आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व 24 फरवरी 1960 को गठित जनपद पिथौरागढ़ अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक विशेषताओं के कारण जाना जाता रहा है। हि...
आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व 24 फरवरी 1960 को गठित जनपद पिथौरागढ़ अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक विशेषताओं के कारण जाना जाता रहा है। हिमालय की गोद में बसे इस पर्वतीय जनपद की सीमायें एक ओर नेपाल से दूसरी ओर तिब्बत (चीन) से लगती हैं। पूर्णतया पहाड़ी जिला गठन से पूर्व अल्मोड़ा जिले की एक तहसील भर था। उस समय पिथौरागढ़ में चार तहसीलें बनायी गयी थी। वर्तमान में पिथौरागढ़, गंगोलीहाट, डीडीहाट, धारचूला, मुन्स्यारी व बेरीनाग छः तहसीलें और दो उप तहसीलें हैं। यह अपने गठन से पचास साल की यात्रा पूरी कर चुका है। सदियों से देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात उत्तराखण्ड के नाम को यह प्रकाशमान करता रहा है। प्रारम्भ मे सीमान्त के पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और चमोली मिलकर उत्तराखण्ड कहलाते थे। इनको राज्य गठन के पूर्व उत्तर प्रदेश से विशेष सहायता मिलती थी। दूरस्थ होने के कारण यहां विकास की गति भी धीमी रही। जिला मुख्यालय को सोर के नाम से जाना जाता रहा का विकास तेजी से हुआ।
छोटा कश्मीर के नाम से प्रसिद्ध इस नगर की गिनती आजकल उत्तराखण्ड के सर्वाधिक खूबसूरत नगरों में होती है। वर्तमान में यह 7090वर्ग किलो मीटर भौगोलिक क्षेत्रफल में फैला अपनी प्राकृतिक सुषमा, धार्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक पर्यटन-तीर्थाटन के लिए विश्व विख्यात है। विश्व की ऊंची-ऊंची चोटियां इसी की सीमा में स्थित हैं। कुछ क्षेत्र तो वर्ष भर बर्फ से ढके रहते हैं। काली, गोरी, सरयू ,रामगंगा जैसी पवित्र नदियों से पावन हो रहा यह जनपद विश्व प्रसिद्ध मिलम ,रालम, नामिक, छोटा कैलाश, नारायण आश्रम, पाताल भुवनेश्वर, रामेश्वर, गुरना -कालिका मंदिर आदि के अतिरिक्त कैलाश मानसरोवर धाम का द्वार है। जिसके कारण पर्यटकों का यहां आना-जाना भी लगा रहता है। कई नदियों में समय-समय पर राफ्टिंग के कार्यक्रम भी चलते रहते हैं। भारतीय सेना मे इस जिले के सर्वाधिक सैनिक हैं। देश के लिए जान देने वालों की संख्या भी हजार से अधिक है। शिक्षा चिकित्सा, इंजीनियरिंग, खेल, संचार, विज्ञान-प्रौद्योगिकी आदि में भी इसकी प्रतिभायें प्रदेश से लेकर देश-विदेश तक फैली हैं।
वैसे तो जिले के सभी क्षेत्र दर्शनीय हैं; पर गंगोलीहाट तहसीलार्न्तगत मुख्यालय से लगभग 20 किलो मीटर की दूरी पर पाताल भुवनेश्वर का अपना ही महत्व है। जिसके अन्दर अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियों की बनावट का कौशल देखते ही बनता है। गुफा की शिलाएं अपने में अनेक धार्मिक-पौराणिक गाथाओं को समेटे हैं। इसी तहसील के मुख्यालय पर दसवीं शताब्दी के कई पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर हैं। जिनसे लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन महाकाली का मंदिर लोगों की आस्था का विश्ोष केन्द्र है। यहां दशहरा, रामनवमी के अवसर पर मेले का आयोजन होता है। श्रृद्धालुओं की दर्शनार्थ भीड़ तो रहती है। देवदार के घने