(पिछले अंक से जारी…) सर्ग - 7 महाराजा कित्तूर के, गये स्वर्ग सिधार। पता थैकरे को चला, हर्षित हुआ अपार।। कैसे अब कित्तूर पर, किया जाय अध...
सर्ग - 7
महाराजा कित्तूर के, गये स्वर्ग सिधार।
पता थैकरे को चला, हर्षित हुआ अपार।।
कैसे अब कित्तूर पर, किया जाय अधिकार?
लगी बनाने योजना, गोरों की सरकार।।
मल्लप्पा और वेंकट, दोनों लिए फँसाय।
लोभ थैकरे ने दिया, लालच बुरी बलाय।।
दोनों ही कित्तूर का, हर पल देते हाल।
दोनों ही ग़द्दार थे, बुनते रहते जाल।।
रानी ने कित्तूर का, शासन लिया संभाल।
जनता में कित्तूर की, वैभव भरा कमाल।।
प्रथम सुरक्षा राज्य की, करी चाक-चौबन्द।
लगा सके दुश्मन नहीं, कहीं लेश पैबन्द।।
किये सुरक्षित द्वार सब, रानी ने मजबूत।
पलक झपकते जान लें, अंग्रेजी-करतूत।।
गुप्तचरों को सोंपकर, अलग-अलग दायित्व।
रानी नित प्रति जांचती, सबका ही कृतित्त्व।।
राज्य नियंत्रण में हुआ, रानी थी सन्तुष्ट।
सब धर्मों, सब जाति के, लोग परस्पर तुष्ट।।
ठोस सुरक्षा का इधर, चलता नित अभियान।
उधर मल्लप्पा-वेंकट, पाल रहे अभिमान।।
चेन्नम्मा ने जब किया, दोनों को पदमुक्त।
तब से दोनों हो गये, और अधिक उन्मुक्त।।
उनके पीछे गुप्तचर, लगा दिये दो-चार।
गतिविधियाँ संदिग्ध जो, पता चलें हर बार।।
मल्लप्पा और वेंकट, लुक-छिप करते खोज।
गोपनीय हर सूचना, दें गोरों को रोज।।
नित्य थैकरे से कहें, बढ़ा-चढ़ाकर हाल।
महाराज की मृत्यु से, राज हुआ बदहाल।।
चेन्नम्मा कित्तूर की, रानी बनी विशुद्ध।
लेकिन, वे अंग्रेज के, रहतीं बड़ी विरूद्ध।।
मृत्यु-पूर्व महाराज ने, दिया राज-आदेश।
रानी चेन्नम्मा बने, इच्छा लिखी विशेष।।
बाल लिया जो गोद है, बना दिया युवराज।
होगा जैसे ही बड़ा, पहना दें फिर ताज।।
गोरों से रानी करे, घृणा अमित अपार।
अँग्रेज़ों का युद्ध में, रानी करें संहार।।
हथियारों का राज्य में, बढ़ा रही भण्डार।
युद्ध कला का दे रही, युवकों को उपहार।।
रानी ने दरबार से, हमको दिया निकाल।
अँग्रेज़ों से युद्ध को, सेना रही संभाल।।
मल्लप्पा और वेंकट, चुगली रहे लगाय।
हाय! थैकरे को दिया, उलटा बहुत चढ़ाय।।
आग बबूला हो गया, सुनकर सारी बात।
‘ओह!’ थैकरे ने कहा, ‘रानी रचती घात।।’
‘रानी की औकात क्या, गोरों से टकराय।
ईंट-ईंट कित्तूर की, धरती पर बिछजाय।।
रानी का कित्तूर में, तोड़ें सभी गुरूर।
लेकिन, रानी से मिलें, इससे पूर्व जरूर।।
कूटनीति का हम करें, रानी पर उपयोग।
अगर नहीं वह मानती, बचा युद्ध का योग।।
कब तक रानी लड़ेगी, अँग्रेज़ों के साथ?
