कहानी .. .अंधकार से आती आवाज! -डॉ. अरुणा कपूर. आवा...
कहानी ...अंधकार से आती आवाज!
-डॉ. अरुणा कपूर.
आवाज तो कभी हम किसी को देते है...बुलाते है, कहते है, सुनते है!... और कोई हमें भी आवाज दे कर बुलाता है... बतियाता है, अच्छी या बुरी खबर सुनाता है, अपने कहे के अनुसार चलने को मजबूर भी कर देता है!... लेकिन इस आवाज देने वाले का अपना रंग--रुप होता है...नाम होता है!...एक रिश्ता होता है!... कोई अजनबी भी होता है तो वह रिश्ते से हम जैसा ही एक होता है...इस धरती पर अवतरित एक जीव होता है!... !...अगर वह मनुष्य भी है तो क्या हुआ?... एक जीव तो होता ही है जो जीवंत होने के सभी लक्षणों से युक्त होता है!
...और फिर तो क्या निर्जीव चिज-वस्तुओं की आवाज नहीं होती?... क्यों नहीं होती?...अवश्य होती है!... चीजें गिरने की आवाज होती है....चीजों के ट्कराने की आवाज होती है!... हवा के झोंके से सरसराहट करने वाले पत्तों की आवाज होती है...बिजली कड्कने की आवाज होती है... बरसने वाली वर्षा की आवाज होती है!...नदियां, समंदर, झरने....सभी आवाजें ही तो देते है..गिनवाने जाएं तो बहुत लंबी सूची बनेगी!
…...लेकिन...लेकिन हम जान ही जाते है कि आवाज किस चीज की है और कहां से आ रही है!... आवाज उत्पन्न करने वाली चीज-वस्तुएं नजर भी आ जाती है!
..आवाज को ले कर ही, ललिता के साथ जो कुछ घटा वह मै इस कहानी में बयां करने जा रही हूं!..सबसे पहले तो मै लोलिता का परिचय दूंगी!... इसकी 32 साल की उम्र है!...शादीशुदा है!..सरकारी स्कूल में अध्यापिका है!...पति इंजीनियर है और मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत है!...लोलिता की दो बेटियां है..बडी 6 साल की और छोटी 4 साल की है...अब लोलिता फिर पेट से है, तीन महीने की गर्भवती है!...लोलिता का परिवार, सुखी परिवार है!
... एक दिन सुबह जब लोलिता स्कूल जाने की तैयारी में थी; तब लोलिता के छोटे भाई जय का फोन आया...खबर दुःख भरी थी..लोलिता के पिताजी को हार्ट-अटैक आया था और उन्हें अस्पताल ले जाया गया था! ..सुनकर जाहिर है कि लोलिता का दिल बैठ गया... माता-पिता की जगह दुनिया में कौन ले सकता है?..लोलिता ऐसे में कैसे रुक सकती थी?......उसी शहर में उसका मायका था!...उसने स्कूल में संदेशा भिजवाया कि उसकी तीन दिन की छुट्टी ग्रांट की जाए...वह नहीं आ सकेगी!...लोलिता की दोनों बेटियां स्कूल जा चुकी थी... तय हुआ कि लोलिता अकेली ही ऑटॉ ले कर अपने पिता के घर पहुंच जाएगी और उसके पति मनोज, अपनी कार लेकर, दोनों बेटियों को स्कूल से साथ ले कर बादमें लोलिता के मायके पहुंच जाएंगे!..वह भी उस दिन एक दिन की छुट्टी ले रहे थे!...
… ...लोलिता के पास अस्पताल का पता था... उसकी मां और छोटा भाई दिनेश अस्पताल में ही उसके पिताजी के पास थे..सो लोलिता अस्पताल पहुंच गई!...वहां पता चला कि पिताजी को समय रहते ही अस्पताल लाया गया था...इस वजह से सही समय पर डॉक्टरी सहायता मिल गई और अब वे खतरे से बाहर है!.. अस्पताल में उन्हें दो दिन ऑब्झर्वेशन के लिए रखने की आवश्यकता डॉक्टर को महसूस हुई थी!... फिलहाल उन्हें आई.सी.यू. में रखा गया था!... बाहर से ही पारदर्शी शीशे की खिड़की से लोलिता ने पिताजी को नजर भर कर देख लिया... उस समय वह आंखें बंद किए बेड पर लेटे हुए थे!
