नन् दलाल भारती कवि,कहानीकार,उपन्यासकार एम ․ ए ․ । समाजशास् त्र। एल ․ एल ․ बी ․ । आनर्स। पोस् ट ग्रेजुएट डिप् लोमा इन ह् ...
नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD) दिनांकः
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लघुकथा का विकास एक विमर्श
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लघुकथा को हिन्दी साहित्य की नवीन विधा कहना न्यायोचित नहीं लगता क्योंकि लघुकथा तो हमारे सामाजिक सरोकारों जीवन पद्धति में रची बसी हुई है। हां लिखित रूप में भले ही लघुकथाओं का अस्तित्व नहीं था परन्तु मौखिक लोक कथाओें के रूप पहले भी था आज तो पुस्तक के रूप में सर्वत्र उपलब्ध है। अतीत में झांकने पर याद आता है कि हमारी मां,दादा-दादी,नाना-नानी बाल्यकाल में हमें कहानियों के माध्यम से सामाजिक पारिवारिक, नैतिक एवं परमार्थ की दीक्षा अपरोक्ष रूप से दिया करते थे जो हमारे जीवन में ऐसी घर कर जाती थी कि जीवनपर्यन्त रची बसी रहती थी जो किसी न किसी रूप में कम से कम हमारे देश में तो जीवित ही है, आगे भी हस्तान्तरित हो ऐसी उम्मीद तो की जा सकती है। याद है जब गांवों में मेहमान आते थे रात में कहानियों का दौर शुरू होता था और पूरी रात चलता था जिसमें छोटी-छोटी कहानियां होती थी कहानी सुनाने वाला व्यक्ति बीच -बीच में कहानी के कुछ भाग लयबद्ध तरीके से भी प्रस्तुत करता था तब ये कहानियां अलिखित हुआ करती थी, जिसे सुनने के लिये लोग नींद में भी उठकर चले आते थे। हमारे गांव के मेहमान कहानीकारो में मामाश्री राजबलि का नाम आज भी गांव की जेहन जीवित है। इन्ही किस्से कहानियों को सुनकर लोग जीवन मूल्यों और दायित्वों को समझते थे। यही कारण है कि दुनिया में भारतीय पारिवारिक जीवन पद्धति बेहतर है। भारतीय परिवारो में माता-पिता दादा-दादी,नाना-नानी,मामा-मामी आदि द्वारा राजकुमार, राजकुमारी, राजा-रानी,पशु-पक्षियों, सदावृक्ष, रानीसरंगा, तोता-मैना,सात भइया की बहिन, मूसवा की लदान आदि अने कहानियां बच्चों को सुनायी जाती थी। लघुकथा के विकास की दृष्टि से लोककथाओं-कहावतो को जोड़कर देखा जाना चाहिये जो वास्तव में लघुकथा के ही स्वरूप है। वास्तव में गुजरे जमाने की सामाजिक,पारिवारिक,आर्थिक एवं अन्य मुद्दों पर आधारित छोटी-छोटी मौखिक कहानियां यर्थाथवादी लघुकथाये ही थी जो आज भी हमारे जीवन में रची बसी है। सच तो ये है कि हमारे देश में लघुकथाओं का प्रचलन प्राचीनकाल से चला आ रहा है। ये कथायें हमारे समाज की हिस्सा बन चुकी थी ,जहां चार आदमी इक्टठा होते थे मन बहलाने के लिये,समझने -समझाने के उद्देश्य से छोटी-छोटी कहानियां सुनते -सुनाते थे। पंचतन्त्र हितोपदेश आदि कहानियां भारतीय लोकजीवन में सदियों से चली आ रही है।
सच है कि पुरानी लोक कथाओं का स्वरूप उपदेशात्मक हुआ करता था। इन कथाओं का मुख्य उद्देश्य नैितक शिक्षा,सद्भावना,आदर-सत्कार की परम्पराओं को हस्तान्तरित करने की सख्त माध्यम हआ करती थी जो आज भी है परन्तु आज के परिवेष में वृहद् आकार के यथार्थ को लिपिबद्ध कर लघु आकार दे देकर लघुकथा का नाम दे दिया गया है।। असल में लघुकथा का विकास हिन्दी कहानियों के साथ हो गया था जिसकी पहचान कहानी के नाम से थी परन्तु वर्तमान समय में कहानी को दो नामों से जाना जाने लगा है- कथा