संगीत चिकित्सा- वेद से विज्ञान तक , एक अजस्र प्रवाह डॉ. ज्योति सिन्हा प्रवक्ता- संगीत भारती महिला पी0जी0 कालेज जौनपुर ‘‘कल...
संगीत चिकित्सा- वेद से विज्ञान तक, एक अजस्र प्रवाह
डॉ. ज्योति सिन्हा
प्रवक्ता- संगीत
भारती महिला पी0जी0 कालेज
जौनपुर
‘‘कला वह है जो एक हृदय से निकल कर दूसरे में प्रवेश कर जाती है।'' मानव सभ्यता के साथ ही समस्त कलाओं का विकास हुआ। जीवन में सौंदर्यबोध विकसित करने के लिये तथा जीवन को सम्पूर्णता, समग्रता के साथ जीने के लिये कलायें मानव मन को सदैव प्रेरित करती रही हैं। जिनमें सर्वाधिक उत्कृष्ट, प्रभावी एवं मुखर कला है- ‘संगीत'। मानवीय भावनाओं एवं संवेदनाओं को स्वरों द्वारा अभिव्यक्त करने की अविरल धारा ही संगीत है। संगीत ईश्वर द्वारा प्रदत्त सृष्टि की मधुरतम् अभिव्यक्ति है। लूथर ने भी कहा है- "Music is a beautiful and precious gift of God."
संगीत वह परम् दिव्य नाद है जिसमें सृष्टि के समस्त स्वर समाहित है। समस्त ब्रह्मांड संगीतमय है। यह स्वरों का अनुपम एवं मनोहारी सामंजस्य है जो मनुष्य के हृदय तंत्र को स्पन्दित करती है। यह नाद ब्रह्म में एकाकार हो जाने की दिव्य एवं पवित्र साधना है। भारतीय मान्यता के अनुसार संगीत साक्षात् ईश्वर का स्वरूप है और इसीलिये इसे ‘ब्रह्मानन्द सहोदर' कहा गया है। माधुर्य की वर्षा से सभी को रससिक्त करने वाली महादेव निर्मित कला है, अनुभूतियों का चरमोत्कर्ष है, जो सत् चित् आनन्द तथा लौकिक विभेद से परे मोक्ष प्राप्ति का सरल व सुलभ साधन है। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के भावों से भरी भारतीय संगीत की पृष्ठभूमि आध्यात्मिक विकास, धार्मिक ऐश्वर्य एवं जीवन के स्वाभाविक विकास पर आधारित है।
भारतीय संगीत की परम्परा विश्व की सबसे पुरातन संगीत परम्परा है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, सरसता, शुद्धता एवं विविधता के बल पर श्रुति मधुर एवं लोकप्रिय सिद्ध हुआ। भारतीय संगीत का वास्तविक स्वरूप पवित्र, वंदनीय तथा अलौकिक शक्ति से सम्पन्न है।
जन-गण-मन को प्रस्फुटित करने वाले भारतीय संगीत में मुक्ति का अमर सन्देश है।
जीवन को सरस बनाने में संगीत का महत्वपूर्ण योगदान है। मानव की कोमल भावनाओं को झंकृत, तरंगित करने एवं उसमें देवत्व का उदय करने में संगीत अपनी महती भूमिका निभाता है। संगीत में जो आनन्द प्रदान करने की चमत्कारिक शक्ति है वह श्रोता को सांसारिक बंधनों से मुक्त करके आत्मिक सुख प्रदान करती है। इसी आत्मिक सुख में रोग निवारण की शक्ति निहित है। प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचन्द जी ने स्पष्ट लिखा है कि -‘‘जब मनोव्यथा असह्य हो, एक भी जगह आश्रय नहीं पातीं तब अन्तिम रूप से क्रन्दन से ऊबकर संगीत के चरणों में जा गिरती हैं।''
संगीत की इन्हीं विशिष्टताओं को देख-परख कर भारतीय आचार्यों एवं मनीषियों ने संगीत के चिकित्सकीय प्रभाव पर सर्वाधिक जोर दिया है। आज वर्तमान में संगीत को रोगोपचार की प्रक्रिया में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के सशक्त माध्यम के रूप में अपनाया जा रहा है, जिसे संगीत-चिकित्सा अथवा "Music Therapy" के नाम से जाना जाता है।
सुख-दुःख, आशा-निराशा, उल्लास-उमंग की अनुभूति संगीत द्वारा प्रभावी रूप से अभिव्यक्त की जाती है। मनुष्य के अर्न्तनीहित भावों का सम्बन्ध मन से होता है तथा मानव मन और संगीत का अटूट सम्बन्ध रहा है। अधिकांश रोगों-व्याधियों का सम्बन्ध मन से होता है। संगीत की सुमधुर स्वर लहरियों से मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक विकार-विकृति का उपचार ही ‘म्यूजिक थेरेपी' अथवा ‘संगीत-चिकित्सा' है, अर्थात् कला और विज्ञान के समन्वय से संगीत द्वारा रोगों को दूर करने की एक वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली तैयार की गई जिसे संगीत चिकित्सा नाम दिया गया। इस चिकित्सा पद्धति के द्वारा मानवीय संवेदनाओं एवं भावों को ऊर्जावान कर मनुष्य को मानसिक और दैहिक रूप से समृद्ध और ओजवान किया जाता है, जिससे रोगियों के पुनर्वास, उपचार के लिये उत्प्रेरणा, भावनात्मक सहयोग और भावाभिव्यक्ति में भी काफी सहायता मिलती है। आल्टशुगर ने कहा है- ‘‘संगीत में रोगी के संवेदात्मक व बौद्धिक पहलुओं को उत्तेजित करने की शक्ति होती है।'' संगीत सबसे बड़ी संजीवनी है, महाशक्ति है।
