यशवंत कोठारी का आलेख : नशे की दुनिया और उससे बचाव

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नशीली दवाओं का नशा :- मादक चीजों में आजकल नशीली दवाओं का नशा सभी प्रकार के लोगों में बढ़ता चला जा रहा है। नशीली दवाओं की बढ़ती लत पूरी पी...

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नशीली दवाओं का नशा :-

मादक चीजों में आजकल नशीली दवाओं का नशा सभी प्रकार के लोगों में बढ़ता चला जा रहा है। नशीली दवाओं की बढ़ती लत पूरी पीढ़ी को समाप्त कर रही है। यह स्थिति आने वाली पीढ़ी के सामाजिक और वैयक्तिक स्वास्थ्य के लिए बडी गंभीर चुनौती है। नई पीढ़ी नशीली दवाओं की ओर बड़ी तेजी से आकर्षित हो रही है। एक पूरी पीढी नशे के गर्त में डूब रही है। आइये, इसकी पड़ताल करें।

मादक द्रव्यों का प्रयोग एवं नशे की बढ़ती लत आजकल गंभीर चिन्ता का विषय है। आज की यह स्थिति आने वाली पीढ़ी के लिए सामाजिक व्यवस्था में साम्य, और सामाजिक एवं वैयक्तिक स्वास्थ्य के लिये प्रश्नवाचक बन जायेगी।

प्राचीन भारत में सोमरस का प्रयोग किया जाता था। जो ऋिषिमुनि युगदृष्टा होते थे उनके द्वारा इष्ट सिद्धि के क्रम में व्यवधान न हो, इस उद्देश्य से चित्तवृत्ति निरोध के लिये सोमपान प्रचलित रहा।

मध्य युग में स्वस्थ जीवन के लिये मादक द्रव्यों का सेवन किया जाता था। उन्हें सामाजिक आवश्यकता समझा जाता था। प्रायः उच्च अभिजात्य वर्ग इनका उपयोग अधिक करते थे। प्रारंभ से ही हमारे समाज में वर्ण व्यवस्था के अनुसार ही विभिन्न वर्णों के रीति रिवाज, आहार, व्यवहार, वस्त्राभूषण तथा व्यवसायादि निर्धारित रहे है। आज भी मादक द्रव्यों के प्रयोग का संबंध, धर्म, जाति, क्षेत्र, अथवा वर्ग समूह में देखने को मिलता है। कुछ वर्णों में मद्यपान परम्परा रही है। किन्तु आज के युग मे मद्यपान पर उनका आधिपत्य नहीं रहा है। अब तो कुछ वर्ण, धर्म अथवा जाति विशेष, समय-समय पर इन मादक द्रव्यों का प्रयोग समूह में अथवा व्यक्तिशः करते हैं। यथा होली-दीपावली के अवसर पर भांग, गांजा आदि सामान्यतया व्यवहृत होते हैं। आतिथ्य स्वरूप भी इनका व्यवहार विवाह जन्मोत्सवादि अन्य सामाजिक एवं पारिवारिक उत्सवों पर वर्ग विशेष में अभिजात्य वर्ग में सम्पन्नता के कारण मादक द्रव्य प्रायः प्रयुक्त होते हैं। ग्रामीण श्रमिक वर्ग भी इससे अछूता नहीं रहा है। शहरी जीवन में सामाजिक नियंत्रण एवं सामुदायिकता का अभाव होने से घर से बाहर, व्यक्ति मादक द्रव्यों के सेवन के लिये मुक्त रहता है। मध्य वर्ग के लोग प्रायः धूम्रपान करते हैं। यदा कदा मद्यपान भी। उच्च, मध्यवर्ग और उच्च अभिजात्य वर्ग मद्यपान करते हैं।

राहत की तलाश :-

शहरी परिवेश में अन्य भी कारण हैं जिनसे व्यक्ति में अलगाव, नैराश्य, नीरसता, क्षोभ तथा भटकाव उत्पन्न होता है। अस्तु इनसे तथाकथित सहत पाने हेतु शहरी व्यक्ति, मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर आकर्षित होता है। युवावर्ग समाज का महत्वपूर्ण अंग है एवं उपयुक्त वर्णित सामाजिक परिस्थितियों एवं उनके परिणामों से विशेषतः प्रभावित होने से मादक द्रव्यों के सामान्य प्रयोग से समान रूपेण प्रभावित है, तथा उपयुक्त अवसरों में प्रायः मादक द्रव्यों के प्रयोग से अछूता नहीं रहा है। इन मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर युवा वर्ग की आनुशंगिक प्रवृत्ति है।

