(पिछले भाग 9 से जारी… ) वि धाता का कैसा क्रूर व्यंग्य था। रानी गढ़ी के रावजी का पत्र कुंवरसाहब की ढेरों डाक में कई दिन से उपेक्षित म...
विधाता का कैसा क्रूर व्यंग्य था।
रानी गढ़ी के रावजी का पत्र कुंवरसाहब की ढेरों डाक में कई दिन से उपेक्षित मेज पर पड़ा था।
कुंवरसाहब की बस जब शहर से चली थी तभी उसी बस अड्डे पर एक बस आकर रुकी थी और उसमें से सोना उतरी थी। अकेली ! उसके चेहरे पर कई खरोंच के निशान थे। माथे का एक कोना सूजा हुआ था, शायद किसी ने पीटा था।
वह रिक्शा लेकर सीधी हवेली पंहुची।
ठीक तभी गुप्ता जी हवेली पंहुचे।
कुंवरसाहब को खुशखबरी सुनाने कि वह मुकदमा जीत गए हैं।
अभी सोना और गुप्ता जी भौंपू से कुंवरसाहब के बारे में पूछ ही रहे थे कि धूल अटी एक कार दरवाजे पर आकर रुकी।
उसमें से उतरे रावजी और मालविका।
परन्तु कुंवरसाहब कहां हैं इसका पता भौंपू को भी नहीं था।
सभी इस बात पर विचार कर रहे थे कि कुंवरसाहब कहां हो सकते हैं, तभी रिक्श्ो से पंहुची राधा।
वह साधारण सी सिल्क की साड़ी पहने थी। एक छोटी सी अटेची उसके साथ थी।
अटेची में थी एक धानी रंग की साड़ी तथा अन्य कपड़ें चूड़ियों का डब्बा। ‘पी कहां' आवास के कागजात।
भौंपू कार लेकर कुंवरसाहब को ढूंढने गया।
गुप्ता जी ने कुंवरसाहब के कमरे में बैठने का आग्रह किया।
कमरा खुला हुआ था।
सर्वप्रथम कमरे में प्रवेश किया गुप्ता जी ने। फर्श पर पड़ी व्हिस्की की खाली बोतल देखकर उनका माथा ठनका।
फिर वहीं बोतल की कार्क पड़ी देखकर तो वह घबरा गए-‘हे मेरे ईश्वर . ... . कुंवरसाहब तो पूरी बोतल पी कर गए हैं।'
तभी उनकी दृष्टि मेज पर रखे कागज पर पड़ी।
विदा,
जीवन तुझे नमस्कार !
मृत्यु मेरी प्रेयसी ।
बौखलाकर गुप्ता जी ने राधा को सम्बोधित किया-‘ कुंवरसाहब को तुरन्त ढूंढना होगा। मुझे लक्षण अच्छे नहीं दिखाई पड़ते ।'
परन्तु सांझ से रात तक की भागदौड़ व्यर्थ ही रही।
पता तब लगा जब बस के कन्डक्टर ने आकर बताया-‘जाने कैसे हो गया। कुंवरसाहब गंगा घाट पर रामधन पण्डे के पास हैं। बस कोई सांस ही बाकी है। जो कुछ करना हो जल्दी कीजिए।'
एक दूसरे से कोई सलाह नहीं, कोई बात नहीं।
भौंपू चींखा-‘मैं अभी लाता हूं सरकार हो . ... .।' उसने कार स्टार्ट कर दी। सोना तेजी से उस कार में जा बैठी।'
राव साहब ने भी मालविका का हाथ थामा और कार में बैठते हुए कहा-‘उस कार के पीछे चलो।'
उपेक्षित से स्तब्ध गुप्ता जी और रोती हुई राधा खड़ी रह गई।
-‘यूं भागने दौड़ने से क्या बनेगा?मैं डाक्टर माथुर को फोन करता हूं . ... ।.'
गुप्ता जी ने डाक्टर को फोन किया।
-‘कुंवरसाहब पूरी बोतल पीकर गंगा घाट गये हैं . ... .वहां से हालत बहुत खराब होने की सूचना आई है . ... .तुरन्त ही आपको चलना होगा . ... .लेकिन जल्दी।'
उतावली सी में राधा ने गुप्ता जी के हाथ से फोन छीन लिया-‘डाक्टर साहब ।'
-‘तुम कौन हौ?'
