है कोई इस दुनिया में जो ताल ठोंककर कह सके कि उसने आज तक कभी किसी की चापलूसी नहीं की या किसी ने उसकी चापलूसी नहीं की। तो भाईजान बिन चा...
है कोई इस दुनिया में जो ताल ठोंककर कह सके कि उसने आज तक कभी किसी की चापलूसी नहीं की या किसी ने उसकी चापलूसी नहीं की। तो भाईजान बिन चापलूसी सब सून। चापलूसी गए न उबरे मोती मानस चून। चापलूस नियरे राखिए आंगन कुटि छवाय। मुझे एक डॉक्टर का यह कहा अक्सर याद आता है कि चापलूसी से बचने की कोई दवा का आविष्कार क्यों नहीं होता। चापलूसी या खुशामद या चमचागिरी या झूठी प्रशंसा से बचना इस असार संसार में असंभव है। हर छोटा अपने बड़े की और बड़ा अपने से बड़े की चापलूसी करता रहेगा।
पति, पत्नी की चापलूसी करता है। चपरासी अफसर की चापलूसी करता है और सारे वातावरण में चापलूसी की चर्चा होती रहती है। इस चर्चा पर चिंता व्यक्त की जाती है। ज्यों ही छोटा अफसर बड़े अफसर के चैम्बर में जाता है सैक्शन के बाबू लोग चापलूसी पर चिंता व्यक्त करने लग जाते हैं और जो अफसर बनने से रह गया था, वो बाबू चापलूसी पर चिंतन करने लग जाता है, वो सोचता है, उसकी खुशामद में कहाँ कब और कैसे कमी रह गई। चापलूसी को कुछ लोग कला का दर्जा देते हैं और कुछ लोग इसे मुखशिल्प कहते हैं।
मेरे एक वैज्ञानिक मित्र चापलूसी को विज्ञान कहते हैं और बिलकुल गणित की भाषा में चापलूसी को समझाते हैं। इसी गणितीय भाषा की बदौलत वे आज अपने क्षेत्र के शीर्षस्थ व्यक्ति हैं और अभी भी गणित भूले नहीं हैं। चापलूसी को मुखशिल्प कहने वालों का मानना है कि इसे हस्त शिल्प में शामिल किया जाना चाहिए और बैंकों को इस नए शिल्प के विकास के लिए ऋण देने चाहिए ताकि यह शिल्प और ज्यादा फले और फूले।
चापलूसी के अपने नफे नुकसान हैं। फायदों को गिनाने से क्या फायदा। चलिए कुछ नुकसानों का जायजा ले लिया जाए। जब कभी कोई अनुभवहीन व्यक्ति चापलूसों से गिर जाता है, तो बेचारा गिरता ही चला जाता है। चापलूस पूरी सरकार डुबा देते हैं। देश की लुटिया डुबा देते हैं और घर-परिवार का सत्यनाश कर देते हैं।
चापलूस के भूगोल और इतिहास पर चर्चा कर चिंता व्यक्त करना मेरा लेखकीय धर्म है। संपादकों को लेखक जो मक्खन लगाता है वो भी चापलूसी के अंतर्गत ही आता है और संपादक लेखक को जो सखेद अभिवादन भेजता है वो चापलूसी का भूगोल है। पृथ्वी गोल है और चापलूसी भी गोल। घूमफिर कर वापस वहीं की वहीं।
चापलूसी चिंतन को मैंने और ज्यादा प्रगाढ़, ध्यानस्थ होकर किया तो मुझे ज्ञात हुआ कि प्राचीनकाल में सभी देवता ऋषि, मुनि, ज्ञानी, तपस्वी, राजा महाराजा सभी चापलूसी करते थे। चारण-भाट लोग राजाओं की स्तुति गा-गाकर चापलूसी करते थे। ऋषि-मुनि हवन और मंत्र गाकर देवताओं को प्रसन्न करने की कोशिश में लगे रहते थे। राजाओं के दरबार में विदूषक रखे जाते थे। शेक्सपीयर से लेकर कालीदास तक के नाटकों में विदूषकों के प्रसंग हैं, जो हमारी चापलूसी को कला का दर्जा देते है। संस्कृत नाटकों में और अन्य रचनाओं में चापलूसी का महत्व दर्शाया गया हैं। जो लोग इस कला में पारंगत हो जाते थे उनका कोई काम नहीं रुकता था। इस कला को चौसठ कलाओं से ऊपर माना गया है।