अर्थात बडी कहानी और लघुकथा के नाम से अर्थात नामकरण मे विलम्ब, इसलिये नामकरण नवीन कहा जा सकता है पर लघुकथा विधा को नवीन कहना उचित नहीं लगता। हां माधवराजी सप्रे की कहानी एक टोकरी मिट्टी को प्रथम लघुकथा होने का श्रेय प्राप्त है और इसी वटबीज ने ऐसा आन्दोलन चला दिया की आज वृहद् बृक्ष का आकार अख्तियारकर लिया है और देश में ही नहीं देश की सीमा भी यह विधा लांघ चुकी है। इसकी यर्थाथवादी प्रकृति को देखते हुए शोध कार्य तक होने लगे है। पत्र-पत्रिकाओं सहित अर्न्तजाल पर भी लघुकथायें लोकप्रिय हो चुकी है। मेरी तीन लघुकथा की पुस्तकें -उखड़े पांव,एहसास और कतरा-कतरा आंसू अर्न्तजाल संस्करण के रूप में उपलब्ध है,इसके अतिरिक्त मेरे ब्लाग-एनएलभारतीलघुथाब्लागस्पाटडाटकाम पर भी है मेरी लघुकथायें पढी जा सकती है। वेब पत्रिकायें - सृजनगाथाडाटकाम ,स्वर्गविभाडाटटीके, साहित्यंकुंजडाटकाम, अनुभूति, रचनाकारडाटकाम, लघकुथाडाटकाम आदि इस विधा को खूब प्रोत्साहित कर रही है पत्र-पत्रिकायें तो लघुकथाओं का प्रकाशन तो कर ही रही है , पत्र-पत्रिकाओं का नाम गिनाने लगूं तो कई पृष्ठ और जुड़ सकते हैं। वर्तमान दौर में लघुकथायें मानव मूल्यों की जीवन्त तस्वीरें प्रस्तुत कर रही है। लघुथाओं के पात्र अक्सर हमारे आसपास परिवेष- घर-समाज, बाजार हाट दफतर या यों कहे कि आमआदमी से खास आदमी तक गांव से संसद तक में उपलब्ध होते हैं जिससे लघुकथा अधिक पठनीय और असरकारी हो जाती है। लघुकथायें अच्छाईयों को प्रोत्साहित करती है बुराईयों को दुत्कारने की हिम्मत भी पैदा करती है। लघुकथएँ थोंड़े से शब्दों में बहत कुछ कह देती है जिससे उच्च पढ़ा लिखा ही नहीं कम पढा लिखा व्यक्ति भी समझ जाता है। छोटी होते हुए भी ये कथायें अपने आप में कल्पना का विस्तार समेटे हुए होती है कि पाठको को तनिक भर में विषय की गहराई तक पहुंचा देती है। वास्तव में सत्य को कहने का प्रयास होती है ये लघुकथायें। मैं यहां पर सुरेश शर्मा की एक लघुकथा भूल का उल्लेख करना चाहूंगा-
बूढा दुबला-पतला शरीर साइकिल रिक्शा चलाते हुए भी हांफ रहा था तो कभी कंधे पर लटके अंगोछे से पसीना पोंछ रहा था। जैसे ही पैडल पर उसके पांव का दबाव पड़ता,घटने के नीचें की नसें उभर उठती थी।
बाबा, इस उम्र में रिक्शा ढा रहे हो। देखभाल के लिए कोई बेटा-बेटी नहीं क्या ․․․․․? सहानुभति दर्शाते हुए मैंने पूछा।
भगवान की कृपा से एक हट्टा-ट्टा जवान बेटा है साब,पैडल रोककर उसने जवाब दिया, मगर भूल हमसे हो गयी। उसे कालेज की पढाई करवा कर डिग्री दिलवा दी। अब वह गली-गली में डिग्री ढोता फिर रहा है और मैं उसे ढो रहा हूं।
ऐसा चित्रण तो लघुकथा के माध्यम से किया जा सकता है जो दिल से निकल कर सीधे दिल को स्पर्श करता है। लधुकथा जीवन के नजदीक होती है इसे लघुकथा की विशेषता कहा जा सकता है जो जीवन ओर जगत से जुड़ी हुई है। लघुकथा में सामाजिक बुराईयों, जातीय भेदभाव, राजनैतिक पैंतरेबाजी नैतिक पतन आदि मुद्दों पर लघुकथाकार लेखनी के तेवर दिखा रहे है जो समाज और राष्ट्र हित में आवश्यक हो गया है। ऐसा लेखन को आज के दौर में समाज और राष्ट्र सेवा से जोड़कर देखा जाना चाहिये। लघुकथाकार बनियादी समस्याओं,व्यक्ति से जुड़ी संवेदनाओं, राष्ट्र और प्रकृति को लघुकथा का विषय बना रहे है और ऐसी रचनायें पाठकों आदमियत और प्रकृति से जोड़ने में अहम् निभा रही है। मानवीय समानता,सद्भावना चरित्र निर्माण की दृष्टि से एवं काल-पस्थितियों का लघकथा के रूप् में चित्रण डां․पूरन सिंह,कालीचरण प्रेमी, सूर्यकान्त नागर,डां․योगेन्द नाथ शुक्ल आदि अनेक कलमकार पूरे उत्तरदायित्व के साथ निभा रहे है।
