हिंदी में प्रेमगीत ज्यादा नहीं हैं, और जो माल उपलब्ध हैं, उसमें भी दिलचस्प और हृदयग्राही गीत तो बहुत ही कम हैं. प्रस्तुत है हिंदी के कुछ प...
हिंदी में प्रेमगीत ज्यादा नहीं हैं, और जो माल उपलब्ध हैं, उसमें भी दिलचस्प और हृदयग्राही गीत तो बहुत ही कम हैं. प्रस्तुत है हिंदी के कुछ प्रसिद्ध कवियों के प्रेमगीत –
दामिनी बन प्यार की मुझको निहारा है
जानता हूँ, यह बुलाने का इशारा है.
- देवराज दिनेश
चाँद हँसता वहाँ, ज्वार उठता यहाँ
शून्य कितना वहाँ, तुम नहीं हो जहाँ
तुम जहाँ हो वहीं हँस रही नीलिमा
तुम जहाँ हो वहीं है शरद् पूर्णिमा
- पोद्दार रामावतार ‘अरूण’
मेरी भूली पहिचान न मुझसे मांगो
तुम हँस कर मेरा प्यार न मुझसे मांगो
- भगवतीचरण वर्मा
अपनी दुनिया में मैं मस्त हूँ, जवान हूँ
फागुन की गेहूँ हूँ, सावन का धान हूँ
बिरहा की जोगिनी बनाओ ना पिया
बार बार बाँसुरी बजाओ ना पिया
- रामदरश मिश्र
तुम जानती सब बात हो, दिन हो कि आधी रात हो
मैं जागता रहता कि कब, मंजीर की आहट मिले
मेरे कमल-मन में उदय, किस काल पुण्य प्रभात हो
किस लग्न में हो जाए कब, जाने कृपा भगवान की
- दिनकर
लौटे क्या मोहन मधुवनियाँ, बाजे राधा की पायलिया
मह मह महक रहीं मंजरियाँ, कुहु कुहु कुहुक रही कोयलिया;
दूर कहीं बाजे खंजरिया, छूम छनन गूंजे पैंजनियाँ
कहीं अहीरों की छोकरियाँ, नाचें भर-भर बाँह कन्हैया;
रो रो रतनारी आँखड़ियाँ, बनी तुम्हारी कमल डगरियाँ
कसक कसक उठती रे छातियाँ, किसे कहूँ मैं मन की बतियाँ;
चीर तुम्हारी नव चँदनियाँ, छिड़कूँ हिम की कुंकुम बुँदियाँ
आज मिलन की अमरित घड़ियाँ, दिशा दिशा छिटकी चाँदनियाँ
- वीरेन्द्र कुमार जैन
मेरी दो पर वे अनगिन हैं, किससे लोचन अभिसार करूं?
मेरे आँगन में भीड़ लगी, मैं किसको कितना प्यार करूँ?
- अज्ञात
अभी तो है बहुत री सांझ की दूरी
तुम्हें कैसे कहूँ, है बहुत मजबूरी
- अज्ञात
तू तो है ‘मनु’ सा बहुत दूर, मैं ‘कामायनी’ अकेली
कौन ‘इड़ा’ कोई बतला दे, जो तेरे मन भाई,
मेरी तेरी प्रीत चिरन्तन, सदा निभेगी यारी
मैं छन्दों के रथ पर तेरे द्वार आज फिर आई
- अज्ञात
दिल्लगी में आग दिल में वे लगा कर चल दिए
पर उन्हें भी आग दिल की अब बुझाना है कठिन
आग लगती जिन्दगी को झेलते मजबूर हो
है सरल नजरें मिलाना, दिल मिलाना है कठिन
- हरिकृष्ण प्रेमी
एक दिन बस यूँ ही उस नरम होंठ ने
भूल से छू लिया था सुधा का चषक,
होंठ घायल हुए और मैं जल उठा
शेष है आज भी उस जलन की कसक,
तारिका एक टूटी गगन डाल से
चाँद ने आँख भर यों कहा, “बावली
तू भटकती रहेगी बता किस गली?”
