बहुआयामी रचनात्मकता के धनी डॉ 0 रामनिवास ‘ मानव ' डॉ 0 लालचंद गुप्त ‘ मंगल ' विशिष्ट रचना-शिल्पी डॉ0 रामनिवास ‘मानव'...
बहुआयामी रचनात्मकता के धनी डॉ0 रामनिवास ‘मानव'
डॉ0 लालचंद गुप्त ‘मंगल'
विशिष्ट रचना-शिल्पी डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के सम्बन्ध में मैं जब भी विचार करता हूं, तो लगभग तीन दशक की स्मृतियों के इतिहास से झांकता हुआ एक ऐसा व्यक्तित्व मेरे सम्मुख आ खड़ा होता है, जिसने अभिमन्यु की भांति, सदैव विरोधों और अवरोधों से घिरा होने पर भी, रुकना-झुकना या हार मानना तो सीखा ही नहीं और जो अपने संकल्प, साधना और संघर्ष द्वारा सफलता के उच्चतम शिखरों को छूने का एहसास निरन्तर दिलाता रहता है। राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक-पुरुष डॉ0 ‘मानव' की विशिष्ट ऊर्जा, बहुआयामी प्रतिभा, रचनात्मक प्रवृत्ति और उदात्त जीवन-दृष्टि इनके व्यक्तित्व में ‘वामन में विराट' के दर्शन करवाती है। तभी तो संघर्ष-पथ का यह अनथक यात्राी कहां-से-कहां तक चला आया है- अकेले, जूझते हुए ! एक बनते इतिहास का मैं साक्षी रहा हूं, अतः उसके सम्बन्ध में, प्रामाणिक तौर पर, बहुत-कुछ कहने की अभिज्ञता रखता हूं और अधिकार भी। अस्तु, एक साथ अनेक छोरों पर रचनारत इस मनीषी-साधक का सामर्थ्य देखकर अचरज होता है। व्यक्तित्व की भांति, इसके कृतित्व के भी, अनेक आयाम हैं। एक सफल प्राध्यापक, निष्पक्ष पत्राकार, कुशल सम्पादक, समर्थ आयोजक और संयोजक के साथ-साथ एक आत्मीय मित्रा और आदर्श इन्सान के रूप में गहरी पहचान रखने वाले डॉ0 ‘मानव' ने, यदि साहित्य, शोध और समीक्षा को सार्थक विस्तार दिया है, तो अनेक सम्पादित कृतियां भी इनके सम्पादन-कौशल का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। अनेक अभिनव प्रयोग भी इन्होंने किये हैं। लघुकथा में ‘समाचार-शैली' तथा ‘आवेदन-पत्रा शैली' और काव्य में ‘द्विपदी' तथा ‘त्रिापदी' काव्य-रूप हिन्दी-साहित्य को डॉ0 ‘मानव' की विशिष्ट देन कहे जा सकते हैं।
साहित्य को एक धारदार हथियार मानने वाले डॉ0 ‘मानव' के कृतित्व का एक अन्य उल्लेखनीय आयाम है- हरियाणा के समकालीन हिन्दी-साहित्य के शोधार्थी का। डॉ0 ‘मानव' हरियाणवी साहित्य के प्रथम शोधार्थी ही नहीं, अधिकारी विद्वान भी हैं। वस्तुतः हरियाणा में, समकालीन हिन्दी-साहित्य पर, शोध की परम्परा का विधिवत् शुभारम्भ डॉ0 ‘मानव' के शोधकार्य से ही होता है। हरियाणा का प्रत्येक साहित्य-प्रेमी डॉ0 ‘मानव' का सदैव इसलिए ऋणी रहेगा कि इन्होंने प्रदेश की साहित्यिक धरोहर से उसका परिचय करवाया है। डॉ0 ‘मानव' के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अब तक ‘डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः व्यक्तित्व एवं कृतित्व', ‘डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः सृजन के आयाम', ‘शब्द-शब्द समिधा', ‘शब्दशिल्पी रामनिवास ‘मानव' और ‘डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का रचना-संसार' जैसे अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। अब तक इनके साहित्य पर पांच शोधार्थी पी-एच0डी0 और चालीस शोधार्थी एम0फिल् कर चुके हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 बालशौरि रेड्डी ने, डॉ0 ‘मानव' को, ‘हरियाणवी साहित्य का पुरोधा' कहा है, जो उचित ही है।
2 जुलाई, सन् 1954 को ग्राम तिगरा, ज़िला महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) में प्रमुख स्वतन्त्राता-सेनानी और समाज-सेवी पंडित मातादीन के घर जन्मे डॉ0 रामनिवास ‘मानव' जन्मजात प्रतिभा के धनी तथा परम मेधावी रहे हैं। बड़े और ग़रीब परिवार तथा ग्रामीण परिवेश में जन्म लेने के कारण संघर्ष प्रारम्भ से ही इनके जीवन की नियति बन गया। आर्थिक अभावों और मानसिक तनावों में पले, बढ़े और पढ़े डॉ0 ‘मानव' में अदम्य ऊर्जा तथा संघर्ष-क्षमता कूट-कूटकर भरी हुई है। यही कारण है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, घर-गांव में शैक्षिक वातावरण न होने पर भी, इन्होंने अपने परिश्रम और प्रयास से हिन्दी-साहित्य में एम0ए0, पी-एच0डी0 और डी0लिट् तक की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त की। आजीविका के लिए आपने अध्यापन को चुना और साथ में साहित्य-साधना, पत्राकारिता एवं समाज-सेवा भी अनवरत चलती रही।
