नन्दलाल भारती एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट ॥ साहित्यिक संगठनों क...
नन्दलाल भारती
एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट
॥ साहित्यिक संगठनों की भूमिका ॥
ईसा पूर्व का युग रहा हो,वैदिक युग रहा हो संगठन खासकर साहित्यिक संगठनों का भारतीय परिवेष में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्तमान भूमण्डलीयकरण संगठनों के की विराटता का परिचायक है। संगठन का हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है चाहे सामाजिक हो आर्थिक हो या राजनैतिक। साहित्यिक संगठन इतिहास, सभ्यता, मान्यताओं, मूल्यों, संस्कृति और परम्पराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करने के माध्यम होते है। भारतीय साहित्य में संगठनों का प्रारम्भ वैदिक काल में ही हो गया था जिसका श्रेय गुरूकुल परम्परा को जाता है। प्रारम्भ में लिखना पढ़ना मौखिक साहित्य के रूप में प्रचलित था लेखन कला का विकास नहीं हुआ था तब भी संगठनों का अस्तित्व था। धीरे-धीरे लेखन कला का विकास हुआ और ऋषि मुनियों ने लेखन कला में प्रवीणता प्राप्त कर लिया बड़े-बड़े ग्रन्थों का सृजन प्रारम्भ किया और वर्तमान में वही परम्परा यौवन में है। विश्वपटल पर ख्यातिनाम प्राप्त कर चुकी है। काल के गाल पर अमिट पहचान पा चुकी है। इस ख्याति का श्रेय साहित्यिक संगठनों को जाता है जो रचनाकारों की दृढ़ इच्छा शक्ति से संचालित होते रहे हैं,हो रहे हैं और होते रहेंगे।
भारतीय साहित्य रामायाण और महाभारत काल में कुसुमित हो चुकी थी परन्तु भारतीय साहित्य में आजादी के आन्दोलन के प्रारम्भिक काल से साहित्यिक संगठनों को बढ़ावा मिला क्योंकि संगठनों के माध्यम से भारतीय समाज ,राष्ट्रीय एकता और गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिये लेखक निडर लिख रहे थे और उनका साहित्यिक योगदान भारतीय मानव-मन को स्वाभिमान की आक्सीजन से उत्साहित कर उर्जावान बना रहा था। आजादी के दीवाने विजय पथ पर निरन्तर आगे बढ रहे थे। कहा जाता है कि तलवार से अधिक ताकतवर कलम होती है। इस मान्यता में विश्वास रखने वालों ने साहित्यिक संगठनों को मजबूत कर स्वराज के लिये खूब लिखे और काल के गाल पर अमर हुए। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रारम्भ से आजादी के बाद तक साहित्यिक योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नामचीन लेखकों को छोड़ दिया जाये तो और भी ऐसे अनजान लेखक आजादी के लिये लेखनी की ताकत देश पर न्यौछावर किये, जो तमिल, मराठी, बंगाली, गुजराती ,पंजाबी या अन्य भाषा-भाषी होकर भी संगठनात्मक रूप से जुड़े रहे और उन्हें हिन्दी आजादी के भाषा और राष्ट्र की भाषा के रूप में मान्य थी।
आजादी के बाद भारत को राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक को मजबूत करना था। ऐसे समय में भारतीय समाज को एकता के सूत्र में पिरोये रखने में साहित्यिक संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। वर्तमान में भी साहित्यिक संगठन तनिक भी पीछे नहीं है। भारतीय साहित्य ने महान विचारों और विचारकों को जन्म दिया है,जिसकी उर्वरा शक्ति से भारतीय साक्षरता संगठनों ने विकास किया है। शहर से गांव तक साक्षरता की रोशनी से नहा चुका है। आजादी के बाद भारतीय साहित्य में अनेक संगठनों का पदार्पण हुआ किन्तु 12 मार्च 1954 साहित्य अकादमी की स्थापना भारतीय साहित्य के लिये
स्वर्णिम दिवस के रूप में याद रहेगा। देश ने अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली है। दुनिया का आर्कषण भारत की ओर बढ़ा है। भारत की विश्व गुरू की मान्यता बरकरार है जिसका श्रेय संगठनों को जाता है। आजादी के सूरज की पहली किरण के साथ संगठनात्मक रूप से देश में नई क्रान्ति आयी। लेखको को मान-सम्मान मिलने लगा। किताबें सार्वजनिक तौर पर विमोचित होने लगी,ये पुस्तकें जन-सामान्य तक बेरोकटोक पहुंचने लगी। साहित्यिक सम्मेलनों का बड़े पैमाने पर आयोजन होने लगा,संगठन और मजबूती से देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मदेारी निभाने लगे परिणाम स्वरूप साक्षरता के प्रति जन सामान्य का रूझान बढ़ा, जागरूकता आयी, शिक्षा का महत्व बढ़ा और दबा कुचला तबका भी साक्षरता के क्षेत्र में मिसालें गढ़ने लगा। आजादी के बाद देश ने चहुंमुखी विकास किया है और निरन्तर विकास पथ पर अग्रसर है। वर्तमान भूमण्डलीयकरण एंव दूरसंचार के का्रतिकारी युग में भारत के विकास पथ पर बढते कदम को अन्य संगठनों के साथ साहित्यिक संगठन भी सुदृढ बनाये रखने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