संगीत-चिकित्सा एक बहुत वृहत् विषय है। संगीत चिकित्सा के सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति व परम्परा प्राचीन काल से अत्यन्त विकसित, उन्नत व समृद्ध रही है। संगीत के विभिन्न चिकित्सकीय आयामों एवं औषधीय प्रभावों का विस्तृत वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में किया गया है यथा- वेद, संगीत-मकरंद संगीत-स्वरामृत, चरक-संहिता, सुश्रुत-संहिता, अग्नि-पुराण इत्यादि।
वेदों में संगीत को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्कृष्ट साधन माना गया है। वैदिक युग में ऋग्वेद और अर्थवेद में निहित मंत्रों का प्रयोग मनुष्य की शारीरिक व्याधियों के उपचार के लिये किया जाता था। ऋषियों महर्षियों द्वारा संगीत के स्वर-तरंगों, स्वरयुक्त मंत्रोच्चारण एवं वाद्यों से उत्पन्न ध्वनियों द्वारा मानव के मानसिक एवं विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोगों का उपचार होता रहा है।
ऋग्वेद में ‘‘गाथपति' नामक चिकित्सक का उल्लेख है जिसका तात्पर्य संगीत चिकित्सक से है।
सामवेद में, जो भारतीय संगीत का वेद माना जाता है, रोग-निवारण के लिये राग-गायन का विधान मिलता है। अथर्ववेद में ऋक, यजुष और साम के ऐसे मंत्र थे, जो जीवन से व्यवहार से और स्वास्थ्य से सम्बन्धित थे। ब्रह्मा को ऋविज् कहा जाता था जिसे चर्तुवेदों का ज्ञान होता था तथा चर्तुवेदी भी कहा जाता था। ब्रह्मा रत्न विशेषज्ञ, संगीतज्ञ एवं वैद्य सभी के गुणों को धारण करता था। यज्ञों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व व्यवहारिक रूप से संतुलित रखने का अवधान था। मंत्र-मणि एवं औषधि, तीनों द्वारा अथर्ववेद में उपचार बताया गया है। मंत्र-संगीत (साम) रत्न-मणी, तथा औषधि आगे चलकर आयुर्वेद का रूप धारण किया।
आयुर्वेद में देह धारण की तीन धातुयें बताई गई हैं- वात, पित्त और कफ। इनमें से किसी एक धातु में भी विकार आने से तत्सम्बन्धी रोग शरीर में होने लगते हैं। अतः इन तीनों धातुओं का सन्तुलन बनाये रखने के लिये शब्द शक्ति, मंत्र शक्ति और गीत शक्ति का भी प्रयोग होता रहा है। ऋषि-मुनियों द्वारा संगीत व मंत्र साधना ओऽम् द्वारा अनेक प्रकार की सिद्धियों व चमत्कारों पर अधिकार प्राप्त करना संगीत के प्रभाव का बोध कराता है। संगीतार्षि तुम्बरू को प्रथम संगीत चिकित्सक माना जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘संगीत-स्वरामृत' में उल्लेख किया है कि ऊँची और असमान ध्वनि का वात् पर, गम्भीर व स्थिर ध्वनि का पित्त पर तथा कोमल व मृदु ध्वनियों का कफ़ के गुणों पर प्रभाव पड़ता है। यदि सांगीतिक ध्वनियों द्वारा इन तीनों को संतुलित कर लिया जाये तो बीमारियों की सम्भावनायें ही खत्म हो जायेगी। चरक ऋषि ने संगीत के औषधीय प्रभाव का वर्णन अपने ग्रंथ में किया है। ‘शब्द-कौतुहल' ग्रंथ में भी मैंद ऋषि ने वाद्यों की ध्वनि द्वारा रोग निदान तथा श्रवण-मनन-कीर्तन से रोग निवारण की बात कही है।
‘संगीत-मकरंद' ग्रंथ में नारद द्वारा रागों की जातियों (ऑडव-षाडव-सम्पूर्ण) के आधार पर रोगी के मन और शरीर पर प्रभाव पड़ने का उल्लेख किया गया है। नारद ने ‘संगीताध्याय' के प्रकरण में विभिन्न दशाओं में रागों के गायन-वादन का निर्धारण किया है-
आयुधर्मयशोवृद्धिः धनधान्य फलम् लभेत्।
रागाभिवृद्धि सन्तानं पूर्णभगाः प्रगीयते॥