डॉ0 ‘मानव' मूलतः कवि हैं। अपने साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ इन्होंने काव्य-लेखन से ही किया था। ‘घटा' इनकी प्रकाशित होने वाली प्रथम रचना थी, जो 15 अगस्त, सन् 1972 को हिसार से प्रकाशित होने वाले ‘हरियाणा-सन्देश' (साप्ताहिक) के स्वाधीनता के स्वर्ण जयन्ती-विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। बहुमुखी रचनात्मकता के धनी डॉ0 ‘मानव' ने काव्य की लगभग सभी विधाओं, यथा कविता, गीत, ग़ज़ल, दोहा, हाइकु, द्विपदी और त्रिापदी आदि में बहुमूल्य सृजन किया है। कालान्तर में इनका लेखकीय रुझान बालगीत और लघुकथा की ओर भी हुआ। देश-भर की प्रतिष्ठित हिन्दी पत्रा-पत्रिाकाओं में निरन्तर ससम्मान छपने वाले डॉ0 ‘मानव' आज राष्ट्रीय स्तर पर एक चर्चित साहित्यिक हस्ताक्षर हैं। पूरे देश में आयोजित विशिष्ट आयोजनों में इनकी भागीदारी ने भी, इनके व्यक्तित्व को, नये आयाम प्रदान किये हैं। इन्हें मिले ढेर सारे मान-सम्मान, पुरस्कार तथा मानद उपाधियां इनकी साहित्यिक महत्ता, लोकप्रियता एवं अक्षय कीर्ति का आधार हैं। तीस महत्त्वपूर्ण कृतियों के रचनाकार डॉ0 ‘मानव' के बहुआयामी सर्जक व्यक्तित्व का मूल्यांकन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है।
1. कवि ः ‘धारापथ' डॉ0 ‘मानव' की प्रथम काव्यकृति है, जिसका प्रकाशन सन् 1976 में, आपातकाल के दौरान, हुआ था। इसकी अधिकांश कविताएं वैयक्तिक सन्दर्भों से जुड़ी हुई हैं तथा इनका स्वर और स्वरूप छायावादी है। ‘रश्मिरथ' (सन् 1980 और 2009) और ‘सांझी है रोशनी' (सन् 1986 और 1996) डॉ0 ‘मानव' की दो अन्य विशिष्ट काव्यकृतियां हैं, जिनकी अधिकांश कविताएं समकालीन जीवन-यथार्थ से जुड़ी हुई हैं। ‘रश्मिरथ' भले ही इनकी प्रारम्भिक दौर की कविताओं का संग्रह है, लेकिन, फिर भी, भाव, भाषा और शिल्प की दृष्टि से इसे प्रौढ़ कृति कहा जा सकता है। ‘सांझी है रोशनी' में कवि की बत्तीस कविताएं और बत्तीस ही ग़ज़लें संगृहीत हैं। काव्य-शिल्प की दृष्टि से ये अत्यन्त प्रौढ़ और परिमार्जित कही जा सकती हैं। युगबोध की मार्मिक अभिव्यक्ति ने इन कविताओं को जीवन्त बना दिया है। डॉ0 जीवनप्रकाश जोशी के शब्दों में-‘‘सामाजिक सोच ने इन कविताओं को ताक़त दी है। साम्प्रतिक बोध की जितनी, जैसी प्रामाणिक अभिव्यक्ति हो सकती है, इन कविताओं में महसूस होती है। भाषा-शिल्प की दृष्टि से ये कविताएं ऐसी लगती हैं, जैसे साज़िशी अंधेरे में ‘सर्चलाइट' हो।'' सामाजिक प्रतिबद्धता के कारण कवि, डॉ0 ‘मानव' की सृजनधर्मिता, निश्चय ही, रेखांकन-योग्य है। एक प्रदेश-विशेष (उत्तराखंड) के प्राकृतिक सौन्दर्य और जनजीवन पर केन्द्रित छियासी कविताओं का संग्रह ‘कविता में उत्तरांचल' (सन् 2009) डॉ0 ‘मानव' की काव्य-चेतना का अगला और महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। ध्यातव्य है कि इनकी चुनिन्दा कविताओं का पंजाबी (किन्ना मुश्किल है !), भोजपुरी (केतना मुश्किल बा !) तथा उड़िया (शब्द रॉ शर-सज्या) में अनुवाद हो चुका है।
2. दोहाकार ः डॉ0 ‘मानव' राष्ट्रीय चेतना-सम्पृक्त प्रखर दोहाकार हैं। इनके तीन दोहा-संग्रह अब तक प्रकाशित हो चुके हैं-‘बोलो मेरे राम' (सन् 1999 और 2004), ‘सहमी-सहमी आग' (सन् 2004) तथा ‘देख कबीरा, देख' (सन् 2010)। तीनों में इनके 444-444 दोहे संगृहीत हैं। कविताओं की भांति, इनके दोहे भी, जीवन-यथार्थ की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कहे जा सकते हैं। डॉ0 ‘मानव' अपने समकालीन दोहाकारों में इसलिए विशिष्ट हैं कि इन्होंने, दोहे जैसे परम्परागत छन्द को नया रूप देकर, सामाजिक विकृतियों-विसंगतियों के विरुद्ध उसे एक तेज़धार हथियार के रूप में, प्रयुक्त किया है। डॉ0 परमानन्द पांचाल ने उचित ही लिखा है-‘‘डॉ0 ‘मानव' युगबोध से जुड़े सशक्त दोहाकार हैं। जीवन-सत्य की अभिव्यक्ति ने इनके दोहों को प्राणवान बनाया है। इनके दोहों का भाषा-शिल्प इतना कसा हुआ है कि अनायास बिहारी-वृन्द-रहीम की याद दिला देता है। अपनी पैनी लेखनी के माध्यम से, निश्चय ही, दोहा-विधा को नये आयाम दिये हैं, डॉ0 'मानव' ने।'' अभिप्राय यह कि एक शिल्पी दोहाकार के रूप में डॉ0 ‘मानव' अपनी पहचान स्वयं हैं। श्री दर्शन मितवा ने इनके दोहों को गुरुमुखी में लिप्यन्तरित किया है, जो ‘इक नवां इतिहास' (सन् 2007) के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
3. हाइकुकार ः डॉ0 ‘मानव' की सृजनात्मक काव्य-प्रतिभा का एक आयाम ‘हाइकु' भी है। आप हाइकु-लेखन में बहुत-बाद में प्रवृत्त हुए, लेकिन शीघ्र ही गति पकड़ ली। इनका ‘शेष बहुत कुछ' (सन् 2004) हाइकु-संग्रह प्रकाशित हो चुका है, जिसे हरियाणा का प्रथम हाइकु-संग्रह होने का गौरव प्राप्त है। इसमें कुल 416 हाइकु संगृहीत हैं। डॉ0 ‘मानव' के हाइकु इसलिए विशिष्ट हैं कि ये 5,7,5 के वर्ण-विधान का ही पालन नहीं करते, बल्कि अधिकांश में तुकान्त भी हैं। जीवन-सत्य और युग-सत्य को इनमें प्रामाणिक ढंग से अभिव्यक्त होते देखा जा सकता है। डॉ0 सुभाष रस्तोगी का कहना है कि ‘‘डॉ0 ‘मानव' का 'शेष बहुत कुछ' हाइकु-संग्रह हरियाणा का प्रथम प्रकाशित हाइकु-संग्रह