मोहिनी ! .... पिछ्ले महीने ही मेरे पड़ोस के मकान में रहने आ गई है!...नाम भले ही मोहिनी है ; उसे सुंदर नहीं कहा जा सकता!... सांवला ...
मोहिनी! ....पिछ्ले महीने ही मेरे पड़ोस के मकान में रहने आ गई है!...नाम भले ही मोहिनी है; उसे सुंदर नहीं कहा जा सकता!... सांवला रंग, मझौला कद, चेहरे पर हर घडी तनाव की रेखाएं खिची हुई.... उम्र कोई 50 से 55 के बीच की ही होगी!... हां! जब कभी ' वन्स इन ए ब्लू मून..' मुस्कुराती है तो आकर्षक लगती है!... दन्त-पक्तियां अभी तक मन मोह लेती है!...लगता है जब मोहिनी युवा होगी...अवश्य ही लड़कों के आकर्षण का केन्द्र रही होगी!
....अब हमारा आमना सामना तो रोज ही हो रहा है..आज मोहिनी मेरी तरफ देख कर मुस्कराई और आगे बढ़ गई!...लगा अब वह शायद जान-पहचान बढ़ाना चाहती है!....लेकिन समय गुजरता गया...बात मुस्कुराहट तक ही रुकी हुई है! छ्ह महीने हो चले है; बात जहां तक थी, वहीं तक है... काश कि कुछ एक कदम आगे भी बढें!... मैं दिल्ली में, इसी मकान में 20 साल से रह रही हूं!... मेरे पड़ोस वाला मकान इस बीच तीन बार बिक चुका है!... पांच- छ्ह किरायेदार भी यहां रह कर जा चुके है!... सुना है कि चौथी बार इस मकान को खरीदने वाले ' प्रमोद भगत' है... जो मोहिनी के पति है! ... 'प्रमोद भगत' की नेम प्लेट तो उनके गेट पर लगी हुई है!... उनकी पत्नी 'मोहिनी' का नाम मुझे मेरी मेहरी' चमेली' ने बताया, जो उनके यहां भी बर्तन सफाई का काम करती है!
....आज का दिन अच्छा रहा!...दोपहर का समय था; डोरबेल बज उठी... दरवाजा खोला तो सामने मोहिनी खड़ी थी!...उसने नमस्ते की!... जवाब में मैंने भी नमस्ते की!
" अंदर आइए न!... बाहर क्यों खड़ी है?' मैंने उसे अंदर आने के लिये कहा!
" नहीं...थैक्यू अनु जी!.... मैं पूछ्ने आई थी कि आज चमेली आई है क्या?" मोहिनी ने बाहर खडे खडे ही पूछा.
" अभी तक तो आई नहीं है.... लगता है आज छुट्टी मार गई है!... कामवालियों का ऐसा ही होता है!... बिना बताएं छुट्टिया कर लेती है!" मैंने जवाब दिया!.. दुबारा उसे अंदर आने के लिये कहना बेकार था!... शक्ल से जिद्दी किस्म की औरत लग रही थी!....मोहिनी चली गई!
.. अब तक उसके बारे में मुझे बहुतसी जानकारी मिल चुकी थी!... मोहिनी का बड़ा बेटा इंजीनियर था; जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका जा बसा था!.. वहीं पर अमेरिकन लड़की से उसने शादी रचाई थी!.. उसके मां-बाप से संबंध अब सिर्फ नाम के थे!... मोहिनी का दूसरा छोटा बेटा सरकारी कर्मचारी था!.. दिल्ली में ही रह रहा था... लेकिन उसकी पत्नी के साथ मोहिनी के आए दिन झगड़े होते थे; इस वजह से मोहिनी के पति प्रमोद ने बेटे से अलग रहने का फैसला लिया...और यह मकान खरीद कर पत्नी के साथ यहां रहने आ गए! ...मुझे मेरी मेहरी ने ऐसा ही सिक्वेन्स बताया था! ....लग रहा था कि प्रमोद और मोहिनी दोनों में कोई ताल-मेल नहीं है!...प्रमोद धार्मिक मानसिकता लिए हुए थे!.. मंदिरों मे और साधु-संतों के प्रवचनों मे जाना उनका खास शौक था!...उनके घर में कभी कोई गुरु तो कभी आचार्य या स्वामी अपने चरणों की धूल डालने आ जाया करते थे!...उनके मित्र भी सभी धरम-करम में रुचि रखने वाले थे!... जब कि मोहिनी हरदम घर के कामों में व्यस्त रहती थी... सोसाइटी में घुमना-फिरना और पास पड़ोस की महिलाओं से बतियाना उसे पसंद नहीं था!