लघुकथा जीवन की सच्चाई का पर्याय है। इसकी आकृति को लेकर तरह -तरह के विचार सामने आते हैं परन्तुयह याद रखने का विषय है कि साहित्य में गणितीय पैमाइश / नापजोख को कोई स्थान तो नहीं प्राप्त है। लघुकथा रचना प्रक्रिया की जहां तक बात है यह मुद्दा विमर्श का नहीं होना चाहिये। यह कलमकार का अपना व्यक्तिगत् मामला है,इसे किसी नियम में नहीं बांधा जाना चाहिये इससे की यर्थाथता प्रभावित हो सकती है। लघुकथा के विकास में ये नियम बाधा बन सकते हैं। आज लघुकथा जो इतनी संबृद्ध है उसकी वजह लेखक की स्वतन्त्रता है। भले ही पाठको की कमी हो परन्तु लघुकथा को विस्तार और कथाकारों को पहचान मिली है। यह लघुकथा के विकास की दृष्टि से स्वर्णिम काल कहा जा सकता है।इससे यह सिद्ध हो चुका है कि लघुकथा अनुभूति है जीवन दर्शन है सार्थ एवं सफल विधा है। लघुकथा की शब्द सीमा निर्धारित करना कठिन है,कहानी की तुलना में लघुकथा में काफी लघुता होनी चाहिये परन्तु यह ध्यान रखना चाहिये की लघुकथा अपना मकसद न भूल जाये। कथा की जीवन्तता,उपयोगिता और प्रासंगिता को बनाये रखने के लिये आवश्यक है कि उसके आकार लघु हो और नवीनता बनी रहे। हां लघुकथा लेखन में लेखक अपनी भाषा शैली के लिये स्वतन्त्र है,लेख की अपनी भाषा शैली खुद के लिए आदर्श हो सकती है परन्तु सभी को यह मान्य हो यह ऐसा नहीं का जा सकता। हां रचनाकार की भाषा शैली ऐसी होनी चाहिये जो पाठकों के मन में उतर जाये और ऐसी कथा से उपजे विचार साहित्य देश और समाज के उत्थान की दृष्टि से हितकारी हो। यह वचनबद्धता लघुकथा को संवृद्ध करने में , विकास और इस आन्दोलन की प्राणवायु साबित हो सकती है।
वर्तमान समय लघुथाओं का है समय की मांग है ,इसको ध्यान में रखते हुए लेखन भी अहमियत भरा कार्य है। लघुकथा की अपनी सुनिश्चित दिशा के साथ जीवन दृष्टि भी होती है। लघुकथायें वृहद् रूप की सारांश होती है जिसे आज पाठक पसन्द कर रहे है। लघुकथा समय के साथ मानव-मन की गहराई तक को छू लेती है और अर्न्तमन को झकझोर देने की ताकत भी रखती है बशर्ते विषयवस्तु प्रभावी हो। सच है, जीवन संग्राम में होने वाली हर घटनाओं चाहे वे सामाजिक हो,धार्मिक हो आर्थिक हो राजनैतिक हो या अन्य मुद्दे हो को कथाकार हर पहलुओ पर सूक्ष्मता से चिन्तन मनन करता है इसके बाद लघुकथा का सृजन करता है।,तभी ये कथायें दिल और दिमाग पर अमिट प्रभाव छोड़ती है। लधुकथा ठीक वेसे ही प्रभावकारी है जैसे भेाजपुरी में एक कहावत है, ‘‘ छोटी मिर्च तिताई बहुत तेज'' अथवा यो कहे कि बन्दूक से निकली हुई गोली जो सीधे निशाने पर लगती है दूसरे शब्दों में लघुकथा पाठक को झकझोरने का माद्दा रखती है परन्तु प्रस्तुति के साथ कथानक असरदार हो क्योंकि लघुकथा में काफी कुछ कहना शेष रहता है जो पाठक पढने के बाद खुद सोच विचार में जुट जाता है। सम्भवतः लघुकथा व्यक्ति विशेष की कथा नहीं होती लघुकथा किसी के साथ घटी घटना होती है जिसमे वैयक्तितता की प्रधानता नहीं होती