अर्थात् आयु, धर्म, यश वृद्धि, सन्तान की अभिवृद्धि, धनधान्य, फल-लाभ इत्यादि के लिये पूर्ण रागों का गायन करना चाहिये।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में योग और संगीत का समावेश भी प्राचीन काल से है। स्वर साधना स्वयं एक यौगिक क्रिया है जिसमें मन, शरीर व प्राण तीनों में शुद्धता एवं चैतन्यता आती है। भारतीय संस्कृति में योग के साथ संगीत का गहरा रिश्ता रहा है। योग के सिद्धान्त के अनुसार श्वासों से जुड़ना अर्न्तमन से जुड़ना है और व्यक्ति जब अन्तर्मन से जुड़ जाता है तो ऋणात्मक संवेग कम हो जाता है और धनात्मक संवेग स्थायी होने लगते हैं। ये धनात्मक संवेग मनोविकारों से व्यक्ति को दूर रखते हैं।
भारतीय दर्शन के अनुसार भी योग और संगीत का नाद विद्या में महत्वपूर्ण स्थान है। डॉ0 उपेन्द्र चन्द्र सिंह अपने पुस्तक What is Music में लिखा है- "To summarise what is Music one can safely say that it is a kind of Yoga system through the medium of sonaras sound.
मोहन जोदड़ो सभ्यता में रोगी की चिकित्सा संगीत द्वारा किये जाने का उत्तम ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त था। सामाजिक जीवन में लोक परम्पराओं जादू-टोना, झाड़-फूंक का सम्बन्ध स्वास्थ्य लाभ से रहा है और इन परम्पराओं में गीत-संगीत का गहरा रिश्ता रहा है।
प्राचीन भारत में ही नहीं, रोम, युनान, मिश्र इत्यादि देशों के इतिहास में भी संगीत चिकित्सा पद्धति का विवरण मिलता है। प्राचीन ग्रीस के प्लेटो, अरस्तु, पायथागोरस इत्यादि संगीत के चिकित्सकीय प्रभाव से पूर्ण रूप से परिचित थे। प्राचीन इजिप्ट में महिलाओं के प्रसवपीड़ा के निवारण में संगीत का प्रयोग होता था।
रेकी चिकित्सा पद्धति के अनुसार भी संगीत के सात स्वर मानव शरीर में स्थित सात चक्रों तथा बिन्दु विसर्ग स्थान को झंकृत करते हैं।
बाईबिल के अनुसार किंग सिओल के समक्ष डेविड ने संगीत प्रदर्शन कर उन्हें स्वास्थ्य लाभ कराया था। ऐसा माना जाता है कि गायत्री मंत्र के सम्वेत स्वरित जाति से उत्पन्न पराध्वनि में सारे वातावरण को कँपा देने के सामर्थ्य विद्यमान है।
भारतीय संगीत के इतिहास में मध्यकाल में तानसेन, बैजुबावरा आदि से सम्बन्धित ऐसे अनेकों विवरण हैं जो संगीत द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता के परिचायक हैं। बैजुबावरा ने राग पूरिया गाकर मध्य प्रदेश के वनराव सिंह को अनिद्रा से मुक्त किया था। तानसेन ने राग दीपक गाकर अस्वस्थ शहजादी को ठीक किया फलस्वरूप ताप बढ़ने पर उनकी शिष्या द्वारा मल्हार गाकर शान्त किया। पं0 ओम्कार नाथ ठाकुर ने अपने संगीत के प्रभाव से खुंरवार शेर को शान्त किया तथा अपने चमत्कारिक गायन शक्ति से इटली के शासक मुसोलिनी को अनिद्रा से मुक्ति दिलाई। अतः इन बातों, कथाओं, उद्धरणों से संगीत के चिकित्सकीय प्रभाव का बोध सहज होता है। संगीत-चिकित्सा प्रणाली का इतिहास विविध रूपों में प्राप्त होता है। जिसके अन्तर्गत विषाद, प्रमाद, अनिद्रा जैसे अनेक दैहिक, दैविक, भौतिक त्रियतापों के उपचार हेतु संगीत चिकित्सा का सहारा लिया गया, ऐसे प्रमाण मिलते हैं।
वर्तमान में वैज्ञानिकों ने भी इस सत्य का अनुसंधान किया है कि संगीत केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि अनेक रोगोपचार में भी सहायक है। इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुये वैज्ञानिकों ने ‘संगीत-चिकित्सा' के क्षेत्र में अपना कदम बढ़ाया है। विश्व युद्ध के बाद गम्भीर रूप से घायल मरीजों के दर्द-निवारण के लिये संगीत का प्रयोग किया गया तथा इसके सकारात्मक प्रभाव को देखा गया। 1944 में मिशिगंन के विश्वविद्यालय में ‘म्यूजिक थेरेपी' विषय को चलाया गया। 1950 में ‘नेशनल एसोसियेशन फॉर म्यूजिक थेरेपी' की स्थापना हुयी जिसमें 3400 सदस्य है तथा इस विषय पर कार्य कर रहे हैं। साथ ही इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं अन्वेषण के कार्यों का विस्तार हुआ। आज देश-विदेश में संगीत-चिकित्सा के अन्तर्गत संगीत के व्यव्हारात्मक पक्ष पर अनेक शोध कार्य हो रहे हैं जिसके सफल परिणाम सामने आ रहे हैं। संगीत द्वारा व्यक्ति अद्भुत आनन्द, शान्ति व आत्मिक सुख की अनुभूति करता है और यही कारण है कि आज संगीतज्ञ, मनोवैज्ञानिक तथा डॉक्टर संगीत में छिपे रहस्य तथा स्वास्थ्यवर्द्धक तत्वों की खोज में निरंतर प्रयत्नशील है।
