अमावस्या की काली अंधेरी रात को प्रकाशित करता है - प्रकाश। अंधकार से प्रकाश की ओर यह यात्रा हमें बताती है कि प्रकाश कितना महत्वपूर्ण है, ...
अमावस्या की काली अंधेरी रात को प्रकाशित करता है - प्रकाश। अंधकार से प्रकाश की ओर यह यात्रा हमें बताती है कि प्रकाश कितना महत्वपूर्ण है, जीवन तथा प्रकाश पर्व दोनों के लिए। प्रकाश की एक वैज्ञानिक विवेचना प्रस्तुत है।
वास्तव में प्रकाश वह साधन या माध्यम है जिसकी सहायता से हम वस्तुओं को देख सकते हैं, मगर आश्चर्य की बात है कि प्रकाश स्वयं अदृश्य है। न्यूटन ने सर्वप्रथम प्रकाश के गुणों का विधिवत अध्ययन किया। उनके अनुसार प्रकाश का कणों के रूप में संचरण होता है, प्रकाश परिवर्तित होता है, वर्तित होता है तथा सूर्य के सफेद प्रकाश में सात रंगों का मिश्रण है। वास्तव में प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है तथा ऊर्जा के अन्य रूपों यथा ध्वनि, विद्युत, ऊष्मा आदि की तरह एक से गुणों से युक्त है। प्रकाश को ऊर्जा के अन्य रूपों में बदला जा सकता है। न्यूटन ने यह भी बताया कि प्रकाश के कण गेंद की तरह टकराते हैं और रंग पैदा करते है। बाद में जाकर ह्यूजेंस नामक वैज्ञानिक ने प्रकाश की तरंग के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार प्रकाश कणों से नहीं तरंगों से बनता है। थामस यंग ने आगे जाकर बताया कि प्रकाश तरगें तथा कण दोनों के गुण विद्यमान है। 1865 मे मैक्सवेल ने प्रकाश को विद्युत-चुम्बकीय तरंग माना। मैक्सप्लांक ने प्रकाश के क्वान्टम (बन्डल, गुटका) सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। अल्बर्ट आइन्सटाइन ने बताया कि प्रकाश में ऊर्जा के कण हैं उन्हें फोटोन नाम दिया गया। नील्स बोर ने बताया कि जब इलेक्ट्रान एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाता है तो ऊर्जा के रूप में फोटोन को छोड़ता है और यही प्रकाश है। सच तो ये है कि आज भी प्रकाश की प्रकृति, स्वभाव, गुणों आदि पर वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं और प्रकाश की प्रकृति को पूर्ण रूपेण अभी भी समझा नहीं जा सका है। प्रकाश हमेशा एक सीधी रेखा में चलता है। प्रकाश के इसी सिद्धान्त पर कैमरा, आँख आदि काम करते है। पृथ्वी पर प्रकाश का एक मात्र प्राकृतिक स्त्रोत सूर्य है जो आकाश गंगा का एक भाग है। सूर्य का प्रकाश सात रंगों का होता है और यह जानकारी न्यूटन से पहले भी थी।
सभी रंग सूर्य के प्रकाश से ही पैदा होते है। प्रत्येक वस्तु पर जब प्रकाश पड़ता है तो वस्तु कई रंगों को अपने में रख लेती है तथा किसी एक रंग को परावर्तित कर देती है, यही रंग वस्तु के रंग के रूप में हमें दिखाई देता है। इस संबंध में प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक सर सी․ वी․ रमन ने प्रकाश पर रमन प्रभाव की खोज की जिस पर उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया था। प्रकाश की प्रकृति पर रमन आजीवन काम करते रहे। मृत्यु के समय वे फूलों के रंगों पर काम कर रहे थे। प्रकाश की गति सबसे तेज होती है। एक सैकंड में प्रकाश 2,99,889 कि․ मी․ (3ग्1010 से․मी․ प्रति सैकंड) यात्रा कर लेता है। दूरी नापने की ईकाई का आधार