(पिछले अंक से जारी…) अंतिम सर्ग अंग्रेजी-सेना इधर करने चली विश्राम। उधर हुई कित्तूर में, चर्चा आम-तमाम।। विपुल सैन अंग्रेज की, पहुँच...
अंतिम सर्ग
अंग्रेजी-सेना इधर करने चली विश्राम।
उधर हुई कित्तूर में, चर्चा आम-तमाम।।
विपुल सैन अंग्रेज की, पहुँची सीमा पार।
प्रात काल कित्तूर में, होगा युद्ध अपार।।
तुलना में अंग्रेज की, अल्प सैन्य कित्तूर।
किन्तु, मनोबल, वीरता, साहस अमित जरूर।।
रानी को कहते सभी, दुर्गा-का अवतार।
रानी के संकेत पर, मिटते सौ-सौ बार।।
लोगों की थी धारणा, जनता का यह सांच।
आने भी देंगे नहीं, चेन्नम्मा पर आंच।।
जाग रहे कित्तूर के, नर-नारी सब वृन्द।
देशभक्ति के गा रहे, हो उत्साहित छन्द।।
सब जनता कित्तूर की, युद्ध हेतु तैयार।
हृदय में सबके भरा, चेन्नम्मा हित प्यार।।
किये सुरक्षा के सभी, रानी सरल उपाय।
रखा आक्रमण-डोर को, अपने हाथ सजाय।।
जनता में कित्तूर की, दिया प्यार-रस घोल।
देशभक्ति की भावना, बोली मधुरिम बोल।।
‘वीरों! अब कित्तूर में, होगा अन्तिम युद्ध।
हार-जीत का फैसला, दुर्गा करे विशुद्ध।।
जीत गये तो देश में, सदा रहेगा नाम।
हुई वीरगति तो मिले, परम ईश का धाम’।।
इधर चेन्नम्मा भर रही, जनता में उत्साह।
उधर चैपलिन सो रहा, होकर बेपरवाह।।
देख चैपलिन कुमुक को, मन में था आश्वस्त।
कर देगी कित्तूर को, गोरी सेना ध्वस्त।।
रात्री का चौथा प्रहर, मन्द-मन्द-सा भोर।
खगकुल कलरव कर रहा, बड़ा मनोरम शोर।।
उठा चैपलिन नींद से, सुन खगकुल संगीत।
निखिल सृष्टि भी गा रही, मधुर-मधुर नवगीत।।
दूर तलक सोयी हुई, सारी गोरी सैन।
केवल पहरेदार के, पड़ें सुनायी बैन।।
जगा चैपलिन ने दिये, सेना-प्रमुख-कोर।
कहा-‘सैन तैयार कर, चलो नगर की ओर।।
प्रातः की प्रथम किरण, निकले जब कित्तूर।
गोरी सेना घेर ले, तब तक नगर जरूर’।।
अल्प समय में हो गयी, सब सेना तैयार।
अलग-अलग सब टुकड़ियाँ, बाँध लिये हथियार।।
कहा चैपलिन ने तभी, करे सैन प्रस्थान।
छोड़ा सीमा पर सभी, व्यर्थ लगा सामान।।
रहे असैनिक कुछ वहाँ, नौकर-चाकर शेष।
रक्षाहित अस्वस्थ की, सैनिक रखे विशेष।।
अभी झुकमुका लग रहा, मानो हुआ न भोर।
घेर लिया कित्तूर को, किये बिना ही शोर।।
गोरों ने रणनीति से, घेरे सारे द्वार।
पीछे तोपें दीं लगा, आगे अश्व सवार।।
विपुल सैन अंग्रेज की, ऐसी कसी कमान।
चप्पा-चप्पा चैपलिन, घूमे साथ जवान।।
शिवबसप्पा ने जो कहा, रखा चैपलिन ध्यान।
द्वार पश्चिमी दुर्ग पर, दिया बहुत संज्ञान।।
आज युद्ध की नीति का, मुख्य रहा आधार।
द्वार पश्चिमी पर करें, तोपों से प्रहार।।
