॥ उदासी के बादल - दर्द की बदरी ॥ कविता ये उदासी के बादल दर्द क बदरी आतंक का चक्रव्यूह, पतझड़ होतो आज किसी अनहोनी या कल के सुकून...
॥ उदासी के बादल-दर्द की बदरी ॥ कविता
ये उदासी के बादल दर्द क बदरी
आतंक का चक्रव्यूह, पतझड़ होतो आज
किसी अनहोनी
या कल के सुकून का संदेश है,
गवाह है
वक्त रात के बाद विहान
हुआ है हो रहा है
और होने की उम्म्ीद है
क्योंकि यह प्रकृति के हाथ में हैं
आज के आदमी के नहीं ।
आदमी आदमी का नहीं है आज
बस मतलब का है राज
प्रकृति की खिलाफत पर उतर चुका है
नाक की उूंचाई पसन्द है उसे
खुशी बसती है उसकी
दीनशोषितों के दमन में
दुर्भाग्यवश
कमजोर के हक पर कुण्डली मारे
खुद की तरक्क्ी मान बैठा है
बेचारे दीन दरिद्र अपनी तबाही ।
अभिमान के शिखर पर बैठा आदमी
बो रहा है
जातिवाद,धर्मवाद,क्षेत्रवाद,आतंकवाद
और नक्सलवाद के विष- बीज
विष-बीज की जड़े नित होती जा रही है गहरी
उफनने लगा है जहर
उड़ रहे हैं लहू के कतेर-कतरे
विष-बीज की बेलें हर दिल पर फैल चुकी है
रूढिवाद कट्टरवाद जातीय-धार्मिक उन्माद के रूप में
ऐसी फिजा में नहीं छंट रहे हैं
उदासी के बादल
और नहीं हो रहा तनिक दर्द कम
नहीं दे रही है तरक्की
दीन-वंचितों की चौखटों पर दस्तक
चिथड़े-चिथड़े हो जा रही हक् योजनायें
नहीं थम रहा है
जानलेवा दर्द भी ।
आज जब दुनिया छोटी हो गयी है
आदमी से आदमी की दूरी बढ़ गयी है
कसने लगा है आदमी विरोधी शिकंजा
तड़पने लगा है
खुद के बोये नफरत में फंसा आदमी ।
सच नफरत की खड़ी दीवारें
आदमी की बनायी गयी है
तभी तो नहीं छंट रहा धुआं
प्रकृति धूप के बाद छांव देती है
पतझड़ के बाद बसन्त का उपहार
अंधेरे के बाद उजियारा भी
परन्तु आदमी आज जा
चाहता है
दुनिया का सुख सिर्फ अपने लिये
परोसता है नफरत की आग
ना जाने क्यों ?
अमर होने की
कभी ना पूरा होने वाली लालसा में ।
आज के हालातों को देखकर
बार-बार उठते है सवाल
क्या खत्म होगा जाति-धर्म क्षेत्रवाद का उन्माद
सवालों का हल कायनात का भला है
ज्ब मानवीय -समानता सद्भावना एकता
अमन शान्ति का उठेगा
जज्बा हर दिल से
तभी छंट सकेंगे उदासी के बादल
थम सकेगी दर्द की बदरी
जी सकेगा आदमी सुकून की जिन्दगी
कुसुमित हो सकेगी आदमियत धरती पर ․․․․․
नन्दलाल भारती 22․06․2010
॥ हमारी धरती हो जाती स्वर्ग ॥ कविता
कल मानसून की पहली दस्तक थी
फुहार का सभी लुत्फ उठा रहे थे
ल्ू में सुलगे पेड-पौधे
प्यास बुझाने के लिये त्राहि-त्राहि करते
जीव-जन्तु,पशु-पक्षी और इंसान भी
थपेड़े में चैन की बंशी बजाता मिट्ठू
गाकर नाच रहा था ।
कुछ ही देर पहले क्या पलटे चल रही थी
जैसे भांड़ में चने सिंक रहे हो
ये प्रकृति का दुलार था
कुम्हार की तरह
चल पड़ी ठण्डी बयार
शहनाई बनजे लगी आकाश
बरस पड़े बदरवा ।
गर्मी से तप रही धरती
पहली मानसून की बूंदों में नहाकर
सोधी-सोधी मन-भावन खुशबू लुटाने लगी
दादुर भी मौज में आकर गाने लगे
नभ से बदरा गरज- बरस रहे थे
मेरा मन माटी के सोंधेपन में डूब रहा था
मन के डूबते ही
विचार के बदरवा बरसने लगे
मुझे लगने लगा हम
कितने मतलबी है
जिस प्रकृति का खुलेआम दोहन कर रहे
जीवन देने वाले पर आरा चला रहे
पहाड़ तक सरका रहे
मन चाहा शोषण-दोहन-उत्पीड़न भी
वही प्रकृति कर रही है सुरक्षा ।
हम मतलबी है छेड़ रहे हैं जंग
प्रकृति के खिलाफ
बो रहे हैं आग जाति-धर्म आतंक की
कभी ना खत्म होने वाली ।
एक प्रकृति है सह रही है जुल्म
कुसुमित कर रही है उम्मीदें
सृजित कर रही है जीवन
उपलब्ध करा रहा है
जीवन का साजो सामान
पूरी कर रही है जीवन की हर जरूरतें
बिना किसी भेद के निःस्वार्थ
एक हम है मतलबी
बोते रहते है आग
प्रकृति-जीव और जाने अनजाने खुद के खिलाफ
काश हम अब भी
प्रकृति से कुछ सीख लेते
सच भारती
हमारी धरती हो जाती स्वर्ग․ ․․․․․․․․
नन्दलाल भारती
21․06․2010
॥ मिल गया आकाश थोड़ा ॥
खुदगर्ज जमाने वालो ने खूब किये है जुल्म,
अस्मिता,कर्मशीलता,योग्यता तक को नहीं छोड़ा है।