प्रकाश वर्ष कहलाती है। सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश आठ मिनट में पहुंचता है। इसी प्रकार हमारे से निकटतम तारे की दूरी 4․22 प्रकाश वर्ष है। मन्दाकिनी देवयानि पृथ्वी से 20 लाख प्रकाश वर्ष दूर है, अर्थात् वहां से प्रकाश को पृथ्वी पर पहुंचने में 20 लाख वर्ष लगते है। ध्रुवतारा पृथ्वी से 8,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड, आकाश गंगाओं, तारों, आदि की दूरियां हजारों-लाखों प्रकाश वर्ष की है।
सूर्य के प्रकाश का उपयोग मानव हजारों वर्षों से कर रहा है, सच पूछा जाये तो सम्पूर्ण जीवन सूर्य के प्रकाश पर आधारित है। वर्षा का होना, पेड़-पौधों द्वारा भोजन बनाना आदि कार्य सूर्य-प्रकाश के बिना संभव नहीं है। जब मनुष्य को सूर्य के प्रकाश के महत्व का पता चला तो उसने स्वयं भी आग के रूप में प्रकाश को देखा, धीरे-धीरे पत्थरों को रगड़कर वह नियमित आग जलाने लग गया। सूखे पेड़-पौधों को जलाकर आग की मदद से वह स्वयं को जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने लगा। अब मनुष्य ने अंधेरे से लड़ने के लिए प्रकाश या आग को हथियार के रूप में काम में लेना शुरू किया। जलती लकड़ी एक मशाल के रूप में उसके मार्ग को आलोकित करने लगी। वहीं से शायद 'तमसा मां ज्योर्तिगमय' की गूंज उठी। तरह-तरह की मशालें बनायी गयी।
माटी के नन्हें दिये का आविष्कार हुआ। पत्थर की चिमनियां बनायी गयी। उनमें तेल जलने लगा। ईसा पूर्व 1000 वर्ष से ही तेल जलाकर प्रकाश पैदा किया जाने लगा। कांसे और पीतल के दीपक बने। दीपक केवल एक वैज्ञानिक उपकरण नहीं रहा। वह हमारी सम्पूर्ण संस्कृति का प्रतीक बन गया। उसकी पूजा अर्चना होने लगी। अज्ञान, अंधकार, असत, अन्याय के विरूद्ध लड़ने का सबल प्रतीक बन गया दीपक। दीपक जलाना तथा दीपदान करना एक त्यौहार बन गया। दीपक कई आकारों में बनने लगे। पशु, पक्षी, पेड़ आदि के रूप में दीपक बनने लगे। वृक्ष दीप में 108 दीपक होते हैं। चर्बी और तेल दीपों के बाद खाने के तेल के लैम्प का आविष्कार हुआ। लालटेन, चिमनी और लैम्प बने। गैस से भी प्रकाश किया जाने लगा।
लेकिन अन्धकार से लड़ने का असली हथियार आया जब विद्युत का आविष्कार हुआ। बिजली के आविष्कार का श्रेय थामस अल्वा एडीसन को है। फिर ट्यूब लाइटें, फिर रंगीन लाइटें और धीरे-धीरे प्रकाश ने अंधकार को भगा दिया। प्रकाश के अनेक रूप बने, सबका एक ही काम अंधकार को दूर करो। सोडियम, लैम्प, गैसों वाली ट्यूबें, नियोनसाइन लैम्प और हजारों तरह की रोशनियां। प्रकाश पर्व पर हमें प्रकाश के प्रमुख देवता सूर्य और उसके सात घोड़ों को भी याद रखना चाहिए। पृथ्वी पर जब-जब भी अंधकार की काली रात्रि छायेगी, सूर्य के प्रकाश का इंतजार रहेगा। प्रकाश हमारे जीवन को प्रकाशित करता है, आलोकित करता है। दीपक चाहे मिट्टी का हो या बिजली का हमें अंधकार से लड़ने की, आगे बढ़ने की और संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।
प्रकाश की प्रक्रिया, प्रकाश की प्रकृति और प्रकाश का अध्ययन भौतिक विज्ञानी आज भी कर रहे है और शायद अभी सैकड़ों वर्षों तक करेंगे क्योंकि प्रकाश ही जीवन है।
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