वर्तमान समय में भारतीय साहित्य में भारी बदलाव आया है। लेखक दर-दर की भटकने को मजबूर हुए है। प्रकाशक वातानुकूलित कमरों में बैठकर पुस्तकें के व्यापार को बढ़ाने में लेखकों को ग्रास बनाने लगे हैं। इस व्यापार की भारी रकम का तनिक हिस्सा भी लेखकों की जेब में नहीं पहुंच पा रहा है। उल्टे खुद के पसीने की कमाई से किताबे छपवानी पड़ रही है। प्रकाशक लेखकों के पैसे पर पुस्तकें छापने का षडयन्त्र शुरू कर दिये है। दस प्रतिशत देने की बात करते है वह भी दूसरी बार जब किताब छपेगी तब। कब किताब छपी लेखक को पता ही नहीं चल पाता है। लेखक ठगा का ठगा रह जाता है चिन्तन की विरासत और पसीने की कमाई से पुस्तक छपवा कर। वर्तमान में लेखकों के साथ ठगी वही मिसाल बन रही है कि हींग लगे ना फिटकरी माल चोखा। इस ठगी का दद साहित्यिक संगठनों को महसूस होने लगा है। कुछ संगठन पुस्तक प्रकाशन के उदेश्य से मदगार साबित होने लगे हैं। कुछ साहित्यिक संगठन प्रतिनिधि पुस्तकें प्रकाशित करने लगेे है। इससे लेखकों को आर्थिक लाभ तो नहीं हो रहा है ,पहचान जरूर मिलने लगी संगठनों से जुड़कर। साहित्य संरक्षण एंव संग्रहरण की दृष्टि से संगठनों का अच्छा प्रयास है। वर्तमान के कुछ सौभाग्यशाली लेखकों को छोडकर अधिकतर लेखकों ने यह मान लिया है कि उनका जीविकोपार्जन साहित्य सृजन से नहीं हो सकता है। वे रोजी-रोटी के लिये नौकरी अथवा अन्य रोजगार के रास्ते तलाश लिये है। मेहनत की गाढ़ी कमाई से चिन्तन को आकार दे रहे हैं और पाठकों तक पहुंच का अथक प्रयास कर रहे हैं। साहित्यिक संगठनों से जुड़कर अपने लेखकीय दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। साहित्यकार समय का पुत्र है इस अमृत वाणी को तन-मन और धन से चरितार्थ करने में जुटे हुए है।
वर्तमान समय में साहित्यिक संगठनों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गयी है क्योंकि सरकार साहित्यकारों एवं संगठनों की पीड़ा से सरकार अनजान बनी हुई है और पाठक का दर्शक बनता जा रहा है। सरकार की ओर से साहित्यकारों को कोई सुविधा नहीं मिल रही है नहीं संरक्षण जबकि वर्तमान वक्त संरक्षण देने का है। सरकार की ओर से साहित्यकारों की स्थिति को सुदृढ़ बनाये रखने के उद्देश्य मूलभूत रियायतें तो मिलनी ही चाहिये जैसे-आवागमन एवं प्रवास में रियायत,डाक व्यय पर छूट, स्टेशनरी आदि रियायती दरों पर उपलब्ध हो,पुस्तक प्रकाशन पर अनुदान अथवा प्रकाशित पुस्तक का 100-150 प्रतियों का क्रय आदि सुविधायें सरकार द्वारा साहित्यकारों को दी जानी चाहिये। इसके राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता परिचय पत्र की भांति सरकारी स्तर पर पहचान पत्र जारी हो अथवा साहित्यिक संगठनों द्वारा सदस्यों को जारी कार्ड के को मान्यता दी जाये। खेद का विषय है कि आजतक किसी भी पार्टी की सरकार का ध्यान साहित्यकारों के दर्द की ओर नहीं गया है परन्तु संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। माडर्न युग के पाठकों का भी रूझान पठन-पाठन से हटकर अब बस दर्शन पर अटक गया है। नतीजतन ये माडर्न दर्शक भी साहित्य से दूर हो चले है। इस दूरी का परिणाम सामने है-हिंसक प्रवृति, नैतिक दायित्वों के भाव का पतन,अनाथ-वृद्धा आश्रमों की बढ़ती संख्या, दिन-रात बढते अपराध, शोषित-वंचित एवं नारी उत्पीड़न से संबंधित अपराधों की संख्या,गरीब- अमीर के बीच बढ़ती खाई ,स्वार्थ का कसता शिंकंजा, मन-भेद आदि अनेक सभ्य समाज विरोधी गतिविधियां। ऐसे समय में साहित्य समाज और राष्ट्र को समर्पित अधिकतर लेखक अपनी पुस्तकों का प्रकाशन खुद कर साहित्य को पोषित करने का भरसक प्रयास कर रहे है। इसके बाद भी पुस्तकों को बाजार में जगह नहीं मिल रही है। प्रकाशकों ,वितरकों के चक्रव्यूह को तोड़ना साहित्यकारों के बस की बात नहीं ,नहीं सरकारी अनुदानों तक पहुंचना और नहीं उसका लाभ उठाना। ये गुण तो साहित्यकार हो नहीं सकते। कल सुखद होगा इसी सम्भावना में कर्ज लेकर भी किताबें छापने में तनिक भी नहीं