बारह कब बजेंगे ? '' अम्मी जान , भूख लगी है। '' राशिद मियां सुबह से तीसरी बार बावर्चीखाने का चक्कर लगाने पहुंचे थे। ...
बारह कब बजेंगे?
''अम्मी जान,भूख लगी है।''
राशिद मियां सुबह से तीसरी बार बावर्चीखाने का चक्कर लगाने पहुंचे थे।
''बेटे,अभी-अभी तो आपने नाश्ता किया है, इतनी जल्दी फिर भूख लग आई?'' अम्मी बोलीं, ''बार-बार खाने से हाजमा खराब हो जाता है। जाइए, बाग में खेल आइए।''
दस बज रहे थे और कोठी में अभी नाश्ते का दौर खत्म नहीं हुआ था। यह रोज की बात थी। फजिर की नमाज से लेकर दस-ग्यारह बजे तक बावर्चीखाने में किसी के लिये चाय, किसी के लिये आलू के पराठे, किसी के लिये उबले चने और किसी के लिये आमलेट बनते रहते थे। पूरे सहन में तरह-तरह की खुशबुएं तैरती रहतीं। बस, यही खुशबुएं राशिद मियां को बेचैन कर देतीं। उबले चनों में तली प्याज और मसाले की बघार लगी कि राशिद मियां चौखट पर हाजिर।
राशिद मियां का स्कूल जाना अभी शुरू नहीं हुआ था। भाई-बहन सुबह-सुबह स्कूल चले जाते। ये बेचारे बडी-सी कोठी में सुनहरे काम वाला कुर्ता पहने इधर से उधर भटका करते। कभी बाग में माली के साथ गुलाबों में पानी देने पहुंच जाते, तो कभी नौकरानी के पास बैठकर देव और शहजादी वाली कहानियां सुनते। पर वक्त था कि काटे नहीं कटता। ऊपर से हवा में तैरती खुशबुएं। राशिद मियां भूख से बेचैन हो उठते।
पर अम्मी ठहरीं पाबंद औरत। दादी की सफाई पसंदगी की वजह से बावर्चीखाने की कमान उन्हीं के हाथ में थी। नौकरानी होती तो राशिद मियां धमका भी लेते। पर अम्मीजान तो कायदे-कानून की सख्त पाबंद थीं। घर में भी अदबो-आदाब का ऐसा माहौल था कि जिद करना बहुत बड़ी नाफरमानी मानी जाती थी।
लेकिन एक दिन जब पिसे हुए मेवों के हरीरे को देसी घी की छौंक दी गई तो राशिद मियां मचल उठे। सीधे बावर्चीखाने में पहुंचकर बोले, ''मैं भी खाऊंगा।''
अम्मीजान को हंसी आ गई, ''नहीं बेटे,यह चचाजान के लिये है।''
''मेरे लिए क्यों नहीं?''
''बेटे, आप चचाजान की तरह कसरत नहीं करते हैं इसलिये। आप खाएंगे तो नुकसान करेगा। दस्त लग जाएंगे।''
''लेकिन मुझे भूख लगी है।''
आखिरकार अम्मीजान और राशिद मियां के बीच एक समझौता हुआ। तय किया गया कि बारह बजे के बाद राशिद मियां को इंतजार नहीं करना पड़ेगा। ठीक बारह बजे उनका दस्तरख्वान लग जाएगा।
पर बारह कब बजेंगे यह जानना राशिद मियां के लिये टेढ़ी खीर थी। खैर इसका भी हल निकाला गया। अम्मीजान ने घड़ी दिखाते हुए बताया, ''ये जो मोटी-मोटी दो सुइयां हैं,जब एक सीध में आ जाएंगी तब बारह बज जाएंगें।''
काम बहुत सब्र का था पर राशिद मियां राजी हो गए- मरते क्या न करते।
अब राशिद मियां खिड़की से बाहर झांकना भूल गए। बाग में जाकर पानी देने और किस्से-कहानी सुनने का मजा भी जाता रहा।दीवान पर लेटकर एकटक घड़ी की ओर देखने लगे।
अम्मीजान ने देखा तो हंस पडीं, ''अरे बेटा,अभी बारह बजने में काफी देर है, जाइए जाकर खेलकूद आइए।''
राशिद मियां को लगा कि सुइयां सचमुच बहुत धीरे-धीरे खिसक रही हैं। उन्होंने बेमन से खिड़की की ओर कदम बढ़ा दिए। पर दो-एक पलों में फिर झांकने दौड़े आए कि बारह न बज गए हों। हर दो-चार मिनट के बाद राशिद मियां घड़ी के दीदार कर जाते। घड़ी की सुइयां अब कुछ-कुछ मंजिल के करीब पहुंचने लगीं थीं।
तभी बाहर से डुगडुगी का शोर आया। मदारी था। राशिद मियां लपक कर खिड़की पर चढ गए और उसके चौड़े आसार पर एक ओर टेक लगाकर बैठ गए। बंदर-बंदरिया के करतब देखकर राशिद मियां को बड़ा मजा आया। मायके जाती बंदरिया को जब बंदर उछल-कूदकर रिझाता तो राशिद मियां खूब तालियां बजाते। पर जब बंदर ने हाथ में कटोरा लेकर पैसे मांगने शुरू किए तो वे डरकर भाग छूटे।
खिडकी से उतरे तो राशिद मियां सीधे घड़ी के पास जा पहुंचे सुइयों की स्थिति में अंतर तो आ गया था, पर एक सीध में वे अब भी नहीं थीं।
राशिद मियां अबकी बाग की ओर टहल लिये। भूख के मारे उनकी आंतें कुलबुलाने लगीं थीं। चेहरे पर खाली पेट की बदहवासी झलकने लगी थी।
उनकी हालत देखकर माली ने पूछा, ''बाबू ने आज खाना नहीं खाया क्या?''