संगीत चिकित्सकों की मान्यता है कि संगीत का प्रभाव मस्तिष्क के सेरिब्रल कॉर्टेक्स और आटोनोमिक नर्वस सिस्टम पर सीधा पड़ता है। संगीत शरीर की साम्यावस्था को नियमित एवं नियंत्रित रखता है। संगीत की स्वर लहरियों से हृदय की धड़कनों की गति में कमी आती है जो रिलेक्शेसन का प्रमुख कारण है क्योंकि संगीत सुनने से जो कार्टिसोल हार्मोन स्रावित होता है उसका स्तर घट जाता है, इससे शरीर तनाव मुक्त हो जाता है जिसके फलस्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही यह भी निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि संगीत शरीर को प्राकृतिक दर्द-निवारक तत्व इन्डौफिन्स बनाने के लिये प्रेरित करता है और संगीत के उत्प्रेरण से लार में ‘इम्यूनोग्लोबिन-ए' नामक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है जिससे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। संगीत की ध्वनि तरंगें मानव मस्तिष्क में स्थित हाइपोथैलेमस को आन्दोलित करती हैं जिससे मस्तिष्क की ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और स्वास्थ्यवर्द्धक हार्मोन्स का स्राव सुचारू रूप से होता है जिससे रोगी स्वतः ठीक होने लगता है।
वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों ने यह प्रमाणित किया है कि 80 से अधिक बीमारियों का मूल मानसिक कारण है। मानसिक विक्षिप्तिका का मुख्य कारण मस्तिष्क के ऊतकों में होने वाला असंतुलन हैं। इनका संतुलन बनाये रखने में संगीत अत्यन्त सहायक है। शोधकर्त्ताओं के अनुसार मानसिक तनाव पागलपन, मिर्गी, हिस्टीरिया, याददाश्त की कमी, अपंगता, गर्भावस्था, रक्तचाप, अनिद्रा, हृदय रोग, श्वास रोग तथा नशा से उत्पन्न रोगों में संगीत की मधुर ध्वनि सुनने से रोगी को रोग से छुटकारा मिल जाता है।
पश्चिमी देशों में अस्पताल के रोगियों को नियमित रूप से संगीत सुनाया जाता है जिसके प्रभाव से रोगी को आराम मिलता है। मनो रोगों के लिये चीन में इलेक्ट्रोम्यूजिक चिकित्सा पद्धति अपनाई जा रही है। जिसकी मधुर स्वर लहरी से पाचन संस्थान तथा स्नायुतंत्र से सम्बन्धित बीमारियों का इलाज सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
डा0 जेनी के अनुसार- ‘‘संगीत से मस्तिष्क की सिकुड़ी हुयी मांस पेशियों को नई शक्ति मिलती है। इसकी स्वर लहरियां तथा तरंगे स्नायु तंत्र को आन्दोलित उद्वेलित कर रोगी को निरोग बनाने में सहायक होती है।'' डा0 जार्ज स्टीवेन्स एवं डा0 वीसेण्ट पॉल ने संगीत को सभी मानसिक तनावों के निराकरण की अचूक औषधि कहा है।
बर्लिंन विश्वविद्यालय द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि बिगुल बजाने से उत्पन्न कम्पन हमारे आस-पास के वातावरण से बैक्टीरिया एवं अन्य जीवाणुओं को नष्ट करता है। नगाड़े की लयात्मक ध्वनि रक्तचाप को नियंत्रित कर मन को उल्लास से भर देने में सक्षम है। तार वाद्यों की ध्वनि सिर दर्द व मांसपेशियों के दर्द में आराम पहुँचाती है।
विख्यात संगीत चिकित्सक रिकार्ड ब्राउन की पुस्तक ‘मेडिसीन-म्यूजिक' में संगीत का वर्णन दवाओं के विकल्प के रूप में किया गया है। संगीत चिकित्सक डा0 जे0पाल ने लिखा है-
"Music exercises a wonderful curative effect on diseased persons. It immediately effects the heart, the most vital organ of the body. Music is a kind of wine which reaches the heart through the ears and gladderns the sad mind."