है। यह लघुकथा बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती है और यही लघुकथा का प्रभाव होना चाहिये। लघुकथा जीवन के किसी समस्या की सपाटबयानबाजी होती है दूसरी ओर एक सत्य को उजागर करने का प्रयास भी है। लघुकथा में विषय,कथानक और जीवन की समस्याओं का चित्रण लघुकथाओं में नजदीक से देखने को मिलता है। लघुकथा दृष्टि है,सोच है,समझ है चिन्तन है अनुभव और यथार्थ की अभिव्यक्ति है अर्थात लघुकथा लघु रूप में होते हुए समग्र है विराट है। यही कारण है कि लघुकथा अन्य विधाओं से अलग स्थान बना चुकी है विकासशील विधा बन चुकी है।
लघुकथा का अभ्युदय भले ही आधुनिक काल माना जा रहा हो परन्तु लघुकथा की भारत की माटी में सदियों से कुसुमित है जिसका विस्तार आधुनिक युग में देखा जा रहा है। वर्तमान समय में अनेक पत्रिकायें लघुकथा के प्रकाशन में अहम् भूमिका निभा रही है। अनेक लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो रहे है जो लघुकथा की लोकप्रियता के परिचायक है। वर्तमान में लघुकथा विश्व में सफलता के साथ मान्यता प्राप्त कर चुकी है। लघुकथा को अर्न्तराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने का श्रेय साहित्यकारों, सम्पादकों को जाता है जो खुद संघर्षरत् रहकर साहित्य की इस विधा को अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित एवं प्रतिष्ठित किया है गौरव का विषय है कि आज लघुकथा लेखन के क्षेत्र में पुरस्कार सम्मान तक स्थापित हो चुके है परन्तु यह समय खुशियां मनाने का ही नहीं है,लघुकथा के विकास संभावनायें तलाशने का भी है।
पाठकों के बदलते रूख को देखकर कहा जा सकता है कि वर्तमान समय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से चिन्तनीय तो है परन्तु साहित्यकारों की एकता,संघर्ष और त्याग ने साहित्य और संस्कृति को कुसुमित किये हुए है। भविष्य में भी यही संघर्ष लघुकथा ही नहीं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं के विकास में मील के पत्थर साबित होगे। वह दिन दूर नहीं होगा जब दर्शक पाठक बनने को आतुर होंगे उनके हाथों में पुस्तकें होगी। साहित्य के विकास की दृष्टि से वह स्वर्णिम काल होगा ऐसे समय की इन्तजार हर लेखक को बेसब्री से इन्तजार रहेगा। लघुकथा के विकास के लिये इस बात की जरूरत है कि वर्तमान समय के रचनाकारों का संघर्ष तो जगजाहिर है, साहित्य के प्रति समर्पण भाव भी खूब है बस जरूरत है प्रयासरत् रहने की और नवोदित रचनाकारों को सहयोग प्रदान करने की। विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यह प्रयास उज्जवल भविष्य का द्योतक होगा। नन्दलाल भारती 28․08․2010
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जीवन परिचय /BIODATA
नन्दलाल भारती
कवि, कहानीकार, उपन्यासकार
शिक्षा - एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी।खैरा।पो․नरसिंहपुर जिला-आजमगढ।उ․प्र।
प्रकाशित पुस्तकें ई- पुस्तकें․․․․․․․․․․․․ | उपन्यास-अमानत,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह। प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं कविता कहानी लघुकथा संग्रह। उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म, सपनो की बारात लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी, उद्गार आलेख संग्रह- विमर्श एवं अन्य |