-‘मैं कोई नहीं . ... .। मैं राधा हूं . ... .।'
-‘देखो राधा। मैं एम्बूलैंस कार लेकर हवेली आ रहा हूं। कुछ मिनिट लगेंगे इसलिए कि एम्बूलैंस में आक्सीजन यंत्र और जरुरी चीजें रखवानी हैं। मैं तुम्हें और गुप्ता जी को हवेली से ले लूंगा।'
-‘डाक्टर साहब . ... .।'
-‘हम तेज चलेंगे। जल्दी पंहुचेंगे।'
-‘डाक्टर साहब . ... .मुझे इतना कहना है कि इस बार आप मेरे कुंवरसाहब को बचा लीजिए। फिर ऐसा कभी न होगा। डाक्टर साहब आप जितने रुपए मांगेंगे मैं दूंगी ।'
उधर रिसीवर रख दिया गया।
राधा रो पड़ी-‘किससे कहूं, मेरी कोई भी तो नहीं सुनता।'
राधा रोती रही और गुप्ता जी को बताती रही कि उसने कुंवरसाहब की रकम से, कुंवरसाहब के लिए छोटी सी कोठी बनवा ली है। नाम रखा है‘पी कहाँ'। वह सोच कर आई थी कि सुबह दुल्हन बनकर कुंवरसाहब के साथ कोठी में जाएगी . ... .।
डाक्टर माथुर एम्बुलैंस कार लेकर आ गये।
गुप्ता जी और राधा भी उसमें सवार हुए।
एम्बुलैंस तेजी से गंगा घाट की ओर दौड़ रही थी।
सभी मौन थे।
मौन तोड़ा डाक्टर ने-‘राधा जी।'
-‘जी।'
-‘आपने बुरा तो माना होगा कि मैंने बीच में ही फोन रख दिया।'
-‘जी नहीं तो।'
-‘झूठ कह रही हैं आप। मैं अब देना चाहता हूं आपकी बात का जवाब। हिन्दुस्तान में कुंवर तो लाखों होंगे परन्तु अपने कुंवरसाहब जैसा हीरा एक न होगा, अगर मुझे उन्हें बचाने में अपने प्राण भी देने पड़े तो भी नहीं हिचकूंगा। सिर्फ आप ही कुंवरसाहब को नहीं चाहतीं हम भी उन पर जान न्यौछावर करते हैं।'
-‘गलती हुई शर्मिन्दा हूं डाक्टर साहब। आपकी मुहब्बत और हिकमत से ही कुंवरसाहब को जिन्दगी मिल सकती है। मैं तो काठे वाली हूं . ... .मुझ बदनसीब की तो दुआओं में भी असर नहीं होगा।'
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वह रात बहुत ही संघर्ष में बीती।
डाक्टर माथुर ने जाते ही चिकित्सा आरम्भ कर दी थी। परन्तु रक्तचाप समस्या बन गया था।
कार भेजकर उन्होंने दो डाक्टरों को और बुलवाया। वह दोनों रात के तीन बजे वापस लौटे। तीन बजे ही डाक्टर माथुर को विश्वास हो पाया कि कुंवरसाहब बच जायेंगे।
कुंवरसाहब को घाट पर ही बनी छोटी सी कोठी में लिटाया गया था। उसी में कुंवरसाहब और मालविका के लियें कमरा खुलवा दिया गया था। सोना बरामदे के फर्श पर ही सो रही थी। भाग दौड़ गुप्ता जी और पण्डा जी दोनों नर्स के तौर के काम में भाग दौड़ करते रहे। घाट पर ही एक शिव मन्दिर था। राधा वहां बैठी थी, रोते रोते आंखें सूज गई थीं।
डाक्टर माथुर उन दोनों डाक्टरों को विदा करने प्रातः तीन बजे कमरे से बाहर आये थे। तब उन्होंने राधा को यह समाचार दिया कि कुंवरसाहब खतरे से बाहर हैं।
शेष सब सो रहे थे। डाक्टर ने सोना के उपर पण्डा जी से कहकर कम्बल डलवा दिया। फिर पेट पीटते हुए कहा-‘जाहिर है सब भूखे होंगे और मेरी परिस्थिति यह है कि अगर मुझे जल्दी ही नाश्ता चाय नहीं मिला तो मैं मर जाउंगा।'
पण्डा जी ने चार बजे चूल्हा जलवाया। गुप्ता जी ने रावजी, मालविका तथा सोना को जगाकर चाय और नाश्ता दिया। राधा निराहार रही, उसने कुछ नहीं लिया।
सूर्योदय होते होते कुंवरसाहब को होश आ गया। डाक्टर ने उन्हें फिर नींद की गोली दे दी।
दस बजे कुंवरसाहब दोबारा जागे।
-‘डाक्टर माथुर !' क्षीण स्वर में कुंवरसाहब बोले।
-‘जी कुंवरसाहब।'
-‘तो मुझे बचा ही लिया?'
