ग़ज़ल आँखों देखी सारी लिखना , कलम हैं एक बुहारी लिखना॥ नेताजी की कटी नाक की, रहन रखी खुद्दारी लिखना। कौन कौन तो लूट चुके ...
ग़ज़ल
आँखों देखी सारी लिखना ,
कलम हैं एक बुहारी लिखना॥
नेताजी की कटी नाक की,
रहन रखी खुद्दारी लिखना।
कौन कौन तो लूट चुके हैं,
अब किसकी है बारी लिखना।
मीठी लिख मशहूर न होना
खार खाय कर खारी लिखना ।
अब के उनकी आँख के आंसू,
सचमुच हैं सरकारी लिखना ।
आघी सच है झूठ सरासर,
खोद खोद कर सारी लिखना।
----
बिकाऊ हैं मेरे भाई यहां सारे बिकाऊ हैं!
-----------------
जुटाये थे कहीं से वो पड़े थे जेब में पैसे,
खनक कर के परस्पर कर रहे थे गुफ्तगू ऐसे।
कहीं तो हाट में सजकर,कहीं फुटपाथ पे बिछ कर,
धड़ल्ले से बिके दिन में, कहीं अंधियारे में छुप कर।
किसी का मौल ज्यादा है किसी का मोल है थोड़ा,
तिजारत की तमन्ना ने कहीं का भी नहीं छोड़ा।
सड़ी सब्जी की माफिक लोग जो बिकने न पाये हैं,
उन्होंने ही तो निष्ठा के निरे नारे लगाये हैं।
इन्ही दो चार ने ईमान की हस्ती बचाई है।
यही तो हां यही तो बात पैसे ने बताई है।
अरे खुद्दारियां ओढ़ा हुआ केवल दिखावा है ,
थमाया मोल तो बिक जायगी मेरा ये दावा है।
ये ओहदे वर्दियाँ तमगे कभी भृकुटी तनाते हैं,
फ़कत गौशा हमारा देख कर ही हिनहिनाते हैं।
तनी गर्दन की कीमत का अनोखा ही नजारा है,
नहीं सौदा पटे तो फिर मौल फिर कुछ भी गवारा है।
तरेरें आँख तो कानून की धारा बदल जाये ,
गवाही दें अगर मुजरिम की तो बेदाग कहलाये।
तभी तो मुन्सिफ ने आँख पर चढ़ाई है।
यही तो हां यही तो बात पैसे ने बताई है।
ये मांगों में भरे वादे वो कसमों का कुँवारापन,
बिकाऊ हैं रची हाथों की मेंहदी का अधूरापन ।
बगावत के समर्पण का सिसकता ये परायापन ,
बिकाऊ हैं दगा पहने हुए मोहब्बत का पैराहन ।
बिकी जबरन पुती होठों पे वो मुस्कान अधनंगी ,
बिकाऊ सात फेरों में छुपे सपनें वो सतरंगी।
झुकी पलकों ने पहनाई स्वयंवर जो वरमाला ,
किसी अनुबन्ध की खातिर खुशी का खून डाला ।
नहीं गुम्बाज मैं मैंने सुनी वो ही सुनाई है।
यही तो हां यही तो बात पैसे ने बताई है॥
कहीं कुलटा हवस उन्माद की मारी बिकाऊ हैं,
कहीं मन मार कर दरकार बेचारी बिकाऊ हैं।
बिक कर फूल पूजा के चले चकले पे आये हैं,
बदले कौड़ियों के लाज ने मोती गंवाये हैं।
रवायत आँख मूंदे देखती आयी कल तक तो ,
यहां बिकते हुऐ बेमन से आँगन की अमानत कों
कहीं लाचार उम्मीदें चली चकले पे आयी हैं,
लकीरें हाथ की इनको यहां तक खेंच लायी हैं।
हमारी मार से बचना इसी में ही भलाई है,
यही तो हां यही तो बात पैसे ने बताई है॥
कि पूरा मौल ले कर ही दुआ के हाथ उठते हैं,
अंगूठे मेहरबानी के टके लेकर ही टिकते हैं।
कि उस फरियाद ने चौखट से ही फटकार खायी है,
निरा पागल कहीं की जब भी खाली हाथ आयी है।
सिफारिश का शजर सौगात से सादाब रहता है,
सूखी जी हजूरी का असर क्या खाक होता है।
अरे ये हाट हैं हट जा मुफ्त में मांगने वाले ,
----
पोकरण ।
निगल कर घास की रोटी भी जो संग्राम जीते हैं,
जरुरत आ पड़ी तो भामाशाह बनकर दिखा देंगे।
मदद देते हो स्वाभभिमान के बदले तो रहने दो,
दफा करके सहारों को भी सब कुछ कर दिखा देंगे।
हुई पाबंदिया आयद नहीं परवाह करेंगे हम,
बिना बैसाखियों के हूबहू चल कर दिखा देंगें।
यहां पर लोरियों में वीर गाथाऐं सुनी मां से,
वतन पर जां फना करने को है तत्पर दिखा देंगे।
क़आनत की हिफाजत के लिए ताकत जरुरी है,
कभी कुरुक्षेत्र से गुजरे वो पसमंजर दिखा देंगे।
पराक्रम की महागाथा जुबानी पोकरण कहता,
धरा से दुश्मनों का खात्मा हम कर दिखादेंगे।
विलक्षण बात है रण पोकरण, संगम अनूठा है,
गये है जंग में उनको नहीं हैं जान की परवाह।
लुटाने के लिए सब कुछ जहां तत्पर हैं भामाशाह॥
जिन्हो ने लोरियों में भी सुनी हैं वीर गाथाएं ।
पिलाती हैं निडरता दूध के ही साथ माताएं॥
सुने रणभेरियां तो खूं रगों का खौल उठता है ।
जरा देखें हमारी ओर किसका हाथ उठता है॥
पलों में शत्रु की हस्ती को मिट्टी में मिलादेंगे।
कभी कुरुक्षेत्र में गुजरे वो पसमंजर दिखादेंगे॥
धरा की धीर माटी ने दिया जन्म शेरों को ।
चटायी सदा ही धूल जिन्होंने लुटेरों कों ॥
बहा के खून जो सरहद परे इतिहास रचते हैं।
उन्हीं की ही समाधि पे श्रद्धा के फूल चढ़ते हैं॥
गवाह बन खड़ा हैं पोकरण जिनके पराक्रम का ।
कहीं नक्शा़ न मिट जाये धरातल से नराधमका॥
हमीं पर्याय प्रलय के ये दुश्मन को जता देंगे ।
कभी कुरुक्षेत्र में गुजरे वो पसमंजर दिखादेंगे॥
----.