चेन्नई के ‘राग रिसर्च सेन्टर' में संगीत चिकित्सा पर बेहतर कार्य हो रहे हैं। डा0 बालाजी ताम्बे ने महाराष्ट्र में संगीत अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया है जिसका नाम उन्होंने ‘आत्म संतुलन ग्राम' रखा है रोगियों का इलाज रागों के माध्यम से कर रहे हैं। मुम्बई में ‘सुर-संजीवन' संगीत चिकित्सा के नाम से श्री कट्टी जी अन्य डाक्टरों की सहायता से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।
भोपाल के सरकारी हमीदिया अस्पताल में रोगियों का इलाज संगीत चिकित्सा के जरिये किया जा रहा है। अस्पताल अधीक्षक डा0 एस0सी0 तिवारी का मानना है कि संगीत के जरिये रोगियों का स्वास्थ्य लाभ सकारात्मक दिशा में होगा।
लन्दन के चेल्सी वेस्ट मिन्सटर अस्पताल में भी संगीत-चिकित्सा पर कार्य हो रहा है। दातापीठम् मैसूर के प्रधान पादरी स्वामी गणपति सच्चिदानन्दम् संगीत के माध्यम से रोगों का निदान कर रहे हैं।
बर्लिन के लीनिक चैरिटी के प्रो0 वॉलफ्रेम सिडनर ने यह तर्क रखा है कि जो लोग मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं उन्हें गुनगुनाते रहना चाहिये। अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि मनपसन्द, कर्णप्रिय तथा अनुकूल संगीत सुनने से रक्तचाप में कमी आती है, दिल की धड़कन नियमित होती है, ध्यान केन्द्रित होता है तथा सृजनशीलता में वृद्धि होती है। संगीत श्रवण के समय मस्तिष्क से न्यूरोट्रांसमीटर नाम का तरल पदार्थ स्रावित होता है जिससे श्रोता तनाव मुक्त हो जाता है।
मिस्टर डोवस्की रमेलो ने अपनी पुस्तक "The enchanting Power of Music" में रोगी के लिये दवा के बजाय संगीत द्वारा उपचार किये जाने का उल्लेख किया है। जेन फॉक्स ने भी अपनी पुस्तक "The Helth of Music" में संगीत द्वारा रोगोपचार का उल्लेख किया है।
दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पीटल के डा0 रवीन्द्र कुमार तुली का कहना है कि मानसिक रोगों के मरीजों पर संगीत का चमत्कारिक असर होता है। यह मेटाबॉलिज्म को तेज करता है तथा मांसपेशियों की ऊर्जा बढ़ाता है।
विश्व भर में हुये, समय-समय पर शोधों से यह बात सामने आई है कि शरीर केवल मन को ही झंकृत नहीं करते बल्कि शरीर के अंग-प्रत्यंगों पर भी अपना प्रभाव डालते हैं। गर्भवती माताओं, शिशुओं एवं युवाओं पर भी संगीत का सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने सर्वेक्षणों में यह निष्कर्ष दिया है कि बच्चों के मानसिक विकास में संगीत काफी सहायक है। मंद बुद्धि बच्चों के विकास में संगीत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के शोध से यह बात प्रकाश में आई है कि संगीत से युवाओें को पढ़ाई करने में एकाग्रचित होने में मदद मिलती है। नीदरलैण्ड में हुये एक सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आई है कि नियमित रूप से संगीत सुनने से शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होता है। कनाडा में हुये एक अध्ययन के अनुसार जो लोग अपना पसंदीदा संगीत सुनते हुये वजन उठाने से सम्बन्धित व्यायाम करते हैं, उनकी क्षमता में वृद्धि होती है। आस्ट्रेलिया में हुये अध्ययन के अनुसार संगीत सुनने से दर्द में राहत मिलती है।
शारीरिक व मानसिक थकान होने पर मधुर संगीत सुनने से तनाव मुक्त, सुकून एवं आनन्द की अनुभूति होती हे, यह तथ्य इसी संगीत चिकित्सा का उदाहरण है। स्वरों के उच्चारण मात्र से विभिन्न शारीरिक अवयवों का व्यायाम हो जाता है।