इसके अतिरिक्त अन्य भी विभिन्न परिस्थितियां, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव अथवा अंधानुकरण सामाजिक तथा पारिवारिक विघटन अथवा बदलाव के कारण उत्पन्न हुई है। जिनके कारण युवा वर्ग मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर यहां तक की अफीम, चरस, एल.एस.डीए., स्मैक तथा विभिन्न टेंकुलाइजर्स के प्रयोग की ओर आकर्षित होता है। परिणामस्वरूप ज्ञात अज्ञातरूपेण मादक द्रव्यों के यह अनुरिक्त विशेषकर युवा वर्ग में, प्रधानरूपेण तथाकथित विश्वविद्यालय संस्कृति के प्रभाव के परिणाम स्वरूप बढ़ी है। महानगरीय उच्च शिक्षण-संस्थाओं के तदर्थ किये गये सर्वेक्षण से जो तथ्य ज्ञात हुये है, उनमें इन मादक द्रव्यों के सेवन की युवावर्ग की बढ़ती प्रवृत्ति का द्योतक होता है।

राजकीय लोभ :-

वास्तविकता तो यह है कि मादक द्रव्यों का उत्पादन एवं विक्रय राजकीय राजस्व प्राप्ति का सशक्त साधन बनता जा रहा है। जिसके मोह से शासन मुक्त नहीं हो पा रहे है। मादक द्रव्यों का बढ़ता उत्पादन एवं व्यापार शासन उद्यमियों, देशविद्रोहियों तथा कूटनीतिज्ञों के लिये लाभकारी हो सकता है, किन्तु युवा वर्ग के मादक द्रव्य के प्रयोग के प्रति आकर्षण एवं परिणाम स्वरूप अनुरक्ति युवा मानस तथा भावी पीढ़ी को जिस रूप से प्रभावित कर रहा है तथा उसके परिणाम स्वरूप जो विभिन्न समस्याएं हमारे सामने आ रही है वह शासन एवं समाज को नवीन नशानीति के विषयों में पुनः विचार की अपेक्षा करती है। सोवियत संघ में इन दिनों सरकार युवा विरोध के बावजूद शराब नियंत्रण कर रही है।

युवा वर्ग की मादक द्रव्यों के प्रयोग से अनुरक्ति के लिए संचार एवं प्रचार माध्यमों की भी अपनी अहम भूमिका रही है। पाश्चात्य देशों के साथ आवागमन बढ़ जाने, व्यावसायिक संपर्क तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान इसी प्रकार विभिन्न पाश्चात्य चलचित्रों एवं दूरदर्शन द्वारा मादक द्रव्यों प्रयोग के जो दृश्य प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर प्रदर्शित किये जाते हैं, उनसे भी युवा वर्ग के मानस पर मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्ति बढ़ाने वाला प्रभाव पड़ता है अर्थात् मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति युवा वर्ग की अनुरक्ति बढ़ती है। विभिन्न पत्र-पत्रिकायें प्रचार पोस्टर एवं पाश्चात्य चलचित्र तथा दूरदर्शन के प्रर्दशन से, युवावर्ग पाश्चात्य संस्कृति एवं जीवन पद्धति का अंधानुकरण अथवा अपनाने को प्रवृत होता है, युवा वर्ग की यह मानसिकता मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्ति बढ़ाने में सहायक है। चलचित्र दूरदर्शन के डाक्यूमेंट्री, विज्ञापनों में मादक द्रव्यों के व्यावसायिक प्रचार हेतु जनाकर्षक तौर पर प्रदर्शन एवं इन द्रव्यों के व्यावसायिक प्रचार पोस्टर भी युवावर्ग में मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अनुरक्ति बढ़ने में सहायक है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये तीसरी दुनिया लाभकारी बाजार है। इनके द्वारा उत्पादित सिगरेट एवं शराब का विगत दशकों में तीसरी दुनिया में व्यापक प्रचार प्रसार हुआ है। जिसके दुष्परिणाम छिपे नहीं है।