है और हिन्दी में इसे मील का पत्थर इसलिए माना जा सकता है, क्योंकि समकालीन हाइकु-परम्परा से यह अपना रास्ता पूर्णतया अलग बनाता प्रतीत होता है। ये हाइकु सामयिक चेतना की ज्योति से ज्योतित छोटे-छोटे द्वीपों के रूप में हमारे सामने आते हैं, जो कवि, डॉ0 ‘मानव' के प्रयोगधर्मी कविता-स्वभाव के एक साक्ष्य के रूप में देखे जा सकते हैंं।'' श्री सूर्यदेव पाठक ‘पराग' ने डॉ0 ‘मानव' के 370 हाइकुओं का संस्कृत में अनुवाद करके उन्हें ‘हाइकु रत्न-मालिका' के नाम से प्रकाशित कराया है। इसके अतिरिक्त देश-विदेश की अड़सठ प्रमुख भाषाओं/बोलियों में भी डॉ0 ‘मानव' के हाइकुओं का अनुवाद हुआ है, जो ‘बून्द-बून्द सागर' के रूप में, देवनागरी लिपि में, सन् 2009 में प्रकाशित हो चुका है।
4. त्रिापदीकार ः जैसा कि कहा जा चुका है, हिन्दी में ‘त्रिापदी' नामक एक नई काव्य-विधा की प्रतिष्ठा का श्रेय कवि-आचार्य डॉ0 रामनिवास ‘मानव' को ही है। डॉ0 मधुसूदन साहा, डॉ0 कृष्णगोपाल मिश्र, डॉ0 हुकुमचन्द राजपाल, डॉ0 सुभाष रस्तोगी, डॉ0 राजकुमारी शर्मा और डॉ0 मिथिलेशकुमारी मिश्र आदि ने डॉ0 ‘मानव' के इस योगदान को ऐतिहासिक महत्त्व का रेखांकित किया है। ‘केवल यही विशेष' (सन् 2004) डॉ0 ‘मानव' का प्रथम त्रिापदी-संग्रह है, जिसमें 212 त्रिापदियां संगृहीत हैं। डॉ0 मिथिलेशकुमारी मिश्र ने उचित ही लिखा है-‘‘वर्ष 2004 हिन्दी-साहित्य के इतिहास में इसलिए उल्लेखनीय रहेगा कि इस वर्ष इसके विधा-वृक्ष में ‘त्रिापदी' के रूप में एक नई शाखा फूटी तथा 'केवल यही विशेष' के रूप में डॉ0 ‘मानव' की इस वर्ष की विशेष भेंट है, जिसकी सुवास से समूचा काव्य-परिदृश्य महकेगा।'' हिन्दी-काव्यशास्त्राी डॉ0 ‘मानव' की इस मौलिक देन का गम्भीर ‘नोटिस' लेंगे, ऐसा विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है।
5. बालगीतकार ः डॉ0 ‘मानव' हिन्दी के प्रतिमानक बालगीतकार भी हैं। इनके अब तक चार बालकाव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-‘हम सब हिन्दुस्तानी' (सन् 1988), ‘आओ, गाओ बच्चो' (सन् 1992), ‘मुन्ने राजा आजा' (सन् 1996) और ‘लो, सुनो कहानी' (सन् 2004)। अब ये चारों संग्रह एकसाथ ‘छोटे-छोटे इन्द्रधनुष' (सन् 2004) शीर्षक से प्रकाशित हुए हैं। इससे बाल-पाठकों को डॉ0 ‘मानव' का सारा बालकाव्य एकसाथ पढ़ने को तो मिल ही जायेगा, इनके बालकाव्य के सम्यक् मूल्यांकन में भी इससे सहायता मिलेगी। अस्तु, जहां तक डॉ0 ‘मानव' के बालकाव्य का सम्बन्ध है, इन्होंने यहां ज्ञान और मनोरंजन की समन्वित दृष्टि अपनायी है। इनका बालकाव्य मूल्यपरक है और बालकों को संस्कारशील बनाने में समर्थ हैं। लगभग सभी काव्य-रूपों में इन्होंने बालकाव्य रचा है। इनके बालकाव्य का कलापक्ष भी अत्यन्त सुविचारित है।
6. लघुकथाकार ः हिन्दी-लघुकथा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में डॉ0 ‘मानव' का नाम अग्रगण्य है। डॉ0 कमलकिशोर गोयनका के अनुसार, ‘‘लघुकथा की दृष्टि से डॉ0 ‘मानव' एक संवेदनशील तथा अनुभवसिद्ध लेखक हैं। इन्होंने अपने समय के मनुष्य की व्यथा तथा ऊर्जा को पहचाना है, उससे सीधा साक्षात्कार किया है, उसे अपनी आत्मा का रस दिया है और उसे एक जीवन-सत्य के रूप में लघुकथा में रूपायित किया है। इन्होंने लघुकथा की आत्मा को पहचाना है और अपनी लघुकथाओं से लघुकथा की कला को सिद्ध किया है।'' अब तक डॉ0 ‘मानव' के चार लघुकथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-‘ताकि सनद रहे' (सन् 1982), ‘घर लौटते क़दम' (सन् 1988 और 2004), ‘इतिहास गवाह है' (सन् 1996 और 2004) तथा ‘हो चुका फ़ैसला' (सन् 2009)। ‘ताकि सनद रहे' एक संयुक्त संकलन है, जिसमें डॉ0 ‘मानव' के लघुकथा-सम्बन्धी छह लेख तथा डॉ0 ‘मानव' और दर्शन ‘दीप' की बारह-बारह लघुकथाएं संगृहीत हैं। यथार्थ-चित्राण, मानवीय मनोवृत्तियों का उद्घाटन, शैलीगत वैविध्य तथा भाषा-वैशिष्ट्य इनकी लघुकथाओं की उल्लेखनीय विशेषताएं हैं। श्री दर्शन मितवा ने इनकी 102 लघुकथाओं का पंजाबी में अनुवाद करके उन्हें ‘इक ही रस्ता' के रूप में प्रकाशित कराया है। इनकी चुनिन्दा लघुकथाओं का मराठी (तुला काय सांगू ?) तथा भोजपुरी (एकमुश्त समाधान) में भी अनुवाद हो चुका है।