शेष द्वार पर दुर्ग के, सेना रही सचेत।
थोड़ी-सी हलचल मचे, करे दें उसे अचेत।।
लिया चैपलिन ने नहीं, कोई ख़तरा मोल।
बाँट दिया कित्तूर को, व्यूह बनाकर गोल।।
अपना-अपना मोर्चा, सबने लिया संभाल।
कहा चैपलिन ने तभी, युद्ध करें तत्काल।।
किया तोपची ने शुरू, एक साथ विस्फोट।
द्वार पश्चिमी पर पड़ी, सीधी आकर चोट।।
चेन्नम्मा यह देखकर, हुई बहुत हैरान।
द्वार पश्चिमी पर डटे, गोरे ज्यों शैतान।
गोलों के विस्फोट जब, लगे तोड़ने द्वार।
रानी ने भी कह दिया, ‘मत चूको इस बार’।।
रानी की ‘जयनाद’ से, गयी धरा सब डोल।
टूट पड़ा कित्तूर सब, ‘हर-हर, बम-बम’ बोल।।
भाले-बरछी चल रहे, उछल रहे हथियार।
तोपें-बन्दूकें चलीं, चमक रहीं तलवार।
इधर तोप कित्तूर की, दाग रहा गजवीर।
उधर तोप अंग्रेज की, रही रोशनी चीर।।
धुँआ-धुँआ आकाश तक, बरस रही थी आग।
मारो-पकड़ो-काट दो, मचती भागमभाग।।
झपट सिंह ज्यों हिरन को, पल में देता चीर।
त्यों गोरों को काटते, चेन्नम्मा के वीर।।
चेन्नम्मा ने युद्ध में, किया बहुत संहार।
मैकलियड-मनरो सहित, कर्नल गये सिधार।।
देख चैपलिन युद्ध को, भूल गया सब जोश।
गोरों को कित्तूर ने, भुला दिया सब होश।।
विद्युत जैसी चमकती, रानी की तलवार।
कभी इधर, पल में उधर, लड़ती अश्व सवार।।
ऊपर रानी काटती, अश्व मारता टाप।
एक साथ गोरे कई, मर जाते थे आप।।
चेन्नम्मा का अश्व था, मनो देश का लाल।
मुड़ जाता था जिधर को, उधर टूटता काल।।
मारे चारों पैर से, मुँह से देता चीर।
चेन्नम्मा को पीठ पर, साध रहा ज्यों वीर।।
गोरे सैनिक भागते, देख अश्व तत्काल।
गोरी सेना का किया, रानी ने बदहाल।।
लपक-गपक औ’ झमक कर, चमक रही तलवार।
पल में धड़ से काटती, गिरते अश्व सवार।।
देख चैपलिन युद्ध को, मन में हुआ निराश।
कर्नल-मेजर-कैप्टन, कितने हुये विनाश।।
पान तंबोली काटता, कृषक कतरे ईख।
चेन्नम्मा त्यों काटती, निकल न पाती चीख।।
बालण्णा व रायण्णा, करते युद्ध दिलेर।
लपक-झपक कर मारते, जैसे बाज बटेर।।
इधर तोप बरसा रहीं, बहुत दुर्ग से आग।
खेल रहा गजवीर था, मानो खूनी फाग।।
गोरी-सेना का गया, उधर मनोबल टूट।
गोरे सैनिक भागते, मनो जेल से छूट।।
देख रहा सब चैपलिन, छुपा विटप की ओट।
रानी पर बन्दूक से, लगा निशाना चोट।।
देख चैपलिन को लिया, आगे बढ़ा दिलेर।
हटा चेन्नम्मा को दिया, हुआ शेर ख़ुद ढ़ेर।।
गिरता देख दिलेर को, युद्ध भूमि के बीच।
रानी के आँसू झरे, गये वीर को सींच।।
हाय! अरे! यह क्या हुआ, भैया! वीर दिलेर।
काल-सर्प ने डंस लिया, भारत माँ का शेर।।
धन्य! वीर कित्तूर के, गये वीरगति धाम!
