सच्ची को, नौकरी तो साली बाप की भी बुरी होती है। और ये ठहरी सरकार की जो चौथे रोज बदली होती है । सरकार की भी काहे की, उनकी। आज की डेट में ...
सच्ची को, नौकरी तो साली बाप की भी बुरी होती है। और ये ठहरी सरकार की जो चौथे रोज बदली होती है । सरकार की भी काहे की, उनकी। आज की डेट में सरकारी मुलाजिम जनता के नौकर नहीं, आकाओं के नौकर हैं। जनता जाए भाड़ में साहब! जनता के पास है ही क्या देने को? वह तो खुद दाने- दाने को मोहताज है। अब तो बस उनके जो भी आदेश, सिर माथे। टके- टके के आगे सिर झुकाना पड़ता है। शुरू शुरू में बुरा लगा। अब आदत हो गई है। स्कूल में कभी ये आ रहा है तो कभी तो वो। अपना तो हे खुदा ,मरना भी उनके हाथ है तो जीना भी ।
अबके उनको पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने अपने विभाग से आदेश जारी करवा दिए कि सरकार चाहती है कि हर शहर के बालिग, नाबालिग कुत्तों का पंजीकरण किया जाए ताकि सरकार को पता चले सके कि देश में कितने कुत्ते अवैध रूप से रह रहे हैं।
मैं ठहरा घैंठ स्कूल मास्टर! सच कहूं! मैं सरकार के सारे काम करता हूं पर बच्चों को पढ़ता नहीं। पढ़ाऊं तो तब जो मौका मिले। जनगणना हो तो मास्टर जी सबसे आगे। चुनाव हो तो मास्टर जी के बगैर मजाल जो चुनाव पूरे हो जाएं। वोटर लिस्ट बननी हो तो चलो मास्टर जी। वे आने हों तो लाओ मास्टर जी बच्चों को इकट्ठा करके। देश में गधे गिनने हों तो चलो मास्टर जी उठाओ झोला और हो लो फील्ड में। देश में उल्लू गिनने हो तो चलो मास्टर जी, हो जाओ आगे। कई बार तो लगता है मैं पेशे से बस मास्टर नहीं हूं और सबकुछ हूं।
इधर उन्होंने चाहा उधर सभी ने अबके फिर हट फिर कर मास्टर जी के सिर आदेश दे मारे। अब मैं आगे आदेश कहां करता? इस देष के साथ सबसे बड़ा पंगा यही है कि आदेशों को मानना उसी की मजबूरी होती है जो उन्हें औरों पर मढ़ने में असमर्थ हो।
सबके प्रकोप से बचने लिए मैं निकल पड़ा शहर के कुत्तों का पंजीकरण करने के लिए आवेदन पत्रों को झोले में डाल। पत्नी ने हिदायत दी,‘संभल कर कुत्तों का पंजीकरण करना। उनसे भिड़ना मत। तुम्हारे साथ एक यह भी पंगा है कि खुद को बुद्धिजीवी मान हर कहीं भिड़ जाते हो। जबकि सच यह है कि तुममे बुद्धि नाम का कोई तत्व है ही नहीं। अगर होता तो मास्टर न होते।' अगर मैं लेखक- वेखक होता तो सच कहूं आज को कभी का तुलसीदास हो गया होता।
पत्नी की हिदायतों को गांठ में बांध बंदा चला पड़ा सरकारी मिशन पर। पेसोपेश में था कि शुरूआत कहां से करूं? कुत्ते आज की डेट में कहां नहीं? एक घर की सांकल ठनकाओ तो बीस भौंकते हुए बाहर आएंगे। पड़ोसी के घर से शुरू करने की सोची , पर डर लगा। शुरू में ही काट खाया तो??? ये घर लास्ट के लिए रखता हूं।
मुश्किल से बीस कदम ही घर से चला था कि सामने से भाई की तरह अकड़ाता कुत्ता आता दिखा तो मैं डरा। क्या हट्टा कट्टा कुत्ता साहब! जनता तो उसके आगे कुछ भी नहीं साहब! मैंने उसे पूरी विनम्रता से दोनों हाथ जोड़ उसका अभिवादन किया तो वह चौड़ा होते बोला, ‘कौन?'