7. समीक्षक ः डॉ0 ‘मानव' एक तलस्पर्शी शोधार्थी तथा सफल समीक्षक भी हैं। इनके पी-एच0डी0 और डी0लिट् हेतु प्रस्तुत शोध-प्रबन्धों में इनके शोधक और समीक्षक, दोनों रूपों का सुन्दर सामंजस्य दिखाई पड़ता है। इनके प्रकाशित शोध-प्रबन्ध हैं-‘हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिन्दी-साहित्य' (सन् 1999) और ‘हरियाणा में रचित हिन्दी-महाकाव्य' (सन् 2001)। डॉ0 ‘मानव' ने विषय-निरूपण हेतु शोध और समीक्षा का समुचित समन्वय तो इन ग्रन्थों में किया ही है, विभिन्न साहित्यकारों की कृतियों का सूक्ष्म विश्लेषण करने के अतिरिक्त राष्ट्रीय परिपे्रक्ष्य में उनका मूल्य-निर्धारण भी किया है। इनकी समीक्षा-दृष्टि वस्तुपरक है, जिसके कारण विश्लेषण में आद्यन्त निष्पक्षता बनी रहती है। इनकी सद्य प्रकाशित कृति ‘हरियाणवी ः बोली और साहित्य' (सन् 2009) इसका ताज़ा उदाहरण है। शोध और समीक्षा के माध्यम से, हरियाणवी साहित्य के विकास में डॉ0 ‘मानव' के योगदान के दृष्टिगत, इन्हें हरियाणवी साहित्य का विशिष्ट व्याख्याता कहना अनुचित नहीं होगा।
8. सम्पादक ः एक कुशल सम्पादक के रूप में भी डॉ0 ‘मानव' ने अपनी स्पष्ट पहचान कायम की है। इन्होंने अलग-अलग विधाओं की छह विशिष्ट कृतियों का सम्पादन किया है ः ‘स्वतन्त्राता-संग्राम और हरियाणा' (सन् 1987, 1997 और 1999), लेख-संग्रह; ‘अभिनन्दन के स्वर' (सन् 1996), अभिनन्दन-ग्रन्थ; ‘स्मृति-शेष ः पंडित मातादीन' (सन् 1999), स्मृति-ग्रन्थ; ‘व्यंग्य के पुरोधा ः डॉ0 परमेश्वर गोयल' (सन् 2003), समीक्षात्मक ग्रन्थ, ‘वन्दना के शब्द' (सन् 2006), डॉ0 शिवनाथ राय अभिनन्दन-ग्रन्थ और ‘हर्ष-हर्ष अभिनन्दन' (सन् 2008), हर्षकुमार ‘हर्ष' की षष्टिपूर्ति पर प्रकाशित अभिनन्दन-ग्रन्थ। इनके अतिरिक्त डॉ0 ‘मानव' ने ‘पवनवेग' (अम्बाला), ‘अनुमेहा' (उन्नाव), ‘पंजाबी संस्कृति' (हिसार), ‘सरस्वती-सुमन' (देहरादून) आदि पत्रा-पत्रिाकाओं के विशेषांकों और ‘राजभाषा', ‘ज्ञानी जी' आदि स्मारिकाओं का भी सम्पादन किया है। डॉ0 ‘मानव' की सम्पादन-कला के सम्बन्ध में डॉ0 महेश ‘दिवाकर' ने उचित ही लिखा है-‘'डॉ0 ‘मानव' द्वारा सम्पादित कृतियों के संक्षिप्त विवेचन-विश्लेषण के उपरान्त सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि यह विलक्षण सम्पादन-कौशल के धनी हैं। सम्पादन-कला को इन्होंने अपने रचना-कर्म से सार्थक किया है।''
व्यक्तिगत जीवन में अति की सीमा तक व्यथा और विवशता, अभाव और असफलता को झेलने के बावजूद डॉ0 रामनिवास ‘मानव' स्वभावतः आदर्शवादी हैं। जीवन और समाज में व्याप्त विकृतियों और विसंगतियों के प्रति इनके मन में गहरा आक्रोश है। अतः यह युगबोध और युगसत्य के यथार्थ-चित्राण के साथ गली-सड़ी मान्यताओं, चरित्राहीनता, दोगलेपन, देश-विरोधी मानसिकता, असामाजिकता आदि पर तीव्र प्रहार करते चलते हैं। इनका विक्षुब्ध-विद्रोही मन इन्हें क्रान्तदर्शी और क्रान्तिधर्मी बना देता है तथा यह आमूल-चूल परिवर्तन की बुनियाद पर भविष्य की परिकल्पना को साकार करना चाहते हैं। अभाव, संघर्ष और दुःख आदि कुछ भी न इनका रास्ता रोक पाता है और न लक्ष्य से इन्हें डिगा पाता है-‘‘भरा हुआ पथ कष्टों के/कंटकों से/जहां तक पहुंच पाती दृष्टि/रुका हुआ रथ जीवन का/संकटों की/हो रही अविराम वृष्टि/पर अडिग में आस्था का/अश्ववाही/विश्वास है उत्तुंग मेरा/शक्ति का चिरस्रोत हूं मैं/विफलता से/रुद्ध हो क्यों पन्थ मेरा।''
जहां तक डॉ0 ‘मानव' के शिल्पपक्ष का सम्बन्ध है, यह कहा जा सकता है कि इनका भावपक्ष जितना सबल-सशक्त है, इनका शिल्पपक्ष उतना ही सरल-सुबोध है। किसी प्रकार की कृत्रिामता या शब्दाडम्बर उसमें नहीं है। ‘‘आलंकारिक भाषा, लाक्षणिक प्रयोगों और विलक्षण प्रतीकों के मोहजाल में न फंसकर इन्होंने कबीर की सहज-सरल भाषा तथा सीधी-सादी, किन्तु मर्मस्पर्शी अभिव्यंजना-शैली को अपनाया है।'' अलंकार, बिम्ब, प्रतीक, मुहावरे आदि डॉ0 ‘मानव' के काव्य में भी आये हैं, लेकिन सभी अनायास भाव से; सायास कुछ भी नहीं। काव्य को जीवन-यथार्थ का दर्पण मानने वाले डॉ0 ‘मानव' का मूल उद्देश्य यथार्थ का चित्राण, विसंगतियों का उद्घाटन और कथ्य की सम्यक् अभिव्यक्ति रहा है। इनके लिए काव्य जीवन के लिए है, न कि कला के लिए। यही गुण डॉ0 ‘मानव' के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है और शक्ति भी। इस दृष्टि से उनकी तुलना, समकालीन हिन्दी-कवियों में, केवल नागार्जुन से की जा सकती है।
अस्तु, पद्मश्री डॉ0 गोपालदास ‘नीरज' ने डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के दोहों के सम्बन्ध में जो कुछ कहा है, वह इनके सम्पूर्ण कृतित्व पर, समान रूप से, लागू होता है-
‘मानव' जी के दोहरे,एक-से-एक अनन्य।
इनको पाकर हो गई, हिन्दी-कविता धन्य॥
आत्मा के सौन्दर्य का, शब्द-रूप है काव्य।
‘मानव' होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य॥
-पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग
तथा अधिष्ठाता कला-संकाय,
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरि0)
18/2, बाजड़ान मुहल्ला, कुरुक्षेत्र-136118 (हरि0)
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डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का परिचय
डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः संक्षिप्त जीवन-वृत्त
जन्म ः 2 जुलाई, सन् 1954 को तिगरा, ज़िला-महेन्द्रगढ़ (हरि0) में प्रमुख स्वतन्त्राता-सेनानी और
सेवाज-सेवी पंडित मातादीन के घर श्रीमती मूर्तिदेवी की कोख से। (शैक्षिक प्रमाण-पत्र के
अनुसार जन्म-तिथि 8 अक्टूबर, सन् 1954)।
शिक्षा ः एम0ए0 (हिन्दी)- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरि0) -1977 ई0
पी-एच0डी0 (हिन्दी)- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरि0) -1988 ई0
डी0लिट् (हिन्दी)- भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (बिहार) -2000 ई0
हरियाणा के समकालीन हिन्दी-साहित्य के प्रथम शोधार्थी तथा अधिकारी विद्वान।
डॉ0 बालशौरि रेड्डी के शब्दों में ‘हरियाणवी साहित्य के पुरोधा'।
कृतियां ः विभिन्न विधाओं की कुल बत्तीस पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें ग्यारह काव्यकृतियां, पांच बालगीत-संग्रह, चार लघुकथा-संग्रह, तीन शोध-प्रबन्ध तथा आठ सम्पादित ग्रन्थ शामिल हैं। विभिन्न भाषाओं में
अनूदित ग्यारह कृतियां तथा व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित अनेक ग्रन्थ भी प्रकाशित।
डॉ0 ‘मानव' की प्रकाशित कृतियां
(क) मौलिक कृतियां ः
1. धारा-पथ (कविता-संग्रह) ः 1976
2. इन्द्रकील और अंगुलिमाल (कथाकाव्य) ः 1977
3. रश्मि-रथ (कविता-संग्रह) ः 1980
4. ताकि सनद रहे (लघुकथा-संग्रह) ः 1981
5. आओ, घूमें हरियाणा (बालोपयोगी) ः 1983
6. सांझी है रोशनी (कविता-संग्रह) ः 1986
7. हम सब हिन्दुस्तानी (बालगीत-संग्रह) ः 1988
8. घर लौटते क़दम (लघुकथा-संग्रह) ः 1988
9. आओ, गाओ बच्चो (बालगीत-संग्रह) ः 1992
10. मुन्ने राजा आजा (बालगीत-संग्रह) ः 1996
11. बोलो मेरे राम (दोहा-संग्रह) ः 1999
12. इतिहास गवाह है (लघुकथा-संग्रह) ः 1996
13. हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिन्दी-साहित्य (शोध-प्रबन्ध) ः 1999
14. हरियाणा में रचित हिन्दी-महाकाव्य (शोध-प्रबन्ध) ः 2001
15. सहमी-सहमी आग (दोहा-संग्रह) ः 2004
16. शेष बहुत कुछ (हाइकु-संग्रह) ः 2004
17. लो, सुनो कहानी (बालगीत-संग्रह) ः 2004
18. छोटे-छोटे इन्द्रधनुष (बालगीत-संग्रह) ः 2004
19. केवल यही विशेष (त्रिपदी-संग्रह) ः 2006
20. कविता में उत्तरांचल (कविता-संग्रह) ः 2009
21. हो चुका फ़ैसला (लघुकथा-संग्रह) ः 2009
22. हरियाणवी ः बोली और साहित्य (समीक्षा-ग्रन्थ) ः 2009
23. पदे-पदे द्विपदी (द्विपदी-संग्रह) ः 2010
24. देख कबीरा, देख (दोहा-संग्रह) ः 2010
(ख) सम्पादित कृतियां ः
1. स्वतन्त्रता-संग्राम और हरियाणा (लेख-संग्रह) ः 1988
2. अभिनन्दन के स्वर (अभिनन्दन-ग्रन्थ) ः 1996
3. स्मृति-शेष ः पंडित मातादीन (स्मृति-ग्रन्थ) ः 1999
4. व्यंग्य के पुरोधा ः डॉ0 परमेश्वर गोयल (समीक्षात्मक ग्रन्थ) ः 2002
5. वन्दना के शब्द (अभिनन्दन-ग्रन्थ) ः 2006
6. हर्ष-हर्ष अभिनन्दन (अभिनन्दन-ग्रन्थ) ः 2009
7. ‘मयंक' वन्दन-अभिनन्दन (अभिनन्दन-ग्रन्थ) ः 2010
8. लोकधर्मी पंडित मातादीन (स्मृति-ग्रन्थ) ः 2010
डॉ0 ‘मानव' की रचनाओं का अनुवाद
(क) रचनाओं का अनुवाद ः
देश-विदेश की अड़सठ प्रमुख भाषाओं और बोलियों में विविध रचनाओं का अनुवाद, जिनमें
सम्मिलित हैं निम्नलिखित अठारह विदेशी भाषाएं, चौबीस भारतीय भाषाएं तथा छब्बीस प्रमुख
बोलियां-
1. विदेशी भाषाएं ः अरबी, अंग्रेजी, इटेलियन, एमहैरिक, ग्रीक, चीनी, जर्मन, जापानी, डच, तिब्बती,
नेपाली, नोर्वेजियन, पुर्तगीज़, फ़ारसी, फिलीपीनी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश।
2. भारतीय भाषाएं ः अपभ्रंश, असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी,
तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बंगला, बोडो, भोजपुरी, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, मैथिली, राजस्थानी,
संस्कृत, सिरायकी, सिन्धी और संताली।
3. प्रमुख बोलियां ः अवधी, अहीरवाटी, अंगिका, कच्छी, कांगड़ी, कुमाऊंनी, कौरवी, गढ़वाली,
छत्तीसगढ़ी, ढूंढाड़ी, निमाड़ी, पहाड़ी, बघारी, बघेली, बज्जिका, बागड़ी, बुन्देली, ब्रज, मगही,
मारवाड़ी, मालवी, मिजो, मेवाती, शैवड़ी, हरियाणवी और हाड़ौती।
(ख) अनूदित कृतियां ः
1. इक नवां इतिहास (पंजाबी में लिप्यन्तरित दोहा-संग्रह) ः 2007
2. इक ही रस्ता (पंजाबी में अनूदित लघुकथा-संग्रह) ः 2008
3. किन्ना मुश्किल है (पंजाबी में अनूदित कविता-संग्रह) ः 2009
4. बूंद-बूंद सागर (अड़सठ भाषाओं में अनूदित हाइकु-संग्रह) ः 2009
5. हाइकु रत्न-मालिका (संस्कृत में अनूदित हाइकु-संग्रह) ः 2009
6. केतना मुश्किल बा (भोजपुरी में अनूदित कविता-संग्रह) ः 2009
7. एकमुश्त समाधान (भोजपुरी में अनूदित लघुकथा-संग्रह) ः 2009