रानी को जीवन दिया, किया अनूठा काम।।
धन्य! तुम्हारी वीरता, धन्य! समर्पण-त्याग।
याद रहे कित्तूर को, सदा तुम्हारा राग।।
भारत के इतिहास में, सदा रहेगा नाम।
रानी नत मस्तक हुई, करती वीर! प्रणाम।।
रानी ने देखा उधर, शिवबसप्पा मुस्काय।
खड़ा चैपलिन साथ में, रहा उसे बतियाय।।
रानी पर बन्दूक से, करना चाहा बार।
तब तक रानी ने किया, भाला फैंक प्रहार।।
जाकर भाला घुस गया, शिवबसप्पा के पेट।
सावधान था चैपलिन, गया भूमि पर लेट।।
आंत-ओझड़ी पेट से, बाहर लटकी आय।
निकल जीभ लम्बी हुई, आँख गयी पथराय।।
मौत मिली ग़द्दार को, डूब गया अभिमान।
बीच पड़ा रणभूमि के, लगे झपटने श्वान।।
चेन्नम्मा करने लगी, पुनः भयंकर युद्ध।
अस्त्र-शस्त्र थे चल रहे, मानो होकर क्रुद्ध।।
युद्ध देख कित्तूर का, हुआ चैपलिन पस्त।
मानो गोरों का हुआ, दिन में सूरज अस्त।।
विपुल सैन अंग्रेज की, पीछे हटती जाय।
सेना भी कित्तूर की, उसको रही हटाय।।
सेना जब कित्तूर की, जीत रही थी जंग।
‘बम-बम, हर-हर’ बोलती, ऐसी भरी उमंग।।
जीत सामने थी खड़ी, उलटा विधिक विधान।
बिना हवा-तूफ़ान के, पलटे मनो विमान।।
बालण्णा व रायण्णा, करते युद्ध अपार।
गोरे अश्व सवार ने, घोंपी पेट कटार।।
ढेर वहीं पर हो गये, दोनों माँ के लाल।
धोखा देकर खा गया, दो वीरों को काल।।
हाय! अरे! दुर्भाग्य ने, किया देश का नाश।
कातर नैन निहारती, रानी खड़ी विनाश।।
इधर वीर दोनों हुये, युद्ध भूमि में ढ़ेर।
टूट पड़े कित्तूर पर, गोरे घायल शेर।।
गोरों ने कित्तूर के, द्वार दिये सब खोल।
नर-नारी कित्तूर के, लड़ते बम-बम बोल।।
चेन्नम्मा को लग गया, अब न बचे कित्तूर।
राजमहल पहुँची तुरत, होकर अति मजबूर।।
वीरव्बा से नैन भर, रानी बोली बैन।
बेटी! अब कित्तूर में, आने वाली रैन।।
करो शीघ्र कित्तूर से, बेटी! अरे! प्रयाण।
अँग्रेज़ों से मैं लडूँ, जब तक तन में प्राण।।
देसाई बालक अभी, ले जाओ उस ओर।
मिले नहीं अंगे्रज को, तनिक कहीं भी छोर।।
यह बालक कित्तूर का, है भावी युवराज।
ले जाओ कित्तूर की, छुपा धरोहर आज।।
जाय साथ में आपके, गुरूसिद्दप्पा दीवान।
गुप्त मार्ग से महल के, करो शीघ्र प्रस्थान।।
जैसे हो युवराज को, लेना बहिन! बचाय।
तुम्हें शपथ कित्तूर की, यही हमारा दाय।।
वीरब्बा के नैन से, बहने लगा प्रवाह।
धन्य! राजमाता अरे! धन्य! आपकी चाह।।
गुरूसिद्दप्पा को दिया, रानी ने आदेश।
ले जाओ युवराज को, वीरब्बा के देश।।
विदा किया युवराज को, दिया सुरक्षा भार।
चले गये कित्तूर से, गुप्त महल के द्वार।।
बचा लिया युवराज को, किया स्वयं का दान।
रानी मन हर्षित बड़ी, व्यर्थ नहीं बलिदान।।
रानी ने रणभूमि को, फिर से लिया संभाल।
रणचण्डी अब बन गयी, ली तलवार निकाल।।
गोरों की सेना घुसी, गली-गली बाजार।
लूटपाट होती रही, मारकाट हर द्वार।।
जनता में कित्तूर की, भरा हुआ उत्साह।
देशभक्ति की धार का, रुकता कहाँ प्रवाह।।
पहुँची रानी दुर्ग पर, जहाँ लड़ रही तोप।
थका हुआ गजवीर भी, आग रहा था झोक।।
तोपें अब कित्तूर की, करने लगीं सलाम।
चलते-चलते अश्व की, जैसे खिंचे लगाम।।
रानी ने गजवीर से, पूछा क्या यह हाल?