युवा अनुरक्ति के कारण :-

मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अनुरक्ति में मुख्य कारण आज के युवा वर्ग की मानसिकता है। युवावर्ग प्रारंम्भ में यह जानने के लिये मादक द्रव्यों का प्रयोग करता है- कि प्रयोग करके देखते हैं, क्या होता है। महज जिज्ञासावश यह चलने लगता है। एक नया अनुभव होता है। फिर मौजमस्ती के लिये प्रयुक्त करते हैं। अधिकांश बाद में छोड़ देते हैं। अथवा यौवन की दहलीज पर कदम रखने में होने वाले विभिन्न शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तनों तथा इसी क्रम में स्कूली एवं ग्रामीण परिवेश से, विश्वविद्यालय माहौल के खुलेपन में आने के परिणाम स्वरूप तथा इसी जीवन में सर्वथा नए एवं अछूते मोड़ पर उत्पन्न अपने साहस को मादक द्रव्यों के प्रयोग के माध्यम से युवा वर्ग अभिव्यक्त करता है। शुरूआत में प्रायः मित्रों के प्रभाव से, मजबूरन, औपचारिक शिष्टाचार के तहत अर्थात् अशिष्ट न लगे, अथवा पिछड़ा न समझ लें, इस हीन भावना के कारण मित्रों के साथ अथवा विशिष्ट सामाजिक एवं पारिवारिक अवसरों पर परिजनों के साथ मादक द्रव्यों का प्रयोग करना पड़ता है। पश्चात यह युवा वर्ग इन मादक द्रव्यों का सेवन अपने अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण, यह जानते हुए भी कि मादक द्रव्यों के परिणामस्वरूप इनके प्रति अनुरक्ति बढ़ेगी एवं कालान्तर में पूर्णतः अनुरक्त हो जाने पर इनके प्रयोग से छुटकारा पाना दुष्कर है, फिर भी एक अथवा अधिक मादक द्रव्यों का प्रयोग एक बार या कई बार कर लेते हैं, एवं पूर्णतः अनुरक्त भी नहीं होते हैं।

संभ्रात युवा पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने की स्थिति में यह शिक्षा के परिणाम स्वरूप डेटिंग करता है। इस क्रम में आपसी झिझक मिटाने के लिए मादक पदार्थों के प्रयोग के प्रति वह अनुरक्त होता है। बदलते परिवेश में भारतीय परम्परा एवं सामाजिक व पारिवारिक बदलाव के कारण, सामुदायिकता एवं सामाजिक नियंत्रण का अभाव तथा विघटित होकर छोटे होते परिवारों से युवा वर्ग के सम्मुख विभिन्न नवीन समस्यायें उत्पन्न हुई हैं। इन समस्याओं से संघर्ष करने के लिये, अथवा समस्याओं से मुक्ति या बचाव के लिये भी मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति युवा जन आकर्षित होते हैं।

महाविद्यालयों में अध्ययनरत युवावर्ग अच्छे अंक अर्जित करने, अध्ययन में एकाग्रचित होने, देर रात तक जागने तथा स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिये भी मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर प्रवृत्ति होते हैं। वर्तमान शिक्षा पद्धति की एकरसता सर्वाधिक खटकने वाली है। इसे धैर्य के साथ निर्वाह करने के लिये युवा पीढ़ी मादक द्रव्यों का प्रयोग करती है। प्राचीन काल में भी ज्ञान प्राप्ति के लिए साधना के क्रम में एकरसता को धैर्य के साथ निर्वाह करने के लिये, (ऋषि महर्षि) मादक द्रव्यों का सेवन करते थे।

अव्यावहारिक शिक्षा पद्धति के कारण व्याप्त निराशा एवं व्यापक बेरोजगारी की वजह से, अर्थात् उच्चतम अर्हता प्राप्त कर लेने पर भी रोजगार का अभाव अथवा योग्यता के अनुरूप स्तर से निम्न रोजगार मिलने पर या व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त के विपरीत रोजगार मिलने पर पनपी नैराश्य भावना, (मानसिकता) के कारण भी युवा वर्ग मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्त होता हैं पारिवारिक विघटन के परिणाम स्वरूप अध्ययन हेतु छात्रावास वैसे भी मादक द्रव्यों के गढ़ होते हैं। अर्थात् वे द्रव्य वहां सुलभ होते हैं यह समाज कण्टकों का वह वर्ग विशेष है जो मुफ्त इन मादक द्रव्यों के वितरण से शुरूआत करता हैं एवं इनके प्रयोग में व्यक्ति जब अनुरक्त हो जाता है, तो इन्हें अच्छी खासी आय का साधन बना लिया जाता हैं एवं कई बार पैसा बटोरने की अंधी दौड़ में चिकित्सक वर्ग भी शरीक होता है।

युवा वर्ग, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्रांति के परिणामतःसामाजिक वर्जनाओं एवं मर्यादाओं को पूर्णतः ध्वस्त कर देने तथा युवा छात्रायें भी तथाकथित नारी मुक्ति अर्थात् पुरूष आधिपत्य से मुक्ति अथवा माता-पिता के नियंत्रण से मुक्ति हेतु विद्रोह के लिए मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर अनुरक्ति होती है।