-‘जी हां, यह गुनाह हो ही गया हुजूर, माफी चाहता हूं।'
-‘डाक्टर हो न . ... .!'
-‘जी हां बदकिस्मती से।'
-‘इन्सानी मशीन के मिस्त्री हो !'
-‘हुजूर की इनायत है।'
-‘काश डाक्टर किसी के मन पर गुजरने वाली हकीकत को आप जानते? मौत मेरे लिए . ... .।'
डाक्टर ने दोनों हाथ अपने कानों पर रख लिये। मानों सुन न रहे हों। मुस्करा कर कुंवरसाहब चुप हो गये।
डाक्टर ने ब्लडप्रेशर मापा।
फिर तसल्ली के साथ पूछा-‘कैसा महसूस कर रहे हैं?'
-‘जैसा एक इन्सान कैद होने पर महसूस करता है।'
-‘काश कुंवरसाहब आप जानते कि आपके चाहने वाले कितने हैं . ... .।' उसी क्षण पण्डा जी कमरे में प्रविष्ट हुए। उन्हें देखकर डाक्टर ने कहा-‘पण्डा जी ने आपके लिये बड़ी भाग दौड़ की है।'
कुंवरसाहब ने करवट बदली और एक हाथ से पण्डा जी का पांव छुआ। द्रवित पण्डा जी ने सिर पर हाथ फेरा-‘मेरे राजा साहब जुग-जुग जियें।'
कमरे में गुप्ता जी प्रविष्ट हुए। मानो एक दूसरे से कुछ कहने की जरुरत नहीं थी। मौन कुंवरसाहब ने गुप्ता जी की ओर हाथ बढ़ा दिया। गुप्ता जी ने कुंवरसाहब के हाथ को अपने दोनों हाथों से थपथपा दिया।
डाक्टर बोले-‘ कुंवरसाहब आपके एक पुराने मित्र से मिलवायें आपको?'
-‘कौन है?'
-‘देखेंगे तो इनाम देंगे।' डाक्टर ने गुप्ता जी को संकेत किया।
गुप्ता जी उठकर बाहर गये। कुछ क्षण बाद लौटे तो उनके साथ मालविका और रावजी थे।
भौंडे ढंग से हंसते हुए रावजी ने आकर कुंवरसाहब के सिर पर हाथ फेरा -‘ठीक हैं न कुंवर जी। दवा के साथ दुआ में भी असर होता है।'
-‘वह तो होता है . ... .परन्तु आप यहां?' आश्चर्य से कुंवरसाहब ने पूछा। मालविका दीवार के सहारे खड़ी थी ! अपराधिनी की भांति सिर झुकाए।
-‘मेरा पत्र नहीं मिला?'
-‘जी नहीं।'
-‘कुंवरसाहब मैं आपसे अपनी गलतियों के लिये माफी मांगने आया हूं, मालविका का हाथ आपके हाथ में थमा देने के लिये कौन सी तिथि आप पसन्द करेंगे?'