‘मैं संपत लाल,राजकीय प्राइमरी स्कूल का इकलौता मास्टर सर!'
‘तो यहां क्या कर रहे हो? बच्चों को स्कूल में खिचड़ी कौन बनाएगा?'
‘वे अब खुद बनाने लगे हैं। मुझे तो उससे जरूरी काम सौंपा है सरकार ने।'
‘क्या काम सौंपा है ,' कह वह वो लाल पीला हुआ कि मेरी तो हलक सूख गई,‘ सरकार ने चाहा है कि देश के कुत्तों का पंजीकरण किया जाए ताकि सही-सही पता चल सके कि देश में अपने कुत्तों की संख्या कितनी है। सो उस बारे... अगर आप के पास फुर्सत हो तो....' मैंने डरते डरते बैग में फार्म के लिए हाथ डाला।
‘ ये सरकार भी पता नहीं क्या- क्या करती रहती है। देष में कुत्ते ही कुत्ते तो हैं। मैं तो कहता हूं कि पंजीकरण करना है तो इंसानों का करो। बजट भी बचेगा और काम भी जल्दी होगा। पर इनको कौन समझाए? जब हम सत्ता में आएंगे तो देखेंगे,' कह वह गुर्राया तो मेरे हाथ पांव फूले।
‘आप भी सत्ता में आ सकते हैं क्या?'
‘लोकतंत्र है। यहां कोई भी आ सकता है। देख नहीं रहे हो? यार मास्टर होकर भी आंखें बंद रखते हो।'
‘ पर अभी तो उनका नौकर हूं। जब आप आएंगे तो आपको ढो लूंगा। सो प्लीज, मेरी हेल्प कीजिए।' पता नहीं कैसे वह एक सरकारी कर्मचारी की मजबूरी को भांप गया सो सहयोग देने के लिए राजी हो गया,‘ कहो? क्या करना है मुझे ?' मेरी जान में जान आई, मैंने झोले से फार्म निकाला और उसे भरना षुरू किया,‘ सर आपका नाम?'
‘कुत्तों का कोई नाम नहीं होता। वे हर हाल में कुत्ते होते हैं बस।'
‘पर कागज में कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा', मैंने बहुत आग्रह किया तो वह अपना नाम बताने को राजी हुआ,‘ लिख दो- ए बी सी लाल।'
‘आप सर रहते कहां हैं?'
‘यत्र तत्र सर्वत्र हम ही तो हैं।' कह वह खुजलाने लगा।
‘सर प्लीज कुछ तो पता दो।'
‘तो लिख दो गुंडा नगर , गली नंबर चार सौ बीस।'
‘ आपकी डेट ऑफ बर्थ?'
‘ जिस दिन समाज बना हम उसी दिन पैदा हो गए थे। बट फार यूअर ब्लाइंड इनफारमेशन, हम पैदा होने, मरने से ऊपर उठे होते हैं। हम अजर हैं, अमर हैं। हमारी कोई डेट ऑफ बर्थ नहीं होती।'कह उसने एक बार जो सिर ऊंचा करना षुरू किया तो ऊंचा करता ही चला गया। घमंडी कहीं का!
‘पर सर कालम है तो कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न!'
‘तो लिख दो इस देश में हम आजादी के बाद पैदा होने षुरू हो गए थे।'
‘आपके परिवार में और कौन- कौन हैं सर?'
‘पूरा ब्रह्माण्ड ही मेरा परिवार है।'
‘अर्थात्?'
‘ ब्रह्माण्डैव कुटुंबकम्। और कुछ ? जल्दी जल्दी पूछो जो पूछना है। अब मेरा मन काटने को कर रहा है। कह उसने जीभ लपलपाई तो मैं अलर्ट हुआ,' बस सर! बहुत हुआ। मुझे कोआपरेट करने के लिए आपका बहुत- बहुत आभार।' कुत्ते के काटने के इंजेक्शन के साइज की याद आते ही मेरे रोंगटे खड़े होने लगे।
काश! ये पेट न होता!!
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डॉ. अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड, सोलन-173212 हि.प्र.
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