क्यों तोपें कित्तूर की, हुई आज बदहाल’।।
विवश कहा गजवीर ने, ‘हुआ बड़ा षडयंत्र।
असफल अपना हो गया, सब बारूदी तंत्र।।
हाय! मनुज कित्तूर का, गोरे हाथ बिकाय।
रानी जी! बारूद में, गोबर दिया मिलाय।।
अब गोले चलते नहीं, आग न करती काम।
गीली सब बारूद है, तोप हुई नाकाम’।।
कहते-कहते नैन से, लगा छलकने नीर।
रानी जी! कित्तूर का, हार गया गजवीर।।
इसी बीच गजवीर के, हुआ पास विस्फोट।
टुकड़े-टुकड़े तन हुआ, खा गोले की चोट।।
गया वीर कित्तूर का, माँ की गोद समाय।
मन की मन में रह गयी, करता कौन उपाय??
खड़ी चेन्नम्मा देखती, मुँह से निकली हाय!
धन्य! वीर कित्तूर के, धन्य! तुम्हारी माय।।
चले गये कित्तूर से वीर! छोड़कर साथ।
माता खड़ी पुकारती, रहा अकेला हाथ।।
चेन्नम्मा के नैन से, झरती आँसू धार।
मानो अब कित्तूर की, हुई सुनिश्चित हार।।
आँसू अपने पोंछकर, होकर अश्व सवार।
रानी तेजी से चली, करके युद्ध विचार।।
सुमिरन करके इष्ट का, ले दुर्गा का नाम।
रानी कूदी युद्ध में, करने अन्तिम काम।।
रानी पर कित्तूर का, ऐसा चढ़ा जुनून।
काट-काट अंग्रेज-सिर, लगी बहाने खून।।
जनता भी कित्तूर की, उधर लड़ रही साथ।
भाले-बरछी चल रहे, दिखा रहे सब हाथ।।
छः घण्टे कित्तूर में, गली-गली बाजार।
रण-चण्डी रानी बनी, अगणित गोरे मार।।
खोज चैपलिन को रही, रानी अश्व सवार।
यदि आ जाये सामने, लेती शीश उतार।।
छुपा कहीं पर चैपलिन, लेकर कोई ओट।
जिससे छुपकर कर सके, वह रानी पर चोट।।
रानी ने कित्तूर में, मचा दिया कुहराम।
काट-काट धड़-सिर किये, गोरे क़त्ल तमाम।।
जहाँ मिले, जैसे मिले, कटे झुण्ड के झुण्ड।
गोरे सैनिक दीखते, काट दिये नर-मुण्ड।।
गोरों से कित्तूर को, रानी लिया उबार।
दिये मौत के घाट पर, गोरे सभी उतार।।
गोरे सैनिक भागते, रहा चैपलिन रोक।
जीत रहे कित्तूर हम, कहता सबको टोक।।
‘चेन्नम्मा की जय’ इधर, गूँज रहा जयकार।
किया चैपलिन ने उधर, फिर से उलटा बार।।
गोरों की सेना घुसी, पुनः नगर कित्तूर।
अब चेन्नम्मा घिर गयी, हा! विधि रचा फितूर।।
चेन्नम्मा ने म्यान से, बाहर की तलवार।
पड़ी लपक कर, टूटकर, मानों सिंह सवार।।
गोरे सैनिक लड़ रहे, खड़ा चैपलिन दूर।
चेन्नम्मा के युद्ध से, कांप उठा वह शूर।।
कर्नल फ्रिंकन लड़ रहे, लड़ें कई कप्तान।
चेहरे सभी उदास थे, गहरे लहूलुहान।।
जाकर बोला चैपलिन, कर्नल फ्रिंकन पास।
सुनो! ध्यान से बन्धुवर! युक्ति मिली है ख़ास।।
रानी अश्व सवार है, लड़ती होकर क्रुद्ध।
लेकिन, रानी से अधिक, अश्व लड़ रहा युद्ध।।
चेन्नम्मा के अश्व पर, छुपकर करो प्रहार।
अश्व मरे, रानी गिरे, करो बार पर बार।।
रानी से सीधे लड़े, मिली हमें नित हार।
गोरे अफसर सैकड़ों, दिये चेन्नम्मा मार।।
चेन्नम्मा वीरांगना, अजब शक्ति अवतार।
जब तक जीवित यह रहे, मिले सदा ही हार।।
छल से बल से युद्ध को, हम सकते हैं जीत।
अश्वहीन रानी करो, यही चैपलिन नीत।।
मान चैपलिन का कहा, गोली करी प्रहार।
