने प्रतिकार किया तो दरोगा घुडका चुपचाप मेरा कहा मान जा नहीं तो लिख दूंगा कि तेरे कारण ही तेरा आदमी मरा वो तो था ही नामर्द। सारी जिन्दगी जेल में सड़ा दूंगा। नथिया ने हुंकार भरी जाओ दरोगा हम ऐसी वैसी नहीं है समझे। हमारा आदमी जैसे भी था हमारा था। हमको छुआ भी तो हम शोर मचा देंगे। दरोगा को शिकार सामने दिखा वह तो शिकारी की तरह वार करने को तैयार था। उसने अपने कमीज उतारने के लिए कमर में बंधी पिस्तौल निकाल कर नथिया के बिछौने पर रखी और कमीज उतारने लगा।
किशनदास को एक धांय की आवाज के साथ गिरने की आवाज सुनाई दी. उसे नथिया हाथ में पिस्तौल लिए कमरे में से बाहर आती दिखाई दी।
-----
श्याम यादव ‘‘श्रीविनायक'' 22 बी, संचारनगर एक्सटेंशन इन्दौर 452016
बहुत ही भावुक कर देने वाली अच्छी सटीक कहानी ... बहुत सुन्दर ... पुलसिया अत्याचारों के समाज में कई ऐसे प्रसंग देखने को मिल जाते हैं . आभार
जवाब देंहटाएं