..लोलिता को थोड़ी तसल्ली मिल गई!...इतने में उसके पति मनोज भी अपनी दोनों बेटियों के साथ ले अस्पताल पहुंच गए!.. उन्होंने भी डॉक्टर से मिल कर अपने ससुरजी के बारे में सारी जानकारी ले ली और राहत महसूस की..अब खतरा टल चूका था!..बस दो दिन की बात थी; पिताजी को अस्पताल से घर ले जाने की इजाजत मिल जानी थी!
आज दूसरा दिन था!... पिताजी स्वस्थ लग रहे थे!..वे घर जाने की जिद कर र्हे थे, लेकिन उनका इलाज करने वाले डॉ. तिवारी उन्हें एक दिन और अस्पताल में रखना चाहते थे!.. एक ही दिन की तो बात थी!... सभी ने उन्हें समझाया कि ' बस!.. कल सुबह 10 बजे जैसे कि डॉ. तिवारी अस्पताल पहुंचेंगे... आपका एक बार परीक्षण करेंगे और आपको घर जाने की इजाजत मिल जाएगी!'
...उस रात लोलिता को रात देर तक नींद नहीं आई!...कल सुबह पिताजी घर आने वाले थे...उसके बाद शनिवार और रविवार...दो दिन के लिए वैसे भी स्कूल की छुट्टी ही थी!... पति मनोज और दोनों बेटियां ..पूरा परिवार यही पर था!... पिताजी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक था...चिंता करने जैसा कुछ भी नहीं था!.... लेकिन लोलिता की आंखों से मानों नींद कोसों दूर थी!...लोलिता ने अपने मोबाइल फोन में झांका... रात के करीब 2 बजने वाले थे!... उसी समय उसने अपने कान के पास हवा का हलका-सा झोंका महसूस किया...लेकिन उसने खास ध्यान नहीं दिया!.. वह अपनी ही सोच में डूबी हुई थी!
... अब कान के पास हवा में कुछ ठंड भी महसूस हुई.. लोलिता चौक गई!.. उसके पास ड्बल बेड पर इस समय उसकी बडी बिटिया 'विदुषी' सोई हुई थी!...साथ वाले कमरे में मनोज और छोटी बिटिया ' वैशाली' थे!.. गरमियों के दिन थे; सिलिंग फैन जरुर चल रहा था... लेकिन कान के पास ठंडी हवा क्यों कर महसूस हुई!... लोलिता समझ नहीं पाई और उसने पासा पलटा!
...कि उसके कान के बिलकुल पास कोई फुस्फुसाया...' लोलिता!..तेरे पिताजी बस!.. कल शाम तक के मेहमान है!...अगर वे कल घर नहीं आएंगे तो ही अच्छा है...कुछ साल की जिंदगी और जी सकतें है!'
" क्या?......." लोलिता लगभग चिल्लाई!..और अब एकदम से उठकर बैठ गई!...वह घबराई हुई थी!...अब उसने बेड के पास का स्वीच ओन किया...बल्ब जल उठा!...कमरे में रोशनी थी! लोलिता ने आस-पास नजर दौडाई...वहां तो कोई भी नहीं था!...तो फिर कौन बोल रहा था?...लोलिता मारे घबराहट के पसीने से तर-बतर थी!...उसके बाद उसने लाईट जलती ही छोड दी...सुबह सुबह कोई पांच बजे के करीब उसकी आंख लगी!
...आज सुबह से घर में सभी खुश थे...लेकिन लोलिता कुछ तनाव और कुछ डर की मिलीजुली शकल में नजर आ रही थी!... लोलिता का यह रुप उसके पति मनोज से छिपा न रह सका!... मनोज ने पूछ ही लिया...
"... लो लो, आज तो पिताजी घर आ रहे है... फिर भी लगता है कि तुम्हें परेशानी है?... क्या बात है?"
" बस!...ऐसे ही...कुछ ठीक नहीं लग रहा!...चिंता पिताजी की ही हो रही है!"..लोलिता ने परेशानी बता दी!
" लगता है कुछ छुपा रही हो...क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है?...या रात को विदुषी ने परेशान किया?" मनोज को लोलिता के पहले वाले जवाब से संतुष्टि हुई नहीं थी!
... अब लोलिता को भी लगा कि रात को उसके साथ जो कुछ घटित हुआ...उसे छिपाना ठीक नहीं!... उसने मनोज को सबकुछ बता दिया!... सुनकर मनोज को ज्यादा हैरानी नहीं हुई! उसने लोलिता को एक अच्छे पति की तरह समझाया कि यह उसका वहम है... 'कई बार मनुष्य अपने ही विचारों में इतना उलझ जाता है कि उसे आंखों के सामने विचित्र चीज-वस्तुएं भी दिखाई देती है और आवाजें भी सुनाई देती है!...' मनोज के समझाने पर लोलिता को कुछ तसल्ली मिली!...उसे भी लगा कि यह उसका वहम ही है कि उसके कान में कोई कुछ कह गया था!