विवश चेन्नम्मा एक दिन, रहे झुका कर माथ।।
करें किला कित्तूर पर, तोपों से विस्फोट।
कौन टिकेगा सामने, खा गोलों की चोट??
चेन्नम्मा कित्तूर की, है अबला की जात।
दो घण्टे के युद्ध में, भूल जाय औकात।।
तोपों के विस्फोट में, रानी होय नपैद।
वरना, उसको घेर कर, सेना करले कैद।।
उफ्! रानी कित्तूर की, पड़ी सड़ेगी जेल।
भूखी-प्यासी एक दिन, ख़त्म करेगी खेल’।।
थमा थैकरे ने दिया, मल्लप्पा को पत्र।
‘रानी को देना इसे, पहुँच सुबह के सत्र।।
रानी को देना बता, गोरे हैं बेचैन।
महाराज की मृत्यु से, हमें नहीं है चैन।।
मिलना चाहें थैकरे, ले दुख का समभाव।
हुई दिवंगत आत्मा, रखते आदर भाव’।।
मल्लप्पा को दे दिये, लिखकर सभी विचार।
विदा थैकरे ने किया, समझा भली प्रकार।।
चले मल्लप्पा-वेंकट, मन में भरा गुरूर।
रात्री का चौथा प्रहर, पहुँच गये कित्तूर।।
प्रातकाल दरबार में, पहुँचे बिना बुलाय।
पत्र थैकरे का लिखा, मंत्री दिया थमाय।।
गुरुसिद्दप्पा ने पत्र वह, पढ़कर दिया सुनाय।
प्रतिक्रिया कुछ की नहीं, रानी गयी छुपाय।।
मल्लप्पा और वेंकट, छोड़ गये दरबार।
मानो उनकी हो गयी, बहुत बड़ी ही हार।।
गुरुसिद्दप्पा को दिया, रानी ने निर्देश।
अतिथि थैकरे से करें, सद्व्यवहार विशेष।।
पहुँच गया कित्तूर में, कूटनीति ले साथ।
रानी के सम्मान में, झुका थैकरे माथ।।
रानी ने सद्भाव से, आसन दिया समान।
मान थैकरे को अतिथि, किया नहीं अपमान।।
चेन्नम्मा से थैकरे, बोला-सोच-विचार।
‘स्वर्ग गये महाराज का, हमको शोक अपार।।’
‘धन्यवाद’ रानी दिया, साथ कहा ‘आभार’।
‘धन्य! थैकरे भावना, सचमुच आप उदार।।’
कहा थैकरे ने पुनः, कुछ क्षण रहकर मौन।
‘रानी! संकट की घड़ी, समझ सका है कौन??
रहे पूर्वज आपके, अँग्रेज़ों के मित्र।
उनके ही विश्वास के, सजा रहे हम चित्र।।
रक्षाहित कित्तूर की, हम तन-मन से साथ।
जब तक ‘गोरी-कम्पनी’, कौन उठाये हाथ??
हम आये कित्तूर में, लिए संधि प्रस्ताव।
राजा जी के निधन का, भरे थैकरे घाब।।
सीमा पर कित्तूर की, सेना शिविर-पड़ाव।
दुश्मन की हर चाल का, पल में जले अलाव।।
भूल करे, कित्तूर को, जो समझे कमजोर।
गोरी-सेना दे उसे, उत्तर भी पुरजोर।।
चेन्नम्मा सुनती रही, उसकी वह बकवास।
मानो करता थैकरे, रानी का उपहास।।
सुनते-सुनते क्रोध से, हुई चेन्नम्मा लाल।
बोली- ‘मिस्टर थैकरे! नहीं बजाओ गाल।।’
‘वाह! खूब संवेदना, वाह! थैकरे-मेल।
वाह! मित्रता शर्त से, कूटनीति का खेल।।
भारत में रखती नहीं, लेश मित्रता स्वार्थ।
यहाँ थैकरे! मित्रता, है सच्चा पुरूषार्थ।।
हमें नहीं स्वीकार है, लेश मित्र की शर्त।
शर्तों की यह मित्रता, जाय थैकरे! गर्त।।
राज नहीं कित्तूर का, थैकरे! मोहताज़।
अपनी सत्ता शक्ति पर, भारत करता नाज़।।
बच्चा-बच्चा देश का, रहता है आज़ाद।
बन्धन तनिक न मानता, भले होय बर्बाद।।
अपनी आजादी हमें, और देश-सम्मान।
हमको प्यारे प्राण से, हँसकर दें बलिदान।।
नहीं चाहते युद्ध हम, नहीं युद्ध से प्यार।
लेकिन, अपने देश हित, सहें युद्ध का भार।।
युद्ध कभी करते नहीं, समस्याओं का अन्त।
इससे हिंसा फैलती, और बढ़े आतंक।।
लेकिन जब सम्मान को, पहुँच रही नित ठेस।
वाणी औ’ व्यवहार से, देश बढ़ाये क्लेश।।
हस्तक्षेप उस देश का, कैसे हो स्वीकार्य?