तिरंगा
है शहीदों की निशानी आज लहराता तिरंगा,
शौर्य के पर्याय थे पुरखे ये बतलाता तिरंगा।
वो सभी बलिदान जो कि नींव के पत्थर बने थे,
वीर गाथाएं उन्हीं की गर्व से गाता तिरंगा।
जीते जी मां भारती की आन पै ना आंच आए,
सरहदों पर आज भी इतिहास दुहराता तिरंगा।
धर्म की रक्षा के आगे जान की परवाह कैसी,
दे गये श्री कृष्ण वो उपदेश दुहराता तिरंगा।
पार्थ का गांडीव जब जब शत्रु को ललकारता है,
गर्व से छाती फुला कर और तन जाता तिरंगा।
....
शहीदों के नाम
देश की रक्षा की खातिर प्राण न्योछावर किए है,
ऐ धरा तू धन्य है वो शूरमां पैदा किए है।
गोद सूनी देखकर भी अश्क जिसने पी लिए है ,
वीर मां का रुप वो केवल मिसालों के लिए है।
पूत का तुतलाता बचपन याद जब भी आयेगा,
देख लेना मां का क्रन्दन आसमां छू जायेगा।
आखिरी लम्हों में बाबा लाल की राहें तकेगें
तो दायरे श्रद्धाजंलि के सर्वथा छोटे पड़ेंगे।
ब्याह की रश्में भी तो आधी अधूरी ही पड़ी थी,
सेज के सुमनों की खुश्बू भी कुंवारी ही खड़ी थी।
लाज के मारे मुई पलकें नहीं ऊपर उठी थी,
ठीक से दीदार तक ही तो नहीं वो कर सकी थी।
भौर होते ही बुलावा फर्ज का जो आ गया था,
लौट कर जल्दी आ जाने का वादा भी किया था।
उस पीह की प्रतीक्षा में जब द्वार पे दीपक जलेंगे
तो दायरे श्रद्धाजंलि के सर्वथा छोटे पड़ेंगे।
लाड़ली बहना उड़ी के बालहठ बुनकर सलोने,
वीर भैया आयेगा मेरे लिए लेकर खिलौने।
एक बहना जो कहीं पर देश में ब्याही हुई है,
वो मिलन की आस लेके मायके आयी हुई है।
ये हर किसी से पूछती फिरती है भाई का ठिकाना,
रो पड़ोगे देख लेना सामने उसके न जाना।
जब चित्र पै राखी चढ़ाती बहन के आंसू गिरेंगे,
तो दायरे श्रद्धाजंलि के सर्वथा छोटे पड़ेंगे।
एक वो अंकुर जो कल की कोख में ही पल रहा है,
तो कहीं निर्बोध वो घुटनों के बल ही चल रहा है।
होश आने पर वो पूछेंगे कि मां पापा कहां हैं,
तो भोली जिज्ञासा को मां कैसे बतायेगी कहां हैं।
हाय रे बिटिया के वादे सरहदों पें सो रहे हैं,
जो अधूरे रह गये अरमान छुप छुप रो रहे हैं ।
जब वीरता के पदक जब दीवार की शोभा बनेगे।
तो दायरे श्रृद्धाजंलि के सर्वथा छोटे पड़ेंगे।
हर पंक्ति.............लाजवाब है
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएं पढ़ कर. दिल ये गदगद हो गया।
जिन ख़्यालों से था, लौटा फिर उन्हीं में खो गया॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
पहली रचना की अभिव्यक्ति अच्छी है पर बे-बहर है । ग़ज़ल के उस्ताद बे-बहर रचनाओं को ख़ारिज़ कर देते हैं।
जवाब देंहटाएं