... अब पिताजी को घर लाने के लिए लोलिता, भाई जय और मनोज अस्पताल गए!... लोलिता की भाभी सुजाता और मां घर पर ही थे!...पिताजी अव स्वस्थ थे!.. घर जाने के लिए तैयार बैठे थे!...अब 11 बजने वाले थे!... समय के पाबंद, ठीक 10 बजे अस्पताल पहुंचने वाले डॉ. तिवारी अब तक पहुंचे नहीं थे!...अस्पताल में बैठे लोलिता वगैरा सभी डॉ. तिवारी का इंतजार कर रहे थे!...उनके आते ही एक बार के परीक्षण के बाद पिताजी घर जा सकते थे!
... लेकिन डॉ.तिवारी नहीं आए... खबर आई कि नजदीक के पूल पर उनकी कार का एक्सिडैंट हुआ है... ड्राईवर दम तोड़ चुका है और डॉ.तिवारी को पुलिस द्वारा वही नजदीक के अस्पताल में ले जाया गया है!... सुन कर सभी सकते में आ गए... सबसे ज्यादा तो लोलिता सक्ते में आ गई.. अस्पताल मे उस समय ड्यूटी पर मौजूद अन्य डॉक्टर, राठी ने लोलिता के पिताजी का परीक्षण किया और उन्हे घर ले जाने की इजाजत दी! ...लेकिन लोलिता एकदम से कह उठी.." नहीं डॉक्टर...पिताजी को कुछ दिन यही रहने दीजिए!...उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है!...डॉक्टर मुझे लगता है कि उनका घर जाना ठीक नहीं रहेगा... आई रिक्वेस्ट यू डॉक्टर!"
...सुन कर सभी अचंभे में पड़ गए कि लोलिता ऐसा क्यों कह रही है!...लोलिता के पिताजी भी हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे!...मनोज को जरुर लगा कि लोलिता ने जो सुबह कानों में किसी की आवाज सुनने की बात कही थी... उस बात को ले कर वह अब तक परेशान है और इसी वजह से कह रही है कि 'पिताजी को आज घर नहीं ले जाना चाहिए!' ...पति मनोज लोलिता को एक तरफ ले गए और थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोले...
" लोलिता!... तुम अब भी आवाज वाली बात पर विश्वास कर रही हो? कौन-सी सदी में जी रही हो?...माना कि औरतें अंध-विश्वासी होती है...लेकिन तुम तो हद पार कर रही हो!"
" ..प्लीज मानिए मेरी बात!...आज के दिन अगर पिताजी यही रहते है तो किसी का क्या जाएगा?... मेरा वहम ही सही... पिताजी को आज का दिन यही रहने के लिए समझाइए!"...लोलिता अब आंखों में आंसू लिए कह रही थी!...अब उसका भाई जय भी आ कर खडा हो गया था और सुन रहा था...वह बोला...
" ...ठीक है दीदी...अगर आपके मन में कोई वहम है तो मै पिताजी को समझाने की कोशिश करता हूं..लेकिन वह शायद ही मानेंगे!.. कल से घर जाने की रट लगाए हुए है!"
...और वैसा ही हुआ..पिताजी नहीं माने!...डॉ. राठी को भी लगा कि वे स्वस्थ है और चाहे तो घर जा सकतें है!... और पिताजी घर आ गए!
... घर में लोलिता की मां और भाभी दोनों ही बहुत खुश थी...उन्होंने मंदिर जा कर प्रसाद भी चढाया!...अब चिंता करने जैसा कुछ भी नहीं था!...कुछ नजदीकी रिश्तेदार घर पर पिताजी का हाल-चाल पूछ्ने भी आ गए थे!...हां!..किसी ने अब तक डॉ. तिवारी के एक्सीडैंट की खबर पिताजी को दी नहीं थी!..पिताजी ने दो-एक बार कहा भी कि .... 'मेरा इलाज करने वाले डॉ.तिवारी अस्पताल से निकलते समय मिल जाते तो अच्छा रहता!...बहुत अच्छे हार्ट-स्पेशियालिस्ट है!...स्वभाव से कितने खुश-मिजाज है!.....उनसे मिलने को बहुत दिल कर रहा है...मेरी फोन पर ही उनसे बात करवा दो!' ... लेकिन जय ने ' बाद में बात करवाता हूं!' कह कर बात टाल दी थी!