करना पड़ता युद्ध तब, हो जाता अनिवार्य।।
देश सहन करता नहीं, संस्कृति का अपमान।
परम्परागत भूमिका, भारत की बलिदान।।
धन्यवाद! हे थैकरे! हमको दिया सुझाव।
धन्य! अतिथि-संवेदना, धन्य! अतिथि प्रस्ताव।।
पराधीन रक्षा कभी, रखे न कोई अर्थ।
रक्षा हम कित्तूर की, करने हेतु समर्थ।।
मल्लप्पा और वेंकट, खड़े थैकरे पास।
बोले-‘रानी कर रही, गोरों का उपहास।।’
कही थैकरे से सभी, बढ़ा-चढ़ाकर बात।
अँग्रेज़ों के विरूद्ध ही, रानी रचती घात।।
मल्लप्पा से सब सुना, हुआ थैकरे लाल।
वेंकट भी बुनता रहा, षड्यन्त्रों का जाल।।
कहा कमिश्नर थैकरे, ‘रानी करती घात’।
ईंट-ईंट कित्तूर की, कर देंगे कल रात।।
रानी चेन्नम्मा किया, गोरों का अपमान।
कल देखें रणभूमि में, किसमें कितनी जान।।
धमकी देकर युद्ध की, चला गया अंग्रेज।
मल्लप्पा और वेंकट, खुशियों से लबरेज।।
साथ थैकरे के गये, दोनों ही मक्कार।
दोनों ही कित्तूर के, पक्के थे ग़द्दार।।
गद्दारों को देश से, कभी रहा क्या प्यार?
प्यार अगर हो देश से, कौन कहे ग़द्दार।।
गया कमिश्नर थैकरे, हुआ क्रोध से चूर।
मल्लप्पा और वेंकट, साथ रहें मजबूर।।
धारवाड़ में थैकरे, करने लगा विचार।
अब रानी माने नहीं, बिना युद्ध के हार।।
चेन्नम्मा से युद्ध ही, केवल बचा विकल्प।
कर अन्तिम निर्णय लिया, किया युद्ध संकल्प।।
कूंच करें कित्तूर को, पर लें पहले जान।
हम दुश्मन की शक्ति की, करें सही पहचान।।
मल्लप्पा और वेंकट, इसमें करें सहाय।
काम कठिन, बेशक बड़ा, लेकिन, करें उपाय।।
सोच-समझकर थैकरे, बुला वेंकट राय।
मल्लप्पा के सामने, कारण दिया बताय।।
चेन्नम्मा की शक्ति का, था दोनों को ज्ञान।
मल्लप्पा और वेंकट, करने लगे बयान।।
दोनों का कित्तूर में, लम्बा रहा निवास।
अब दोनों ने तय किया, करना पूर्ण विनाश।।
हाथी - घोड़े - तोपची, भाले - शस्त्र - जवान।
सैन्य शक्ति कित्तूर की, कौशल युद्ध कमान।।
कौन लड़ाके वीर हैं, क्या है काम विशेष?