... लेकिन एक दिन मोहिनी मेरे यहां फिर आई!.. न जाने क्यों ...इस बार बहुत देर तक बैठी रही..बहुत बातें की!...उसके बाद हमारा मिलना-जुलना बढ़ता गया!... अब वह मेरी घनिष्ट सहेली बन चुकी थी!
... एक दिन उसने अपने बीते जीवन की किताब मेरे सामने खोल कर रख दी!.. मुझ पर अब उसे पूर्ण विश्वास था! वह मुझे अपनी घनिष्ठ सहेली मान चुकी थी!...अपनी आप-बीती-अनोखी प्रेम-कहानी- उसने मेरे सामने रख दी, बिना कुछ छिपाएं...उसी की जुबानी उसकी प्रेम-कहानी यहां बया कर रही हूं!... मोहिनी कहने लगी....
" ...मै सायन्स ग्रैज्युएट हूं!...गुजरात के धोलका शहर की रहनेवाली हूं!...जब साइंस कोलेज में एड्मिशन लिया तब मेरी उमर सत्रह साल की थी! यह कोलेज सह-शिक्षा समिती का था!.. यहां लडके एवं लड़कियाँ साथ साथ पढते थे!.... तभी पता चला कि शहर के जाने-माने चिल्ड्रन स्पेशियालिस्ट डॉ. मेहता का बेटा 'सागर' भी इसी कॉलेज में एडमिशन ले रहा है!... मेरे अंदर 'सागर' को देखने की उत्सुकता पैदा हो गई!..'सागर' बड़ा प्यारा नाम लगा!... लेकिन कुछ ही दिनों में पता चला कि सागर ने तो अहमदाबाद के गुजरात कॉलेज में एड्मिशन ले लिया!... मेरी उसके तरफ की उत्सुकता और बढ़ गई!... मैंने ठान ही ली कि एक बार ही सही... सागर को एक नजर देख तो लूं!
...मेरी कोशिश रंग लाई और मेरा किसी काम से अहमदाबाद के गुजरात कॉलेज में जाना तय हुआ!... वहां पूछ्ताछ करने पर सागर के बारे में पता चला!... वह वहां बॉयज हॉस्टेल में रह रहा था!... वहां तक मैं जा पहुंची .. और उसे दूर से ही देख लिया!... अब उससे बात करने को जी मचल उठा!... लेकिन बात बनी नहीं!...लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे उसे मेरे बारे में पता चल ही गया!...वह भी शायद मुझे देखने के इरादे से ही....मेरे कॉलेज में आया! मुझसे आंखे चार हुई...लेकिन बात इससे आगे नहीं बढी!... मुझे मन की गहराई में उतरने पर ऐसा महसूस हो रहा था कि सागर भी मेरे में गहरी रुचि ले रहा है... लेकिन अभिव्यक्ति का सही मौका न उसे मिल रहा है...न मुझे!
... मैंने मन ही मन हार मान ली... सोचा मनुष्य कितना कुछ चाहता है, उसे उस में से सबकुछ तो नहीं मिलता!....मैं उसे भुलाने की कोशिश में लगी रही!... मैंने बीएससी कर ली!... सागर अब तक मेरे बहुत अंदर तक समा चुका था!.. वह कहां है...क्या करता है..कुछ पता न चला! ...हो सकता है वह अपने पिता की तरह डॉक्टर बन गया हो!
