- बाकी है अभिलाषा सराय में मकसद का निकल रहा जनाजा छल-प्रपंच,दण्ड-भेद का गूंजता है बाजा नयन डूबे मन ढूंढे भारी है आज हताशा आदमी बने रहने ...
- बाकी है अभिलाषा
सराय में मकसद का निकल रहा जनाजा
छल-प्रपंच,दण्ड-भेद का गूंजता है बाजा
नयन डूबे मन ढूंढे भारी है आज हताशा
आदमी बने रहने की बाकी है अभिलाषा ।
दुनिया हमसे हम दुनिया से नाहिं
फिर भी बनी है बेगानी ,
आदमी की भीड़ में छिना छपटी है
कोई मानता मतलबी कोई कपटी है
भले बार-बार मौत पायी हो आशा
जीवित है आज भी
आदमी बने रहने की बाकी है अभिलाषा ।
मुसाफिर मकसद मंजिल थी परम्शक्ति
मतलब की तूफान चली है जग में ऐसी
लोभ-मोह,कमजोर के दमन में बह रही शक्ति
मंजिल दूर कोसों जवां है तो बस अंधभक्ति
दुनिया एक सराय नाहिं है पक्का ठिकाना
दमन-मोह की आग,
नहीं दहन कर पायी अर्न्तमन की आशा
अमर कारण यही,पोषित कर रखा है
आदमी बने रहने की अभिलाषा ।
सच दुनिया एक सराय है
मानव कल्याण की जवां रहे आशा
जन्म है तो मौत है निश्चित
कोई नहीं अमर चाहे जितना जोडे धन-बल
सच्चा आदमी बोये समानता-मानवता-सद्भावना
जीवित रखेगा कर्म यही मुसाफिरखाने की आशा
अमर रहे आदमियत विहंसती रहे
आदमी बने रहने की अभिलाषा ।
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चैन की सांस
भय है भूख है नंगी
गरीबी का तमाशा खिस्सों में छेद कई-कई
चूल्हा गरमाता है आंसू पीकर
आटा गीला होता है पसीना सोखकर ।
कुठली में दाने थमते नहीं
खिस्से में सिक्के जमते नहीं
स्कूल से दूर बच्चे भूख-भूख खेलते
रोटी नहीं गम खाकर पलते
जवानी में बूढे होकर मरते
कर्ज की विरासत का बोझ आश्रित को देकर ।
कैसे कैसे गुनाह इस जहां के
हाशिये का आदमी अभाव में बसर कर रहा
धनिखाओं की कैद में धन तड़प रहा
गोदामों में अन्न सड़ रहा
गरीब अभागे बदल रहे करवटें भूख लेकर ।
कब बदलेगी तस्वीर कब छंटेगा अधियारा
कब उतरेगा जाति-भेद का श्राप
कब मिलेगा हाशिये के आदमी को न्याय
कब गूंजेगा धरती पर मानवतावाद
कब जागेगा देश सभ्य समाज के प्रति स्वाभिमान
ये है सवाल दे पायेगे जबाव धर्म-सत्ता के ठेकेदार
काश मिल जाता,
मैं और मेरे जैसे लोग जी लेते
चैन की सांस पीकर
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-इतिहास
तपती रेत का जीवन अघोषित सजा है
वही भोग रहे है अधिकतर लोग
जिन्हें हाशिये का आदमी कहता है
आज भी आधुनिक समाज ।
फिक्र कहां होती तो
तपती रेत के जीवन पर पूर्ण विराम होता
गरीबी-भेद के दलदल में फंसा आदमी
तरक्की की दौड़ में शामिल होता आज।
कथनी गूंजती है करनी मुंह नोचती है
तपती रेत के दलदल में कराहता
हाशिये का आदमी तकदीर को कोसता है
जान गया है
ना कर्म का और ना तकदीर का दोष है
तरक्की से दूर रखने की साजिश है
तभी तो हाशिये का आदमी
पसीने और अश्रु से सींच रहा है
तपती रेत का जीवन आज ।
तरक्की से बेदखल आदमी की उम्मीदें टूट चुकी है
वह जी रहा है तपती रेत पर
सम्भावनाओं का आक्सीजन पीकर
तरक्की चौखट पर दस्तक देगी
जाग जायेगा विष-बीज बोने वालों के दिलों में
बुद्ध का वैराग्य और हर चौखट पर
दे देगी दस्तक तरक्की
यदि ऐसा नहीं हुआ तो आखिर में
एक दिन टूट जायेगा सब्र रच देगा इतिहास
आज का हाशिये का तरक्की से बेदखल समाज ।
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-अमृत-बीज
कसम खा लिया है,अमृत बीज बोने का
जीवन के पतझड़ में बसन्त के एहसास का
चल पड़ा लेकर खुली आंखों के सपने ।
दर्द बहुत है यारों राह में,
हरदम आघात का डर बना रहता है
पुराने घाव में नया दर्द उभरता है
मुश्किलों के दौर में भी जीवित रहते है सपने ।
अंगुलिया उठती है विफलता पर,
रास्ता छोड देने की मशविरा मिलती है
मानता नहीं जिद पर चलता रहता हूं
विफलता के आगे सफलता देखता हूं
कहने वाले तो यहां तक कह जाते है
मर जायेगे सपने, मेरी जिद को उर्जा मिल जाती है
ललकारता अमृत बीज से बोये, नहीं मर सकते सपने ।
कहने वाले नहीं मानते कहते,मिट जायेगी हस्ती इस राह में
कहता खा लिया है कसम बोने के इरादे अपने
हस्ती भले ना पाये निखार ,ना मिटेगे सपने ।
सपनों को पसीना पिलाकर
आंसुओं की महावर से सजाकर
उजड़ी नसीब से उपजे चांद सितारों को मान देकर
चन्द अपनों की शुभकामनाओं की छांव में,
कलम थाम,विरासत का आचमन कर,
थाती भी तो यही है कलमकार के अपने ।
कैसे नहीं उगेगे अमृत बीज
राष्ट्र हित-मानवहित मे देखे गये खुली आंखों के सपने ।
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- एक मिनट का मौन
सकून ही नहीं यकीन भी तो है
तुम पर ! हो भी क्यों ना ? यही तो कमाई है विश्वास की।
पहले या बाद में मैं रख लूंगा या तुम
दो मिनट का नहीं एक मिनट काफी है ।
हादशों के शहर में आज ही तो बाकी है