बता थैकरे को दिया, मल्लप्पा सब शेष।।
कहा वेंकट राय ने, चेन्नम्मा अति वीर।
निडर, साहसी, सिंहिनी, विद्युत-सी शमसीर।।
रानी को कर कैद लें, बचे न कोई शूर।
या रानी को मार दें, फतह होय कित्तूर।।
बालण्णा व रायण्णा, सिद्दप्पा, गजवीर।
ये चारों कित्तूर के, पराक्रमी रणवीर।।
रानी की ये आँख हैं, कान, बुद्धि औ’ हाथ।
ये चारों स्तम्भ हैं, नहीं झुकाते माथ।।
रानी का इन पर अटल, है सच्चा विश्वास।
ये चारों कित्तूर के, उपवन में मधुमास।।
ये तेजस्वी वीर हैं, बुद्धिमान प्रचण्ड।
अलग-अलग बन्दी बना, दे दो मृत्यु अखण्ड।।
रानी करती आ रही, युद्ध हेतु अभ्यास।
तैयारी कित्तूर की, मत समझो उपहास।।
घेरो चारों ओर से, दो तोपों को दाग।
भस्म करे कित्तूर को, बम-गोलों की आग।।
त्राहि-त्राहि जनता करे, रानी हो मजबूर।
चेन्नम्मा की वीरता, दर्प होय सब चूर।।
किला बना कित्तूर का, सुदृढ़ ज्यों अवधूत।
द्वार पश्चिमी है नहीं, पर उतना मजबूत।।
अंग्रेजी तोपें करें, इसी द्वार पर वार।
निश्चित हो कित्तूर की, बिना लड़े ही हार।।
बता दिया कित्तूर का, दोनों ने सब भेद।
जिस थाली में खा-पले, किया उसी में छेद।।
दिया थैकरे ने उन्हें, सुनकर भेद इनाम।
गद्दारों ने देश को, बेचा हाय! छदाम।।
किया स्वार्थ-प्रतिशोध ने, हाय! देश नीलाम।
चन्द टकों में बेचकर, माँ को किया गुलाम।।
जन्मे, खेले बन गये, और सजाये ताज।
पर, माता को बेचते, आयी तनिक न लाज।।
हाय! देश की आत्मा, पैदा किया सपूत।
चन्द टकों के वास्ते, पल में बने कपूत।।
दिये थैकरे ने सभी, सेना का निर्देश।
कल प्रातः कित्तूर का, दिया कूंच आदेश।।
गोरों की सेना सजी, हुई तोप तैयार।
कूंच किये कित्तूर को, प्रातः सैन्य सवार।।
गज पर बैठा थैकरे, ध्वजा रही लहराय।
आगे अश्व सवार थे, पीछे अन्य निकाय।।
सीमा पर कित्तूर की, आकर रुके सवार।
किया थैकरे ने यहाँ, डाल पड़ाव विचार।।
सैन्य विभागों के सभी, प्रमुख लिए बुलाय।
युद्ध नीति कुल योजना, सबसे दिया बताय।।
अर्द्ध रात्रि का समय हो, चन्द्र करे अवसान।
तभी करें कित्तूर को, कल सेना प्रस्थान।।
अपनी-अपनी टुकड़ियाँ, पैदल और सवार।
समय पूर्व होवें सभी, चलने को तैयार।।
यथासमय कित्तूर को, सेना लेगी घेर।
अपने-अपने काम में, करे न कोई देर।।
रात्री को चौथा प्रहर, सोया हो कित्तूर।
घेर दुर्ग कित्तूर का, हमला करें जरूर।।
तोपों से विस्फोट कर, देंगे द्वार उड़ाय।
पैदल अश्व सवार सब, पहुँच किले में जाय।।
पूरी ताकत से सभी, पड़ें किले में टूट।
मारें-काटें-लूटलें, तनिक न देवें छूट।।
जो भी आये सामने, करें उसी पर वार।
ताण्डव मृत्यु का करें, बचे न कोई द्वार।।
इधर थैकरे दे रहा, कूटनीति निर्देश।
उधर गुप्तचर ने दिया, रानी को सन्देश।।
आ पहुँचा है थैकरे, लिए सैन्य बल साथ।
सीमा पर आकर टिका, करने दो-दो हाथ।।
साथ बनाता योजना, विकट वेंकट राय।
मल्लप्पा ने भेद सब, सारा दिया बताय।।
विदा गुप्तचर को किया, सुनकर सारा हाल।
चेन्नम्मा ने मंत्रणा, की सबसे तत्काल।।
चेन्नम्मा कहने लगी, ‘सुनो सभी सरदार!