संगीत के सूक्ष्मतम् तरंगों में ऐसी शक्ति तथा सम्मोहन है जिसका प्रभाव न केवल मनुष्य पर बल्कि पशु-पक्षी, वनस्पतियों पर भी है।
किंवदन्ती है कि समुद्र गुप्त जब वीणा वादन करता था तो उसके उपवन में बसंत ऋतु का आभास होता था। संगीत द्वारा पेड़ पौधों को रोग-ग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। पं0 ओम्कार नाथ ठाकुर जी ने भैरवी के प्रभाव को पौधों पर महसूस किया। विद्वानों के मत से चारूकेशी राग से धान का उत्पादन बढ़ता है। भरतनाट्यम् नृत्य फूलों के बढ़ने में सहायक है। अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के विशेषज्ञ डा0 टी0सी0एन0 सिंह ने ध्वनि तरंगों के प्रयोग द्वारा पौधों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि की बात स्वीकार की है। संगीत के मधुर स्वर से पौधों में प्रोटोप्लाज़्म कोष में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट विचलित व गतिमान हो जाता है।
बहेलियों के बीन तथा सपेरे के बीन बजाने पर मृग व सर्प मोहित हो जाते हैं। कनाडा में संगीत सुनाकर अधिक दूध गायों से प्राप्त किया जाता है। पं0 ओमकार नाथ ठाकुर जी ने नाद की महत्ता को स्वीकार करते हुये कहा है कि- ‘‘मैंने नाद की मधुरता से हिंसक जानवर शेर, चीतों आदि की आँखों में कुत्ते सी मोहब्बत पलते देखी है।''
स्पष्ट है कि संगीत कला ऐसी कला है जो मन की गहराईयों को छूकर परमानन्द की प्राप्ति कराती है। यह रोगी को निरोगी और संवेदनाशून्य को संवेदनशील बनाती है। भारतीय संगीत प्रेरणा व प्राण शक्ति को पहचान कर पाश्चात्य विद्वानों की मान्यतायें भी भारतीय दर्शन की पुष्टि करने लगी हैं। संगीत के माध्यम से विभिन्न रोगों के मरीजों पर जो प्रयोग किये जा रहे हैं वे अत्यन्त चमत्कारिक एवं सम्भावनाओं से परिपूर्ण हैं।
भारतीय संगीत की प्रमुख विशिष्टता ‘रागदारी संगीत' है। राग भारतीय संगीत की आधारशिला है। इसके अर्न्तनिहित स्वर-लय, रस-भाव अपने विशिष्ट प्रभाव से व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करता है। स्वर तथा लय की भिन्न-भिन्न प्रक्रिया उसकी शारीरिक क्रियाओं, रक्त संचार, मान्सपेशियों, कंठ ध्वनियों आदि में स्फूर्ति उर्जा उत्पन्न करते हैं तथा व्याधियों को दूर करते हैं।
विभिन्न रोगों के लिये संगीतज्ञों एवं संगीत चिकित्सकों तथा मनोवैज्ञानिकों ने कुछ राग निश्चित किये हैं, जो उन रोगों को दूर करने में सहायक सिद्ध हुये हैं, हो रहे हैं। जैसे मानसिक विक्षिप्तिका के लिये राग बहार, बागेश्री, बिहाग, धानी, श्वास के रोगों एवं दमा-अस्थमा में राग पूरिया, मालकौंस, भैरवी, भैरव, श्री, केदार, मधुमेह के लिये राग जौनपुरी, जय जयवन्ती, नेत्र सम्बन्धी रोगों में राग पटदीप, भीमपलासी, मुल्तानी व पटमंजरी, हृदय से सम्बन्धित रोगों में राग दरबारी, पित्त व सिर दर्द तथा जोड़ों के दर्द में राग सारंग, सोहनी, तोड़ी भैरवी, यमन कल्याण व नट भैरव, रक्त, वीर्य-कफ आदि के रोगों में राग आसावरी, तिल्ली के रोगों के लिय राग हिंडोल, पेट के रोगों में रागश्री एवं पंचम, अनिद्रा रोग में राग पूरिया, निलांबरी काफी, खमाज, रक्तचाप से सम्बन्धित रोगों में हिन्डोल, कौशिक कान्हड़ा, पूर्वी व तोड़ी राग तथा हिस्टीरिया, क्षय तथा मलेरिया के लिये राग खमाज विलावल, रामकली, मारवा इत्यादि राग निर्धारित किये गये हैं। मल्हार, सोरठ, जयजयवन्ती इत्यादि राग शरीर की ऊर्जा को बढ़ाते हैं तथा मस्तिष्क को शान्त कर क्रोध को दूर करते हैं। स्मरण शक्ति बढ़ाने में राग शिवरंजनी, तनाव को कम करने में राग तोड़ी तथा भैरवी अच्छी निद्रा एवं रोगियों को शान्ति प्रदान करती है। अन्य मत से सुबह के राग जो पूर्वांग प्रधान हैं वे क़फ रोगों से, दोपहर के राग पित्त सम्बन्धी रोगों से एवं रात्रि के राग वात सम्बन्धी रोगों से मुक्ति दिलाते हैं।
