आज तक भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से जितने भी शोध किए गए हैं, वे संस्कृत, हिन्दी और इनको लिखी जाने वाली देवनागरी लिपि को दुनिया की अन्य भाषा...
आज तक भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से जितने भी शोध किए गए हैं, वे संस्कृत, हिन्दी और इनको लिखी जाने वाली देवनागरी लिपि को दुनिया की अन्य भाषाओं व लिपियों की तुलना में श्रेष्ठ बताते आए हैं। यह इन भाषाओं की शब्द और बोली की महिमा है। हाल ही में राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र की विज्ञान पत्रिका ‘करंट साइंस' में छपे एक मस्तिष्क संबंधी अनुसंधान ने दावा किया है कि अंग्रेजी पढ़ते समय दिमाग का सिर्फ बायां हिस्सा (हैमिस्फेयर) सक्रिय रहता है, जबकि हिन्दी पढ़ते समय मस्तिष्क के दाएं और बाएं दोनों हिस्से क्रियाशील रहते हैं। इससे दिमाग तरोताजा तो रहता ही है, पूरे दिमाग में चेतना का प्रवाह भी बना रहता है जो उर्जा व स्मृति को बढ़ाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हिन्दी के शब्दों में उपर से नीचे और दाएं - बाएं लगी मात्राओं के कारण दिमागी तंत्र को इसे पढ़ने में कसरत करनी पढ़ती है। जबकि अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में इतनी मात्राएं नहीं होती हैं इसलिए दिमागी तंत्रिका तंत्र उतनी तेज गति से सक्रिय नहीं रहता। हिन्दी पढ़ते समय दिमागी-तंत्र की क्रियाशीलता स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी है।
वैज्ञानिक इस तथ्य के सिलसिले में लंबे समय से अध्ययन करते चले आ रहे हैं कि मनुष्य के मस्तिष्क में चेतना का कोई विशेष केन्द्र-बिन्दु है अथवा यह पूरे दिमाग की सक्रियता से बनने वाले तालमेल का नतीजा है। इसलिए मस्तिष्क में श्वास नलिका के उपर जो स्वर-तंत्रियों का समूह होता है उस पूरे तंत्र को ही स्वर - यंत्र कहा जाता है। किसी भी भाषा के शब्दों के उच्चारण के वक्त स्वरतंत्रियों में तनाव व शिथिलता की स्थिति उत्पन्न होती है। खिंचाव अथवा ढिलाई की यही विकृति मस्तिष्क का ऐसा अभ्यास है जो इसे तेज व सक्रिय बनाने का काम करती है। हिन्दी बोलने या पढ़ते समय क्रियाशीलता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इसमें चंहुओर मात्राओं की विलक्षणता, अनिवार्यता जुड़ी है। यही स्थिति संस्कृत के साथ है। इससे तय होता है कि वेद - मंत्रो व ओम के उच्चारण और योगासन व प्रणायाम धार्मिक पाखण्ड न होकर शरीर को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने वाली शुद्ध प्रक्रियाएं हैं। इनको धर्म आधारित पद्धतियां मानकर स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य व अगले जन्म को सार्थक बनाने की अवधारणाएं भ्रामक एवं पण्डे पाखण्डियों की मनगढ़ंत धारणाएं हैं।
इस सिलसिले में भारत की आयुर्वेदाचार्य सुश्री प्रतिमा रामचुर ने ओहियो स्टेट युनिवर्सिटी में एक अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि वेदों की ऋचाओं के उच्चारण से कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि धीमी पड़ जाती है। प्रतिमा ने यह प्रयोग अपने पिता पर किया। उन्हें अस्थि मज्जा कैंसर था। वेद ऋचाओं का वाचन करने व सुनने से उनके पिता को पीड़ा में तो राहत मिली ही, इस उपचार पद्धति के सेवन से कुछ उम्र भी बढ़ गई।
शब्दों का मस्तिष्क में चेतना से जुड़े प्रभाव व स्थान को समझने के लिए एक शोध फ्रांस के तंत्रिका वैज्ञानिक राफेल गैलार्ड ने भी किया। उन्होंने यह प्रयोग मिर्गी से परेशान कुछ मरीजों पर किया। राफेल ने दस ऐसे मरीज तलाशे जो दवा प्रतिरोधी मिर्गी से पीड़ित थे। इनके उपचार के लिए मरीजों के दिमाग में इलेक्ट्रोड लगाए, जिससे पता लगाया जा सके कि इनकी चेतना मूर्च्छा में क्यों तब्दील हो जाती है। इस प्रयोग को करते वक्त गैलार्ड व उनके साथी वैज्ञानिक दल ने इन रोगियों के सामने केवल 29 मिली सेकंड के लिए कुछ शब्द चमकाए। ये शब्द या तो डराने वाले थे, जैसे गुस्सा, हत्या, पिटाई या फिर भावना प्रधान थे, जैसे माता-पिता, भाई-बहिन इत्यादि। ये शब्द झीना पर्दा डालकर भी दिखाए गए। जिससे रोगी को शब्द समझने में सक्रियता बरतनी पड़े। इस शाब्दिक प्रयोग से व्यक्ति के मस्तिष्क में चेतना का प्रभाव व स्थान खोजने का प्रयास किया गया।
