ये बात नहीं थी कि उनके पास स्वर्ग को पहुंचाने वाला पुत्र नहीं था। था तो सही पर सुपुत्र नहीं था। वह उन्हें अस्पताल ही नहीं ले जाता था तो उ...
ये बात नहीं थी कि उनके पास स्वर्ग को पहुंचाने वाला पुत्र नहीं था। था तो सही पर सुपुत्र नहीं था। वह उन्हें अस्पताल ही नहीं ले जाता था तो उनको भी पता था कि स्वर्ग क्या ले जाएगा! चिता को अग्नि ही दे दे तो गनीमत।
एक दिन वे बातों ही बातों में वचन ले मरे कि जब वे मरें तो मैं उनका क्रिया कर्म करूं। पूरी ईमानदारी से। मैं डरा भी, यार! यहां साली ईमानदारी तक सुरखाब के पर हो गई है और बंदा है कि पूरी ईमानदारी की बात कर रहा है। इससे पहले किसी का क्रिया कर्म किया नहीं था सो मैंने उनसे साफ साफ कह दिया,‘ देखो , बुरा मत मानना । सच यह है कि मैंने इससे पहले किसी का क्रिया कर्म नहीं किया है। इसलिए मुझे पता नहीं है कि कितना खर्च आता होगा। ऐसे मौकों पर मरते- मरते पंडे- पुजारी भी अजगर सा मुंह खोल देते हैं। कहीं ऐसा न हो कि पहले ही क्रिया कर्म में मुझे घाटा हाथ लगे और मेरी रही सही आस्था भी जाती रहे। कैसा जैसा क्रिया कर्म करना है?’ माल की ओर से भला चंगा होने के बाद जिंदगी भर बीड़ी के टोटों का सिगारी स्वाद लेने वाले से मैंने पूछा। पता नहीं हम ताउम्र किसके लिए तिल तिल जोड़ते रहते हैं?
‘ ऐसा कि जरा दरमयाना सा। लोग ये भी न कहें कि मरने के बाद भी साला कंजूस ही रहा। और ऐसा हाई फॅाई भी नहीं करना कि इनकम टैक्स वाले घरवाली को तंग करने आ जाएं। इसके लिए मैं प्री पेमेंट कर जाऊंगा। प्री पेड का जमाना है न! खर्च से दो चार हजार ज्यादा ही दूंगा। मुझे पता है हर सुबह जब सोकर उठते हैं तो महंगाई चार कदम आगे ही होती है। मरने के बाद मैं कम से कम तुम्हारी जेब को चूना लगाना नहीं चाहता। साथ में तुम्हारे आभार का मेहनताना भी।‘ बंदा खुश! यार ये कैसे दिन आ गए? अब तो समाज में अहसान के भी रेट मिलने लग गए। उस वक्त वे मुझे हद से ऊपरले व्यावहारिक लगे। भगवान मेरे सभी अपनों को ऐसी सद्बुद्धि दे।
और अपने क्रिया कर्म की प्री पेमेंट कर वे मर गए। अब उन्हें स्वर्ग भेजना था तो जरूरी था कि पंडे- पुजारियों को जमकर गालियां देते हुए मरवाया जाता। उनके मरने पर पंडे- पुजारियों को मैंने भी कब्जी करवा दी। ये बात दीगर है कि वे उम्र भर दो चपाती कम ही पेट से रहे। कोई बात नहीं यार! मेरे मेहनताने के पैसे कम हो जाएं तो हो जाएं, पर बंदा चौथे दिन स्वर्ग होना चाहिए बस। पंडों ने एक सौ एक फीसदी आश्वासन दिया तो मैं उनके ऋण से उऋण हुआ। बायगॉड! पहली बार मैं तब जिंदगी में किसी के प्रति वफादार हुआ। पता नहीं क्यों?