चेन्नम्मा के अश्व पर, किया बार पर बार।।
एक साथ गोली कई, लगी अश्व के पेट।
गिरा अश्व मैदान में, गया भूमि पर लेट।।
रानी संभली देखकर, भाला लिया उठाय।
जब तक फ्रिंकन संभलता, उस पर दिया चलाय।।
ढ़ेर वहीं फ्रिंकन हुआ, घुसा पेट में जाय।
दूर चैपलिन देखता, कुछ भी नहीं बसाय।।
अश्वहीन रानी हुई, करती-फिरती मार।
टूट पड़े अंग्रेज सब, पैदल-अश्व सवार।।
रानी पर करने लगे, सभी वार पर वार।
घायल हेाती सिंहिनी, माने कभी न हार।।
बदन-बदन छलनी हुआ, घेरे खड़े सवार।
मृत्यु सामने देखकर, पल में किया विचार।।
बनूँ बन्दिनी मैं नहीं, दूँगी अपने प्राण।
रानी यह कित्तूर की, नहीं चाहती त्राण।।
खींच कटारा हाथ में, जपा राम का नाम।
माते! दुर्गा! आ रही, बेटी! तेरे धाम।।
बुझी कटारी छाहर में, लिया पेट में घोंप।
चेन्नम्मा ने जिंदगी, दी माता को सोंप।।
चेन्नम्मा का हो गया, पल में काम तमाम।
जीते जी वीरांगना, बनती नहीं गुलाम।।
देख रहा था चैपलिन, रानी का अवसान।
धन्य! धन्य! रानी तुम्हें, भारत की दिनमान।।
रानी के शव के निकट, आकर किया प्रणाम।
चेन्नम्मा के साथ ही, घोषित युद्ध विराम।।
जनता सब कित्तूर की, करती जय-जय कार।
धन्य! धन्य! वीरांगना गूँज रहा जयकार।।
किया चैपलिन ने बड़ा, रानी का सम्मान।
राज्योचित गौरव दिया, किया महाप्रस्थान।।
रानी के शव पर किये, पुष्प अमित उपहार।
विधि-विधान से कर दिया, चेन्नम्मा-संस्कार।।
करा दिया कित्तूर में, ‘कल्मठ’ में निर्माण।
अमर हुई वीरांगना, बनी समाधि प्रमाण।।
रानी के कित्तूर में, ऐसी जली मशाल।
धीरे-धीरे आग यह, बनकर हुई विशाल।।
गोरों को जाना पड़ा, छोड़ हिन्द का राज।
आख़िर उसी मशाल ने, हमको दिया स्वराज।।
आजादी के युद्ध में, हुए अमित उत्सर्ग।
अमर सभी दिव्यात्मा, मिला सभी को स्वर्ग।।
व्यर्थ कभी जाता नहीं, किया हुआ बलिदान।
आजादी हमको मिली, भारत बना महान।।
पुरवैया में बह रहा, मधुर-मधुर संगीत।
बच्चा-बच्चा देश का, गाता था यह गीत।।
गीत
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।
उठो! देश के वीर बाँकुरों! माँ ने हमें पुकारा है।।
आज देश की सीमाओं पर
भीषण संकट छाया है।
शान्ति लूटने इधर लुटेरा
दूर देश से आया है।।
रोज छूटती तोपें-गोली, करता खून किनारा है।
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।।1
कश्मीर है मुकुट मात का,
हाय! गिराया जाता है।
रोज सैकड़ों ललनाओं का,
शील मिटाया जाता है।।
हाय! करें क्या? खून खौलता, चलता शीश कुठारा है।
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।।2
घोर रूदन करती भारत-माँ
देख-देख बर्बादी को।
लूट रहा है वेष बदलकर,
बेटा खुद आज़ादी को।।
चोर, सिपाही बना हुआ है, यह दुर्भाग्य हमारा है।
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।।3
उत्तर-दक्खिन, पूरब-पश्चिम,
शीत हवायें चलती हैं।
मैदानों की गर्म हवायें
शीश झुका, कर मलती हैं।।