यदा-कदा अध्ययन में फिसड्डी एवं माता-पिता के अत्यधिक नियंत्रण से त्रस्त एवं विरोध स्वरूप घर से भागे, युवा वर्ग में भी मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्ति देखने को मिलती है। विगत दशकों में स्थिति बडी तेजी से बदली है। अब विश्वविद्यालय में जाने वाली युवतियां फैशन के नाम पर मादक द्रव्यों को (ड्रग्स) लेने लग गई हैं। युवकों के प्रयोग में अनुरक्ति का वर्ग (ड्रग एडिक्शन सोसायटी) क्रेज बन कर उभरा है। गांजा, अफीम, एल.एस.डी. आदि का प्रभुत प्रयोग पिछले दशक में युवतियों में होने लगा है। छात्राओं का एक बडा तबका मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक कारणों से नशे से जुडा है तथा यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि छात्रायें छात्रों की तुलना में ट्रेंक्विलाइजर्स का ज्यादा प्रयोग करती हैं।

महत्वपूर्ण अध्ययन :-

विगत दशकों में भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाज शास्त्रियों मनोवैज्ञानिकों द्वारा मादक द्रव्यों के प्रयोग संबंधित अध्ययन के लिये जो सर्वेक्षण कार्य किया गया उनसे प्राप्त परिणामों से महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आये है। इस वर्ग एवं आइ सी. एम.आर.के.डॉ. सी. गोपालन की अध्यक्षता में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा चिकित्सक विशेषज्ञ समाज शास्त्री तथा मनोवैज्ञानिक की समिति द्वारा मादक द्रव्यों के प्रयोग संबंधी अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि मादक द्रव्यों के पूर्णतः अनुरक्त अल्पतम थे। बंबई विश्वविद्यालय में प्रयुक्त किये जा रहे मादक द्रव्यों में मद्य सर्वाधिक तथा एल.एस.डी. सबसे कम प्रयोग की जाती थी। मद्य को चखने वालों की संख्या 15 प्रतिशत थी। दर्द निवारक दवाओं के प्रयोग का प्रतिशत दिल्ली में 20.9 प्रतिशत था। 39.9 प्रतिशत लोग दिल्ली में मादक द्रव्य सेवन करने वाले थें। मद्यपान का प्रतिशत 12.2 पैथेड्रिन एवं एल.एस.डी. का प्रयोग 2 प्रतिशत करते थें।

7 वर्ष पूर्व टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल सांइसेस द्वारा भारतीय विश्वविद्यालयों का सर्वेक्षण किया गया। अध्ययन से ज्ञात हुआ कि जयपुर, हैदराबाद, एवं मद्रास विश्वविद्यालयों में मादक द्रव्यों को प्रयुक्त करने वालों की संख्या दिल्ली वाराणसी एवं बंबई से आधी थी।

अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 75 प्रतिशत भारतीय युवा वर्ग, भारतीय परम्परा एवं सामाजिक संस्थाओं के कारण, मादक द्रव्यों के स्वाद से भी अनभिज्ञ है। संस्थान ने सुझाव दिया कि युवा वर्ग को मादक द्रव्यों एवं उनके दुष्परिणामों के संबंध में अवगत कराया जाना चाहिए।

आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के तत्कालीन मनोरोग विभागाध्यक्ष डा. देवेन्द्र मोहन ने 1978 में अपने निर्देशन में दिल्ली के विश्व विद्यालयों का सर्वेक्षण कराया एवं अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि उसके अनुसार वहां का 35 प्रतिशत युवा वर्ग किसी न किसी मादक द्रव्यों का सेवन कर चुका था। ये द्रव्य तम्बाकू, शराब, भांग, मेड्रक्स, स्टिम्युलेंटस, ट्रेंक्यूलाइजर्स वगैरह थें। वहां युवतियों का 85 प्रतिशत मादक द्रव्य सेवन से मुक्त था। शेष 15 प्रतिशत युवतियां पेन एवं सिगरेट वगैरह लेती थी। इन्हें इनकी सामान्यतया सामाजिक स्वीकृति थी। अस्तु युवतियां सामाजिक स्वीकृति की मादक द्रव्य (दवाओं के प्रयोग सेे आगे नहीं बढ़ी हैं) 35 प्रतिशत युवाओं में से 10 प्रतिशत युवा मादक द्रव्यों को नियमित रूप से प्रयुक्त करते थें। 2 प्रतिशत युवा तीव्र मादक द्रव्यों में पूर्णतः अनुरक्त थे। डॉ. देवेन्द्र मोहन के अनुसार हमारे विश्वविद्यालयों का 65 प्रतिशत युवा किसी भी मादक द्रव्य के प्रयोग से मुक्त है। इसके विपरीत विदेशों में 95 प्रतिशत युवा वर्ग मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्त है। इनके अनुसार विगत दशक में मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अनुरक्त युवावर्ग का प्रतिशत भारत वर्ष में भी बढ़ रहा है।