... मैं बडी हो चुकी थी..अब मेरे लिये लड्के देखे जाने लगे... और मेरी शादी भी हो गई!"
" मोहिनी!.. क्या प्रमोदजी के साथ हुई तुम्हारी शादी?" मैंने बीच में ही पूछा.
" नहीं अनु!... चेन्नई के एक डॉक्टर से हुई!... सुनने में अजीबसा लगता है न..कहां मैं गुजरात के छोटे शहर धोलका की रहने वाली और कहां चेन्नई!... मेरा जीवन ऐसा ही है, आगे और भी अजब-गजब सुनने को मिलेगा?... मेरी बात की सत्यता पर है विश्वास अनु?" मोहिनी ने मुझसे सवाल किया!
" मोहिनी!...मनुष्य के जीवन में कुछ भी घटित हो सकता है...तुम आगे सुनाओ!.." मेरा छोटासा जवाब!
मोहिनी आगे सुनाने लगी!... "ठीक कहा तुमने कि मनुष्य के जीवन में कुछ भी घटित हो सकता है! मेरी शादी के सातवे दिन ही मेरे पति चल बसे!"
" ऐसा क्या हुआ मोहिनी?" मैं एकदम से सक्ते में आ गई!
" मुझे भी नहीं पता...उन्होंने आत्महत्या कर ली थी!" मोहिनी ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया... इसपर मैंने इस बारे में आगे पूछना ठीक नहीं समझा और मोहिनी अपनी दास्तान आगे बढ़ाती चली.....
" अब मैं फिर मायके आ गई थी!... अब मैं विधवा थी!... यह बात तो मैं और मेरे माता-पिता और ससुराल वाले ही जानते थे कि शादी के लावा-फेरे के अलावा इस शादी के कोई मायने नहीं थे!... न सुहागरात और न तो हनीमून!... जैसी मैं गई थी बिलकुल वैसी ही वापस भी आ गई थी!
... अब फिर दुगुने शोर से 'सागर' की लहरे मेरे दिल के किनारे से टकरा रही थी!.... मैं मन ही मन कोशिश कर रही थी कि मेरे दिल की आवाज सागर के कानों से टकराएं!...पहले मुझे भगवान के अस्तित्व पर हंमेशा शक बना रहता था लेकिन अब भगवान के सामने भी गिडगिडाना मैंने शुरु कर दिया!... मेरी उम्र तब लगभग 24 साल की थी!... मेरे माता-पिता ने मुझे समझाया कि कहीं नौकरी कर लूं..जिससे कि दुःख की तीव्रता कुछ कम हो सके!
...... मेरी पढ़ाई के अनुरुप मैंने अपने आप को बैंक की नौकरी के काबिल समझा और बैंक की नौकरी के लिए फॉर्म भर दिया!... तीन महीने बाद ही साक्षात्कार के लिए बुलावा आ गया!... मुझे साक्षात्कार के लिए वडोदरा जाना था!... पास ही छोटे शहर नडियाद में, मेरे चाचा-चाची रहते थे!..मेरे चाचाजी डॉक्टर थे!..मुझे मन के अंदर से ही ऐसा लगा कि " सागर को मैं इसी जगह पा सकती हूं!"...और साक्षात्कार से चार दिन पहले मैं उनके यहां गई!...
" मेरी जीवनी सुन कर तुम बोर तो नहीं हो रही अनु?" मोहिनी ने मुझसे पूछा.
" अरे नहीं...बिलकुल नहीं..आगे कहो मोहिनी!"... मैंने कहा.
"...और देख तो अनु!... सही में मुझे सागर वहीं मिल गया!.."
" कैसे?" इस समय आश्चर्य चकित हो कर मैंने पूछा.