कुंवरसाहब के चेहरे पर कडुवी मुस्कान फैल गई।
-‘रावजी . ... .।'
-‘जी कुंवर जी।'
-‘यह घाट मेरे बुजुर्गों का बनवाया हुआ है। कैसे कह दूं कि यह मेरा घर नहीं है। घर आये का अपमान मुझे अच्छा नहीं लगता . ... .।'
-‘कुंवर जी . ... .।'
-‘पण्डा जी रावजी की सुख सुविधा का ध्यान रहे।'
-‘लेकिन कुंवर जी . ... .।'
-‘मैं ब्लडप्रेशर का रोगी हूं रावजी। अधिक बोलना शायद मेरे लिये अच्छा नहीं होगा। राजकुंवरी जी का विवाह करें तो मुझे सूचना दीजिएगा। आपका शत्रु नहीं मित्र हूं . ... .एक लाख रुपये का प्रेजेन्ट दूंगा।'
-‘कुंवर जी आप मेरी बात . ... .।'
कुंवरसाहब ने डाक्टर को सम्बोधित किया-‘डाक्टर अगर आप चाहते हैं कि मैं उठकर चीखूं चिल्लाउं नहीं तो राव जी से कह दीजिए कि वह इस कमरे से चले जायें। मुझे जिन्दगी से मौत के दरवाजे पर पंहुचा देने वाले रावजी ही हैं।'
सभी स्तब्ध हो गए।
मुख को आंचल में छुपाकर मालविका कमरे से बाहर चली गई।
कुछ क्षण राव जी पत्थर के बुत की तरह खड़े रहे और फिर भारी कदमों से धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए।
वातावरण को हल्का करने के लिए डाक्टर बोले-‘हम तो नमाज बख्शवाना चाहते थे, उल्टे रोजे गले पड़ गए।'
कुंवरसाहब आह जैसे स्वर में बोले-‘डाक्टर जान तुम्हारी है चाहे जब ले लो। लेकिन मुझे इस तरह तड़पाओ मत मेरे भाई।'
-‘हुजूर मैं समझता था कि राजकुंवरी मालविका . ... .।'
-‘असली फौलाद हूं डाक्टर। मुड़ नहीं सकता, झुक नहीं सकता। टूटने के लिये तैयार हूं।'
तभी दरवाजे पर सोना दिखाई पड़ी।
दृष्टि झुकाए वह आगे आई।
वह ठीक कुंवरसाहब के सम्मुख पंहुच गई।
-‘कुंवर जी।'
-‘हां सोना जी।'
-‘माफ कर दीजिए मुझे।'
-‘मैंने आपको माफ कर दिया सोना जी।'?
-‘देखिये हीरा ने मुझे मारा है।'
-‘मैं क्या कर सकता हूं सोना ।'
-‘वह जल्लाद मेरी जान ले लेगा। कहता है कि वह जमीन मैं उसके नाम कर दूं।'
-‘मुझसे क्या करने को कहती हो?'
-‘मैं जमीन हर्गिज उसके नाम नहीं करुंगी।'
-‘मुझसे क्या चाहती हो?'
-‘आपकी शरणागत हूं।'
-‘अगर मैं शरण न दूं तो?'
-‘कुंवर जी . ... .।'
-‘कोई शरणागत तुम्हारे दरवाजे पर भी गया था सोना।'
सोना चुप।
-‘गुप्ता जी।'
-‘जी।'
-‘भौंपू कहां है?'
-‘बेचारा सारी रात भागदौड़ में रहा है। गाड़ी में सो रहा है।'
-‘उससे कह दो कि सोना हवेली के अलावा जहां जाना चाहे पंहुचा दे। सोना को अगर रुपयों की जरुरत हो तो दे दो।'
सोना रो पड़ी।
-‘जाओ सोना। अगर जिन्दा रहा तो तुम्हारा पोस्टकार्ड पाकर भी रुपये भेज दूंगा। टूटी नाव में कौन पार जाना चाहे . ... .जाओ सोना। जाओ . ... .।'
सोना खड़ी रही, पत्थर की मूर्ति की तरह।
-‘गुप्ता जी, सोना को ले जाइये न।'
सोना को जाना ही पड़ा।
कमरे में कुछ क्षण मौन रहा। डाक्टर चाहते थे कि कुंवरसाहब का कुछ जी बहले, कैसे जी बहले। सभी तरकीब तो बेकार हो गई थी।
मौन तोड़ा पण्डा जी ने-‘आज हमारे राजा साहब गुस्से में हैं।'
-‘कैसी बात कह दी गुरु। क्या मैं और क्या मेरा गुस्सा।'
-‘हम तो . ... .।'पण्डा जी कहते कहते अटक गये।
गुप्ता जी ने आकर बताया-‘पण्डा जी के यहां सभी का खाना तैयार हो रहा है। सोना खाना खाकर चली जायेगी। रावजी चले गये।'
कुंवरसाहब ने टोका-‘गुरु आप कुछ कह रहे थे।'
-‘कह तो रहा था राजा जी, परन्तु आपके गुस्से से डर लगता है। हम तो घाट पर जिन्दगी भर ही स्त्रियां देखते रहे। परन्तु ऐसी स्त्री हमने नहीं देखी। साक्षात मीरा बाई का स्वरुप, रात से अब तक मन्दिर के कोने में बैठी है-कुछ कहती नहीं कुछ खाती पीती नहीं।'
-‘ओह ! तो भक्त स्त्री है। उससे मेरा प्रणाम कहियेगा।'
-‘परन्तु उसकी भक्ति, उसका अनशन आपके ही लिए तो है।'
-‘मेरे लिए . ... .?'