रागों के समय निर्धारण के पीछे प्राचीन संगीतज्ञों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अवश्य ही इसी चिकित्सकीय प्रभाव पर आधारित होगा।
अन्य शोधों से यह निष्कर्ष ज्ञात हुआ है कि राग-रागिनियों द्वारा अच्छी, सफल, प्रभावी व फलप्रद चिकित्सा की जा सकती है। परन्तु यह भी सत्य है कि प्रत्येक राग व स्वर प्रत्येक व्यक्ति के मनःस्थिति एवं मानसिक स्थिति पर भिन्न प्रकार से अपना प्रभाव डालता है। अतः उपयुक्त संगीत, उपयुक्त वर्ग, अवसर के साथ ही उपयुक्त मानसिक अवस्था होना चाहिये। तनाव, अवसाद, दुःख, चिन्ता तथा मानसिक विखण्डता में रागों का चुनाव यदि उचित रीति से किया जाये तो अवश्य लाभकारी सिद्ध होगा।
संगीत-चिकित्सा पूरी तरह से वैज्ञानिक है और इसे प्रत्येक स्तर पर प्रारम्भ करने की आवश्यकता है। संगीत शिक्षा में संगीत-चिकित्सा विषय रखकर इसको सर्वव्यापी बनाया जा सकता है। संगीत को सामाजिक उपयोगिता के सन्दर्भ में देखने की आवश्यकता है। उपयोगिता मूलक संगीत को बनाना हमारा कर्त्तव्य है। विषय के प्रति हम श्रद्धा अवश्य रखें परन्तु ज्ञान के प्रति जागरूक रहना भी ध्येय होना चाहिये।
संगीत-चिकित्सा तभी प्रभावी व फलप्रद होगी जब उच्चकोटि के संगीत चिकित्सक बनने के लिये अनेक विषयों का अध्ययन-मनन-चिन्तन करना होगा। विशेष रूप से संगीतज्ञों को संगीत चिकित्सक होना चाहिये और इसके लिये संगीत के साथ-साथ उन्हें मेडिकल साइंस को भी समझने की आवश्यकता है। भारतीय संगीत चिकित्सा को वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हुये आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके विभिन्न आयामों को समझने की जरूरत है। यदि हम उचित रीति से उचित दिशा में पूर्ण मनोयोग से कार्य करें तो इसके परिणाम बेहतर प्राप्त हो सकते हैं। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि संगीत चिकित्सा किसी भी रोग के उपचार में सहायक चिकित्सा के रूप में सशक्त भूमिका निभाती है। संगीत का इतिहास जितना सारगर्भित है, इसकी गुणवत्ता एवं सत्यता भी विज्ञान की कसौटी पर उतनी ही खरी है। भारत संगीत चिकित्सा के विरासत और परम्परा के लिये विश्व विख्यात है। हमारा संगीत वैदिक है, सनातन है और वैज्ञानिक है।
वर्तमान में जबकि मानव का अस्तित्व सर्वाधिक संकटग्रस्त है। इस युग को असाध्य रोगों के जनक की संज्ञा दी जा सकती है। जीवन की इस बेतहाशा भाग दौड़ में इंसान अनेक मानसिक-शारीरिक दुष्परिणामों से ग्रसित हो रहा है। ऐसी परीस्थिति में सम्पूर्ण परिवेश को सुन्दर, शान्त व समृद्ध बनाने में संगीत संजीवनी का कार्य कर सकती है। परिणामस्वरूप संगीत द्वारा शिष्ट समाज, शुद्ध पर्यावरण, प्रदूषण मुक्त स्वस्थ मन और पुष्ट शरीर, तीव्र बुद्धि प्रखरता आदि संगीत के माध्यम से सहज सुलभ हो जाते हैं।
तुलसीदास जी ने कहा है-
क्षिति, जल, पावक, गगन समीरा।
पंच रहित यह अधम शरीरा॥
ये पाँचों तत्व मानव शरीर के आधार है। इनमें से किसी एक में भी असंतुलन से शरीर अस्वस्थ हो जाता है। वैज्ञानिक शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि इन पाँचों तत्वों में संगीत विद्यमान है अतः इन पाँचों तत्वों का सन्तुलन संगीत के द्वारा बनाये रखा जा सकता है और मनुष्य स्वस्थ, दीर्घायु जीवन पा सकता है तदुपरान्त मानव अस्तित्व इस धरा पर कायम रह सकता है।