राशिद मियां को फिर घड़ी की याद आई। सोचा अब शायद बारह बज गए हों। पर लौटे तो फिर वही ढाक के तीन पात। दोनों सुइयां अब भी सीध में नहीं थीं।
राशिद मियां वहीं निढाल होकर बैठ गए। भूख के मारे चला नहीं जा रहा था। चेहरे पर हवाइयां उड रही थीं। थकन से आंखें बार-बार झपक जा रही थीं, पर वे हर बार संभल कर बैठ जाते कि आंख लग गई और इस बीच कहीं बारह बज गए तो ? लेकिन ये बारह आखिर बजेंगे कब ? राशिद मियां का सब्र जवाब देने लगा था। आखिरकार जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो अम्मीजान के पास जा पहुंचे। अम्मीजान पानदान खोले जल्दी-जल्दी छालियां कतर रही थीं। बैठक में अब्बूजान के मेहमान बैठे हुए थे। उन्हें पान पहुंचाने थे।
राशिद मियां थोडी देर खडे रहे। पर अम्मीजान ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया,वह जल्दी-जल्दी पान लगाने में जुटी रहीं।
''अम्मीजान, बारह कब बजेंगे। बहुत जोर की भख लगी है,'' राशिद मियां बडे कातर स्वर में बोले।
अम्मीजान ने घड़ी की ओर नजर दौड़ाई तो हक्का-बक्का रह गईं। उन्होंने लपककर राशिद मियां को गोद में भींच लिया।
''मेरे लाल .....''अम्मीजान का गला भर्रा गया और आंखें छलछला आईं, ''मुझसे इतनी बड़ी भूल हो गई। मसरूफियत में मुझे आपका ख्याल न रहा। बारह बजे तो डेढ़ घंटे हो गए।''
अम्मीजान बार-बार राशिद मियां को चूमती जा रही थीं और आंसू बहाती जा रही थीं। राशिद मियां कुछ समझ नहीं पा रहे थे,बस इतना इत्मीनान था कि अब खाना मिलने जा रहा है।
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संक्षिप्त-परिचय
नाम- डा0 मोहम्मद अरशद खान
पिता- श्री मोहम्मद यूसुफ खान
माता- श्रीमती शमीमा बानो
जन्मतिथि- 17.09.1977
जन्म-स्थान- उधौली(बाराबंकी)
शिक्षा- एम0ए0(हिन्दी)़़, पीएच0डी0
जे0आर0एफ0(नेट)
प्रकाशन- देश की सभी प्रमुख बाल पत्र-पत्रिकाओं में 1990
से निरंतर प्रकाशन
पुस्तकें- 1-रेल के डिब्बे में(बाल कविता संग्रह)
2-किसी को बताना मत(बाल कहानी संग्रह)
पुरस्कार/सम्मान- 1-चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट द्वारा कहानियां पुरस्कृत-प्रतियोगिता
में
2-नागरी बाल साहित्य संस्थान बलिया द्वारा सम्मनित-2002
3-पं0 हरप्रसाद पाठक स्मृति पुरस्कार-2008
4-राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह-2006 अल्मोडा में
सम्मानित
संप्रति- जी0 एफ0 पी0 जी0 कालेज शाहजहांपुर में असिस्टेंट
प्रोफेसर
संपर्क- हिंदी विभाग़,जी0 एफ0 कालेज
शाहजहांपुर-242001
बाल-मन को टटोलती यह कहानी अच्छी लगी।
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