शरद तैलंग का व्यंग्य – देश प्रगति कर रहा है

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मुझे बहुत दिनों बाद ये बात महसूस हुई कि अपना देश प्रगति कर रहा है। वैसे सुनता तो एक लम्बे समय से आ रहा था कि देश प्रगति कर रहा है परन्तु ज...

मुझे बहुत दिनों बाद ये बात महसूस हुई कि अपना देश प्रगति कर रहा है। वैसे सुनता तो एक लम्बे समय से आ रहा था कि देश प्रगति कर रहा है परन्तु जब भी घर से बाहर क़दम रखता टूटी हुई सड़क और उसमें जगह जगह गन्दगी के ढेर देख कर विश्वास नहीं होता था कि वाकई ऐसा हो रहा है किन्तु अभी कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि ऐसा हो रहा है। हुआ यूं कि एक दिन अचानक कुछ लोग एक ट्रक में आए और उसमें रखॆ हुए बिजली के खम्बे हमारे घर के सामने की सड़क पर जगह जगह उतारने लगे। बिजली के खम्बे पहले भी सड़क पर लगे हुए थे पर उनमें बिजली नहीं जलती थी वे महज सीमेन्ट के ही खम्बे थे। पूछने पर मालूम हुआ कि यहाँ की सड़क को चौड़ा किया जाएगा इस लिए अभी जिस जगह खम्बे लगे हुए है उन्हें हटाकर कुछ और पीछे सड़क के किनारे लगाया जाएगा जिससे सड़क चौडी़ हो जाएगी। मैं उनके सड़क चौड़ा करने के इस महत्वपूर्ण तरीके पर उनकी बुद्धिमत्ता का कायल हो गया। सोचने लगा यदि बिजली के खम्बों को हटाए बिना ही सड़क चौड़ी कर देते तो लोग नाहक ही इस बात से कन्फ़्यूज़ हो जाते कि उन्हें खम्बे के आगे से निकलना है या पीछे से। वाह ! भई, क्या सोच है।

कुछ दिन फिर कोई हलचल नहीं हुई मुझे लगा कि देश की प्रगति में कुछ रुकावट आ गई है किन्तु नहीं साहब ! कुछ दिन बाद फिर लोग आए और सड़क के किनारे गड्ढे कर गए। वैसे भी सड़क पर पहले से ही इतने गड्ढे थे कि खम्बे कहीं भी लगा सकते थे पर उससे सड़क चौड़ी कहाँ होती ? देश की प्रगति तो सड़क के किनारे पर गड्ढे कर के उनमें बिजली के खम्बे लगा कर सड़क चौड़ी करने में ही निहित थी। आज लेकिन एक बड़ा महत्वपूर्ण कार्य हुआ था। कामगारों के इस प्रकृति को कि एक बार में एक ही तरह का कार्य करेंगे जैसे जिस दिन खम्बे हटाने हैं तो उस दिन खम्बे ही हटाएंगे, जिस दिन गड्ढे करना है तो सिर्फ़ गड्ढे ही करेंगे में एक विशेष संशोधन किया गया था, आज गड्डों के साथ ही साथ खम्बे भी लगाए जा रहे थे। शाम तक सड़क पर खम्बे ही खम्बे दिखाई दे रहे थे। कुछ पुराने और कुछ नए। फिर कुछ दिनों का अन्तराल आ गया जैसे किसी टीवी धारावाहिक में थोड़ी थोड़ी देर में ब्रेक आ जाता है। इसके बाद कई एपीसोड तक घरों की बिजली घन्टों तक बन्द करके पुराने खम्बों से तार ह्टाए गए उन्हें नए खम्बों में लगाया गया फिर बिजली बन्द करके पुराने खम्बों से लाईटें निकाली गईं उन्हें नए खम्बों में लगाया गया, फिर पुराने खम्बे हटाए गए, उन्हें सड़क पर ही पटक दिया गया, फिर मुझ से चाय पिलाने की फ़रमाइश की गई उससे पूर्व ठण्डा पानी मांगा गया तथा ज़माना खराब है जैसे चालू वाक्यों को बोलकर देश की प्रगति की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा कर उन्होंने अपने अपने क़दम आगे बढ़ा दिए।