हिचकिचा रहे हैं। यही तो है साहित्य के प्रति समर्पण और त्याग और भाव साहित्यकार को समय का पुत्र बनाता है। सरकार और वर्तमान युग के दर्शक भले उदासीन हो गये हो परन्तु इस समर्पण को साहित्य संगठन नया क्षितिज देने का प्रयास रहे हैं,सार्वजनिक तौर पर अभिनन्दित ,सम्मानित कर लेखकों को कर्मपथ पर डटे रहने की प्रतिज्ञा को बल प्रदान कर रहे हैं। परिणामतः ऐसी कठिन परिस्थिति में भी लेखनी थमने का नाम नहीं ले रही है। साहित्यिक संगठन साहित्य को ही नहीं साहित्यकारों को भी जीवनदान देने का कार्य कर रहे हैं। आधुनिक युग के दर्शकों को पठन-पाठन से जोड़ने के लिये पुस्तकों के प्रकाशन सहित साहित्य सम्मेलन, कविता पाठ / कवि सम्मेलन,कहानी पाठ उपन्यास के अंशों का पाठ, वक्तव्य,पुस्तक प्रर्दशनी, आदि साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रीय, प्रान्तीय स्तर पर ही नहीं जिला एवं तहसील स्तर पर साहित्यिक संगठन स्थापित हो चुके है जो साहित्य के माध्यम से राष्ट्र एवं समाज की सेवा निःस्वार्थ भाव से कर रहे हैं। देश को एकता के सूत्र में पिरोये रखने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं। कुछ साहित्य,समाज एंव देश को सामर्पित संगठनों का जिक्र आवश्यक है-
प्रेमचन्द साहित्य संस्थान, उत्कल साहित्य संस्थान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग, नागरी साहित्य संस्थान,बलिया, सृजन संस्थान,रूड़की, आस्था साहित्य संस्थान,अलवर, दलित साहित्य,नई दिल्ली ,भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, उ․प्र․ हिन्दी संस्थान, सृजनगाथाडाटकाम-संस्कृति व भाषा का अर्न्तराष्ट्रीय मंच,रायपुर, स्वर्ग विभा,नवी मुम्बई, वेबदुनिया, इंदौर, रचनाकारडाटकाम, कन्नड़ साहित्य परिषद, राष्ट्रभाषा,वर्धा, कर्नाटका महिला हिन्दी सेवा समिति, बंगलोर, विश्व हिन्दी सेवा संस्थान, इलाहाबाद, अखिल भारतीय साहित्य परषिद न्यास,ग्वालियर, हिन्दी परिवार, इंदौर, श्रीमध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति,इंदौर, साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवां,प्रतापगढ।उ․प्र․। आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून।उत्तराखण्ड। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इंदौर, म․प्र․․लेखक संघ,म․्रप्र․भोपाल राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था-इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा। जिसके चैप्टर म․प्र․इंदौर सहित देश के अन्य राज्यों में साहित्यिक गतिविधियों का संचालन कर साहित्यकारों को मंच प्रदान कर रहे हैं। इनके अतिरिक्त कुछ विदेशों में स्थित संगठन भी हिन्दी साहित्य को उर्जा प्रदान कर रहे हैं जैसे- अरब से अभिव्यक्ति,कनाडा से साहित्य कुन्ज एवं हिन्दी राइटर गिल्ड आदि अनेक विदेशों में स्थापित साहित्यिक संगठन हिन्दी साहित्य एवं समाज के उत्थान में अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
साहित्यिक संगठनों की भूमिका पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि वैदिक काल से वर्तमान विज्ञान ,दूरसंचार क्रान्ति एंव भूमण्डलीयकरण के युग में भी साहित्यिक सामाजिक, सांस्कृति, आर्थिक ,राजनैतिक एवं कला की दृष्टि से साहित्यिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण है, जीवन कों सही ढंग से संचालित करने में मददगार है। साहित्यिक संगठनों के अवदान को कोई भी देश अथवा समाज भूला नहीं सकता। साहित्य एवं साहित्यिक संगठनों के बिना सभ्य समाज की कल्पना तपती रेत पर जीवन की कल्पना सरीखे कहा जा सकता है अथवा जंगल में कानून व्यवस्था। साहित्यिक संगठन आने वाले युगो में भी सक्रीय रहेंगे। भारतीय साहित्य को साहित्यिक संगठन वक्त के हाथों सौंपकर संस्कारो, सद्परम्पराओं, सद्-विचारों, मानवीय एकता,सदभावना के पाठ को पुर्नजीवित करते रहेंगे। भारतीय साहित्य को कलम और कागज के माध्यम से काल के गाल पर प्रतिष्ठित करने वाले लेखकों को ये संगठन मंच प्रदान कर रहे हैं। सार में कहा जा सकता है कि साहित्यिक संगठनों की भूमिका साहित्यिक,सामाजिक,राष्ट्रीय उत्थान की दृष्टि से वैदिक काल में महत्वपूर्ण रही है,वर्तमान में महत्वपूर्ण है और भविष्य में तनिक कम नहीं होगी परन्तु वैदिक काल से प्रारम्भ साहित्यिक महायज्ञ में अब