नन्दलाल भारती एम.ए.। समाजशास्त्र। एल.एल.बी.। आनर्स। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस ...
नन्दलाल भारती एम.ए.। समाजशास्त्र। एल.एल.बी.। आनर्स। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट लेखक | स्थायी पता- आजाद दीप, 15-एम-वीणानगर इंदौर।म.प्र.!-452010दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-9753081066 |
भारतीय महिलाओं में पुस्तक पढ़ने की आदत को बढ़ावा।
समाज की उन्नति शिक्षा के बिना सम्भव नहीं है,यदि भारतीय महिलाओं में पुस्तक पढ़ने की आदत में अभिवृद्धि हो जाये तो आसमान छूने वाला कथ्य सत्य हो जाये। ऐसा नहीं कि भारतीय महिलाओं का पुस्तकों से लगाव नहीं है, भारतीय महिलायें संस्कृति सभ्यता,परम्परा और साहित्य को हस्तान्तरित करती आ रही हैं। ग्रामीणांचलों की महिलाये भी शिक्षा के महत्व को समझने लगी हैं। एक जमाना था जब अधिकतर ग्रामीण महिलायें अशिक्षित हुआ करती थी तब भी वे तीज त्यौहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, वैवाहिक कार्यक्रमों एवं अन्य सुअवसरों पर गाये जाने वाले गीत कंठस्थ रखती थी , उनके सामने न पढ़ पाने का संकट था परन्तु आज ग्रामीण पढ़ने-लिखने के मामले में आगे निकल चुकी हैं। शहरी महिलायें तो पढाई लिखाई के मामले हो या अन्य मामले पुरूषों से तनिक भी पीछे नहीं है। ग्रामीण स्तर तक यह लहर पहुंचने में देर है परन्तु गर्व की बात है कि महिलाओं का पढाई की ओर आकर्षण बढ़ा है। परिणामस्वरूप महिलाये शिक्षा के क्ष्ोत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर उंची उड़ान भरने लगी हैं। इसका श्रेय शिक्षा के प्रसार और शासन की को तो जाता ही है साथ ही स्वयं सेवी संस्थायें में अहमृ किरदार निभा रही हैं। यह पहल आधी आबादी के लिये शुभ और सभ्य समाज के निर्माण में सहायक है। शासन के माध्यम से शिक्षा का बढ़ता प्रसार का नतीजा है कि आज लड़कियों को लड़के के बराबर शिक्षा दी जा रही है परन्तु खेद का विषय है कि स्कूली /कालेजों की शिक्षा पूरी होते ही पढ़ने की आदत में विराम लग जाता है। यह विराम मानसिक,सामाजिक,पारिवारिक और व्यावसायिक किसी भी दृष्टि से श्रेष्ठकर नहीं है। पुस्तक पढ़ने की आदत नैतिक, सांस्कृतिक, ज्ञानार्जन सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति की दृष्टि से उत्तम तो है साथ ही पढ़ने की आदत असुरक्षा भाव को दूर भगाती हैं, जीना सिखाती हैं, नकारात्मक सोच को सकारात्मकता के बसन्त का रंग देती हैं, सीखने और आगे बढ़ने की प्ररेणा देती हैं दूसरे शब्दों में कहा जाये तो पुस्तक पढ़ने की आदत सफल जीवन की कुंजी है। आधी आबादी में पुस्तक पढ़ने की आदत में अभिवृद्धि के लिये शासन,सामाजिक संगठन एवं स्वैच्छिक संगठन आगे आना होगा। एक शिक्षित महिला परिवार और समाज को दीक्षित करने का सामर्थ्य रखती ही हैं। प्रथम गुरू मां होती है। इसके बाद शिक्षक शिक्षा देते हैं। बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्य,संस्कार बड़ों का आदर-सम्मान,राष्ट्रीयता,देश-प्रेम, मानवता समानता,सदभावना का पाठ मां के माध्यम से बच्चों में आता है। मां में पुस्तक पढ़ने की आदत बनी रहता है तो निश्चित रूप में ये संस्कार बच्चों को परम्परागत् तरीके से हस्तान्तरित होते रहेगे तभी स्वामी विवेकानन्द के सपनों का भारत खड़ा हो सकता है। राष्ठ्र निर्माण,नैतिक