वयोवृद्ध चुनाव आयोग ने चुनावी शंखनाद किया, शंखनाद के उपरान्त विभिन्न राजनैतिक दलों ने भी अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार शंखनाद किया, कुछ...
वयोवृद्ध चुनाव आयोग ने चुनावी शंखनाद किया, शंखनाद के उपरान्त विभिन्न राजनैतिक दलों ने भी अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार शंखनाद किया, कुछ कमल लेकर, कुछ साइकल पर, कुछ हाथ का पंजा, कुछ लालटेन, कुछ हाथी पर, कुछ दराँती हसिया आदि विभिन्न अस्त्र शस्त्र (चुनाव चिन्ह) लेकर चुनावी दंगल में शंखनाद करने लगें, मतदाता को अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार रिझाने लगे, मतदाताओं को अपनी अपनी ओर आकर्षित करने के लिये तथा अपनी सेना में बुलाने के लिये विभिन्न प्रलोभन दिये जाने लगें, मतदाता किंकर्तव्यविमूढ़ थे...................
दृष्टवेंम स्वजंन कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थित ।
सीदन्ति मम गात्राणी मुखं च परिशुष्यति ॥
विभिन्न मतदाताओं के मुख सूख चुके थे, उनकी कई समस्याओं और शंकाओं का समाधान तो हो चुका था, क्योंकि पिछले कई चुनावी महायुद्धों में वह विभिन्न राजनैतिक दलों को वीरगति प्राप्त होते देख चुके थे, लेकिन कुछ प्रश्नों के उत्तर अभी भी अनुत्तरित थे, ऐसे में मतदाता भ्रमित दशा में था, उसने अपने प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये अपने प्रभु नेताजी को ही अपना दिग्दर्शक समझा और नेताजी के पास जाकर बोलाः-
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्तावां पर्युपासते ।
ये चाप्यक्षरव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा ॥
मतदाता ने पूछा.......... '' जो आपकी सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं या जो अव्यक्त (केवल मतदान ही करते है) इन दोनों भक्तों में आप किसे अधिक पूर्ण (सिद्ध) मानते है। अथवा आपको इन दोनों में से कौन अधिक प्रिय है'' ।
नेताजी ने कहाः-.............'' जो लोग अपने मन-शरीर को मेरे में साकार रूप में एकाग्र करते है और अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक मेरी पूजा (चमचेबाजी) मुझे ही मानते है वे मेरे परम भक्त है और मुझे प्रिय हैं।''
लेकिन जो लोग बिना कोई स्वार्थ रखे मुझमें समभाव रखकर मुझे ईश्वरीय कल्पना के अर्न्तगत पूजते हैं, श्रद्धा रखते है, तथा मै ही अचल,अटल सत्य हूं तथा लोगों को मेरे में ही श्रद्धा करवाते हैं वह मुझे प्रिय है।
जिन लोगों के मन शरीर, कर्म, सहायता, आर्थिक मदद किसी अन्य राजनैतिक या सामाजिक संस्था में लगी हुई है और मुझे नगण्य समझते हैं उन मतधारियों का (मतदाताओं) की प्रगति कर पाना अत्यन्त कष्टप्रद है, उन मतधारियों की उस क्षेत्र में (चुनावी क्षेत्र) में प्रगति कर पाना सदैव दुष्कर है।
जो अपने सारे कार्यों (पत्नी,पति, पुत्र, व्यवसाय, धार्मिकता, सामाजिकता, चल अचल सम्पत्ति को) मुझमें अर्पित कर देता है तथा निष्काम भाव (मुझसे कुछ भी याचना की दृष्टि से नहीं मांगता) मेरा चुनाव प्रचार करता है तथा अपने चित्त को मुझमें स्थिर करके निरन्तर मेरा चुनाव प्रचार करता है। हे! मेरे प्रिय मतदाता वह मुझे अत्यन्त ही प्रिय है।
अतः हे मतदाता, हे आम आदमी, तुम मुझमें अपने चित्त (कार्यों को, सम्पत्ति को) स्थिर करो अपनी सारी बुद्धि मुझमें लगाओ, इस प्रकार निसन्देह तुम सदैव मुझे अपने पास ही पाओगे।
हे मतदाता यदि तुम निर्धन हो, तुम्हारे पास मुझे देने को न तो समय है, न मानव शक्ति है, न तुम्हारी पारिवारिक, सामाजिक स्थिति ही ठीक है तो भी अविचल भाव से अपना मत तो मुझे दे ही सकते हो, तुम्हारे दिये हुये मत से ही मेरी पूजा हो जायेगी तथा तुम मेरे प्रिय भक्त हो जाओगे, इस प्रकार तुम मुझे ही प्राप्त करोगे।