सरकार ,समाज और पाठकों के आहुति डालने का समय आ गया है। देखना है सरकार ,समाज और पाठक अपनी भूमिका पर कितने खरे उतरते है। साहित्यकार और साहित्यिक संगठन अपनी भूमिका पर खरे है और भविष्य में भी खरे रहेंगे। भारतीय परिवेष में साहित्यकारों एवं संगठनों के समर्पण एवं त्याग को देखकर ऐसी कल्पना तो की ही जा सकती है। साहित्यकार समय का पुत्र है, साहित्य समाज का दर्पण है ,इनकी रक्षा, राष्ट्र- समाज साहित्यिक,सांस्कृतिक,कलात्मक,आध्यात्मिक एवं नैतिक दायित्वों का खुराक देने के जिम्मेदारी साहित्यिक संगठनों के कंधे पर आ गयी है,काश सरकार और पाठकगण जो दर्शक बनते जा रहे हैं अपनी जिम्मेदारी समझ लेते ,सच्चाई को मान देते,
साहित्यिक संगठन स्वस्थ -राष्ट्र, स्वस्थ-समाज की शक्ति है,
साहित्यिक अवदान लेखक का त्याग मानवता की भक्ति है।
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नन्दलाल भारती
01․6․2010
सम्पर्कः
आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र․!दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066
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परिचय
नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
शिक्षा - एम․ए․। समाजशास्त्र। एल․एल․बी․। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी।खैरा।पो․नरसिंहपुर जिला-आजमगढ।उ․प्र।
प्रकाशित पुस्तकें
ई पुस्तकें․․․․․․․․․․․․
उपन्यास-अमानत,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह।
प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं कविता कहानी लघुकथा संग्रह।
उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप
कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग,हंसते जख्म,
लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू
काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी,
आलेख संग्रह- विमर्श एवं अन्य
सम्मान स्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009
विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म․प्र․, विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ․प्र․।
लेखक मित्र।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड।
भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत।
डां․अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली, काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र,
ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर।म․प्र․।
डां․बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर , विद्यावाचस्पति,परियावां।उ․प्र․।
कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर।राज․। साहित्यकला रत्न।मानद उपाधि। कुशीनगर।उ․प्र․।
साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म․प्र․। सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली।उ․प्र․।एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण।कहानी, लघु कहानी,कविता
और आलेखों का देश के समाचार irzks@ifrzdvksa
में एवं www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com
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सदस्य
इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा। नई दिल्ली
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ․प्र․।
हिन्दी परिवार,इंदौर।मध्य प्रदेश।
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून।उत्तराखण्ड।
साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ․प्र․।
म․प्र․․लेखक संघ,म․्रप्र․भोपाल एवं अन्य
सम्पर्क सूत्र आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म․प्र․!
दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066
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जनप्रवाह।साप्ताहिक।ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
बहुत सही वस्तुस्थिति एवम उसका विश्लेषण. सही कहा.....
जवाब देंहटाएं"विज्ञान ,दूरसंचार क्रान्ति एंव भूमण्डलीयकरण के युग में भी साहित्यिक सामाजिक, सांस्कृति, आर्थिक ,राजनैतिक एवं कला की दृष्टि से साहित्यिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण है, जीवन कों सही ढंग से संचालित करने में मददगार है। "