कालाईल ने भी कहा है कि- ‘‘संगीत के पीछे-पीछे खुदा चलता है।''
अतः जहाँ ईश्वर का वास स्वयं है वहाँ भला कोई रोग-शोक कैसे टिक सकता है।
संगीत चिकित्सा की उपयोगिता स्वतः सिद्ध हो जाती है। संगीत के विविध रूप हैं आवश्यकता है कि उनके मूल्यों एंव उपचारात्मक उपयोगिता को पहचाना जाये ताकि उनके द्वारा प्रदत्त लाभों का प्रयोग हो सके। संगीत चिकित्सा निश्चित रूप से मानव जीवन को एक नई दिशा प्रदान करेगा तथा चिकित्सा के क्षेत्र में यह मील का पत्थर साबित होगा।
वर्तमान समय की आवश्यकता है कि इस दिशा में विशेष अनुसंधान होने चाहिये तभी संगीत चिकित्सा अपने आप में पूर्णता प्राप्त कर पायेगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। वर्तमान में बदलते परिवेश में संगीत चिकित्सा की आवश्यकता लाभप्रद है। अपने चमत्कारिक प्रभाव से संगीत-चिकित्सा पद्धति निश्चित रूप से आश्चर्यजनक परिणाम देगी। ऐसी आशा एवं अपेक्षा हम अपने अनुसंधानकर्ताओं, वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों, संगीतज्ञों व संगीत चिकित्सकों से करते हैं-
अस्तु!
संदर्भ-सूची
ग्रंथ/पुस्तक
1- वांग्मय, ‘शब्द ब्रह्म-नाद ब्रह्म'- श्रीराम शर्मा
2- ‘प्रणव-भारती'- पं0 ओमकार नाथ ठाकुर
3- सौदर्य-रस और संगीत- डा0 स्वतंत्र शर्मा
4- संगीत निबन्ध माला- पं0 जगदीश नारायण पाठक
5- निबन्ध संगीत- श्री लक्ष्मी नारायण गर्ग
6- संगीत चिकित्सा- डा0 अजीत प्रधान
7- प्राचीन भारत का इतिहास- विद्याधर महाजन
8- प्राचीन भारत में संगीत- ठाकुर जयदेव सिंह
9- मुगल काल में संगीत- श्री आशीर्वादी लाल
10- सरस-संगीत- डा0 प्रदीप कुमार दीक्षित
11- मनोरमा शर्मा- Music Therapy, Theory & Practice
12- Edword podalusky- Music for your Health
13- Nalpat, Suvarna- Music Therapy
पत्र-पत्रिकायें-
1- ‘संगीत' मासिक, हाथरस
2- ‘अखण्ड ज्योति', मई 2005
3- ‘अखण्ड ज्योति' जनवरी 2007
4- ‘हिन्दी ज्योतिबिम्ब' अक्टूबर 2008
5- दैनिक जागरण- 02.02.09
6- ‘आरोग्य संजीवनी' पत्रिका
7- 'The statesman' Kolkata 29th Nov. 2007.
8- Times of India 06.09.2001
स्मारिका-(Souvenir)-
1- First National conference on music therapy- 21st Feb. 2009. (Deptt. of music D.G.P.G. College, Kanpur)
2- National Seminar on Music Therapy- 24th , 25th March 2009 (org. by T.M. Bhagalpur University.)
3- Prayag Sangeet Samiti- 2008.
Internet/E-mail
- Music and moods- by T.V. Sairam
tvsairam@gmail.com
- Music Therapy Dutcet Notes by Soham Saha
http./www.musictherapyworld.de.
- Traditional healing system and modern music theraphy in India- by Sundar, Sumathy
- What is Music Therapy by Dr. Bhaskar Khandeker.
- इसके अतिरिक्त विभिन्न विचार गोष्ठियों के माध्यम से अनेक विद्वतजनों के व्याख्यान एवं विचारों के आधार पर।
संगीत मानव तन-मन के प्राकृतिक लय सुर के साथ तादात्म्य स्थापित करता है। यह बात किसी अन्य चिकित्सा पद्धति पर लागू नहीं होती। शोधपूर्ण और अत्यंत उपयोगी आलेख के लिए ज्योति जी को बघाई।
जवाब देंहटाएं.-महेन्द्र वर्मा
संगीत मानव तन-मन के प्राकृतिक लय सुर के साथ तादात्म्य स्थापित करता है। यह बात किसी अन्य चिकित्सा पद्धति पर लागू नहीं होती। शोधपूर्ण और अत्यंत उपयोगी आलेख उपलब्ध कराने के लिए आप को ओर संपादक जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं.-महेन्द्र वर्मा