हे मतदाता, हे निर्धन व्यक्ति यदि तुम इन विधि विधानों को भी पालन करने में भी असमर्थ हो तो मेरे चुनाव प्रसार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लो, क्योंकि मेरे लिये कर्म करने से तुम निर्विवाद रूप से मेरे प्रिय हो जाओगे ।
लेकिन यदि तुम इन उपरोक्त कर्मों को करने में भी अपने को असहाय पाते हो तो तुम सभी कर्मों के फल को भूल जाओ (मुझसे कुछ भी आशा मत रखो, केवल अपना मत ही दो) तो अपने को मुझमें ही पाओगे, ऐसा भक्त मुझे बहुत ही प्रिय है।
यदि तुम यह अभ्यास भी नहीं कर सकते तो चुनाव के अनुशीलन में लग जाओ। लेकिन मत प्रचार से श्रेष्ठ मुझे मत देना है, यदि तुम मत देने बाद निश्चिन्त हो जाओगे तो तुम्हें मानसिक शान्ति प्राप्त होगी और मानसिक शान्ति से बढ़कर इस युग में कुछ भी नहीं है।
जो मुझसे द्वेष नहीं रखता, तथा चुनाव प्रचार के समय अपने शत्रुओं और मित्रों के प्रति दयालु हो जाता है, जिसे अन्य मतदाताओं के सुख दुख से कुछ भी लेना देना नहीं होता, केवल मुझे ही मत दिलाकर आत्मतुष्ट रहता है तथा जिसे यह निश्चय हो जाता है कि इस चुनाव में उनके द्वारा प्रचारित मत मुझे ही (नेताजी को) मिले हैं तथा उनकी मन, बुद्धि निश्चित है कि हमारे नेता जी ही विजयी होंगे ऐसा मतदाता मुझे बहुत ही प्रिय है।
जो मतदाता (भक्त) चुनाव के समय मेरे विरूद्ध मत डालने वाले को कष्ट पहुंचाता है तथा मेरे दल के लोगों के हित चिन्तन में (उन्हें खिलाना, पिलाना, दूरभाष पर बात करवाना, उनके आवागमन का बन्दोबस्त करवाना, अन्य दलों के कार्यकर्ताओं को भय तथा चिन्ता में डालता है) वह मतदाता मुझे सर्वप्रिय है।
ऐसा भक्त (मतदाता) जो सामान्य कार्य कलापों तक ही आश्रित नहीं (अपितु बूथ कैप्चरिंग, हिंसा करवाना ,फर्जी मत डलवाना आदि के कार्यों में दक्ष है) तथा चिन्ता रहित है कि हमारे नेता जी ही सिंहासन पर बैठने वाले है और स्वयं के लिये कुछ भी नहीं चाहता ऐसा कार्यकर्ता/मतदाता मुझे अतिशय प्रिय है।
जो मतदाता मित्रों और श़त्रुओं को भी मुझे ही मत दिलवाने के लिये बाध्य करता है तथा अन्य दलों द्वारा दिये गये मेरे सुख तथा दुख, यश तथा अपयश में समभाव रखता है (लेकिन अन्तःकरण में मेरी हितैषणा तथा दूसरे दल के लिये वितैषणा) रखता है तथा बुरी संगति में डूबे हुए लोगों (अफीम-गांजा, शराब, धन व्यय कर) मुझे ही मत दिलवाता है वह मुझे अत्यन्त प्रिय है।
जो मतदाता सदैव मौन रहता है तथा मेरे द्वारा (चुनाव के समय दी जाने वाली सुविधा यथा धन, मदिरा, वाहन, अस्त्र शस्त्र, छदम वोटर लिस्ट इत्यादि वस्तुओं से सन्तुष्ट रहता है तथा गोपनीय ढंग से उनका उपयोग करता है) व्यवस्था से सन्तुष्ट रहता है तथा अपने घर बार की परवाह न करते हुये मुझे जिताने में सतत प्रयत्नशील है वह भक्ति भाव समर्पण से पूर्ण मतदाता मुझे अत्यन्त ही प्रिय है।
हे मतदाता जो मेरे द्वारा बताये गये उपरोक्त सभी बिन्दुओं को अपना चरम लक्ष्य बनाकर मुझे विधान सभा या संसद में पहुंचा देता है उस भक्त को मैं निरन्तर याद करता हूं और वह भी मुझे अत्यन्त याद करता रहता है ऐसा भक्त/मतदाता मुझे अत्यन्त प्रिय है।
उपरोक्त वचनों को सुनाकर नेताजी ने कहा........... '' हे मतपुत्र यह निर्वाचन क्षेत्र ही असली कर्मक्षेत्र है और इस क्षेत्र को जाने वाला ही असली जानकार है।
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RK Bhardwaj
151/1 Teachers’ Colony,Govind Garg,
Dehradun (Uttarakhand)
E mail: rkantbhardwaj@gmail.com
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