वर्तमान में भी यह प्रतिशत सापेक्ष बढ़ा ही है। डॉ. पी. के. भट्ट के निर्देशन में, वाराणसी में विश्वविद्यालय युवावर्ग में तदर्थ किए गए सर्वेक्षण से जो तथ्य ज्ञात हुए वे इस प्रकार है - जो छात्र छात्राएं कान्वेंट पब्लिक स्कूल अथवा सैनिक स्कूलों के माध्यम से, प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करके आते हैं, वे दसवीं कक्षा से ही प्रायः मादक द्रव्यों के प्रति अनुरक्त हो गए थे। छात्रावास में रहने वाले छात्र छात्राओं में चिकित्सा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के विद्यार्थी मादक द्रव्य प्रयोग में सापेक्ष्य अधिक अनुरक्त पाए गए। हिन्दी भाषी ग्रामीण क्षेत्रों में छात्र प्रायः तम्बाकू, गांजा, अफीम, भांग तथा चरस आदि का, इसके विपरीत शहरी छात्र सिगरेट शराब और एल.एस.डी. को अधिक प्रयुक्त करते हैं। वहां के 35 प्रतिशत एक व अधिक बार मादक द्रव्यों का प्रयोग कर चुके थे। छात्राओं में इनका प्रतिशत 15.35 प्रतिशत था। छात्राओं में दर्द नाशक दवाओं के प्रयोग के प्रति अधिक अनुरक्ति पाई गई।

जयपुर की स्थिति :-

एक सर्वेक्षण के अनुसार जयपुर के 25 प्रतिशत छात्र मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्त थे। इनमें 36 प्रतिशत छात्रों ने एक या एक से अधिक बार मादक द्रव्यों का प्रयोग किए थे। 10.6 प्रतिशत छात्र मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्त होकर पुनः विरक्त हो चुके थे। यहां विधि, वाणिज्य एवं कला छात्र सापेक्ष्य क्रमशः मादक द्रव्यों के प्रति अधिक अनुरक्त पाए गए थे। यह तथ्य डॉ. पी. के. भट्ट के अध्ययन के विपरीत है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय के वे छात्र जिन्होंने कान्वेंट या पब्लिक स्कूलों से अध्ययन किया, सापेक्ष्य मादक द्रव्य प्रयोग के प्रति अधिक अनुरक्त पाए गए थे। इन स्कूलों से आए छात्र युवाओं की अपेक्षा छात्र युवतियां सापेक्ष्य अधिक मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्त पाई गई थी। युवकों का प्रतिशत 31.3 था। इसके विपरीत युवतियां 50.3 प्रतिशत थी। उन शिक्षण संस्थाओं के छात्र जहां छात्रावास की सुविधा है, सापेक्ष्य मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अधिक अनुरक्त पाए गए थे। फिर भी इन मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति पूर्णतः अनुरक्त युवाओं का प्रतिशत 1.5 प्रतिशत था। इनमें भी प्रतिदिन मादक द्रव्यों का प्रयोग करने वालों की संख्या और भी कम है। अधिकांश प्रति सप्ताह या माह में कभी कभी मादक द्रव्यों का प्रयोग कर लेते थे। लेकिन पिछले वर्षों में युवाओं में मादक द्रव्यों का प्रयोग ड्रग्स के रूप में बहुत तेजी से बढ़ा है।

बढ़ता शौक :-

विगत वर्षों में 20-40 वर्ष आयु वर्ग में मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अनुरक्ति बढ़ी है। एक अन्य सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ कि विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी संबंधी खोज कार्य 30-45 वर्ष के वर्ग के युवाओं द्वारा संपादित होता है। ऐसी स्थिति में, देश में चिकित्सा एवं टेक्नोलॉजी के छात्र युवा वर्ग मे बढ़ रही मादक द्रव्य प्रयोग की अनुरक्ति को रोकना अनिवार्य है। युवा वर्ग अन्धेरी गलियों में नकली रोंशनी की तलाश में मारा मारा फिर रहा है, उन्हें सुबह की असली धूप की तलाश है, जो इनमें मनोवैज्ञानिक बदलाव लाकर एक नये जीवन के द्वार खोल सके और जो इन्हें ताजा हवा की ओर ले जा सके।

मादक द्रव्यों का रसायन शास्त्र :-

प्राचीन समय से ही मानव मनोरंजन तथा अतिरिक्त शक्ति प्राप्त करने के लिए मादक द्रव्यों का सेवन करता रहा है। वेदों में सोमरस का विशद वर्णन है। आयुर्वेद में भी कई मादक द्रव्यों, तथा उत्तेजकों का वर्णन आया है। पिछले कुछ वर्षों में इन मादक द्रव्यों का प्रयोग दवा (औषध) के रूप में न होकर आदत के रूप में तेजी से होना शुरू हो गया है। पूरी युवा पीढ़ी नशे के गर्त में डूबती उतरती जा रही है।

आइये, कुछ प्रमुख मादक द्रव्यों का रासायनिक अध्ययन करें-

एल.एस.डी.