आधुनिक वक्त में चापलूसी का महत्व बहुत बढ़ गया है क्योंकि अब कोई काम बिना उत्कोच के संभव ही नहीं है और चापलूसी के साथ उत्कोच देने से मात्रा बहुत कम हो जाती है। अब चापलूसी के तरीके बदल गए हैं किसी व्यक्ति के जन्म दिन पर बधाई देना, होली, दिवाली पर बधाई संदेश भेजना, पुत्री के विवाह पर भेंट देना, पुत्र के जन्म दिन पर भारी भेंट देना आदि चापलूसी के नवीन प्रकार हैं। जैसा काम, वैसा दाम। यदि आपका कोई काम किसी अफसर के पास अटका पड़ा है तो पता लगाइए कि अफसर महोदय क्या चाहते हैं ? हमारे मित्र झपकलाल दफ्तर का कोई काम नहीं करते, मगर अफ्सर के निजी काम बिना कहे, दौड़-दौड़ कर करते। अफसर के यहाँ साग-सब्जी, घी-दूध पहुंचा देना, पैसा नहीं लेना, अफसर के घर गैस-सिलेंडर पहुंचाना अफसर की बेबी को स्कूल ले जाना, छोड़ना, मेम साहब की पार्टी की व्यवस्था करना। बस ये सब काम दफ्तर का काम समझकर करते हैं और सदा सुखी रहते हैं।
तबादले के लिए जो चापलूसी की जाती है उसका रंग और मजा अलग ही होता है। कुछ लोग तबादला इसलिए चाहते हैं कि घर दूर है और कुछ इसलिए कि घर से दूर जाना चाहते है। अफसरो से चापलूसी का स्वर्णिम काल होता है सी.आर. का समय। हर छोटा-बड़ा व्यक्ति अपने से बड़े व्यक्ति से बेहद अदब से पेश आता है। सी.आर.बिगड़ी तो सब गड़बड़। सी.आर. ठीक रखने हेतु चापलूसी। अभी तक मैंने चापलूसी संबंधी साहित्य की चर्चा नहीं की है। आधुनिक हिन्दी साहित्य संसार में चापलूसी पर विशद वर्णन संभव है। कई लेखक अपनी पुस्तक किसी व्यक्ति विशेष को समर्पित कर इस विषय में निष्णात हो जाते हैं।
कुछ लेखक पुस्तक के रैपर पर अपने लिए खुशामदी टिप्पणी लिखवा लेते हैं। कुछ आलोचकों से अपनी बात उछलवाते हैं। कुछ गोष्ठियों से चर्चित होकर चापलूसी करते हैं और ज्यादा पहुंचे हुए मठाधीश अभिनंदन कर्म से लाभान्वित होते हैं। पी.एच.डी. के शोध छात्र जानते हैं कि निर्देशक की चापलूसी कैसी होती है। बकौल एक मित्र के यदि एक हत्या करने की अनुमति हो तो वे अपने पी.एच.डी. गाइड की हत्या करना चाहेंगे। बहुत तंग किया था साले ने।
चापलूसी के इस ललित लेख में यदि युवतियों पर चर्चा नहीं हुई तो सब व्यर्थ हो जाएगा। शादी से पहले हर लड़की-लड़के को चन्द्रमुखी लगती है और शादी के बाद ज्वालामुखी।
यदि आपने प्रेम किया है तो आपने भी भैंस जैसी आंखों को मृग नयनी कहा होगा। काले रंग को गोरा और झाड जैसे बालों को नागिन की लटें कहा होगा। होता है पहले प्यार में अक्सर ऐसा होता है। चापलूसी का कमाल है कि आपके घर की बगिया में तीन-तीन बच्चे खेल रहे हैं और आप अपनी किस्मत को रो रहे हैं।
हर युवक हर युवती को उसी निगाह से देखता है, जिस निगाह से खुशामदी व्यक्ति सामने वाले को देखता है। इधर वर्षों से चापलूसी का सीधा सम्बन्ध राजनीति से होने लगा है। जो राजनीति में चापलूस हो गया समझ लो भव सागर तर गया। विश्व का इतिहास गवाह है कि चापलूसी के बिना सब सूना-सूना है।
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यशवन्त कोठारी
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