शिक्षा,मानवीय मूल्यों,आध्यात्मिक शिक्षा एवं साहित्य को कालजयी बनाये रखने के लिये आधी आबादी को व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा वक्त निकाल कर पुस्तक पढ़ने में लगाना होगा। आज आधी आबादी दुनिया की पल-पल की खबरों से तो अनभिज्ञ नहीं है परन्तु खेदहै कि साहित्यिक पुस्तकों से दूरी बढी है जिसके परिणाम स्वरूप सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों टूटन का भूचाल आने लगा है। नैतिक मूल्यों में गिरावट देखी जा रही है। परम्परागत् लोककथायें, किस्से लोरियां सुनने को नहीं मिल रही है साहित्यिक पुस्तकों से दूरी बढ़ चुकी है और टीवी ने कब्जा कर लिया है। आजकल देखने की प्रवृति को बढ़ावा मिल रहा है चाहे वे अश्लीलता ही क्यो न हो। इसी आदत ने पढ़ने की आदत को धकिया दिया है जिसका नतीजा दुनिया के सामने है-बच्चे अनैतिकता की ओर अग्रसर होने लगे है,बूढे मां-बाप अनाथ आश्रमों का पता पूछते नजर आने लगे है।
वर्तमान समय के नैतिक-चारित्रिक पतन को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि आधी आबादी साहित्यिक पुस्तकों को सच्चा मित्र बनाये। कहावत ही नहीं सत्य भी तो है सुख के वक्त खुशियों की फुहार है,दुख और उदासी के पलों में रोती है और सान्तवना देती है किताबें। किताबें हमारे गम को कम करती हैं। एकान्त में होने पर किसी के होने का एहसास कराती है। सद्भावाना, शान्ति और प्यार बांटती है,बुराई से नफरत सीखाती हैं। जीने का जज्बा और तकलीफों से उबरने की ताकत है किताबें। किताबों की दुनिया बहुत अनूठी है। किताबें दुनिया के हर देश की सभ्यता संस्कृति ,रहन-सहन,जीवन संघर्ष,उत्थान-पतन सभी के जीवन्त दस्तावेज है किताबें। इन जीवन्त दस्तावेजों से तभी कुछ सीखा जा सकता है,जीवन में कुछ उतारा जा सकता है परन्तु किताबें पढ़ना होगा। यदि आधी आाबादी में पुस्तकें पढ़ने की आदत में अभिवृद्धि हो जाये तो देश के हर नागरिक में पुस्तकें पढ़ने की आदत घर कर सकती हैं। आधी आबादी को चाहिये कि वे पुस्तक पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिये निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिये।
- आधी आबादी को बतूनी वाली छवि में बदलावकर पढ़ने वाली छवि निर्मित करनी होगी। यह छवि खुद के विकास में तो सहायक होगी साथ घर-परिवार समाज और देश के लिये हितकर होगी।
- भारतीय महिलाओं को चाहिये कि साहित्य रचना काल खण्ड, ऐतिहासिक,सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक तथ्यों पर भी दृष्टिपात कर क्योंकि सभ्यता आचार-व्यवहार,संस्कृति सदाचार,आदर्श,नैतिक रिश्तेदारी-नातेदारी आदि तो कालखण्ड से हस्तानान्तरित होते है। यकीनन यह जिज्ञासा पुस्तक पढ़ने की आदत में बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होगी।
- महिलाओं को चाहिये कि वे एकाग्रचित होकर पुस्तके पढ़ें।
- साहित्य की विभिन्न विधाओं को भी समझे और अपने मन में उपजे विचार को कागज पर नोट करें। इन विचारों पर साथियों से विचार-विमर्श भी करें। यकीनन यह आदत साथियों के बीच अच्छी और नई धारणा विकसित करेगी परिणामस्वरूप लोकप्रियता में विस्तार होगा। यह लोकप्रियता आधी आबादी को पुस्तक पढ़ने के लिये उत्साहित करेगी।