-‘गुरु राधा की बात कर रहे हैं।'
-‘राधा !' कुंवरसाहब चौंक पड़े-‘राधा यहां है?'
-‘हां। बेचारी रात भर रोई है।'
-‘लेकिन वह थी कहां? वह तो कुछ दिनों से गुम थी न?'
-‘आपके दिये हुए रुपयों से उसने बाकायदा आपके नाम से एक कोठी बनवाई है। नाम रखा है-पी कहाँ। बेचारी दुल्हन जैसे कपड़े अटैची में रखकर लाई थी ताकि आपको कोठी में मुहूर्त के लिए ले जा सके।'
-‘गुप्ता जी हम आपके मजाक तो समझते हैं। परन्तु बेवक्त का मजाक समझ नहीं पा रहे हैं।'
-‘मजाक की क्या बात है?'
-‘कहां है राधा?'
-‘बुलवाउं?'
-‘अगर मेरी जिन्दगी चाहते हैं तो।'
-‘पण्डा जी . ... .।'
पण्डा जी . ... .।
पण्डा जी बूढ़े होने के बावजूद बड़ी तेजी से गये।
कुंवरसाहब को विश्वास नहीं हो पा रहा था कि राधा यहां हो सकती है।
राधा को दरवाजे पर देखते ही डाक्टर की सरासर अवज्ञा करते हुए कुंवरसाहब उठकर बैठ गए।
निकट आते-आते उन्होंने राधा को बाहुपाश में भर लिया।
-‘राधा !'
-‘जी ।'
-‘कैसा पगली जैसा वेष बना रखा है?'
-‘अपना वेश तो देखिए।'
-‘तो यह हुआ पागल पगली का जोड़ा।'
-‘ऐसा मत कहिए।'
-‘आज जो मन में आएगा कहूंगा। गुरु . ... .।'
-‘जी राजा साहब।'
-‘यह है राधा। इससे मेरा विवाह होगा। जब तक विवाह न होगा तब तक यहां से जाउंगा नहीं।'
राधा ने कुंवरसाहब के मुख पर हाथ रख दिया-‘ऐसा मत कहिए . ... .।'
-‘क्यों न कहूं?'
-‘कुछ और कहिए ।'
-‘कुछ और बिल्कुल नहीं कहूंगा। डाक्टर आप सुन रहे हैं न? गुप्ता जी सभी प्रबन्ध आपको करने होंगे . ... .आज ही . ... .।'
राधा पगलाई सी इधर उधर देख रही थी।
गुप्ता जी ने मुकदमा जीतने की खुशखबरी दी।
डाक्टर ने राधा से कहा कि वह कुंवरसाहब को लिटा दे।
कुंवरसाहब ने केवल इतना कहा-‘कौन जाने राधा का भाग्य अच्छा हो और यह टूटी नाव से ही पार पंहुच जाए।'
कुंवरसाहब की इस बात को समझा कोई नहीं।
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आइए तीन वर्ष बाद हम अपने पात्रों से विदा लें।
चिर वियोगी पपीहा जो आकाश में घिरे बादलों और पुरवईया के झोंकों से द्रवित होकर अपने प्रियतम को पुकारता है-‘पी कहां', पुकारता है और पुकारता है परन्तु प्रियतम को पाता नहीं।
कोठी का नाम ‘पी कहाँ' ही रहा। ऐसा वियोगी नाम क्यों रहे? कुंवरसाहब अपने मित्रों को उत्तर देते हैं-‘पुकारने से प्रियतम मिल भी जाते हैं। पुकार में सच्चाई हो छल न हो, पुकारने में दर्द हो केवल स्वर का योग न हो। पी कहाँ ! चाहत को पुकारने का, निरन्तर पुकारने का कर्त्तव्य बोध ही तो है। मुझे यह नाम अच्छा लगता है।'
सोना की कही बात झूठी हो गई। टूटी नाव वास्तव में टूटी नाव नहीं थी। इसके बाद कुंवरसाहब कभी बीमार नहीं हुए। अब इलाज के लिए डाक्टर माथुर की आवश्यकता नहीं होती।
कवि सम्मेलनों में कुंवरसाहब के साथ अक्सर रानी साहिबा भी देखी जाती हैं-हां राधा को अब सभी रानी साहिबा कहते हैं। राधा कहने का अधिकार जैसे कुंवरसाहब को ही है।