बोल नहीं ओठों से निकलें, हिम ने पैर पसारा है।
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।।4
सूख गयी हैं रक्त-शिरायें,
भाव अमित उपहास लिए।
बिना त्याग के मृत्यु मिल रही,
हाय! कहाँ विश्वास जिए??
विद्रोही हो उठी भावना, किसने भवन उजारा है??
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।।5
माना आज अराजकता है,
चारों ओर अन्धेरा है।
रोम-रोम को भारत माँ के,
आधि-व्याधि ने घेरा है।।
धीरे-धरो! प्राची में देखो! उगता लाल सितारा है।
मातृभूमि के स्वाभिमान ने, आज हमें ललकारा है।।6
आजादी हित कर दिये, प्राण सहज बलिदान।
धन्य अमर वीरांगना, भारत-माँ सन्तान।
युग-युग तक संसार में, सौरभ रहे विकीर्ण,
बच्चा-बच्चा देश का, सदा करे गुणगान।।
(समाप्त)
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डॉ० महेश ‘दिवाकर’ - एक परिचय
नाम : डॉ० महेश चन्द्र साहित्यिक नाम : ‘दिवाकर’
जन्म तिथि : २५.१.१९५२
जन्म स्थान : ग्राम- महलकपुर मॉफी, देहली-राष्ट्रीय राजमार्ग,
पो० पाकबड़ा (मुरादाबाद) उ०प्र०, भारत
पिता का नाम : स्व० कृपाल सिंह पंवार
माता का नाम : श्रीमती विद्या देवी पंवार
पत्नी का नाम : डॉ० चन्द्रा पंवार, पी-एच०डी० (हिन्दी)
शिक्षा : पी-एच.डी., डी.लिट.(हिन्दी), पी.जी. डिप्लोमा इन जर्नलिज्म
सम्प्रति : एशोसिएट प्रोफेसर, अध्यक्ष एवं शोध निदेशक,
पत्रकारिता, उच्च हिन्दी अध्ययन एवं शोध विभाग
गुलाबसिंह हिन्दू (स्नातकोत्तर) महाविद्यालय, चाँदपुर-स्याऊ (बिजनौर) उ०प्र०, भारत
सम्बद्धता : एम०जे०पी०रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, (बरेली) उ०प्र०, भारत
लेखन विधाएं : कविता, नयी कविता, गीत, मुक्तक, कहानी, निबन्ध,
रेखाचित्र, संस्मरण, शोध, समीक्षा, सम्पादन, पत्रकारिता, यात्रावृत्त, जीवनी, अनुवाद, साक्षात्कार।
प्रकाशित कृतियाँ :
(क) मौलिक कृतियाँ :
(अ) शोध ग्रंथ
१.हिन्दी नयी कहानी का समाजशास्त्रीय अध्ययन (पी-एच०डी०) -१९९०
२.बीसवीं शती की हिन्दी कहानी का समाज-मनोवैज्ञानिक अध्ययन (डी०लिट्०) ९२
३.हिन्दी गीति काव्य- २००९
(आ) समीक्षा-ग्रंथ
४.सर्वेश्वर का कवितालोक -१९९४
५.नवगीतकार डॉ०ओमप्रकाश सिंह : संवेदना और शिल्प- २०१०
(इ) साक्षात्कार संग्रह
६.भोगे हुए पल (बीस साक्षात्कारों का संग्रह)-२००५
७.आपकी बात : आपके साथ (इक्कीस साक्षात्कारों का संग्रह)-२००९
(ई) नयी कविता संग्रह
८.अन्याय के विरूद्ध -१९९७
९.काल भेद -१९९८
(उ) गीत संग्रह
१०.भावना का मन्दिर -१९९८
११.आस्था के फूल -१९९९
(ऊ) मुक्तक-गीति संग्रह
१२.पथ की अनुभूतियाँ -१९९७
१३.विविधा -२००३
१४.युवको! सोचो! -२००३
१५.सूत्रधार है मौन! -२००७
१६.रंग-रंग के दृश्य -२००९
(ओ) खण्ड काव्य
१७.वीरबाला कुँवर अजबदे पंवार -१९९७
१८.महासाध्वी अपाला -१९९८
१९.रानी चेन्नम्मा -२०१०
(औ) यात्रा-वृत्त
२०.सौन्दर्य के देश में - २००९
(ख) सहलेखन कृतियाँ :