1938में स्विट्जरलैण्ड के दो रसायन शास्त्रियों ने सर्व प्रथम इसका निर्माण किया। 1943 में इन रसायन शास्त्रियों में से एक डॉ एलबर्ट हाफमेन ने एल. एस. डी. के सेवन के बाद स्वयं को सन्निपात की स्थिति में पाया। एल.एस.डी. से मिलती जुलती सिलोसाबिल है। जो मैक्सिको व मध्य अमेरिका में पाये जाने वाले पौध सिलोसाईब मेक्सिकाना का सक्रिय तत्व है।

1970 में फिनासाइक्लीडीन या पी.सी.पी. का विकास हुआ है। जो गर्भस्थ शिशुओं के लिए विशेष हानिकारक है। इस दशा के प्रभाव के कारण बच्चों को सामने की खाली जगह का अनुपात ही नहीं हो पाता है।

डाइजेपाम, क्लोरकारजेपाक्साइड, आक्सेजेपाम, फलरेजपाम क्लोरजपाम आदि अन्य संश्लेषित नशीले पदार्थ है। जो चिंता, स्नायविक, तनाव, अनिद्रा आदि रोगों में दी जाती है। लेकिन इनसे लम्बे समय तक प्रयोग करने पर विभ्रम व मनोविकृति हो जाती है।

कोकीन :-

कोकीन प्रकृति से प्राप्त पदार्थ है, जिसका निष्कर्ष साउथ अफ्रीका में पायी जाने वाली रिर्योंजाइलिन कोक की पत्तियां से किया जाता है। 1960 में जर्मनी के एलबर्ट नेइमन ने कोक की पत्तियों से इसे पहली बार बनाया। इसे एक उत्तेजक पदार्थ के रूप में प्रयुक्त किया गया। नाक से सूंघते ही दिल की धड़कन तथा रक्तचाप बढ़ जाता है। इसके लगातार प्रयोग से सिर दर्द व सर्दी हो जाती है। अधिक प्रयोग करने पर यह महसूस होता है कि प्रयोगकर्ता की खाल के नीचे कीड़े रेंग रहे हैं।

नशे की लत पड़ने के लक्षण :-

ऽ खेलकूद और रोजमर्रा के कार्यों में दिलचस्पी न रहना।

ऽ भूख व वजन में कमी।

ऽ लड़खड़ाकर चलना। बेढ़गें तरीके से उठना-बैठना। कंपकपी होना।

ऽ आंखों में लालिमा ओर सूजन, ठीक से न दिखाई देना।

ऽ अस्पष्ट उच्चारण।

ऽ कपड़ों में खून के धब्बे ओर शरीर में कई ताजे इंजेक्शन के निशान मिलना।

ऽ चक्कर और उल्टी आना तथा शरीर में दर्द रहना।

ऽ नींद न आना या उनींदा रहना, सुस्ती और आलस्य।

ऽ गहरी चिंता, निराशा, और बहुत ज्यादा पसीना आना।

ऽ भावात्मक अलगाव और स्वभाव में अंतर आना।

ऽ याददाश्त और एकाग्रता में कमी।

नशों से बचाव :-

ऽ दृढ़ इच्छा शक्ति से किसी भी नशे से बचा जा सकता है। यह कठिन अवश्य हैं मगर असंभव नहीं है। यदि नशे के आदी व्यक्ति को उचित सहारा और मार्ग दर्शन मिले तो वह नशे को छोड़कर सामान्य जीवन जी सकता है।

ऽ बुरी संगति तथा मित्रों से बचें। यदि व्यक्ति अपने नशे के साथियों से अलग हो जाये तो धीरे धीरे वह नशीली चीजों से भी बच सकता हैं।

ऽ व्यक्ति को नये संगी, साथी, मित्र तथा ऐसी रूचियों का विकास करना चाहिए जो जीवन को सुधारने में कदद करे। उसे व्यायाम, खेलकूद, सभा, सम्मेलनों में भाग लेना चाहिए।

ऽ व्यक्ति को डाक्टरों की देखरेख में इलाज कराना चाहिए।

ऽ मनोवैज्ञानिक कारणों को दूर करना चाहिए। आवश्यक हो तो उसे मनोचिकित्सक को दिखाये।

ऽ व्यक्ति के संबंधियों, मित्रों व परिवार वालों को भी सहयोग करके व्यक्ति को नशे से बचाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को दया नहीं सहानुभूति चाहिए।

