अशोक गौतम का व्‍यंग्‍य - तो सच बोले तुलसीदास?

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  हार्दिक प्रसन्‍नता है कि मेरे मुहल्‍ले के जितने भी अपने को गर्व से देशभक्त कहने वाले पढ़े लिखे या अनपढ़, बालिग या नाबालिग हैं सभी यथा...

 

ashok gautam

हार्दिक प्रसन्‍नता है कि मेरे मुहल्‍ले के जितने भी अपने को गर्व से देशभक्त कहने वाले पढ़े लिखे या अनपढ़, बालिग या नाबालिग हैं सभी यथाशक्ति, यथायोग्‍य जहां जिसका दाव लग रहा है वहां अपना- अपना हाथ साफ करने में पूरी ईमानदारी से जुटे हैं। उनकी ही तरह मैं भी हाथ साफ करने के फन में माहिर हूं। असल में यह हाथ साफ करने की कला मैंने यहां को आते- आते रास्‍ते में ही सीख ली थी। बच्‍चा था तो घर में बाप की जेब पर हाथ साफ कर लिया करता था। स्‍कूल जाने लायक हुआ तो अपने साथियों की किताबों पर हाथ साफ करने लगा। बोर्ड की परीक्षाएं दी तो नकल पर हाथ साफ कर आगे हो लिया।

हाथ साफ कर ही मैंने हाथ साफ करने में पीएच.डी की उपाधि प्राप्‍त की और अपने नाम के आगे अपने नाम से बड़़ा डॉक्‍टर उकरवा लिया।

आज की डेट में मैं हाथ साफ करने का इतना आदि हो गया हूं कि जिस रोज कहीं न कहीं हाथ साफ न कर लूं, रात को सो ही नहीं पाता। सारी रात बुरे बुरे सपने आते रहते हैं। मेरी पत्‍नी ने मेरी इस बीमारी को देख मुझे साफ हिदायत दे दी है कि अगर पूरे दिन भर मुझे हाथ साफ करने को कहीं मौका न मिले तो शाम को अपने घर में हाथ साफ कर लिया करूं ,क्‍योंकि अब उससे सारी- सारी रात मेरा यह जागते रहना बरदाश्त नहीं होता।

एक उच्‍चकोटि का बुद्धिजीवी और बॉलपेनजीवी होने के नाते मैं कालिदास से लेकर आज के ताजा टटके लेखक की रचनाओं पर मजे से हाथ साफ कर चुका हूं। और हमामों की तरह लेखन के हमाम में भी आज सभी नंगे हैं। हमाम में गोते लगाते हुए जो जिसके हाथ आ गया अपने नाम से छपवा मारा। क्‍या है न कि अपने देष में आज हमाम बाद में बनता है और बंदे पहले ही अपने कपड़े उतार हमाम में कूदने के लिए एडवांस बुकिंग करवाए खड़े रहते हैं। हमाम में कूदने के लिए बहुत मारो मारी हो गई है साहब! सरकार को जनहित में चाहिए कि वह देश में बचे खुचे निर्माण के सारे कार्य बंद कर केवल हमामों के निर्माण पर खुद को केंद्रित करे।

पर मेरा नेचर है कि मैं अकसर दिवंगत हो चुके लेखकों पर ही अधिकतर हाथ साफ करता हूं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह रहता है कि लेखक की ओर से सीधे तौर पर कोई आपत्‍ति नहीं होती। हां, घुप्‍प रात को सपने में आकर वे नाराजगी जरूर दर्शाते हैं, तो दर्शाते रहें। मैं भी उन्‍हें साफ कह देता हूं,‘भैया अब तो छोड़ो ये रचना मोह का लफड़ा! अपने आप लिख कर भूखे ही मरे तो मुझे तो अपने लिखे को अपने नाम से छपवा खाने दो। लेखक योनि से मुक्‍ति मिलेगी। भला करो ,भला होगा। नहीं तो जब तक ये सृष्टि रहेगी, रायल्‍टी के लिए प्रकाषकों के यहां ही पड़े रहोगे। ' मेरी धमकी का उन पर असर ये होता है कि वे अपना रोष दर्ज करवाने फिर नहीं आते।

कल एक संस्‍था का फोन आया था। कह रहे थे मुझे साहित्‍यिक योगदान के लिए सम्‍मानित करना चाहते हैं। उस वक्‍त मैं मुक्‍तिबोध पर हाथ साफ कर रहा था। पता नहीं कैसे उन्‍हें अपनी रचना पर हाथ साफ करने की भनक लग गई। वे सामने अपने ट्रंक पर बैठे बीड़ी सुलगाए विरोध करने की कुचेष्टा कर रहे थे, खंसियाते हुए। उनकी खांसी थी कि रूकने का नाम नहीं ले रही थी तो मैंने उन्‍हें गुस्‍साते हुए कहा,‘ भाई साहब! क्‍या आप जरा परे जाकर नहीं खांस सकते? मेरी तल्‍लीनता भंग हो रही है।'

‘पर हे परमादरणीय नए कला बोध के लेखक! आप जिस रचना पर हाथ साफ कर रहे हो वह मेरी कविता है।' कह वे और खांसे।