कल क्या होगा प्यारे ? ना तो हम जानते ना तुम ।
आदमी के बदमिजाज से जान ही गये हो
भ्रष्टाचार, आतंकवाद, क्ष्ोत्रवाद, धर्मवाद जातिवाद
खाद्यान्नों की मिलावट, दूषित वातावरण
और दूसरी साजिशें कब मौत के कारण बन जाये
दोस्त ना तुम जानते हो ना हम
एक बात जान गये है ये साजिशो की ज्वालामुखी
कभी भी जानलेवा साबित हो सकती है ।
काश ये ज्वालामुखी शान्त हो जाती सदा के लिये
परन्तु विश्वास की परतें जम तो नहीं रही है ।
हां सकून और यकीन तो है दोस्त
तुम मेरी और मैं तुम्हारी
मौत पर दो की जगह एक मिनट का
मौन तो रख ही लेंगे कोई तूफान क्यों ना उठे
और फिर भले ही हम खो जाये ब्रहमाण्ड में
दुनिया की अमन शान्ति के लिये।
---.
- हंसना याद नहीं
हंसना याद नहीं मुझे कब हंसा था पहली बार
आंख खुली तो अट्टहास करते पाया
नफरत-तंगी और मानवीय-अभिशाप की ललकार ।
हंसना तब भी अपराध था आज भी है
शोषित आम आदमी के दर्द पर
ताककर खुद के आंगन की ओर
अभाव- भेद से जूझे कैसे कह दूं
मन से हंसा था कभी एक बार ।
पसरी हो भय-भूख जब आम आदमी के द्वार
नहीं बदले हैं कुछ हालात कहने भर को बस है
तरक्की दूर है आज भी आम आदमी से
वह भूख-भय भूमिहीनता के अभिशाप से व्यथित
माथे पर हाथ रखे जोह रहा बार-बार ।
सच कह रहा हूं
हंस पड़ेगा शोषित आम-आदमी जब एक बार
सच तब मैं सच्चे मन से हंसूंगा पहली बार...
---.
लेखक परिचय
नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
शिक्षा - एम.ए. (समाजशास्त्र) एल.एल.बी. (आनर्स )
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म तिथि एवं जन्म स्थान- 01.01.1963 ग्राम-चौकी ।ख्ौरा।पो.नरसिंहपुर जिला-आजमगढ ।उत्तर प्रदेश।
प््राकाशित पुस्तकें
ई पुस्तकें............
उपन्यास-अमानत, प्रतिनिधि पुस्तकें- काली मांटी ,निमाड की माटी मालवा की छावं,ये आग कब बुझेगी एवं अन्य
उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप
कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म एवं सपनों की बारात।
लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू एवं एहसास ।
काव्यसंग्रह -कवितावलि ,काव्यबोध
आलेख संग्रह- विमर्श एवं अन्य
सम्मान स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009,मुम्बई ।चयनित।
विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म.प्र.,
विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ.प्र.।
लेखक मित्र ।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड।
भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद,
भाषा रत्न, पानीपत ।
डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली,
काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र,
ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर ।म.प्र.।
डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विश्ोष समाज सेवा,इंदौर
विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.।
कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.।
साहित्यकला रत्न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.।
साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.।
सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण ।कहानी, लघु कहानी,कविता और आलेखों का देश के समाचार irzks@ifrzdvksaमें www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com rachanakar.com / hindi.chakradeo.net www.srijangatha.com,esnips.con, sahityakunj.net,chitthajagat.in,hindi-blog-podcast.blogspot.com, technorati.jp/blogspot.com, sf.blogspot.com, archive.org ,ourcity.yahoo.in/varanasi/hindi, ourcity.yahoo.in/raipur/hindi, apnaguide.com/hindi/index,bbchindi.com, hotbot.com, ourcity.yahoo.co.in/dehradun/hindi, inourcity.yaho.com/Bhopal/hindi,laghukatha.com ई-पत्र पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित एवं जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
सदस्य
इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स ।इंसा। नई दिल्ली
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ.प्र.।
हिन्दी परिवार, इंदौर ।मध्य प्रदेश।
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून ।उत्तराखण्ड।
साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ.प्र.।
म.प्र..लेखक संघ,म.प्र.भोपाल एवं अन्य
सम्पर्क सूत्र आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म.प्र।-452010
दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066
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