8. तुला काय सांगू ? (मराठी में अनूदित लघुकथा-संग्रह) ः 2009
9. शब्द रॉ शर-सज्या (उड़िया में अनूदित कविता-संग्रह) ः 2009
10. जंगल में सूर्यास्त (अंगिका में अनूदित कविता-संग्रह) ः 2009
11. बहाव दे अग्गे (पंजाबी में अनूदित लघुकथा-संग्रह) ः 2010
(ग) साहित्य पर केन्द्रित कृतियां ः
1. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः व्यक्तित्व एवं कृतित्व/दयाकिशन श्योराण -1999
2. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः सृजन के आयाम/सं0 डॉ0 लालचन्द गुप्त ‘मंगल' -2005
3. शब्द-शब्द समिधा/सं0 डॉ0 कृष्णगोपाल मिश्र -2005
4. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का रचना-संसार/डॉ0 मधूलिका सुहाग -2009
5. शहर के बीचों-बीच/सं0 रोहित यादव -2010
6. ‘मानव' अभिनन्दन-स्मारिका (स्मारिका)/सं0 रोहित यादव -1987
7. शब्द-शिल्पी (स्मारिका)/सं0 डॉ0 सुभाष रस्तोगी -2005
8. पवन-वेग (लघुकथाकार रामनिवास ‘मानव' विशेषांक) -1981
9. बाल साहित्य-समीक्षा (बालगीतकार डॉ0 ‘मानव' विशेषांक) -2007
10. समय (दोहाकार डॉ0 रामनिवास ‘मानव' विशेषांक) -2009
डॉ0 ‘मानव' के साहित्य पर शोध
(क) एम0फिल् ः
1. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' व्यक्तित्व एवं कृतित्व/दयाकिशन श्योराण ः 1999
2. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का काव्य ः संवेदना और शिल्प/मीनाक्षी डोगरा ः 2001
3. लघुकथाकार डॉ0 रामनिवास ‘मानव'/कोमल बजाज ः 2004
4. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के बालकाव्य में मनोविज्ञान/किरण शर्मा ः 2004
5. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का बालकाव्य/अंजु कटारिया ः 2005
6. दोहाकार डॉ0 रामनिवास ‘मानव'/सीमा कुमारी ः 2005
7. ‘सांझी है रोशनी' में युगबोध-निरूपण/कल्पना मंगलेट ः 2006
8. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' और उनकी सम्पादित कृतियां/सुजाता कल्याणी ः 2007
9. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' और उनका शोध-साहित्य/सतीश चन्द ः 2007
10. इतिहास गवाह है ः परिचय एवं मूल्यांकन/अशोक कुमार ः 2007
11. इन्द्रकील और अंगुलिमाल ः परिचय, प्रवृत्तियां और मूल्यांकन/सुनीता ः 2007
12. ‘रश्मि-रथ' में युगबोध-निरूपण/सरिता यादव ः 2007
13. शेष बहुत कुछ ः संवेदना और शिल्प/ममता तिवाड़ी ः 2007
14. इन्द्रकील और अंगुलिमाल ः संवेदना एवं शिल्प/देवेन्द्र कुमार ः 2007
15. बोलो मेरे राम ः संवेदना और शिल्प/एच0एन0 पलक्षप्पा ः 2007
16. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के दोहों में युगबोध/राजेश कुमार ः 2007
17. इतिहास गवाह है ः संवेदना एवं शिल्प/राकेश कौशिक ः 2007
18. धारा-पथ ः परिचय, प्रवृत्तियां एवं मूल्यांकन/अंजीवकुमार रावत ः 2007
19. पत्रकारिता के विकास में ‘नित्य हलचल' की भूमिका/राजेश कुमार ः 2007
20. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' और उनका ‘केवल यही विशेष'/रमेश दास ः 2007
21. ‘सहमी-सहमी आग' में युगबोध-निरूपण/रेणु गुप्ता ः 2007
22. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का व्यक्तित्व एवं कृतित्व/सुभाषना बाई ः 2007
23. केवल यही विशेष ः परिचय एवं मूल्यांकन/सुरेश दहिया ः 2007
24. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः परिचय और उपलब्धियां/अनीता रानी ः 2008
25. ‘शेष बहुत कुछ' की काव्य-मीमांसा/ममता रानी ः 2008
26. हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिन्दी-साहित्य ः परिचय एवं मूल्यांकन/अनिल ः 2008
27. ‘छोटे-छोटे इन्द्रधनुष' का मूल्यांकन/नीतू रानी ः 2008
28. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' और उनका ‘घर लौटते क़दम'/दिनेश यादव ः 2009
29. छोटे-छोटे इन्द्रधनुष ः वस्तु एवं शिल्प/नीतू ः 2009
30. सांझी है रोशनी ः संवेदना एवं शिल्प/लता कुमारी ः 2009
31. शब्द-शब्द समिधा ः परिचय एवं मूल्यांकन/पुष्पलता शर्मा ः 2009
32. काव्य-संग्रह ‘रश्मि-रथ' में युगबोध/मोनिका बिश्नोई ः 2009
33. ‘धारा-पथ' का कथ्य एवं शिल्प/ज्योति रानी ः 2009
34. रश्मि-रथ ः संवेदना एवं शिल्प/सुनीता ः 2009
35. ‘हो चुका फ़ैसला' में मूल्य-चेतना/सिमरनजीत कौर ः 2009
36. हाइकु रत्न-मालिका ः परिचय एवं मूल्यांकन/होशियार सिंह ः 2009
37. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का बालकाव्य ः परिचय एवं मूल्यांकन/रूबी चौधरी ः 2009
38. घर लौटते क़दम ः संवेदना के विविध रूप/अरुणा चौहान ः 2009
39. हरियाणा में रचित हिन्दी-महाकाव्य/सविता कुमारी ः 2009
40. ‘घर लौटते क़दम' लघुकथा-संग्रह में पारिवारिक चेतना/एच0गोपाल कृष्णा ः 2009
(ख) पी-एच0डी0 ः
1. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः व्यक्तित्व एवं कृतित्व/उपासना जिन्दल ः 2007
2. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः सृजन के विविध आयाम/मधूलिका सुहाग ः 2008
3. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' का काव्य ः संवेदना और शिल्प/मीनाक्षी डोगरा ः 2009
4. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' ः जीवन और साहित्य/रामेश्वर दास ः 2009
5. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' की साहित्य-यात्रा ः एक अध्ययन/डी0 अनारसे ः 2009
6. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' और उनका लघुकथा-साहित्य/आनन्दप्पा इरामुखदवर ः पंजीकृत
7. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के काव्य में निरूपित यथार्थ-बोध/हितेन्द्र कुमार ः पंजीकृत
8. बीसवीं सदी के आठवें दशक के परवर्ती कवियों का युगबोध
(डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के विशेष सन्दर्भ में)/देवेन्द्र कुमार ः पंजीकृत
9. हरियाणा का सम्पादित हिन्दी-साहित्य
(डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के विशेष सन्दर्भ में)/अजय कुमार ः पंजीकृत
10. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' और उनका दोहा-साहित्य/कविता कुमारी ः पंजीकृत
11. डॉ0 रामनिवास ‘मानव' के काव्य का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन/वीरेन्द्र कुमार ः पंजीकृत
12. हिन्दी-बालकाव्य के विकास में डॉ0 रामनिवास ‘मानव' की भूमिका/किरण देवी ः पंजीकृत
13. महाकवि ‘मानव' के काव्य में मूल्य-बोध/निशा रानी ः पंजीकृत
उपलब्धियां ः
1. प्रसारण ः सर्वप्रथम आकाशवाणी, रोहतक (हरि0) से, सन् 1976 में, कार्यक्रम प्रसारित।
तत्पश्चात् आकाशवाणी के रोहतक केन्द्र के साथ-साथ हिसार (हरि0), शिमला (हि0प्र0),
सूरतगढ़ (राज0) तथा दिल्ली केन्द्रों और दूरदर्शन के जालन्धर (पंजाब) तथा हिसार (हरि0)
केन्द्रों से विविध कार्यक्रमों का निरन्तर प्रसारण।
2. आयोजन-संयोजन ः देश-भर में लगभग पांच सौ महत्त्वपूर्ण शैक्षिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक
संगोष्ठियां, सम्मेलन और समारोह आयोजित। सिटी चैनल (‘ज़ी' टी0वी0), हिसार (हरि0) पर
लगभग तीन सौ कार्यक्रमों का संयोजन-संचालन।
3. व्याख्यान ः पंजाब नेशनल बैंक के हिसार क्षेत्रीय/मंडल कार्यालय द्वारा, लिपिक एवं अधिकारी
संवर्ग हेतु ‘राजभाषा हिन्दी और कार्यालय-प्रयोग' विषय पर आयोजित कार्यशालाओं में,
आमन्त्रिात विशिष्ट/प्रमुख वक्ता के रूप में लगातार साठ व्याख्यान।
4. पत्रकारिता ः पत्रकारिता का व्यापक अनुभव। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के संवाद-सहयोगी
तथा सलाहकार के रूप में कार्य। कई पत्रिकाओं के दोहा, ग़ज़ल तथा लघुकथा विशेषांकों
का सौजन्य सम्पादन। ‘पक्षधर' (पाक्षिक), ‘अंशुल आवाज़' (साप्ताहिक), ‘नित्य हलचल'
(सांध्य दैनिक) तथा ‘अरुणाभ' (त्रैमासिक) का प्रकाशन-सम्पादन।
5. नोबेल हेतु नामांकन ः ‘सहमी-सहमी आग' (दोहा-संग्रह), सन् 2007 में, देश के एक प्रमुख
विश्वविद्यालय द्वारा साहित्यिक नोबेल पुरस्कार हेतु नामित। ‘अज्ञेय' के बाद यह गौरव पाने
वाले दूसरे हिन्दी-कवि।
6. पुस्तक-लेखन ः नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, दिल्ली की ‘नवसाक्षर पुस्तक-माला' श्रृंखला के
अन्तर्गत ‘आओ, घूमें हरियाणा' तथा केन्द्रीय साहित्य-अकादमी, दिल्ली की ‘हिन्दी की
सहभाषा' श्रृंखला के अन्तर्गत ‘हरियाणवी' पुस्तक का लेखन।
7. चयन-समिति की सदस्यता ः केन्द्रीय साहित्य-अकादेमी, दिल्ली, साहित्य-अकादमी,
मध्यप्रदेश, भोपाल, नागरी लिपि-परिषद्, नई दिल्ली, विक्रमशिला हिन्दी-विद्यापीठ, ईशीपुर
(बिहार) जैसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थाओं की पुरस्कार चयन-समिति की सदस्यता का
अनेक वर्षों तक दायित्व-निर्वहन।
8. पाठ-लेखन ः कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरि0) की एम0ए0 (हिन्दी) कक्षाओं हेतु
पाठ-लेखन।
9. प्राश्निक, परीक्षक एवं शोध-निर्देशक ः कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र और महर्षि दयानन्द
विश्वविद्यालय, रोहतक (हरि0), महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली और
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (उ0प्र0), विनायक मिशन्स विश्वविद्यालय,
सेलम और मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, मदुरै (त0ना0), सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी
बड़ी (राज0), द्रविडियन विश्वविद्यालय, कुप्पम (आं0प्र0) आदि विश्वविद्यालयों में प्राश्निक,
पी-एच0डी0 के परीक्षक तथा एम0फिल् और पी-एच0डी0 के शोध-निर्देशक के रूप में
निरन्तर कार्य-सम्पादन।