ऽ व्यक्ति को समाज, राष्ट्र, और स्वयं के हित का चिन्तन करना चाहिए।

ऽ देश में नशों की आदतें छुड़ाने वाली संस्थाएं है, उनका सहयोग लिया जाना चाहिए।

ऽ नशे से ग्रस्त व्यक्ति को सहानुभूति तथा सद्भावना से प्रेरित करें।

ऽ व्यक्ति को नशे से होने वाली हानियों से नियमित अवगत करावें।

ऽ नशा व स्वास्थ्य पर प्रकाशित साहित्य को अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाया जाना चाहिए।

ऽ सरकार को नशीली दवाओं, सिगरेट, बीड़ी व शराब पर रोक लगानी चाहिए।

ऽ इन चीजों के विज्ञापनों पर रोक लगायी जानी चाहिए।

मादक पदार्थों की लत की रोकथाम और आप :-

ऽ अपने बच्चों से खुलकर बातें करें। उनकी बातें धैर्य से सुनें।

ऽ अपने बच्चों की गतिविधियों और उनके दोस्तों में दिलचस्पी लें।

ऽ बच्चों की समस्याओं के बारें घर में मिलबैठ कर बातचीत करें। उन्हें इनको सुलझाने के तरीकों के बारे में बताएं।

ऽ आप स्वयं शराब या नशीले पदार्थ का सेवन न करें। इस तरह बच्चों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें।

ऽ घर में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की पूरी जानकारी रखें।

ऽ नशीले पदार्थों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करें और इनके दुरूपयोग के बारे में भी सावधान रहें।

अध्यापक के रूप में :-

ऽ छात्रों से अनौपचारिक रूप में खुलकर बातें करें। उनकी बातें धैर्य से सुनें।

ऽ डन्हें नशीली दवाओं के दुरूपयोग के खतरों के बारे में बताएं।

ऽ अपने छात्रों की रूचियों और गतिविधियों में दिलचस्पी लें।

ऽ उन्हें नशीली दवाओं के दुरूपयोग की किसी भी घटना के बारे में सूचनाएं देने के लिए प्रेरित करें।

ऽ किशोरावस्था की समस्याओं के बारे में बातचीत करें अपने छात्रों को ऐसी समस्याओं को सुलझाने के बारे में बताएं।

ऽ उन्हें व्यवसाय का चुनाव करने और अपना लक्ष्य निर्धारित करने में मदद करें।

ऽ नशीली दवाओं के बारें में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करें और इनके दुरूपयोग के बारे में भी सावधान रहें।

नागरिक के रूप में :-

ऽ नशीली दवाओं को रखने, लाने, ले जाने को अगर कोई व्यक्ति आपसे कहे तो ऐसे अनुरोध से सावधान रहें।

ऽ अगर आपको पोस्त या भांग के पौधों, फसल की जानकारी हो तो कानून लागू करने वाले अपने नजदीकी के अधिकारी को इस बारें में बता दें।

ऽ अगर अपको किसी तरह का संदेह हो तो पुलिस को अवश्य सूचित कर दें चाहें यह सूचना गुमनाम रहकर ही दें।

शराब : बर्बादी की गागर

शराब पीने की आदत लगभग सभी देशों के लोगों में सभी समय रही है। इसके विनाशकारी प्रभाव से परिचित होते हुए भी लोग शराब को नहीं छोड पाते हैं। शराब पीने से हजारों घर बर्बाद हो गये हैं, और लाखों लोग मौत के शिकार हो गये है। इन सबका अंतिम परिणाम समाज और देश को भुगतना पड़ता है। आपके आस पास, गांव, कस्बे या शहर में ऐसे हजारों उदाहरण होंगे जिन्हें शराब पी गयी और परिवार नष्ट हो गये। सस्ती शराब या नकली शराब पीकर दिल्ली, बम्बई, अहमदाबाद जैसे शहरों में आये दिन सैकड़ों लोग मौत की नींद सो जाते हैं।

मांस, शराब, जुआ औरत को हमेशा से ही आकर्षण का कारण माना गया है। फिर पीने का मजा संगति में लेने के कारण शराब और ज्यादा नुकसानदायक हो जाती है।

आखिर लोग शराब क्यों पीते हैं ?