चाहे पार्टी हो कवि सम्मेलन हो या मित्रों की गोष्ठी। राधा हर स्थान पर अपनी उपस्थिति आवश्यक समझती है। कुंवरसाहब को वह व्हिस्की के केवल दो पैग देती है।
कुंवरसाहब नई कोठी ‘पी कहाँ' में ही रहते हैं।
उनका ख्याल था कि उनकी पैतृक हवेली श्राप ग्रस्त है। उस हवेली को उन्होंने राधा गर्ल्स इन्टर कालेज बना दिया है। इस प्रकार हवेली श्राप मुक्त हो गई है और अब वहां सारे दिन लड़कियों की हलचल रहती है।
गुप्ता जी और डाक्टर माथुर मजे में हैं।
सोना भी जी रही है।
भाग-दौड़ के पश्चात मालविका के लिये रावजी ने एक अदद राजकुमार खोज निकाला है। वह विवाहित हो गई।
एक आश्चर्यजनक बात है।
विवाह के बाद राधा का सौंदर्य मानो किसी देवता के वरदान से निखर उठा है। कैसा भी परिधान हो, वह सैंकड़ों में अलग दिखाई पड़ती है। कभी वह श्रंगार के पश्चात भी उतनी मोहक नहीं दिखाई पड़ी थी और अब सादगी में भी गरिमामय दीख पड़ती है।
दो अनुभव दो प्रतियोगिता। कुंवरसाहब ने राधा को अपनी आंखों से देखा। एक बार . ... .।
रावजी मालविका के विवाह से पहले स्वयं आए। उन्होंने राधा और कुंवरसाहब को विवाह में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया।
कुंवरसाहब जाना नहीं चाहते थे। राधा ने आग्रह किया। मूल्यवान उपहार लेकर दोनों गए वहां।
विदा से पहले वधू गृह के अतिथियों की एक पार्टी थी। बहुत से भूतपूर्व राजा और रानियां उसमें थीं। मालविका भी थी।
मालविका ने पूर्णरुप से दुल्हन का श्रंगार किया हुआ था और राधा हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में लिपटी थी ! बस।
कुंवरसाहब ने कुछ क्षण के लिए मालविका और राधा को साथ-साथ खड़े देखा।
वह स्वयं अपने भग्या हर्षा उठे। सादगी के बावजूद जो दमक राधा में थी वह सजी संवरी मालविका में नहीं थी।
और दूसरी बार . ... .।
एक विवाह समारोह था बिरादरी में। कुंवरसाहब को राधा सहित वहां जाना पड़ा।
वर की घुड़चढ़ी के समय स्त्रियों के समूह में उन्होंने राधा और सोना को साथ साथ देखा।
सोना का लावण्य तो जैसे खो गया था। कुंवरसाहब को यह सोचकर आश्चर्य हुआ कि कभी उन्होंने सोना को चाहा था।
कैसा मनोरम भाग्य परिवर्तन लिखाकर लाई थी विधाता से राधा।
विगत वेश्या का नगर के सभी लोग पीठ पीछे भी आदर करते थे। जहां वह जाती थी, आदर सूचक सम्बोधन मिलता था-रानी साहिबा।
नई कोठी-पी कहां-मानो केवल कुंवरसाहब के मात्र होने का प्रमाण थी।
0000 समाप्त 0000
शुरु ही हुआ था कि खत्म भी हो गया!
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तार की छूट देकर भी इसे हद लघु उपन्यास ही कहा जा सकता है।
साठ या सत्तर के दशक में फिल्म बनाने के लिये उपयुक्त कथानक था इसका।
पढ़वाने के लिये धन्यवाद
bahut achhi rachna hai sir bahut maja bhi aaya aur gyaan bhi mila bahut sundar.
जवाब देंहटाएंbahut - bahut dhanywaad