सच मानिए, पूरी ईमानदारी से घर से उनके स्वर्ग के सारे रास्ते ओके कर उनकी अस्थियां ले हरिद्वार पहुंचा कि स्वर्ग के आखिरी द्वार को भी उनके नाम कर दूं ताकि दुविधा की कोई गुंजाइश न रहे। मुझे वहां आते देख पता नहीं एकाएक पंडे कहां से गिद्धों की तरह उमड़ पड़े। लगा मुझे खा ही जाएंगे जैसे। सोच में पड़ गया ,यार मैं मार हुआ भैंसा तो नहीं? यार सरकार, झूठ क्यों बोलते हो कि देश में गिद्धों का अस्तित्व संकट में है। मुझसे पूछो तो सच ये है कि घर की देहरी से लेकर तीर्थों तक जनता गिद्धों की चपेट में है। यार भगवान !आप ही इनको थोड़ी सद्बुद्धि दे दो न। नहीं तो देखना एक दिन ऐसा आएगा कि तुम्हें पूछने यहां कोई नहीं आएगा। माना तीर्थ पर इंसान भेड़ हो जाता है पर भेड़ के बाल ही काटो, यार खाल तो न निकालो।
मैं उन गिद्धों से बचने के लिए हाथ पांव मारने लगा कि एक गिद्ध ने मुझे अपने पंजों में जकड़ ही लिया,‘ कहां से आए हो? किसको लाए हो? कब मरा?’
‘थोड़ी सांस लेने दोगे?’
‘ कमाल है यार! यहां लोग सांस छोड़ने की कामना लिए आते हैं और तुम हो कि सांस लेने की बात करते हो! घोर सांसारिक लगते हो। मरने के बाद पांच करोड़ गायत्री करवानी पड़ेगी। तब स्वर्ग का रास्ता क्लीयर होगा।‘
‘पर अभी तो....’ कह मैंने अपनी जेब पकड़ ली। ऐसा न हो कि जाने का किराया भी न छोड़ें। यहां आकर जेबकतरों से उतना नहीं डर लगा जितना रामनेमी धारण करने वालों से लग रहा था,‘मेरे आदरणीय हैं। उन्हें हरि की पौड़ी से स्वर्ग चढ़ाने आया हूं।’
‘ तो रास्ता हम बताते हैं। हम किस लिए हैं यार यहां!! हमारे खनदान के खानदान मर गए आत्माओं का स्वर्ग भेजते- भेजते।’
‘कितने लगेंगे?’
‘कितने साल का था?’
‘अस्सी। पर क्यों?’
‘यार इतना भी नहीं समझते! जवान को तो चार चार सीढ़ियां एक साथ चढ़ाई जा सकती हैं! तो जाहिर है मेहनत कम होगी । बाजार का फंडा है कि मेहनत कम होगी तो मेहनताना भी कम ही होगा। अब यह तो भारी काम है। इसको स्वर्ग भेजने का हजार से कम तो कोई भी नहीं लेगा। विश्वास नहीं तो बाजार में हाथ पांव मारकर देख लो।’ उसने कहा तो चार रूपये आलू में भी मोल भाव करने वाला अपनी पर उतर आया,‘ ज्यादा नहीं हैं क्या! कुछ कम कर दो तो भगवान तुम्हें भी स्वर्ग देगा।’
‘क्यों गाली देते हो! हम स्वर्ग चले गए तो स्वर्ग का रास्ता बताने वाला यहां कौन रहेगा? आत्माएं रहेंगी नरक में गलती सड़ती।’ उधर पोटली में कैद वे स्वर्ग जाने को बराबर बिन सांस लिए फड़ फड़ा रहे थे। मुझसे उनकी फड़ फड़ाहट और न देखी गई सो और मोल भाव बंद कर पोटली गिद्ध के हवाले कर दी। पोटली को बेदर्दी से खंगालते उसने उसमें से अस्थियां निकाल मेरे हाथ में दे दीं और खैनी सड़े दांतों के बीच संस्कृत छोड़ हिंदी घसियाने लगा,‘ हे भगवान! इस आदमी की आत्मा को मैं अपने मार्फत स्वर्ग भेज रहा हूं। मैं हरिद्धार का खानदानी स्वर्ग एजेंट हूं। इस आदमी को स्वर्ग में कहीं भी टिका देना हूं...तो क्या नाम है इसका..’