- रामानन्द दोषी
भर भर हारी किंतु रह गई रीती ही गगरी
कितनी बार तुम्हें देखा, पर आँखें नहीं भरीं
- शिवमंगलसिंह सुमन
ये बन कर मिट जाने के दिन
ये मिट कर मुस्काने के दिन
ये गीत नए गाने के दिन
ये तुमको अपनाने के दिन
ये हरदम मुस्काने के दिन
ये कुछ कह शरमाने के दिन
ये घायल कर जाने के दिन
ये खिल कर झर जाने के दिन
- सुरेन्द्र तिवारी
लौट आओ, माँग के सिंदूर की सौगंध तुमको
नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ, आज पहिले प्यार की सौगन्ध तुमको
प्रीत का बचपन निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ मानिनी, है मान की सौगन्ध तुमको
बात का निर्धन निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ हारती मनुहार की सौगंध तुमको
भीगता आँगन निमंत्रण दे रहा है
- सोम ठाकुर
यह तो सच है इस वसन्त में तुमको नहीं जरूरत मेरी
लेकिन पतझर के आने पर, मैं न रहूंगा तो क्या होगा?
यह तो सच है तुमसे अपना दर्द कहा था, सुना न तुमने
लेकिन दर्द गर किसी और से कह दूंगा तो फिर क्या होगा?
- अज्ञात
मैं स्वयं विवश, दो पाँव कहाँ किस तक दौड़ें
सबमें तुम सा आकार दिखाई देता है,
मैं किस किस द्वारे मस्तक अपना धरूँ मुझे
हर द्वार तुम्हारा द्वार दिखाई देता है
- जलज
साँस की तो बहुत तेज रफ़्तार है
और छोटी बहुत है मिलन की घड़ी,
आँजते आँजते ही नयन बावरे
बुझ न जाए कहीं उम्र की फुलझड़ी
- नीरज
तुम्हारा ही क्या, मैं नहीं हूँ किसी का
रहेगा मुझे अंत तक दुःख इसी का;
चढ़ाया गया हूँ, उतारा नहीं हूँ
तुम्हारी कसम मैं तुम्हारा नहीं हूँ
- रंग
घनों में मधुर स्वर्ण-रेखा मिली
नयन ने नयन रूप देखा, मिली
पुतलियों में डुबा कर नजर की कलम
नेह के पृष्ठ को चित्रलेखा मिली,
भूलती सी जवानी नई हो उठी
भूलती सी कहानी नई हो उठी
जिस दिवस प्राण में प्रेम बंसी बजी
बालपन की रवानी नई हो उठी
- माखनलाल चतुर्वेदी
परदेश तुम्हारा पथिक दूर
लौटोगे कब यह कहे कौन,
भर बाँहों में फिर करो प्यार
निज प्रेम पुष्प को हे उदार,
पीछे फिर देखो एक बार
- रामविलास शर्मा
दिल चुरा कर न हमको बुलाया करो
गुनगुना कर न गम को सुलाया करो,
दो दिलों के मिलन का यहाँ है चलन
खुद न आया करो तो बुलाया करो,
रंग भी गुल शमा के बदलने लगे
तुम हमीं को न कस्में खिलाया करो,
सर झुकाया गगन ने धरा मिल गई
तुम न पलकें सुबह तक झुकाया करो,
सिंधु के पार को चाँद जाँचा करे
तुम न पायल अकेली बजाया करो,
मन्दिरों में तरसते उमर बिक गई
सर झुकाते झुकाते कमर झुक गई,
घूम तारे रहे रात की नाव में
आज है रतजगा प्यार के गाँव में
दो दिलों का मिलन है यहाँ का चलन
खुद न आया करो तो बुलाया करो,
नाचता प्यार है हुस्न की छाँव में
हाथ देकर न उँगली छुड़ाया करो
- गोपालसिंह नेपाली
पहुँच क्या तुम तक सकेंगे कांपते ये गीत मेरे
हाय, वो अभिमान के अब दिन गए हैं बीत मेरे
- अज्ञेय
जिन कलियों ने प्रेम छिपाया, वे झूठी कहलाईँ
जिन नदियों ने नेह छिपाया, वे सूखी अकुलाईँ
जिन आँखों ने राग छिपाया, वे रोईं पछताईँ
तब क्यों मैं ही प्रेम छिपाऊँ?