सबको जगना रात भर, रहें सभी तैयार।।
गोरे घेरें दुर्ग को, कर न सकें विस्फोट।
इससे पहले हम करें, उन पर भारी चोट।।
संभल तनिक पायें नहीं, गोरे सैन्य सवार।
टूट पड़ें मिलकर सभी, ले भाले-तलवार।।
तोपों औ’ बन्दूक पर, है गोरों को नाज़।
करें आक्रमण हम सभी, टूट गिरे ज्यों बाज़।।
गोरे समयाभाव में, तोपें औ’ बन्दूक।
चला तनिक पायें नहीं, मार करें दो टूक।।
मल्लप्पा और वेंकट, देश-द्रोह-ग़द्दार।
भाग कहीं जायें अगर, डालें उनको मार।।
अथवा उनको कैद कर, देवें दण्ड कठोर।
चौराहे पर नगर के, कर दें कत्ल किशोर।।
जहाँ मिलें, जैसे मिलें, सबको डालो मार।
गोरा सैनिक एक भी, बने देश पर भार।।
फूला फिरता थैकरे, करो हैंकड़ी चूर।
दिखला दो रण भूमि में, कैसा है कित्तूर।।
नारा होगा युद्ध का, ‘बम-बम, हर-हर देव’।
टूट पड़ो अरि सैन्य पर, रहे जीत में टेव।।
वीरों! इस कित्तूर को, तुम पर गहरा नाज़।
भारत माँ की युद्ध में, रख लेना तुम लाज़।।
वीर लड़ें जो युद्ध में, याद रहे उत्सर्ग।
मिली वीरगति जो कहीं, पा जाता है स्वर्ग’।।
सौंप दिये दायित्व सब, दे-देकर निर्देश।
चेन्नम्मा कित्तूर की, प्रमुख सैन्य विशेष।।
इधर चेन्नम्मा ने किये, व्यापक युद्ध प्रबन्ध।
उधर थैकरे कर रहा, सेना से अनुबन्ध।।
चेन्नम्मा की प्रीति में, भरा राष्ट्र-अभिमान।
उधर थैकरे-नीति में, गोरों का उत्थान।।
देशभक्ति - स्वतंत्रता, चेन्नम्मा गुरू मंत्र।
लूटपाट, अधिकार को, गोरों का षड्यंत्र।।
सत्य, अहिंसा, प्रेम औ’, समता-सह अस्तित्व।
सकल विश्वहित भावना, रानी का व्यक्तित्व।।
धूर्त, धृष्ट, हिंसा भरा, चापलूस-मक्कार।
देख सके न लोक हित, गोरों का संसार।।
जैसा ही व्यक्तित्व हो, बनता है कृतित्व।
अथवा जो परिवेश हो, ढल जाता व्यक्तित्व।।
चेन्नम्मा और थैकरे
ज्यों धरती-आकाश।
रानी मूरति प्रगति की
थैकरे निखिल विनाश।
आदिकाल से लड़ रहे,
प्रगति और विनाश।
प्रगति कभी रुकती नहीं,
थकता नहीं विनाश।
निखिल विश्व कल्याण में,
करती प्रगति निवास।
लुक-छिपकर चलता रहा,
बदले रूप विनाश।
अब पहुँचा कित्तूर में,
धरे थैकरे रूप।
प्रगति मानो सिंहिनी,
आयी चेन्नम्मा रूप।
लगता कभी विनाश ही, फैला क्षितिज-दिगन्त।
लेकिन, ऐसा है नहीं, प्रगति रूप अनन्त।।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)
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