कुछ लोग मानसिक तनाव, पारिवारिक झगडों से बचकर शराब पीते हैं। शराब उनकी घबराहट कम कर देती है। शराब को पीने के बाद झूठे आनन्द की अनूभूति होती है। व्यक्ति स्वयं को संयत नहीं रख पाता है। धीरे धीरे शराब उसके ऊपर हावी होती जाती है। और व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए एक बोझ बन जाता है। वास्तव में शराब सबसे आसानी से मिलने वाला विष है। लेकिन शराब सबसे महंगा और ज्यादा नुकसान करने वाला विष है। लेकिन शराब पीने पर या शराब की बिक्री पर रोक नहीं है।

शराब से मस्तिष्क, रक्तसंचार, पाचन संस्थान आदि पर बड़ा खराब प्रभाव पड़ता है। सभी प्रकार की शराबों में इथाइल अलकोहल होता है। आजकल नकली शराब में मिथाइल अल्कोहल होती है। जिसको पीने से व्यक्ति अंधा हो जाता है, और मर जाता है। शुद्ध अलकोहल का स्वाद नहीं होता है। अतः उसमें रंग, सुगंध व मसाले मिलाकर उसे पीने लायक बनाया जाता है। आयुर्वेदिक आसवों में 7-15 प्रतिशत अल्कोहल होता है। व्हिस्की और ब्रान्डी में 40-56 प्रतिशत अल्कोहल होता है।

शराब से शरीर के अंगों पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं। इससे यकृत खराब हो जाता है। अतिरिक्त ऊर्जा के कारण शरीर में कोशिकाएं मर जाती है। अधिक प्यास लगती है। शराब तंत्रिका प्रणाली को उत्तेजित करती है। और बाद में शिथिल कर देती है। शराब अन्य विषों के प्रभाव को बहुत बढ़ा देती है। शराबी ज्यादा बोलता है। उसकी आवाज में लड़खड़ाहट आ जाती है। उसकी बुद्धी और विवेक नष्ट हो जाता है। वह मारपीट या गाली गलौच करने लग जाता है। वह आपे से बाहर हो जाता हैं। उसे शीध्र ही नींद आ जाती है। और वह बेहोश हो सकता हैं लगातार अधिक मात्रा में शराब पीने से व्यक्ति की मृत्यु हो सकती हैं। वास्तव में शराबी व्यक्ति पूरे समाज और देश के लिए संकट है। उसके परिवार के बच्चे और पत्नी खाने पीने और कपड़ों के लिए तरस जाते हैं। औेर शराबी अपनी पूरी कमाई को शराब पर खर्च कर देता है।

शराब के नियमित सेवन से शरीर में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं। आमाशय का व्रण, अपचन, वायु का बनना, यकृत खराब हो जाना, वृक्क या गुर्दों का खराब हो जाना इनमें प्रमुख है। लगातार शराब के प्रयोग से कैंसर जैसा भयानक रोग हो जाता है। और व्यक्ति को रक्त संचार, प्रणाली के रोग भी हो जाते हैं। व्यक्ति असमय में ही बूढ़ा होकर मृत्यु को प्राप्त कर लेता है।

जब कोई व्यक्ति शराब छोड़ने की कोशिश करता है। तो उसे कई प्रकार की तकलीफें होती हैं उसके शरीर में कम्पन होता है। वह चिड़चिड़ा हो जाता है। पेट की बीमारियां हो जाती है। उसका जी मिचलता है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है। शराब से मतिभ्रम हो जाता हैं उसे मिथ्या आवाजें सुनाई पड़ती है। उसे मिर्गी का दौरा पड़ सकता है। और उन्माद भी हो सकता हैं।

वास्तव में शराब से रोग ही रोग होते हैं। हृद्य का रोग तथा कैन्सर व टी.बी. जैसे भयानक रोग भी शराब से हो सकते हैं। शराब से शरीर के नाश के साथ साथ सन्तान पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। मानव मस्तिष्क के काम करने की क्षमता कम हो जाती है। परिवार व जीवन उजड़ जाता है। काम-शक्ति कम हो जाती है। मगर काम-वासना बढ़ जाती है। शराबी के बच्चे समाज में उपेक्षित रह जाते हैं। शराबी तरह तरह के अपराध करने लग जाता हैं तथा शराबी की आर्थिक स्थिति धीरे धीरे कमजोर हो जाती हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण है, जिसमें शराब ने लोगों को दीवालिया कर दिया। व्यक्ति को अपना जीवन नरक लगने लग जाता है। शराब का उच्च वर्ग समाज सेवा आदि में भी काफी प्रचलन है। इसे कम किया जाना चाहिए। निम्न वर्ग तो शराब, नशीली दवाओं तथा सिगरेट, तम्बाकू से तबाह हो रहा हैं सरकार को समाज को बचाने में और अधिक प्रयास करने चाहिए। नशा पूरी पीढ़ी को नष्ट करता है। इसलिये इससे बचा जाना चाहिए।

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यशवन्त कोठारी

86,लक्ष्मी नगर ब्रहमपुरी बाहर, जयपुर-302002

फोनः-0141-2670596

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रचनाकार: यशवंत कोठारी का आलेख : नशे की दुनिया और उससे बचाव
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