" सागर डॉक्टर नहीं बन पाया था!... वह एक जानी-मानी दवाई की कंपनी में रिप्रिझेंटेटिव्ह के तौर पर कार्यरत था!...अपने बिजनेस के सिलसिले में मेरे डॉक्टर चाचाजी से मिलने उनके यहां आया था!... मैंने उसे ड्रॉइंग-रुम में देखा तो भौंचक्की रह गई!.. लगा भगवान का अस्तित्व सही में है...वरना मैं यहां कैसे आती!... रसोई में चाय बनाने में व्यस्त अपनी चाची से मैंने थोड़े से शब्दों में अपनी एक तरफा प्रेम कहानी कही!... सुन कर चाची भी हैरान रह गई...लेकिन चाची ने जल्दी जल्दी में ही एक फैसला ले लिया! वह तुरन्त मुझे साथ ले कर ड्राइंग-रुम में गई!..
... मेरी सागर से आंखें चार हुई!... बातचीत की डोर चाची ने ही संभाली!.. बातों बातों में पता लगाया कि सागर की अब तक शादी हुई नहीं है और वह अहमदाबाद ही में किराए पर फ्लैट ले कर रह रहा है!...यह सब जान कर मेरी बांछें खिल गई!... सागर के चेहरे की मुस्कान देख कर मैंने अंदाजा लगाया कि वह भी इस तरह से अचानक मुझे सामने पा कर बहुत खुश है!.... मेरी उस समय सागर से औपचारिक बातें ही हुई!
....मेरी चाची ने उसे मेरे बारे में बताते हुए कहा कि ..." मोहिनी का बैक की नौकरी के लिए वैसे चयन हो चुका है...सिर्फ इंटरव्यू बाकी है!...दो दिन बाद सोमवार के दिन अहमदाबाद के एक बैंक में इंटरव्यू है!... अनु सुबह आठ बजे की बस से अहमदाबाद पहुंचेगी!"
..इस पर सागर ने कहा " मैं बस स्टैंड पर मोहिनी को रिसीव करने पहुंच जाउंगा!...इंटरव्यू के लिए बैक भी ले जाउंगा!... बैक मैंने देखा हुआ है!"... यह सुन कर मुझे लगा कि अंधा एक आंख मांगता है तो भगवान कभी कभी दो भी दे देता है!... मेरे चाचाजी भी अचंभे में थे कि यह क्या हो रहा है!...बाद में उन्हें मैंने और चाची ने सबकुछ बताया.. वे भी मेरी और सागर की मुलाकात से खुश थे!
... दो दिन बाद मैं अहमदाबाद पहुंची! ..मुझे रिसीव करने बस स्टैड पर सागर आया हुआ था! उसके पास मोटरसाइकिल था!...मै अब उसके पीछे बैठ कर मानों हवा में उड़ रही थी!...सब कुछ एक स्वप्न की तरह घटित हुआ!...हम दोनों एक कॉफी-हाउस गए...इधर-उधर की बातें हुई...फिर मेरे इंटरव्यू के लिए बैंक गए... फिर एक साथ लंच किया और फिर सागर मुझे अपने फ्लैट पर ले गया!... अब लगा कि मैं उसे अपने दिल की बात कहूं.. वह भी जरुर कहेगा!... उसके बाद के जीवन के सुनहरे पलों में मैं खो गई!...
...इतने में सागर ने रेडिओ ओन किया... गाना आ रहा था..
'प्यार हुआ है जब से..मुझ को नहीं चैन आता...छुपके नजर से भी तू...दिल से नहीं जाता!'
...लगा अब कहना सुनना कुछ भी नहीं रह गया है... और इतने में डोर-बेल बज उठी!.. सागर का कोई ऑफिस का कुलीग आया था!... सागर ने '... मेरी कॉलेज की एक दोस्त..' कहकर मेरी उससे जान-पहचान कराई!... वह करीबन आधे घंटे तक रुका रहा!... अब तक शाम हो चली थी..मुझे वापस नडियाद जाना था!...बात यहीं पर समाप्त हो गई!...सागर ने मुझे वापसी के लिए बस में बैठाया!
