बच्चों के लिए : दो गीध (१) जटायु सम्पाती नामके दो भाई गीध थे रहते । सूरज के वो पास जा पहुँचे एक दिन उड़ते-उ...
बच्चों के लिए : दो गीध
(१)
जटायु सम्पाती नामके
दो भाई गीध थे रहते ।
सूरज के वो पास जा पहुँचे
एक दिन उड़ते-उड़ते ।।
जटायु तो वापस लौट पड़ा
जलने से बचते-बचते ।
सम्पाती न लौटा तो
गिरा बहुत तड़फते ।।
(२)
साथ दोनों का छूट गया
करते तो क्या करते ।
साधू ने सम्पाती को समझाया
अब क्यों हो तुम रोते ।
पंख तुम्हारा जामेंगा
बानर दल से मिलते ।
जब से छूटा साथ
जटायु पंचवटी में रहते ।।
(३)
राम-लखन-सीता
जब पंचवटी में आये ।
जटायु राह में बैठे थे
अपना पंख फुलाए ।।
रामजी ने प्रणाम किया
नाम पता बतलाये ।
दशरथ जी का नाम सुना
तो जटायु अति हर्षाये ।।
(४)
धन्य हुआ मैं देख तुम्हे
थे दशरथ मित्र हमारे ।
रामजी बोले मित्र पिता के
पिता तुल्य हमारे ।।
जटायु ने फिर कहा
बसो अब गोदावरी किनारे ।
देख-रेख मैं रक्खूँगा
मैं हूँ साथ तुम्हारे ।।
(५)
पंचवटी में रावण एकदिन
साधू बनकर आया ।
कुटिया के वो पास में आके
भीख की टेर लगाया ।।
भिक्षा देने सिया जब आयीं
अपना रूप दिखाया ।
राम-लखन थे वहाँ नहीं
रथ पे झट बैठाया ।।
सीताजी रोयें चिल्लाएं
कोई पास न आया ।
जटायु ने जब सुना तो
बड़े वेग से धाया ।।
(६)
रावण कोई बात न माने
लेकिन बहु समझाया ।
रावण से पुनि किया लड़ाई
लेकिन जीत न पाया ।।
खड्ग से अपने पंख काटके
रावण उन्हें गिराया ।
सीता को रावण लेजाके
वन अशोक ठहराया ।।
(७)
पीड़ा में ही सोचें जटायु
कुछ भी न कर पाए ।
रावण तो ले गया सिया को
उसको रोक न पाए ।।
प्राण पयान करनेवाले
बिन सीता हाल बताये ।
राम-राम रटि गीध जटायु
सोच यही अकुलायें ।।
(८)
राम-लखन ने आके देखा
सूनी कुटिया पाए ।
सिया को खोजत दोनों भाई
इसी ओर को आये ।।
सुनि निज नाम पुकारत कोई
सिया की याद भुलाये ।
गीधराज ढिंग राम दयामय
सोच विमोचन आये ।।
(९)
घायल जटायु गोद राखि प्रभु
नयनन नीर बहाए ।
गीध जटायु को लक्ष्मणजी
पानी लाके पिलाये ।।
रामजी बोले रखो तात तन
नाथ ! न अवसर आये ।
रावण लेकर गया सिया को
उसको रोक न पाए ।।
सिया सुधि कहकर
गीध जटायु प्रभु के धाम सिधाए ।
क्रिया किए निज कर रघुनायक
जलजनयन जल लाये ।।
(१०)
गीध जटायु ने हम सबको
परहित करना सिखलाये ।
बिना स्वार्थ के लेकिन मानव
कभी काम न आये ।।
गीध जटायु ने परहित में
अपने प्राण गवांये ।
याते ही वो सबसे उत्तम
सुर दुर्लभ गति पाए ।।
(११)
सिया को खोजत आगे प्रभुजी
पम्पा सर तट आये ।
अनुज सहित करके विश्राम
निर्मल जल में नहाए ।।
आगे चलकर ऋष्यमूक गिर
राम-लखन नियराये ।
सुग्रीवादि सब रहते जिस पर
बानर बालि सताए ।।
(१२)
सुग्रीव ने भेजा हनूमानजी
भेद जानने आये ।
भेद के बदले उन्हें ही लाके
गाढ़ी प्रीति कराए ।।
सुग्रीव दशा सुनि राम प्रभू