इस अध्ययन के परिणाम से तय हुआ कि जब व्यक्ति शब्द के प्रति सचेत होता है तो दिमाग से पैदा होने वाले संकेतों का आवेग व क्रियाशीलता बढ़ जाती है। इस शोध से यह भी पता चला कि सचेतन प्रयास की अवस्था में दिमाग के विभिन्न हिस्सों के संकेत आपस में समन्वय बनाते हैं। इससे जाहिर हुआ कि दिमाग के अलग-अलग हिस्सों में तंत्रिकाएं तालमेल से सक्रिय होती हैं। लिहाजा दिमाग में चेतना का कोई एक निर्धारित स्थान नहीं है बल्कि वह पूरे दिमाग की समन्वित क्रिया का परिणाम है। जिसमें भाषा का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है।
हिन्दी भाषा बोलने व पढ़ने से दिमाग की संयुक्त चेतना इसलिए अन्य भाषाओं की तुलना अधिक संक्रिय होती है क्योंकि इस भाषा में मात्राओं की भरमार है। इसलिए अपने दिमाग को तरोताजा, स्वस्थ्य व सक्रिय बनाए रखना है तो हिन्दी की कहावतें, मुहावरे और पहेलियों का इस्तेमाल तो करते ही रहें, शब्दकोश खोलकर नए-नए शब्दों का भी उच्चारण करते रहें। यदि आप कंप्यूटर अथवा लैपटॉप पर काम करने के आदी हैं तो इंटरनेट खोलें और हिन्दी ब्लॉग लिखने व पढ़ने का सिलसिला शुरु करें। हिन्दी से यह संवाद स्थापना आपके दिमाग को तेज तो बनाएगी ही अपने राष्ट की संस्कृति के सरोकारों से भी आप जुड़े रहेगे।
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जीवन-परिचय
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नाम ः प्रमोद भार्गव
पिता का नाम ः स्व. श्री नारायण प्रसाद भार्गव
जन्म दिनांक ः 15 अगस्त 1956
जन्म स्थान ः ग्राम अटलपुर, जिला-शिवपुरी (म. प्र.)
शिक्षा ः स्नात्कोत्तर (हिन्दी साहित्य)
रूचियां ः लेखन, पत्रकारिता, पर्यटन, पर्यावरण, वन्य जीवन तथा इतिहास एवं पुरातत्वीय विषयों के अध्ययन में
विशेष रूचि।
प्रकाशन ः प्यास भर पानी (उपन्यास), मुक्त होती
औरत, पहचाने हुए अजनबी, शपथ-पत्र एवं
लौटते हुए (कहानी संग्रह), शहीद बालक
(बाल उपन्यास) सोन चिरैया सफेद शेर,
चीता, संगाई, शर्मिला भालू, जंगल के
विचित्र जीव जंतु (वन्य जीवन) घट रहा है
पानी(जल समस्या) इन पुस्तकों के अलावा
हंस, समकालीन भारतीय साहित्य,वर्तमान
साहित्य, प्रेरणा, संवेद, सेतु, कथा परिकथा,
धर्मयुग, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स,
हिन्दुस्तान राष्ट्रीय सहारा, नईदुनियां,
दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण,
लोकमत समाचार, राजस्थान पत्रिका,
नवज्योति,पंजाब केसरी, दैनिक ट्रिब्यून,
रांची एक्सप्रेस, नवभारत, साप्ताहिक
हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, सरिता, मुक्ता, सुमन
सौरभ, मेरी सहेली, मनोरमा, गृहशोभा, गृहलक्ष्मी, आदि पत्र पत्रिकाओं में
अनेक लेख एवं कहानियां प्रकाशित।
सम्मान ः 1. म.प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा वर्ष 2008
का बाल साहित्य के क्षेत्र में चंद्रप्रकाश
जायसवाल सम्मान। 2. ग्वालियर साहित्य अकादमी द्वारा
साहित्य एवं पत्रकारिता के लिए डॉ.
धर्मवीर भारती सम्मान।
3. भवभूति शोध संस्थान डबरा
(ग्वालियर) द्वारा ‘भवभूति अलंकरण'।
4. म.प्र. स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकरी
संगठन भोपाल द्वारा ‘सेवा सिंधु सम्मान'।
5. म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन,
इकाई-कोलारस (शिवपुरी) साहित्य एवं
पत्रकारिता के क्षेत्र में दीर्घकालिक सेवाओं
के लिए सम्मानित।
6. भार्गव ब्राह्मण समाज, ग्वालियर द्वारा
साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में
सम्मानित।
अनुभव ः जनसत्ता की शुरूआत से 2003 तक
शिवपुरी जिला संवाददाता।
नईदुनियां ग्वालियर में 1 वर्ष ब्यूरो प्रमुख,
शिवपुरी।
उत्तर साक्षरता अभियान में दो वर्ष निदेशक
के पद पर।
संप्रति ः जिला संवाददाता आज तक (टी.वी.
समाचार चैनल)
संपादक -शब्दिता संवाद सेवा, शिवपुरी
दूरभाष ः 07492-232008, 232007 मोबा.
09425488224
संपर्क ः शब्दार्थ, 49 श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी (म.प्र.)
ई-मेल % PramodSVP997@rediffmail.com
प्रमोद जी
जवाब देंहटाएंलेख पढ़ के हार्दिक खुशी हुई पर यदि आप खोज का संदर्भ भी बता दें तो विश्वसनियता बढ़ जायगी । कोई इसे गप्प मानने का हक़दार न रहेगा । अतिशयोक्ति क्षम्य है पर सत्यता की जाँच करने का अधिकार सब को है ।