.....इसके एक महीने बाद ही मुझे वडोदरा के बैंक में जॉइन करने के लिए अपोइंट्मेंट लेटर मिल गया!... मैं खुश थी!... उस समय टेलिफोन बहुत कम हुआ करते थे!...सागर के घर पर भी फोन नहीं था!... मोबाईल फोन का आविष्कार तब हुआ भी नहीं था! ..."
.....मै मोहिनी की आपबीती बड़े ही ध्यान से सुन रही थी! मोहिनी ने आगे कहा...
"....यह खुश खबर सुनाने मैं अहमदाबाद सागर के घर चली गई!..उस समय वह घर पर नहीं था!... उसके सामने वाले फ्लैट में रहने वाली महिला दरवाजे में ही खड़ी थी!...मैंने एक पर्ची पर अपना नाम और पता लिख कर... पर्ची उसे पकड़ाई और सागर को देने के लिए कहा!... साथ में यह भी कहा कि..’ जरुर दीजिएगा!’ … इस पर उसने हंसते हुए कहा..' जरुर दूंगी!'
....मैंने बैंक की नौकरी जॉइन कर ली थी!..दो महीने हो चले थे!..सागर की तरफ से कोई खबर आई नहीं मैंने नडियाद जा कर चाचीजी से भी पूछा लेकिन पता चला कि उनके यहां भी सागर गया नहीं था!
...मेरा मन उदास था!.. सागर के सामने वाले फ्लैट में रहने वाली महिला ने सागर को मेरी पर्ची अवश्य दी होगी!.. मेरा यही मानना था!... दूसरी ओर लग रहा था कि शायद सागर को मेरी पहली शादी और विधवा होने की घटना का कहीं से पता लग गया होगा...और इसी वजह से अब वह मेरे साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहता!... ऐसे में मेरे पिता के पास मेरे लिए एक रिश्ता आया!.. उम्र में यह मुझसे दस साल बड़ा था! ….लड़का इकलौता था! पिता का अच्छा बिजनेस था!..और तो और उसे मेरे जैसी दुःखी और जवान विधवा से शादी करना पसंद था!...बल्कि ऐसी शादी करके वह समाज में अपनी अच्छी छवि प्रस्तुत करना चाहता था!... यह लड़का दहेज के भी खिलाफ था!... मेरे पिताजी को रिश्ता सही लगा और दुबारा मेरी मांग में सिंदूर भरा गया!... सागर की तस्वीर दिल में लिए मैं नए ससुराल आ गई!... अब मैं वडोदरा से दिल्ली आ गई थी!...प्रमोद भगत...मेरे पति थे!"
"..ओह! मोहिनी...अब तुझे किस बात का दुःख है?...सागर को क्या अब तक तू भूली नहीं है?... पर क्यों?"..मैंने ऐसे ही कई सवाल एक साथ किए!
" अनु!.. बाद में मुझे चाची ने बताया कि सागर उनके घर आया था!.. उसने बताया कि उसके सामनेवाले फ्लैट में रहने वाली महिला उसे मेरी पर्ची देना भूल गई थी!... बाद में याद आने पर दी...इसलिए उसे आने में देर हो गई... चाची ने सागर को मेरे बारे में बताते हुए कहा कि..' अब मोहिनी की दुबारा शादी हो गई है और वह अब बहुत दूर जा चुकी है! ... सागर उदास मन से चला गया और एक महीने बाद उसकी भी शादी होने की खबर चाची ने मुझे दी!
"..ठीक है मोहिनी!...लेकिन अब तू चाहती क्या है?..."