.... उस रात पिताजी रात को अच्छी नींद सोए!...सुबह उठ कर मॉर्निंग-वाक पर भी गए!...वापस आकर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ कर चाय पी रहे थे... हाथ में अखबार था!...अखबार का दुसरा पन्ना देख रहे थे कि बोल उठे..." अरे भगवान!...यह क्या हो गया...डॉ. तिवारी चल बसे?" साथ वाली कुर्सी पर बेटा जय बैठा हुआ था!... सामने वाली कुर्सी पर दामाद मनोज बैठे हुए थे!... घर की महिलाएं रसोई में थी!
...जय और मनोज ने फूर्ति दिखाई और पिताजी को संभाला...लेकिन उनकी गर्दन कुर्सी के पीछे लुढ़क चुकी थी!... उन्होंने अखबार में छ्पी डॉक्टर तिवारी के एक्सीडैंट की खबर पढ ली थी...एक्सीडैंट के बाद डॉक्टर तिवारी को नजदीक के अस्पताल में ले जाया गया था..लेकिन सिर पर गहरी चोट लगी हुई थी और ज्यादा खून बह गया था; इस वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका!...पिताजी के दिल को इस खबर ने हिला कर रख दिया!
...तुरन्त अस्पताल में फोन किया गया...डॉ. राठी तुरन्त पहुंच गए...उनका परीक्षण हुआ...लेकिन लोलिता के पिताजी दुनिया छोड़ कर जा चुके थे!... अब घर में मातम छाया हुआ था!...लोलिता रोते रोते बार बार कह रही थी कि..." आप लोगों ने मेरी बात मानी होती..पिताजी को और एक दिन अस्पताल में रहने देते.. तो...पिताजी आज जीवित होते...हमारे बिच होते!"...मनोज लोलिता को समझाने में लगे हुए थे कि...मनुष्य का जन्म और म्रृत्यु का चक्र ईश्वर ही की मरजी से चलता है...इसमें कोई फरक नहीं कर सकता!...लेकिन लोलिता अपनी बात पर अड़ी हुई थी कि उसको संकेत पहले ही मिल चुका था!..उसके कान में किसी ने बताया था कि ‘पिताजी को बचाया जा सकता है!
...कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए!...और परीक्षण में पता चला कि लोलिता के गर्भ में जुड़वां बच्चे है!... यह खबर अचरज करने वाली तो थी नहीं - जुड़वां बच्चे तो पैदा होते ही रहते है!
....लेकिन एक दिन लोलिता को ऐसे ही रात को फिर आवाज सुनाई दी...जैसे कि किसी ने कान में कहा.." लोलिता, तेरे गर्भ में दो लड्के है...एक तो तेरे पिता स्वयं पुनर्जन्म ले कर अवतरित हो रहे है!"
..." मै कैसे विश्वास कर लूं कि वे मेरे पिता ही है?" लोलिता आधी-कच्ची नींद में थी - वह भी बोल पडी!
..." तेरे पिता की बाह पर लाल रंग के लाखे का निशान था...बेटे की बाह पर भी होगा!" ..स्वर धीमा हो गया और उसके बाद कुछ नहीं.
..." लोली!..लोली!.. क्या सपना आया था?...नींद में क्या बोल रही थी?" ..साथ ही बेड पर लेटे हुए पति मनोज ने पूछा.
..." पता नहीं क्या बोली मै!..मुझे कुछ याद नहीं है!" लोलिता ने बात छिपाई!
.... समय के चलते लोलिता ने दो जुडवा लड्कों को जन्म दिया!...सही में एक बच्चे की बाह पर लाल रंग के लाखे का निशान था; ठीक उसी जगह जहां लोलिता के पिताजी की बाह पर था!...लोलिता अब आवाज में बसी हुई सच्चाई जान चुकी थी!
... लेकिन दो महीने बाद उसके दोनों बेटे जॉन्डिस की चपेट में आ गए!... उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया!...उन दोनों की हालत देखते हुए डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया!
...." हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे... बाकी उपरवाले की मर्जी!" ...डॉक्टर ने कहा!
... और उसी रात फिर अस्पताल के अहाते में बेंच पर बैठी लोलिता को आवाज सुनाई दी.....
..." तेरे पिता को बचा ले.... उन्हें उनके असली नाम से पुकार कर रुक जाने के लिए कहेगी तो वे रुक जाएंगे...अभी इसी समय चली जा!"