- आधी आबादी को चाहिये कि वे ज्यादा से ज्यादा साहित्यिक पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानी एवं कविताओं की पुस्तकें पढ़ें क्योंकि ऐसी पुस्तकों पाठन ज्ञानवर्द्धन के साथ सामाजिक / पारिवारिक एवं निजी जीवन में उपयोगी सिद्ध होता है।
- भारतीय महिलाओं को चाहिये कि वे अन्य व्ययों में कोताही बरत कर साहित्यिक पुस्तकों का क्रय कर इन पुस्तकों को बैठक कक्ष में लघु पुस्तकालय का आकार दें। समय निकाल कर पढ़ें और दूसरी सखियों को उत्साहित करें, प्रेरणास्रोत बनें। इस कृति से पुस्तक पढ़ने की आदत को बढ़ावा मिलेगा ही विद्वता के विस्तार को बढ़ावा मिलेगा। यह नेक काम पूण्यार्जन में भी सहायक सिद्ध होगा।
- आधी आबादी को चाहिये कि वे महीने में कम से कम एक पुस्तक पढ़ने का लक्ष्य निर्धारित करें। पुस्तक पढ़ने के बाद दूसरे मित्र को पढ़ने को दें और मित्र की पढ़ी हुई से किताब लेकर खुद पढ़ें। इस तरह से पुस्तक आदान-प्रदान कर पढ़ने की प्रवृति से पुस्तक पढ़ने की आदत को बढ़ावा भी मिलेगा और खर्चा भी न्यूनतम हो जायेगा।
- आधी आबादी में विशेष प्रवृति होती है सखी / सहेली बनाने की और ये सहेलियां बैठक भी आयोजित करती है। इन बैठको में अन्य मुद्दों पर विचार विमर्श के साथ किताबों पर भी चर्चा शामिल करें तथा अधिक किताब पढ़ने वाली सहेली को सम्मनित करें।
- भारतीय परिवेश में तीज त्यौहार,सामाजिक,पारिवारिक एवं अन्य अनेक उत्सव आते हैं। इन उत्सवों में महिलाओं की विशेष भूमिकायें होती हैं। इन उत्सवों के मौके पर गिफ्ट आदि भी दिये जाते हैं। इन गिफ्टों के साथ किताबें भी उपहार स्वरूप दी जाये तो ये उपहार में प्राप्त पुस्तक पढ़ने की आदत में बढ़ावा देने में सहायक होगी। इससे पुस्तकों को उपहार में दिये जाने का प्रचलन भी बढेगा।
- महिलायें अपनी सहेलियों को जोड़कर सखी / सहेली पाठकवृन्द का रूप भी दे सकती हैं। इस वृन्द के माध्यम से कहानी / कविता पाठ आदि कार्यक्रमों का आयेाजन कर सकती हैं। इन कार्याक्रमों लेखकों / साहित्यिक संस्थाओं को भी भागीदार बना सकती हैं।
- समाचार पत्र /पत्रिकाओं में महिला उत्पीड़न,बाल-शोषण एवं अन्य मुद्दो पर खबर आती है जो सभ्य समाज के लिये घातक होती है। ऐसे मुद्दों पर महिलायें पत्र सम्पादक के नाम लिखकर अपनी जिम्मेदारी का एहसास करा सकती है इसे पढ़ने की आदत को बढ़ावा भी मिलेगा।
- बेचैनी और अनिश्चितता के वक्त भी किताबे साथ निभाती है, पुस्तकों को तभी आजमाया जा सकता है जब पढ़ने की आदत हो।
आधी आबादी खेत-खलिहान, दफतर-दुकान, ज्ञान-विज्ञान, जमीन-आसमान तक परचम फहरा रही है तो पुस्तकें पढ़ने में क्यों नहीं आगे निकल सकती है ? आधी आबादी को बस संकल्प लेने भर की देर है। इस संकल्प में साहित्य और समाज दोनों का हित निहित है। आधी आबादी को यह तो आभास हो ही गया है कि वर्तमान समय में साहित्य और समाज संकट से गुजर रहा है। समय का पुत्र कहा जाने वाला साहित्यकार उपेक्षित महसूस कर रहा है। साहित्यिक किताबों सभ्यता, परम्परा, संस्कार, बौद्धिकता की भण्डार और समय की दस्तावेज है उसी साहित्य से आज की पीढी मुंह मोड़ रही है। इस मुह मोड़ने का भयावह परिणाम चरित्रहीनता, नैतिकपतन और हिंसात्मक प्रवृति है। ऐसी मानवता विरोधी राक्षसी प्रवृतियों से आज की पीढी को उबारने के लिये भारतीय महिलाओं को आगे आना होगा। पुस्तक पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना होगा।