नफरत भरी दुनिया में कुछ सुकून तो है यारों,
कुछ तो है जमाने में देवतुल्य जिन्हे
मुझसे लगाव थोड़ा तो है ।
जमा पूंजी कहूं या जीवन की सफलता
बड़ी शिद्दत से जीवन को निचोड़ा है।
बड़े अरमान थे पर रह गये सब कोरे
कुछ है साथ जिनकी दुआओं से,
गम कम हुआ थोड़ा है।
मैं नहीं पहचानता न ही वे
पर जानते है एक दूसरे का
हर दिन मिल जाते है
शुभकामनाओं के थोकबन्द अदृश्य पार्सल
भले ही जमाने वालों ने बोया रोड़ा है
अरमान की बगिया रहे हरी-भरी,
हमने खुद को निचोड़ा है।
मेरा त्याग और संघर्ष कुसुमित है
मिल रही है दुआयें थोड़ा-थोड़ा
दौलत के नहीं खड़े कर पाये ढेर
भले ही पद की तुला पर रह गये बेअसर
धन्य हो गया मेरा कद
दुआओं की ऊर्जा पीकर थोड़ा-थोड़ा ।
मैं आभारी रहूंगा
उन तनिक भर देवतुल्य इंसानों का
जिनकी दुआओं ने मेरे जीवन में ,
ना टिकने दिया खुदगर्ज जमाने का रोड़ा
संवर गया नसीब
मिल गया अपने हिस्से का थोड़ा आसमान
․․․․․․․․
नन्दलाल भारती․․․
30․06․2010
पिता
मैं पिता बन गया हूं
पिता के दायित्व और संघर्ष को,
जीने लगा हूं पल-प्रतिपल ।
पिता की मंद पड़ती रोशनी,
घुटनों की मनमानी मुझे डराने लगी है
पिता के पांव में लगती ठोकरें
उजाले में सहारे के लिये फड़कते हाथ
मेरी आंखें नम कर देते है ।
पिता धरती के भगवान है
वही तो है जमाने के ज्वार-भाटे से
सकुशल निकालकर
जीवन को मकसद देने वाले ।
परेशान कर देती है उनकी बूढी जिद
अड़ जाते है तो अड़ियल बैल की तरह
समझौता नहीं करते,
समझौता करना तो सीखा ही नहीं है ।
पिता अपनी धुन के पक्के हैं
मन के सच्चे है ,नाक की सीध चलने वाले है ।
पिता के जीवन का आठवां दशक प्रारम्भ हो गया है
नाती-पोते सयाने हो गये हैं
मुझे भी मोटा चश्मा लग गया है
बाल बगुले के रंग में रंगते जा रहे हैं
पिताजी है कि बच्चा समझते है ।
पांव थकते नहीं, उनके आठवें दशक में भी
भूल-भटके शहर आ गये तो,
आहो हवा जैसे उन्हें चिढाती है
आते ही गांव जाने की जिद शुरू हो जाती है
गांव पहुंचते शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आये
बेटा-बहू नाती-पोतों की फिक्र ।
पिता की यह जिद छांव लगती है
बेटे के जीवन की
सच कहे तो यही जिद, थकने नहीं देती
आठवें दशक में भी पिता को
आज बाल-बाल बच गये,सामने कई चल बसे
बस और जीप की जो खूनी टक्कर थी
सिर पर हाथ फेरकर मौत रास्ता बदल ली थी।
खटिया पर पड़े -पड़े. पिता होने का फर्ज निभा रहे हैं
कुल-खानदान ,सद्परम्पराओं की नसीहत दे रहे हैं
जीवन में बाधाओं से तनिक ना घबराना
कर्मपथ पर बढ़ते रहने का आहवान कर रहे हैं ।
यही पिता होने का फर्ज है
पिताजी अपनी जिद के पक्के हैं
और अब मैं भी यकीनन,
परिवार,घर -मंदिर के भले के लिये जरूरी भी है ।
मै भी समझने लगा हूं
क्योंकि मैं पिता बन गया हूं
औलादें के आज और कल की फिक्र
मुझे पिता की विरासत सौप रही है
यकीन है मेरी फिक्र एक दिन मेरे औलाद को
सीखा देगी सफल पिता के दांवपेंच
․․․․․․
नन्दलाल भारती
01․07․2010
रक्तकुण्डली
ना बनो लकीर के फकीर ना ही पीटो ठहरा पानी
रूढिवाद छोड़ो विज्ञान के युग में बन जाओ ज्ञानी ।
जाति-गोत्र मिलान का वक्त नहीं ना करो चर्चा
स्वधर्मी रिश्ते रक्त-कुण्डली पर हो खुली परिचर्चा ।
ये कुण्डली खोल देगी असाध्य व्याधियों का राज
नियन्त्रित हो जायेगी व्याधियां सुखी हा जाएगा समाज।
विवाह पूर्व रक्त कुण्डली की हो जाये अगर जांच
जीवन सुखी असाध्य व्याधियों की ना सतायेगी आंच।
हो गया ऐसा तो रूक जायेगा मृत्युदूतों का प्रसार
ना छुये मृत्युदूत-रोग अब हो रक्तकुण्डली का प्रचार।
ले लेते है जान थेलेसीमिया एडस् रोग कई-कई हजार
निदान बस विवाह पूर्व मेडिकल जांच की है दरकार ।
ये जांच बन जाएगी स्वस्थ-खुशहाल जीवन का वरदान
आनुवांशिक असाध्य रोगों से बचना हो जाएगा आसान ।
जग मान चुका अब,मांता-पिता है अगर असाध्य रोगी
अगली पीढी स्वतः हो जायेगी रोगग्रस्त-अपंग-भुक्तभोगी ।
छोड़ो रूढ़िवादी बातें हो स्व-धर्मी रिश्ते-नाते पर विचार