‘मुरारी लाल ।’
‘हां तो मुरारी लाल को मैं स्वर्ग की सीढ़ी पर रख रहा हूं। भगवान आगे आप देख लेना। हां तो रख दो इसकी अस्थियां स्वर्ग की सीढ़ी पर और कामना करो प्रेतात्मा को स्वर्ग मिले।’
‘पर मुझे तो कोई सीढ़ी नहीं दिख रही पंडित जी।’ मैंने ‘शंका जाहिर की तो वह लाला - पीला हो बोला,‘ पांच मिनट में तो घर की सीढ़ियां भी नहीं देख पाओगे सांसारिक! इसके लिए तो हमारी तरह हर बार यहीं जन्म लेना पड़ेगा तब ये सीढ़ियां दिखेंगी। तो लाओ मेरे फीस!’ उसने मेरे हाथ से उनकी अस्थियां छीन वहीं सीढ़ी पर डाल दीं, लो भगवान! स्वर्ग में तुम्हारे पास बंदा भेज रहा हूं। संभाल लेना। देखना, मेरी नाक न कटे।’ मैंने उसे हजार का नोट दिया तो वह उसे बार- बार देखता बोला,‘ असली है न!’
‘तीर्थ पर आकर पापा थोड़े बटोरूंगा पंडित जी। ’
‘ठीक है, ठीक है। रसीद तो नहीं चाहिए?’
‘क्यों?’
‘इसकी घरवाली को बतानी हो कि .....’
हे हिंदी के अस्तित्व के संकट का रोना रोने वालों नरक भीरूओ ! हम यहां नरक ही तो भोग रहे हैं। इससे बड़े नरक की कल्पना कर और क्यों मरते हो? अगर तुम्हारे पास रूमाल नहीं तो लो मेरा रूमाल और पांेछ डालो अपने मगरमच्छी आंसू। बंद कर दो हिंदी पखवाड़ों के नाम पर सरकारी बजट का दुरूपयोग करना। अब बेफिक्रे होकर मजे से हटा दो अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूलों से जो मिशन के नाम पर आपको अपनी चांदी बना रहे हैं। अपने आप लूंगी, फटी ‘शमीज में जिंदगी काट बच्चों को पैदा होते ही फालड़ुओं की जगह पेंट, शर्ट पहनाने वालों, बच्चों के साथ अपनी बोली और बेकार हिंदी की तरज पर अंग्रेजी बोलने वालों ये देखो, कल तक जो देवता संस्कृत के बिना दूसरी कोई और भाखा समझते ही नहीं थे, समझने की कोशिश करते ही नहीं थे, आज समय की नजाकत को देख वे भी हिंदी की ओर उन्मुख हो रहे हैं। उन्हें भी पता चल गया है कि हिंदी के बिना अब उनकी भी दाल- रोटी चलने वाली नहीं। हे हिंदी में पाठको की कमी का रोना रोने वाले प्रकाशकों! उठो! जागो!! आगे बढ़ो, देवलोक में पुस्तक मेले की तैयारी करो।
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अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड, सोलन-173212 हि.प्र.
वाह! वाह! गौतम जी!
जवाब देंहटाएंधर्म और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधों पर
आपकी चोट विलक्षण है....इसकी जितनी
तारीफ़ की जाय कम है।
बिना मरे स्वर्ग भी तो नही मिलता...
जवाब देंहटाएंसतीश कुमार चौहान भिलाई
satishkumarchouhan.blogspot.com
satishchouhanbhilaicg.blogspot.com
Gautam jee this is fact rather than byang. Some time I became serious and other time burst to laughter, while reading this one.
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