तब क्यों मैं ही भद्र कहलाऊँ?
- केदारनाथ अग्रवाल
हार बन कर गले के पास आना चाहता हूँ
गीत बन कर ही अधर के पास आना चाहता हूँ
- अज्ञात
यह चंदन सा चाँद महकता, यह चाँदी सी रात
क्या नयनों से रूप कह रहा – सुनो हमारी बात
- जगदीश गुप्त
अगर मैंने किसी के ओठ पाठल कभी चूमे
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे
कली सा तन, किरन सा मन, शिथिल सतरंगिया आँचल
उसी में खिल पड़े यदि भूल से कुछ ओठ के पाटल;
न हो यह वासना तो जिंदगी की माप कैसे हो?
नसों का रेशमी तूफान मुझको पाप कैसे हो?
किसी की साँस में बुन दूँ अगर अंगूर की परतें
प्रणय में निभ नहीं पातीं कभी इस तौर की शर्तें,
यहाँ तो हर कदम पर स्वर्ग की पगडंडियाँ घूमीं
अगर मैंने किसी की मदभरी अंगड़ाइयाँ चूमीं,
महज इस से किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?
मझ इस से किसी का स्वर्ग मुझ पर श्राप कैसे हो?
- धर्मवीर भारती
छोड़ो न यों बीच में हाथ मेरा
आया नहीं है अभी तक सवेरा
प्यासे नयन ज्यों नयन में समा जाएँ
सारे निराधार आधार पा जाएँ
जाओ तभी जब हृदय-कम्प खो जाएँ
मेरे अधर पर तुम्हारा खिले हाथ
मेरा उदय खींच के ज्योति घेरा
छोड़ो न यों बीच में हाथ मेरा
आया नहीं है अभी तक सवेरा
- श्रीलाल शुक्ल
तुम मुग्धा थीं अति भावप्रवण
उकसे थे अंबियों से उरोज,
चंचल, प्रगल्भ, हँसमुख, उदार,
मैं सलज तुम्हें था रहा खोज
- सुमित्रानंदन पंत
बह्मन का लड़का मैं
उसको प्यार करता हूँ
जात की कहारिन
उस पर मैं मरता हूँ
कोयल सी काली
चाल नहीं मतवाली,
ले जाती है मटका बड़का
मैं देख देख धीरज धरता
- निराला
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(साभार - रवीन्द्रनाथ त्यागी के व्यंग्य संग्रह देश-विदेश की कथा के एक लेख के संकलित अंश)
गज़ब के प्रेम गीत हैं……………बेहतरीन्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेमगीत...बार-बार पढ़ने को दिल चाहे
जवाब देंहटाएंhttp://veenakesur.blogspot.com/
भारत भूषण ने एक नहीं अनेक अति सुन्दर प्रेम गीत लिखें हैं .उनको क्यों भुला दिया .
जवाब देंहटाएंइतने सारे महान कवियों के प्रणय गीतों का संकलन...वो भी व्यंग्य संग्रह में ...ऐसा कमाल रवीन्द्रनाथ त्यागी जी ही कर सकते हैं...बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। पावस के प्रेम गीत कम हैं।
जवाब देंहटाएंati sunder gane
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