कर दो रक्त कुण्डली मिलान का ऐलान
आओ हम सब मिलकर बनाये
सम्वृद्ध-असाध्य-रोगमुक्त हिन्दुस्तान ।
--
नन्दलाल भारती
․․30․06․10
Email- nlbharatiauthor@gmail.com
आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र।-452010,
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जीवन परिचय /BIODATA
नन्दलाल भारती
कवि, कहानीकार, उपन्यासकार
शिक्षा - एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी।खैरा।पो․नरसिंहपुर जिला-आजमगढ।उ․प्र।
प्रकाशित पुस्तकें ई- पुस्तकें․․․․․․․․․․․․ | उपन्यास-अमानत,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह। प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं कविता कहानी लघुकथा संग्रह। उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म, सपनो की बारात लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी, उद्गार आलेख संग्रह- विमर्श एवं अन्य |
सम्मान | स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009,मुम्बई, साहित्य सम्राट,मथुरा।उ․प्र․। विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म․प्र․, विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ․प्र․। लेखक मित्र।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड। भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत। डां․अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली, काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र, ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर।म․प्र․। डां․बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर , विद्यावाचस्पति,परियावां।उ․प्र․। कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर।राज․। साहित्यकला रत्न।मानद उपाधि। कुशीनगर।उ․प्र․। साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म․प्र․। सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली।उ․प्र․।एवं अन्य |
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण। रचनाओं का दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर,पत्रिका,पंजाब केसरी एवं देश के अन्य समाचार irzks@ifrzdvksa में प्रकाशन , वेब पत्र पत्रिकाओं www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com rachanakar.com / hindi.chakradeo.net www.srijangatha.com,esnips.con, sahityakunj.net,chitthajagat.in,hindi-blog-podcast.blogspot.com, technorati.jp/blogspot.com, sf.blogspot.com, archive.org ,ourcity.yahoo.in/varanasi/hindi, ourcity.yahoo.in/raipur/hindi, apnaguide.com/hindi/index,bbchindi.com, hotbot.com, ourcity.yahoo.co.in/dehradun/hindi, inourcity.yaho.com/Bhopal/hindi,laghukatha.com एवं अन्य ई-पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन। | |
सदस्य | इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा। नई दिल्ली |
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ․प्र․। | |
हिन्दी परिवार,इंदौर।मध्य प्रदेश। | |
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून।उत्तराखण्ड। | |
साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ․प्र․। म․प्र․․लेखक संघ,म․प्र․भोपाल एवं अन्य | |
सम्पर्क सूत्र | आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र․! दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066 Email- nlbharatiauthor@gmail.com Visit:- http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http;//www.nandlalbharati.blog.co.in/ nandlalbharati.blogspot.com http:// www.hindisahityasarovar.blogspot.com/ httpp://nlbharatilaghukatha.blogspot.com www.facebook.com/nandlal.bharati |
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