...लोलिता भागती हुई I.C.U. की तरफ गई... मनोज साथ ही थे..वे भी उसके पीछे भागे... लेकिन लोलिता को I.C.U.में जाने से रोका गया! ....मनोज कुछ बोलते उससे पहले ही लोलिता बाहर खडी जोर से चिल्लाने जैसी आवाज में बोली....
..." पुरुषोत्तम!... रुक जाओ!....मेरी खातिर रुक जाओ पुरुषोत्तम!...तुम्हारी मै बेटी भी हूं; मां भी हूँ!!... मुझे छोड कर मत जाओ!" ...बोलते बोलते लोलिता रो पडी.
...उसी समय आइ.सी.यू का दरवाजा थोड़ा सा खुल गया और नर्स ने बताया कि एक बच्चा अभी सांसें ले रहा है और एक भगवान को प्यारा हो गया है!
..."जो है वे मेरे पिता पुरुषोत्तम है नर्स!...वे अब कहीं नहीं जाएंगे!" लोलिता ने नर्स से कह दिया...अब दरवाजा फिर बंद हो गया!...
.... सही में एक बच्चे की जान बच गई थी!...बच्चा अब ठीक हो कर घर आ गया था!... लोलिता ने अब अपने पति मनोज को सब कुछ बताया. मनोज को भी अब विश्वास हो गया है कि कुदरत के पिटारे में कई शक्तियां भरी हुई है!
...एक दिन मनोज ने लोलिता से यूं ही पूछा...
“ लोली..हमारा दूसरा बच्चा क्यों हमें छोड़ कर गया?”
“ बस!..वो चला गया...अपने घर ही तो गया है!” लोलिता का ठंडा जवाब!
“ कौन था वह?...उसका कौन सा घर था?”...मनोज के मन में जिज्ञासा पैदा हुई!
“ वे डॉ.तिवारी थे मनोज!...अपने घर वापस चले गए है!...तुम पता कर लो, वे वहीं मिलेंगे!...” कहते हुए लोलिता ने अपने सोए हुए बच्चे के गाल पर होठ रख लिए!...मनोज ने दूसरे दिन ही डॉ.तिवारी के घर का रुख किया..उसे पता चला की जिस रात उसके दूसरे बच्चे की मृत्यु हुई थी... उसी रात, उसी समय डॉ.तिवारी की बहू ने बेटे को जन्म दिया था!
...वाकई कुदरत एक ऐसा अंधकार है, जिसमें बहुत कुछ छिपा हुआ है!....उस अंधकार को भेदने की शक्ति हमारे पास नहीं है!
...............समाप्त....................
एक बेहद शानदार , मन को छू लेने वाली कहानी…………………ज़िन्दगी के अनेक भरम तोडती हुयी…………………कभी कभी ऐसा घटित हो जाता है जिस पर विश्वास नही होता मगर जब बार बार ऐसा हो तो ना विश्वास का कोई कारण भी नही बचता।
जवाब देंहटाएंआवाज़ का महत्त्व दर्शाती कहानी .
bahut hi dilchasp kahani .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पढ़ने से पहले मैंने इस कहानी की लम्बाई देखी थी
जवाब देंहटाएंपरन्तु पढ़ते पढ़ते कब मैं इसकी गहराई में खो गया इसका पता ही नहीं चला
वाह !
वाह !
वाह !
अत्यन्त उम्दा कहानी..............बाँच कर सुख मिला ..धन्यवाद
Wah Aruna ji aapki kahani ekdam alag see hai. Bahut hee pasand aaee.
जवाब देंहटाएंEk bat aapse share karna chhungee. Meree nanad hain Kusum tai Aaj we 72 sak ki hain. Do sal pahale unhe aisa laga ki ganpati ji ne unhe unka mrutu din 23 Decmber bata diya hai. Aur ye bat unhone hum sabko bata bee dee. we pareshan hum sab bhee pareshan par ishwar kee krupa se aisa kuch hua nahee. aisa kyun hua ?
bhavuk kar dene wali kahani.
जवाब देंहटाएंएक बेहद शानदार , मन को छू लेने वाली कहानी.
जवाब देंहटाएंबहुत दिन से कुछ लिखा नहीं आपने ....शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..भावपूर्ण कहानी और शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहज बोध से मैं ने भी कई चीज़ों को आरपार घटित होते ,होने से पहले देखा है .होता है ऐसा लेकिन कभी कभार किसी किसी के साथ .कहानी आखिर आखिर तक अपनी रोचकता बनाए रहती है .डॉ ,साहब की घर वापसी तक .
जवाब देंहटाएं