अब देखने से लगने लगा था कि सड़क चौड़ी हो गई है और उसकी सीमा बिजली के खम्बों तक मानी जा सकती थी लेकिन उस चौड़ाई को सड़क कहना मुनासिब नहीं था क्योंकि सड़क की जगह तो गड्ढों वाला स्थान था सड़क तो अब बननी शुरु होनी थी और न जाने कब बननी शुरु होनी थी क्योंकि जो बिजली वाले हैं वे सड़क नहीं बना सकते थे और जो सड़क बनाने वाले है वे बिजली के खम्बों के चक्कर में आते नहीं थे। हम लोग इन्तज़ार कर रहे थे कि कब शाम हो और नए खम्बों पर लगाई गईं लाइटें हमारे घर को रोशन करें। शाम होने का इन्तज़ार हमें ज़्यादा देर तक नहीं करना पड़ा इसका मतलब यह नहीं कि उस दिन शाम जल्दी ही हो गईं थी वरन जब खम्बे लगाने का कार्य पूरा हुआ तब तक तो शाम होनी ही थी। कामगारों का सबसे प्रमुख कार्य यही होता है कि वे शाम होने का इन्तज़ार करें जिससे वे अपना काम बन्द कर के घर जा सकें या उनका कार्य ही तब समाप्त हो्ता है जब शाम हो जाए।

शाम का अंधेरा होते ही हमारी नज़रें जो बहुत देर से बिजली के खम्बों की लाइटों पर टिकी थीं धीरे धीरे चेहरे पर अनेक तरह के रसों के भाव प्रकट करते हुए नीचे झुकतीं चलीं गईं क्योंकि लाइटों ने उस दिन हड़ताल कर दी थी और उनके बल्ब गाए जा रहे थे कि ’ मैं तो आशिक हूँ रात की स्याही का’। लाईटें उस रात नहीं जलीं। दूसरे दिन मेरे मोहल्ले के लोग मेरे पास आए वे कुछ गलतफ़हमी या किसी षड्यंत्र के कारण मुझे बुद्धिजीवी समझते थे तथा यह भी समझते थे कि किसी भी परेशानी की शिकायत उस शिकायत से सम्बन्धित महकमे में करना एक बुद्धिजीवी का ही काम होता है। जाहिर है उन लोगों ने मुझे इस कार्य के लिए बिलकुल उपयुक्त समझा था कि मैं लाइटें न जलने की शिकायत करके आउँ। मैं नगर निगम के कार्यालय में पहुंचा। उन्होंने हाथ खडे़ कर दिए हाथों का ये फ़ायदा है कि उनसे अनेक कार्य लिए जा सकते हैं जैसे हाथ जोड़ना, हाथ खड़े करना, हाथ चलाना, हाथ पसारना, हाथ बांटना, हाथ मारना, हाथ फैलाना आदि। वे बोले यह कार्य तो आजकल हम नहीं नगर विकास न्यास वाले करवा रहे हैं आप उनके कार्यालय में सक्सेना जी से बात कीजिए। नगर विकास न्यास के कार्यालय की हालत देखकर लगता था कि नगर से पहले उन्हें खुद के कार्यालय के विकास की अत्यधिक आवश्यकता थी। "सक्सेना जी का तो दो महीने पहले तबादला हो गया आप क्या वार्ड पार्षद हैं" ? मैंने कहा ’नहीं’।’फिर आप शिकायत लेकर कैसे आए है’ ? वहाँ पर बैठे हुए एक सज्जन ने पूछा। ’वैसे ही मैं उस मुहल्ले का एक जागरूक नागरिक हूँ इसलिए आया हूँ"। लगता है आपने भी टीवी पर ’जागो ग्राहक जागो’ वाला विज्ञापन देख लिया है " आप मिश्राजी से बात कर लीजिए वे तो आए नहीं लेकिन उनका मोबाइल नम्बर ले लीजिए। मिश्रा जी से मेरी बात हुई मैंने उन्हें अपने मोहल्ले की तकलीफ़ बताई। वे बोले ये सारा कार्य हमने ठेके पर दिया हुआ है उसके लिए तो ठेकेदार से मिलना पड़ेगा। ’देश की प्रगति में ठेकेदार की भूमिका’ विषय सम्मुख आते ही मेरी आँखों के सामने एक लम्बा सा निबन्ध घूमने लगा। मुझे लगा बात इतनी आसान नहीं है क्योंकि जहाँ पर ठेकेदार है वहाँ उससे सम्बन्धित उस राग को गाने वाले मंत्री से लेकर अफ़सर, बाबू, चपरासी बहुत से लोग होंगे, ठेकेदार तो सिर्फ ठेका लगाने के लिए ही होगा। मुझे यह जानकर संतोष हुआ कि जब सड़क चौड़ी करने के मामले में ही इतने सारे लोग संलग्न हैं तब तो देश की प्रगति में जाने कितने लोग लगे होंगे तभी तो मुझे महसूस रहा है कि देश प्रगति कर रहा है।

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शरद तैलंग

२४० माला रोड (हाट रोड़)

कोटा जं. ३२४००२ राजस्थान

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. देश की प्रगति का मामला है भाई ., सो.... मो कमेन्ट ...

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रचनाकार: शरद तैलंग का व्यंग्य – देश प्रगति कर रहा है
शरद तैलंग का व्यंग्य – देश प्रगति कर रहा है
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