"...मेरे पति प्रमोद सिर्फ नाम के लिए ही मेरे पति है!... उन्होंने कभी मेरे प्रति प्रेम की भावना व्यक्त भी नहीं की!... घुमना-फिरना, फिल्म देखने जाना या किसी पर्यट्न स्थल पर जाना प्रमोद को कभी पसंद नहीं था!... अपना बिजनेस और साधु-संतों की संगत मे ही इनका जीवन अब तक गुजरा है!.. पहले हम छोटे बेटे के साथ ही रहते थे; लेकिन प्रमोद का साधु-संतो का झमेला बहू बरदाश्त नहीं कर पाई... हर रोज झगड़े होने लगे और हम यह मकान खरीद कर, यहां रहने आ गए! उनके लिए धरम-करम और पूजा-पाठ ही सब कुछ है!... भगवान की दया से बिजनेस अच्छा चल रहा है... लेकिन अब वे मुझे यहां छोड़ कर हरिद्वार जाना चाहते है!... वहां बड़ा सा प्लॉट ले कर वे मकान बनवा रहे है!..उनके गुरु का आश्रम वहीं पर है!"
"...तो?.."
"..कुछ दिनों से मुझे लग रहा है कि सागर अब अकेला रह गया है!.. मेरे चाचा-चाची अब गुजर चुके है!..सागर के बारे में जानकारी अब कैसे मिल सकती है? ?...क्या तुम मेरे लिए कुछ कर सकती हूं अनु?.."
.. मैं हंस पडी!
" तुम्हें हंसी आती है?... अपने आप को मेरी जगह रख कर तो देखो!....कितनी टूट सी गई हूं मै!... जी चाहता है कि.."
" बस कर मोहिनी!.... आत्महत्या के सिवाय भी तो बहुत से रास्ते होते है!..मै कुछ न कुछ अवश्य करुंगी...सागर का पता तेरे लिए लगा कर ही रहूंगी!"...
"……लेकिन एक बात बता मोहिनी!" मैंने मोहिनी की आंखों की गहराई में झांकते हुए पूछा.
" क्या? अब और क्या क्या पूछना चाह्ती हो?" मोहिनी की आवाज में झल्लाने का भाव था!
" ...मोहिनी!...तूने यह कैसे समझ लिया कि सागर उसके हालिया जीवन में अकेला रह गया है?... मतलब कि उसकी पत्नी, उसके बच्चे.."
" अनु!... यह बात मेरा अंतर्मन कह रहा है!... मुझे १००% लग रहा है कि ऐसा ही है!" मोहिनी की आवाज में मक्कमता थी! ...मुझे लगा मोहिनी पगला गई है; वरना ऐसी बात मक्कमता पूर्वक कौन भला कह सकता है?
मैंने मोहिनी को दिलासा दे कर वापस घर भेज दिया!.. सिर्फ दिलासा ही ऐसे समय देने की चीज थी! ... और मैंने अपना काम शुरु कर ही दिया!
..मेरी हप्ते भर की मेहनत रंग लाई... एक फ्रैंड्शिप वाली वेब-साईट पर सागर से मिलते--जुलते प्रोफाईल का एक व्यक्ति मिल गया... नाम भी सागर मेहता ही था!...मोहिनी को मैंने तुरन्त बुलावा भेजा और उस व्यक्ति की फोटॉ कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखाई!... मोहिनी के मुरझाए चेहरे पर थोड़ी सी रौनक लौट आई!... लेकिन...
"..लेकिन क्या मोहिनी?"
" ...क्या मैं सागर से बात कर सकती हूं?.." मोहिनी के मन में शक था!
"..बिलकुल कर सकती हो!...अगर बात करने भर से तुझे सुकून मिल सकता है तो मैं इसका भी प्रबन्ध कर सकती हूं..पर फिर एक बार सोच ले!
" ...अब मैंने सोच लिया!... मैं उससे बात करुंगी!...आगे जो भी होगा, जिम्मेदारी मेरी होगी अनु! "..मोहिनी ने मक्कमता का परिचय देते हुए कहा!