सम्मान | स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009,मुम्बई, साहित्य सम्राट,मथुरा।उ․प्र․। विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म․प्र․, विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ․प्र․। लेखक मित्र।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड। भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत। डां․अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली, काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र, ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर।म․प्र․। डां․बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर , विद्यावाचस्पति,परियावां।उ․प्र․। कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर।राज․। साहित्यकला रत्न।मानद उपाधि। कुशीनगर।उ․प्र․। साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म․प्र․। सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली।उ․प्र․।एवं अन्य |
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण। रचनाओं का दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर,पत्रिका,पंजाब केसरी एवं देश के अन्य समाचार irzks@ifrzdvksa में प्रकाशन , वेब पत्र पत्रिकाओं www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com rachanakar.com / hindi.chakradeo.net www.srijangatha.com,esnips.con, sahityakunj.net,chitthajagat.in,hindi-blog-podcast.blogspot.com, technorati.jp/blogspot.com, sf.blogspot.com, archive.org ,ourcity.yahoo.in/varanasi/hindi, ourcity.yahoo.in/raipur/hindi, apnaguide.com/hindi/index,bbchindi.com, hotbot.com, ourcity.yahoo.co.in/dehradun/hindi, inourcity.yaho.com/Bhopal/hindi,laghukatha.com एवं अन्य ई-पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन। | |
सदस्य | इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा। नई दिल्ली |
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ․प्र․। | |
हिन्दी परिवार,इंदौर।मध्य प्रदेश। | |
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून।उत्तराखण्ड। | |
साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ․प्र․। म․प्र․․लेखक संघ,म․प्र․भोपाल एवं अन्य | |
सम्पर्क सूत्र | आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र․! दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066 Email- nlbharatiauthor@gmail.com Visit:- http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http;//www.nandlalbharati.blog.co.in/ nandlalbharati.blogspot.com http:// www.hindisahityasarovar.blogspot.com/ httpp://nlbharatilaghukatha.blogspot.com www.facebook.com/nandlal.bharati |
जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
बहुत दिनों से लघुकथा पर कुछ लिखने का मन बना रही थी, लेकिन आज उस पर एक सार्थक लेख पढ़कर मन खुश हुआ। मेरा भी एक लघुकथा संग्रह अभी प्रकाशित होकर आया है। मैं आपकी साइट पर जाकर अवश्य लघुकथा पढने का प्रयास करूंगी।
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