उनको कपिराज बनाये ।
सीता खोजन बानर-भालू
बहु कपिराज पठाए ।।
(१३)
सिया को खोजत बानर-भालू
समुन्द्र किनारे आये ।
बहु दिन बीते खोजत-खोजत
सीता सुधि नहि पाए ।।
सागर तट पर बैठ सभी
सोच यही पछितायें ।
पास वहीं गिर खोह सम्पाती
थे निज बास बनाये ।।
(१४)
बानर-भालू की सुनि बातें
खोह से बाहर आये ।
देख अनेकों बानर-भालू
अतिसय वो हर्षाये ।।
पंख नहीं है पास हमारे
याते न उड़ पायें ।
भूंखे ही दिन-रात बिताऊँ
कबहुँ न पेट अघाए ।।
मेरे हित सब बानर-भालू
आये ईश पठाए ।
एकहि बार मिले बहु बानर
भूंख मिटे अब खाए ।।
(१५)
सम्पाती की बातें सुनकर
बानर -भालू भय खाए ।
लेकिन अंगद धरि धीरज
जटायु हाल सुनाये ।।
नाम जटायु का सुनते ही
बोले डर न आये ।
जबसे बिछुड़े दोनों भाई
खबर आज ही पाए ।।
(१६)
जटायु-मरण सुना तो
सम्पाती नयन जल छाये ।
सोचा परहित में भाई ने
अपने प्राण गवांये ।।
तात सरिस किए रामजी क्रिया
यह सुनिके पुलकाए ।
करुना-दया, सुख, शील के सागर
कहि राम के गुन को पाए ।।
(१७)
बानर मदद से गीध सम्पाती
सागर जल तक आये ।
तिलांजलि दिया जटायु को
अपना धर्म निभाए ।।
बानर-भालू को सम्पाती
अपनी कथा सुनाये ।
बोले देखो तुमसे मिलकर
पंख हमारे आये ।।
(18)
बूढ़ा हूँ मैं बहुत
इसीसे मदद नहीं हो पाए ।
फिर भी मैं हो सकता हूँ
कुछ तो बचन सहाए । ।
सागर पार है लंका नगरी
राक्षस गण तंह छाये ।
रावण राक्षस बड़ा प्रतापी
सीताजी को छुपाये । ।
(१९)
गीध देखते बहुत दूर तक
सबको नहीं दिखाए ।
वन अशोक में बैंठी सीता
देख के वो बतलाये । ।
राम कृपा से देखो मेरे
जले पंख उग आये ।
रामदूत होकर भी भाई
काहे मन कदराए । ।
(२०)
लाँघे जो शत योजन सागर
सीता सुधि वो पाए ।
साहस करके उद्योग करो
सबको वो समझाये । ।
ढाढ़स देकर गीध सम्पाती
वहां से उड़कर आये ।
जितना वो कर सकते थे
देखो कर दिखलाये । ।
(२१)
साधु-सुजन , सदग्रंथ सभी
परहित को धर्म बताये ।
सबसे होता पाप बड़ा
परपीड़ा जीव सताये । ।
अहं-स्वार्थ के चलते मानव
करता जो भी भाए ।
फिरते हैं बहु लोग यहाँ
परपीड़ा शौक बनाये । ।
मानव अब कुछ भी न माने
दिन-दिन मति पथराये ।
जटायु-सम्पाती गीध भी होकर
सबको राह दिखाए । ।
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(डॉ. एस. के . पाण्डेय रचित ' श्रीराम कथावली: बाल रामायण' से अंशतः परिवर्तित संक्षिप्त अंश )
डॉ एस के पाण्डेय,
समशापुर (उ. प्र.) ।
अच्छी कविता , पौराणिक भी है जो हमें इपने इतिहास से जोड़ेगी , ऐसी बाल कविता कम ही सुनने या देखने को मिलती है ,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग -http://www.madhavrai.blogspot.com/
पापा का ब्लॉग
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सार्थक बाल कविता.
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