10. इतिहास-ग्रन्थों में उल्लेख ः ‘हिन्दी-साहित्य ः युग और प्रवृत्तियां', ‘हिन्दी-साहित्य का
इतिहास', ‘हिन्दी-साहित्य को हरियाणा का योगदान', ‘हरियाणा का हिन्दी-साहित्य',
‘हरियाणा का दोहा-साहित्य', ‘हरियाणा का लघुकथा-संसार', ‘हिन्दी के मूर्धन्य
बाल-साहित्यकार', ‘हरियाणा के कवि', ‘हरियाणा के प्रमुख हिन्दी-साहित्यकार' आदि दो
दर्ज़न इतिहास-ग्रन्थों तथा समीक्षात्मक कृतियों में विस्तृत उल्लेख। दो दर्ज़न शोधग्रन्थों में
कृतियां आधार-ग्रन्थ के रूप में सम्मिलित।
11. पाठ्यक्रम में रचनाएं ः कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरि0) द्वारा एम0ए0 (हिन्दी)-द्वितीय
वर्ष के पाठ्यक्रम में ‘कितना मुश्किल है', ‘शहर के बीचों-बीच', ‘एकान्त-चिन्तन' तथा ‘लौट
आओ अश्व' शीर्षक चार कविताएं और ‘हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिन्दी-साहित्य' तथा
‘हरियाणा में रचित हिन्दी-महाकाव्य' शीर्षक दो शोध-प्रबन्ध शामिल। कर्नाटक के एक
स्वायत्तशासी महाविद्यालय (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के बी0कॉम0 तथा बी0बी0ए0 (प्रथम वर्ष) के
पाठ्यक्रम में दो-दो रचनाएं सम्मिलित। दक्षिण भारत प्रचार-सभा डीम्ड यूनिवर्सिटी, चेन्नई
(त0ना0) के स्कूली पाठ्यक्रम में बाल-कविता शामिल। दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और
बिहार के अनेक स्वतन्त्रा प्रकाशकों के स्कूली पाठ्यक्रमों में भी बाल-कविताएं शामिल।
12. ‘हूज़हू' ग्रन्थों में परिचय ः ‘वर्ल्ड हूज़हू', ‘एशिया-पेसेफ़िक हूज़हू', ‘इंडो-एशिया हूज़हू',
‘एशिया-अमेरिका हूज़हू', ‘एफ्रो-एशिया हूज़हू', ‘एशियन एडमायरेबल अचीवर्स हूज़हू', ‘इंडियन
राइटर्स हूज़हू', ‘हिन्दी-साहित्यकार सन्दर्भ-कोश', ‘हाइकु काव्य-विश्वकोश' आदि देश-विदेश
के लगभग पचास महत्त्वपूर्ण हूज़हू ग्रन्थों में जीवन-परिचय प्रकाशित।
13. शोध-निर्देशन ः एम0फिल् तथा पी-एच0डी0 के सत्तर से भी अधिक शोधछात्रों का कुशल
निर्देशन। लगभग डेढ़ दर्ज़न अन्य शोधछात्र विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोधकार्यरत।
14. सम्मान, पुरस्कार तथा मानद उपाधियां ः देश-विदेश की शताधिक संस्थाओं द्वारा
सम्मानित। अनेक प्रतिष्ठित सम्मान, पुरस्कार तथा मानद उपाधियां प्राप्त। मानद उपाधियों में
‘महाकवि' ‘साहित्य-शिरोमणि', ‘साहित्य-महारथी', ‘साहित्यमहोपाध्याय', ‘साहित्यवाचस्पति',
‘विद्यासागर' (डी0लिट्), ‘हिन्दी भाषा-भूषण' आदि उल्लेखनीय। हिसार तथा मंडी अटेली
(हरि0) में सार्वजनिक अभिनन्दन।
15. सम्मान में कार्यक्रम ः हिसार, मंडी अटेली और नारनौल (हरि0), अलवर, खेतड़ी और दौसा
(राज0), कौसानी (उत्तराखंड), सहारनपुर (उ0प्र0), पटना, भागलपुर, पूर्णिया और अररिया
(बिहार), राउरकेला (उड़ीसा) तथा नडियाद (गुजरात) में ‘कविता की शाम ः डॉ0 ‘मानव' के नाम'
कार्यक्रम आयोजित।
16. देश-विदेश की यात्रा ः शोधकार्य तथा साहित्यिक कार्यक्रमों के सम्बन्ध में अनेक बार सम्पूर्ण
हरियाणा की यात्रा। हरियाणा साहित्य-अकादमी, पंचकूला द्वारा आयोजित दो साहित्यिक
चेतना-यात्राओं में सहभागिता। उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों को छोड़कर सम्पूर्ण भारत तथा
पड़ोसी राष्ट्र नेपाल की अनेक बार साहित्यिक यात्रा।
17. निःशुल्क बस-यात्रा सुविधा ः विशिष्ट साहित्यिक उपलब्धियों के दृष्टिगत, हरियाणा सरकार
द्वारा, राज्य परिवहन-निगम की सभी बसों में, आजीवन निःशुल्क यात्रा की सुविधा प्रदत्त।
18. वैबसाइट पर साहित्य ः सम्पूर्ण साहित्य वैबसाइट पर उपलब्ध, जिसमें संक्षिप्त सचित्र
परिचय के साथ दस काव्यकृतियां, चार बालकाव्य-संग्रह, तीन लघुकथा-संग्रह तथा तीन शोध-
प्रबन्ध, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित छः पुस्तकें तथा उपलब्धियों से जुड़े तीन दर्ज़न चित्र
आदि सम्मिलित। वैबाइट का पता है-(क) मानव भारती डॉट गूगल पेज़िज डॉट कॉम और
(ख) डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट मानव भारती डॉट कॉ डॉट सीसी।
19. पोर्टल पर साहित्य ः कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल (उ0खं0) के ‘उत्तरा पोर्टल' पर,
शोधार्थियों हेतु, पच्चीस कृतियां उपलब्ध।
20. विदेशी पुस्तकालयों में पुस्तकें ः नेपाल, पाकिस्तान, मॉरीशस, सूरीनाम, अमेरिका, कनाडा,
ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, न्यूजीलैंड आदि अनेक देशों के पुस्तकालयों में पुस्तकें उपलब्ध। अमेरिका
के ही दो दर्ज़न से अधिक प्रमुख विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में पुस्तकें उपलब्ध।
सम्पर्क-सूत्र ः ‘अनुकृति', 706, सैक्टर-13, हिसार-125005 (हरि0) घ् 01662-238720
ई-मेल ः मानव भारती एट ज़ी मेल डॉट कॉम।
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