.... मैंने फोन नंबर जैसे ही मोहिनी को दिया... वह मुझसे एक बच्चे की तरह लिपट ही गई!... उसकी आंखों से अश्रु-धारा फूट पडी!...वह ज्यादा कुछ कहे-सुने बगैर चली गई!..शायद वह एकांत में अपने सागर से बतियाना चाहती थी!
...दूसरे दिन मोहिनी मेरे यहां आई...उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ था!...कहने लगी!
"..अनु!..जैसा कि मैंने कहा था; सागर अकेला रह गया है!.. शादी के दो साल बाद ही उसकी पत्नी डिवोर्स ले कर अलग हो गई!...उसके बाद सागर ने अहमदाबाद छोड़ दिया और मुंबई चला गया!.. यहां सागर ने शेअर-दलाली और प्रोपर्टी का बिजनेस किया और करोड़ों कमाए!... दूसरी शादी की... आठ साल पहले ही छोटी सी बीमारी के चलते उसकी दूसरी पत्नी भी चल बसी...एक बेटा और बहू है...जो अलग रहते है!...सागर का हाल मेरे ही जैसा है... जीवन में सुख नहीं मिला!...वह भी हरदम मुझे ही याद करता आ रहा है!...अनु!... मुझे अब क्या करना चाहिए?...प्रमोद मुझे छोड़ कर जाना चाहते है...सागर मुझे बुला रहा है! “
" देख मोहिनी!... सागर से मैंने तुझे मिला दिया है!...सलाह तो मैं कुछ भी नहीं दूंगी कि तुझे क्या करना चाहिए!... वैसे प्रमोद का तुझे अकेले छोड़ कर जाना अगर तय ही है तो..." मैंने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया!
... मोहिनी चली गई!... एक दो बार रास्ते में मिली...बोली कुछ नहीं!...
…. ...अब मुझे कहना पड़ रहा है कि...' मेरे पड़ोस में मोहिनी रहती है… नहीं...बल्कि रहती थी!" क्यों कि वह मकान फिर एक बार बिक चुका था! ... कामवाली चमेली से पता चला कि' मोहिनी मेम सा'ब पता नहीं... कहां चली गई है और प्रमोद साहब ने मकान बेच दिया है... और वे हरिद्वार रहने चले गए है! ’
... पता सिर्फ मुझे ही है कि मोहिनी हमेशा के लिए अपने सागर के पास.... मुंबई चली गई है!... बाकी का जीवन वह सागर के साथ हंसी खुशी बिताएगी! ... कभी कभी संजोग भी कैसे विचित्ररूप धारण कर लेते हैं,.... नहीं?
----------*----------
(चित्र – गंगूबाई पिथोरा की कलाकृति)
Behad sashakt katha aur khush qismat Mohini..ki,antme use apna man chaha saathi mil gaya!
जवाब देंहटाएंshayd yahi prem hai jo door rahkar bhi doosre ke dil kaa haal jaan le.
जवाब देंहटाएंVery interesting story Arunaji. Aapki likhne ki style bhi badhiya hai. Padhne me bahut majaa aaya.
जवाब देंहटाएंRashmi
bahut badhiya kahani hai aur lagatar padhne wale ko baandhe rakhne par majboor karna hi kahani ki safalta hai...sashakt lekhan. badhayi.
जवाब देंहटाएंnice story.
जवाब देंहटाएंसुंदर कथा । अद्भुत घटनाएं और सयोग । पर कुछ इससे मिलती जुलती कहानी मै जानती हूँ । सिर्फ पहली शादी माता पिता की मरजी से हुई और पति ने आत्म हत्या कर ली महीने के अंदर फिर लडकी आगे पढने दूसरे शहर चली गई वहां प्रेम हुआ और विवाह भी और अब सुखी है ।
जवाब देंहटाएं