वृक्षों के मध्य स्थित मंदिर में मां काली की काले पत्थर की आदमकद प्रतिमा बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कर लेती है दुर्भाग्य से निरीह पशुओं -बकरे और भैंसे की बलि देने की प्रथा यहां आज भी जारी है। इसी तहसील के सीमान्त क्षेत्र चम्पावत-अल्मोड़ा जनपदों के मिलन बिन्दु पर रामेश्वर नाम का तीर्थ स्थित है; जहां पर सरयू-रामगंगा व गुप्त गंगा ( स्थानीय मान्यता के अनुसार) आकर मिलती हैं। यहां पर उत्तरायणी (मकर संक्रांति), शिवरात्रि व रामनवमी को धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। संगम पर स्नान कर पुण्य अर्जन हेतु अनेक तीर्थ यात्री तो आते ही हैं। दूर-दराज से व्यापारी भी आकर दुकानें लगाते हैं। यहां पर रामनवमी के दिन समीपस्थ गांव बौतड़ी (रामेश्वर) से आने वाली शोभा यात्रा (डोला ) विशेष आकर्षण का केन्द्र होती है। जिसमे गांव का सबसे वृद्ध पुजारी बिठाया जाता है और गांव के सभी मंदिरों में पूजन-अर्चन करवाते हुए बालक, युवा और वृद्ध रस्सियों के सहारे खींचते हुए नदी के रास्ते रामेश्वर मंदिर लाते हैं। मंदिर में शिवलिंग की पूजा के बाद उसी प्रकार वापस ले जाते हैं। इस मनमोहक दृश्य को देखने के लिए आस-पास के हजारों दर्शकों के अतिरिक्त दूर-दराज के पर्यटक, श्रृद्धालु भी आते हैं।
पिथौरागढ़ नगर मे यूं तो अनेक मंदिर है;लेकिन शिव व हनुमान मंदिर, महाराजा पार्क विशेष दर्शनीय है। नगर मे ही कुमौड़ नामक स्थान पर ‘‘पिथौरा ‘‘ का प्राचीन मंदिर है;जिसने पिथौरागढ़ को बसाया था।
अन्य तहसीलों के दर्शनीय स्थलों धारचूला में तवाघाट से आगे नारायण आश्रम, ऊँ पर्वत , मुन्स्यारी मे कालामुनि - नंदा देवी मंदिर महेश्वर, थामली, कुण्ड, तिब्बत हेरिटेज , थल-केदार व पंचाचूली आदि प्रमुख हैं। साथ ही मुन्स्यारी मे ही एक स्थल से भारत का मानचित्र भी स्पष्टतः दिखता है।
पिथौरागढ़ भ्रमण हेतु फरवरी, मार्च, अप्रैल का समय अच्छा रहता है। यहां पर रुकने के लिए तहसील मुख्यालय से लेकर जनपद मुख्यालय तक धर्मशालाओं, होटलों व सरकारी आवास गृहों की व्यवस्था है। प्रसिद्ध मंदिरों में भी रुकने - भोजन की व्यवस्था रहती है। पिथौरागढ़ बरेली से टनकपुर व दिल्ली-देहरादून से हल्द्वानी होकर पहुंचा जा सकता है। हल्द्वानी से लगभग नौ और बरेली - टनकपूर से छः घण्टे लगते हैं। देश की राजधानी व उत्तराखण्ड की राजधानी से दोंनों ही मार्गों से गुजरने वाली परिवहन निगम की बसें मिलती हैं। रेल यात्रा मात्र टनकपुर व हल्द्वानी तक ही उपलब्ध है। निजी वाहन भी चलते रहते हैं पर उनमें किराया पहले से ही तय कर बैठना चाहिए। जो लोग पहली बार पहाड़ की यात्रा पर आ रहे हों। उन्हें यहां पर अचानक हो जाने वाली ठण्डक व वर्षा तथा अचानक आ जाने वाली उल्टियों से बचाव का उपाय साथ में रखकर यात्रा आरम्भ करनी चाहिए।
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शशांक मिश्र‘‘भारती
दुबौला-रामेश्वर-262529
पिथौरागढ़- उत्तराखण्ड
shashank.misra73@rediffmail.com
पिथौरागढ़ की रम्यक सैर कराने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं.. महेन्द्र वर्मा
कृपया कुछ चित्र भी डाल दिया करें, आलेख तो रोचक है ही.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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