१.डॉ० परमेश्वर गोयल की साहित्य साधना- २००५
२.बाबू बाल मुकुन्द गुप्त : जीवन और साहित्य- २००७
(ग) सम्पादित अभिनन्दन ग्रंथ :
१.बाबू सिंह चौहान : अभिनंदन ग्रंथ (’९८)
२.प्रो० विश्वनाथ ाुक्लः एक शिव संकल्प(अभिनंदन ग्रंथ) (२००२)
३.गंधर्व सिंह तोमर ‘चाचा’ : अभिनन्दन ग्रंथ (२०००)
४.प्रो० रामप्रकाश गोयल : अभिनन्दन ग्रंथ (२००१)
५.बाबू लक्ष्मण प्रसाद अग्रवाल : अभिनंदन ग्रंथ (२००७)
६.प्रवासी साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ अभिनन्दन ग्रंथ (’०९)
७.महाकवि अनुराग गौतम : अभिनन्दन ग्रन्थ (’०९)
८.प्रो० हरमहेन्द्र सिंह बेदी : अभिनंदन ग्रंथ (’१०)
(घ) सम्पादित स्मृति ग्रंथ :
१.स्व० डॉ० रामकुमार वर्मा : स्मृति ग्रंथ (’०१)
२.स्व० कैलाशचन्द्र अग्रवाल : जीवन और काव्य-सृ`ि ट (’९१)
(ङ) सम्पादित कोश :
१.रूहेलखण्ड के स्वातंत्रयोत्तर प्रमुख साहित्यकार : संदर्भ कोश (’९९)
२.भारत की हिन्दी सेवी प्रमुख संस्थाएँ : संदर्भ कोश (२०००)
३.दोहा संदर्भ कोश (२००७)
४.गीति-काव्य संदर्भ कोश (यंत्रस्थ)
५.ग्रामीण शब्दावली-कोश (यंत्रस्थ)
(च) सम्पादित काव्य संकलन :
१.यादों के आर-पार (’८८)
२.प्रणय गंधा (’९०)
३.प्रेरणा के दीप (’९२)
४.अतीत की परछाइयाँ (कहानी संकलन)(’९३)
५.नेह के सरसिज (’९४)
६.काव्यधारा (’९५)
७.वंदेमातरम् (देशभक्ति की गीति रचनाएँ)(’९८)
८.नई ाती के नाम (’०१)
९.हे मातृभूमि भारत! (देशभक्ति की गीति रचनाएँ)(’०१)
१०.आखर-आखर गंध (’०२)
११.क्या कह कर पुकारूँ? (भक्ति एवं आध्यात्मिक गीति रचनाएँ)(’०३)
१२.बाल-सुमनों के नाम (’९६)
१३.समय की शिला पर (दोहा संकलन)(’९७)
१४.आजू-राजू (’९८)
१५.नन्हें-मुन्नें (’९८)
(छ) सम्पादित काव्य संकलन (विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में समाहित) :
१.विद्यापति वाग्विलास (’८३) (एम०ए० प्रथम वर्ष हिन्दी के लिए)
२.विद्यापति सुधा (’८५) (एम०ए० प्रथम वर्ष हिन्दी के लिए)
३.एकांकी संकलन (’९०) (बी०ए० द्वितीय वर्ष हिन्दी के लिए)
(ज) सम्पादित काव्य संकलन (साहित्यकार विशेष)
१.नूतन दोहावली (’९४)
२.ओरे साथी! (’०६)
(झ) सम्पादित विशिष्ट ग्रंथ
१.तुलसी वांगमय (’८९)
२.अभिव्यक्ति : समाज और वाङ्गमय (’०२)
३.हिन्दी पत्रकारिता : स्वरूप, आयाम और सम्भावना (’०६)
४.पर्यावरण और वांगमय (’०७)
अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :
अ संस्थापक अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य कला मंच
अ पूर्व संयुक्त सचिव - हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद (राज्यपाल उ०प्र० द्वारा नामित)(१३ दिसम्बर, २००१ से १३ दिसम्बर, २००४)
अ तीन दर्जन से अधिक शोध छात्रों को पी-एच०डी० उपाधि निर्देशन।
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ का साहित्यः संवेदना और शिल्प शीर्षक पर रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय में वैशाली माँगलिक को पी-एच०डी० प्रदत्त।