‘तो क्‍या हो गया!! मैंने तो आजतक किसी न किसी की रचना पर ही हाथ साफ किया है। नए लेखक के पास आज अपने तो विचार है ही नहीं जिससे कि कोई मौलिक रचना लिख सकूं। उसके पास किसी और चीज का संकट हो या न हो पर विचारों का संकट बहुत है। बाकी तो आज वह चांदी बटोर रहा है।'

‘यह लेखक कर्म के बिलकुल विरूद्ध है। ऐसे लेखक को मुक्‍ति नहीं मिलती।'

‘सुन रे मुक्‍तिबोध! आज का लेखक मुक्‍ति चाहता भी नहीं। ये लो बीड़ी का बंडल और दफा हो जाओ यहां से! वरना अपने चेलों से धक्‍के मार मारकर बाहर करवा दूंगा। मेरे पास अपने दल में पांच सौ चेले हैं और मैं साहित्‍य का महामंडलेश्वर! पता नहीं कहां कहां से चले आते हैं। अरे भैया मर गए! अब तो चैन से बैठो यार! जिंदा जी तो मर गए प्रकाशकों की गलियों के शोहदों की तरह चक्‍कर काटते काटते। अब तो आराम करो जो भगवान ने आराम करने का मौका दिया ही है तो।'

वे बार बार फोन पर कह रहे थे कि हम आपको सम्‍मानित कर अपने आपको गौरवान्‍वित करना चाहते हैं। आखिर मैंने उस संस्‍था का मान रखने के लिए उनसे पूछा,‘ सम्‍मान में क्‍या कर रहे हो?'

‘जो आप चाहेंगे! नई नई संस्‍था है । पता चला है कि दिन रात चुराने के बाद भी आपको किसी संस्‍था ने अभी तक सम्‍मानित नहीं किया है। हम भी जरा हिंदी के कल्‍याणार्थ संस्‍थाओं के अखाड़े में आ सरकारी अनुदान खाना चाहते हैं सो अगर आपकी कृपा हो तो... बड़े नामों के मंथन के बाद आपके नाम पर बात फाइलन हुई। देखिए अब न मत कीजिएगा प्‍लीज! ' संस्‍था के आयोजक ने कहा तो मैं फूला पर फिर एकदम अपने को काबू में रख पूछा, हालांकि खुद को काबू में रखना मुश्किल हो रहा था,‘ तो सम्‍मान में क्‍या आयोजन करना चाह रहें हैं आप लोग?'

‘जो आप चाहेंगे। कोई आसपास तो नहीं?'

‘नहीं। इस वक्‍त मैं तुलसी के रामचरित के साथ बिलकुल अकेला हूं।'

‘ गुड!!तो ऐसा करते हैं कि अगर आप के पास एक लाख हों तो हमें दे दीजिए।'

‘क्‍यों?'

‘हम उसी का चैक आपको भेंट कर देंगे। और हां, प्रशस्ति पत्र, श्रीफल और शाल आपके चैक के ब्‍याज के रूप में हमारी ओर से।'

‘ और आने जाने का किराया!'

‘ वह तो हम देंगे ही।'

‘कैसे?'

‘सरकार से साहित्‍य के संवर्धन के लिए मिल जाएगा। या फिर एक आप्शन और है।'

‘क्‍या?'

‘हम आपको एक लाख का चैक पुरस्‍कार में देंगे पर आप आयोजन से बाहर तभी जा सकेंगे जब उसे हमारे पास दे देंगे।'

‘तो ऐसे पुरस्‍कार का क्‍या लाभ?'

‘ अगले दिन सब अखबारों का आधा पेज आपके फोटो से भरा होगा। आपका भी कल्‍याण और हमारा भी। एक कोने में जा दुबकेगा साहित्‍य सम्‍मलेन प्रयाग और हर साहित्‍यकार को अपने नजरों के आगे झूलता दिखेगा साहित्‍य सम्‍मेलन घाघ! तो सौदा मंजूर समझें?' कि तभी तुलसी ने कहा,‘ सुन रे नए कला बोध के लेखक ! वैसे कहने का हक तो मेरा बनता नहीं पर लेखक चाहे चोर ही क्‍यों न हो, आज की डेट में पुरस्‍कार लेखक के नाम में चार चांद लगा देते हैं। बिन पुरस्‍कार के आज जिंदा लेखक भी दिवंगत ही माना जाता है। वह लेखन की दुनिया को ही नहीं इस धरती को भी भार होता है। '

‘तो ?'

‘तो क्‍या? मत हाथ से जाने दे ये सम्‍मान! मरने के बाद साथ में तमगे और चोरी का माल ही जाता है। अब गू खाकर ही साहित्‍य में अकाल कट रहे हैं। इसलिए औरों की रचनाओं पर निशंक हो हाथ साफ करता जा, अमरत्‍व की ओर निडर हो बढ़ता जा।' कह वे अपने रामचरित मानस का गत्‍ता समेट निकल पड़े। सच बोले तुलसीदास?

आयोजक महोदय, मेरी हां समझिए।

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अशोक गौतम

गौतम निवास, अप्‍पर सेरी रोड, सोलन-173212 हि. प्र.

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. लगभग नब्बे प्रतिशत पुरुस्कारों के वितरण में तो यही होता है...

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: अशोक गौतम का व्‍यंग्‍य - तो सच बोले तुलसीदास?
अशोक गौतम का व्‍यंग्‍य - तो सच बोले तुलसीदास?
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रचनाकार
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