भूमण्लीयकरण और व्यावसायीकरण का यह वर्तमान समय पाश्चात्य की भेंट चढ़ रहा है परिणाम स्वरूप चारित्रिक एवं नैतिक पतन प्रारम्भ चुका है। ऐसे कठिन समय को भारतीय महिलायें खुद में पुस्तक पढ़ने की आदत विकसित कर भारतीय चारित्रिक,नैतिक ,ज्ञान एवं विश्व गुरू के स्वाभिमान को बचाकर नया कीर्तिमान रच सकती है। आधी आबादी पढ़ने की आदत को बढ़ावा देकर निर्मित कर सकती है- समतावादी,संस्कारवान, ज्ञानवान, राष्ट्रभक्त और खुशहाल भारतीय समाज जिसकी परिकल्पना स्वामी विवेकानन्द,डां.अम्बेडकर ने की थी। आधी आबादी में पुस्तक पढ़ने की आदत को बढ़ावा सम्मान से जोड़कर किया जाना चाहिये क्योंकि महिलाओं में पढ़ने की आदत की अभिवृद्धि से घर-परिवार,समाज और देश के दीक्षित होने की उम्मीद अधिक बढ़ जाती है।
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नाम- नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
शिक्षा - एम.ए.। समाजशास्त्र। एल.एल.बी.। आनर्स।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGDHRD)
जन्म स्थान- ग्राम-चौकी।ख्ौरा।पो.नरसिंहपुर जिला-आजमगढ।उ.प्र।
जन्मतिथि- 01.01.1963
प््राकाशित पुस्तकें
| उपन्यास-अमानत,एवं अन्य प्रतिनिधि पुस्तके।
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सम्मान | विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान,भोपल,म.प्र., विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण,इलाहाबाद।उ.प्र.। ल्ोखक मित्र।मानद उपाधि।देहरादून।उत्तराखण्ड। भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत। डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली, काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र, ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर।म.प्र.। डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विश्ोष समाज सेवा,इंदौर विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.। कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर।राज.। साहित्यकला रत्न।मानद उपाधि। कुशीनगर।उ.प्र.। साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.। सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली।उ.प्र.।एवं अन्य | |||||||
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण।कहानी, लघु कहानी,कविताौर आलेखों का देश के समाचार पत्रो/पत्रिकओंमें एवं www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com | ||||||||
आजीवन सदस्य | इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा। नई दिल्ली | |||||||
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ.प्र.। | ||||||||
हिन्दी परिवार,इंदौर।मध्य प्रदेश। | ||||||||
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून।उत्तराखण्ड। | ||||||||
साहित्य जनमंच,गाजियाबाद।उ.प्र.। एवं अन्य | ||||||||
मध्य प्रदेश लेखक संघ,म.प्र.भोपाल | ||||||||
अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास,ग्वालियर।म.प्र.। | ||||||||
स्थायी पता | आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर।म.प्र.। दूरभाष-0731-4057553 चलितवार्ता-09753081066 |
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विश्ोष-चांदी की हंसुली।उपन्यास। का जनप्रवाह।साप्ता।द्वारा धारावाहिक प्रकाशन जारी।
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