अ मुरादाबाद जनपद के साहित्यकारों के सन्दर्भ में डा० महेश ‘दिवाकर’ के साहित्य का अध्ययन शीर्षक पर रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय में मिथिलेश को पी-एच०डी० प्रदत्त।
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ : सृजन के विविध आयाम (४०० पृ ठ) - १९९५
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ : सृजन के बीच (२०० पृ ठ) - १९९९
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ : व्यक्ति और रचनाकार शीर्षक पर लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से एम० फिल० लघु शोध प्रबंध- २००३
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ का जीवन व साहित्य शीर्षक पर कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम०फिल० लघु शोध प्रबंध- २००३
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ की प्रकाशित कृतियों का समीक्षात्मक अध्ययन शीर्षक पर एम० जे० पी० रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से एम०ए० लघु प्रबंध।
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ के काव्य में रा ट्रीय चेतना शीर्षक पर एम० जे० पी० रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से एम० ए० लघु शोध प्रबंध
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ के काव्य में विविध स्वर शीर्षक पर एम० जे० पी० रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से एम० ए० लघु शोध प्रबंध
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ : संवेदना व शिल्प शीर्षक पर एम० जे० पी० रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से एम० ए० लघु शोध प्रबंध
अ डॉ० महेश ‘दिवाकर’ : की साहित्य साधना शीर्षक पर कामराज मदुरै विश्वविद्यालय से एम०फिल० - २००७
अ वीरबाला कुँवर अजबदे पंवार (खण्डकाव्य) पर गुरूनानकदेव विश्वविद्यालय, अमृतसर (पंजाब) से एम०फिल-२००८
अ अकाशवाणी और दूरदर्शन से समय-समय पर अनेक रचनाएँ प्रसारित।
अ रा ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में आयोजित अनेकशः संगोष्ठियों और सेमिनारों में विविध विषयों पर व्याखान।
अ देश-विदेश की अनेकशः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य संकलनों में समय-२ पर विविध विधाशः रचनाएँ प्रकाशित।
अ नार्वे और स्वीडन की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक यात्रा- ५ दिसम्बर २००८ से १६ दिसम्बर २००८ तक।
अ देश-विदेश की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विविध अलंकरण एवं सम्मान।
सम्पर्क :
डॉ० महेश ‘दिवाकर’, डी०लिट्०
‘सरस्वती भवन’,
मिलन विहार, दिल्ली रोड, मुरादाबाद (उ०प्र०) पिन - २४४००१
E-mail: maheshdiwakar@yahoo.com
mcdiwakar@gmail.com
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