(सिक्किम का गुरूडोंगमार झील) प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतिमान :सिक्किम प्रस्तुति – डॉ0 राजेश कुमार मिश्र मन को आह्लादित करने की असी...
(सिक्किम का गुरूडोंगमार झील)
प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतिमान :सिक्किम
प्रस्तुति – डॉ0 राजेश कुमार मिश्र
मन को आह्लादित करने की असीम क्षमता यदि किसी के पास है,तो वह है-प्रकृति का विराट् सौंदर्य। सौभाग्यशाली व्यक्तियों को ही प्रकृति की गोद में पहुंचकर वात्सल्य प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त होता है। आज भी याद है वह दिन जब आसाम वैली स्कूल की वार्षिक परीक्षा समाप्त हुई और समाचार मिला कि कक्षा आठ के छात्रों का दल शैक्षिक परिभ्रमण के लिए सिक्किम की राजधानी गन्तोक एवं पैलिंग जा रहा है। इस दल के साथ जाने वाले शिक्षकों में मेरा नाम भी शामिल था। मैं बड़ा ही खुश था,मन ही मन मुख्याध्यापक के इस निर्णय की प्रशंसा भी कर रहा था क्योंकि प्रारम्भ से ही मेरी रुचि पर्वतीय स्थलों की यात्रा करने की रही है। शिक्षक नेता के रूप में श्रीमान शब्बीर अंसारी जी के साथ-साथ हितेश दास जी एवं डॉ0 अंसारी भी हमारे साथ जा रहे थे। इस यात्रा का उद्देश्य छात्रों को सिक्किम की प्राकृतिक छटा के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों से भी परिचित कराना था।
इस यात्रा के लिए हम सभी ने मिलकर कार्य-योजना बनानी शुरू कर दी। अंसारी जी की मंत्रणा के अनुसार हम सभी ने कुछ-कुछ छात्रों का ज़िम्मा खुद पर ले लिया। संध्या के समय जाकर हॉस्टल में छात्रों द्वारा की गई तैयारी की जाँच की। अगले दिन यात्रा के लिए नियत समय पर सभी छात्र अपने-अपने सामानों के साथ पूर्व निर्धारित स्थान पर उपस्थित हो गए। हमें विदाई देने के लिए प्रधानाचार्य श्रीमान डैरिक माउण्ट फोर्ड के अलावा समस्त शिक्षक प्रांगण में उपस्थित हो गए । नियत समय पर हम सभी को लेकर बस गंतव्य की ओर रवाना हो गई। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से ट्रेन पर सवार होकर हमारा दल न्यू जलपाई गुडी पहुँच गया। यहाँ हमारे दल के इंतज़ार में पहले से ही बसें प्रतीक्षारत थीं। तीन बसों में हम सब समूहवार सवार होकर वहाँ से सिलीगुडी के प्रशान्त ल़ॉज में पहुँचे। दैनिक क्रियाकलापों से निवृत्त होकर सुबह का नाश्ता किया और पुनः गंतव्य की ओर चल पड़े। एक घण्टा सफर करने के बाद पर्वतीय मार्ग प्रारम्भ हो गया। प्रकृति का रम्य रूप मन को अपनी ओर खींचता चला जा रहा था। ऊँचे-ऊँचे खड़े हुए विशालकाय वृक्ष मन को मुग्ध कर रहे थे। कुछ समय चलने के पश्चात् सर्पिणी की भाँति एक जलधारा दिखाई दी। हमारे दल के गाइड ने हमें बताया कि यह तिस्ता नदी की जलधारा है जिसमें तीन नदियों का जल एक साथ मिलकर बहता है,इस कारण इसे तिस्ता का नाम दिया गया है। यह धारा सिक्किम की त्रिवेणी के समान है। लौटते समय हमें इसी तीव्र धारा में नौकायन का सुअवसर भी मिलने वाला था।
लगभग तीन बजे के करीब हमारी यात्रा का समापन हुआ और हम लोग गन्तोक पहुँचे। इस होटल में पहुँचते ही सभी लोग इतना थक चुके थे कि भोजन करने के बाद सभी एक लम्बे विश्राम के लिए अपने-अपने शयनकक्षों में चले गये। संध्या के समय दल के नेता के द्वारा एक छोटी सी सभा करके अगले दिन के कार्यक्रम के बारे में बताया गया। अगले दिन छः मई को प्रातःकाल नाश्ता करके टाटा सूमो पर सवार होकर हम सभी लोग गन्तोक के ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक दृश्यों को देखने के लिए चल दिए। सबसे पहले हमें बौद्ध धर्म के शिक्षणालय ले जाया गया,जहाँ बौद्ध अनुयायियों को शिक्षित करने की भी व्यवस्था थी। यह स्थान अत्यंत प्राचीन है। इस स्थान पर महात्मा बुद्ध के उपदेशों को भी अंकित किया गया है। दीवारों पर निर्मित चित्रों द्वारा बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की भी व्याख्या की गई है। तत्पश्चात हमारा दल जाँगरीला जलप्रपात देखने गया। यह स्थान वहाँ के किसी प्रसिद्ध जादूगर की याद में बनवाया गया है। छात्रों ने न केवल उस प्राकृतिक को देखकर अपनी नेत्र-पिपासा शान्त की वरन परम्परागत वस्तुओं का क्रय भी किया। इसके बाद फूल प्रदर्शनी,हस्तशिल्प कला केन्द्र तथा रोपवे देखकर हम दोपहर के भोजन हेतु पुनः होटल पहुँच गए। संध्या के समय हम लोग गन्तोक के मुख्य लाल बाज़ार खरीददारी एवं संध्या कालीन
हलचल देखने के लिए चल पड़े। इस स्थान पर छात्रों ने जमकर खरीददारी की। डॉ0 अंसारी ने वहाँ की परम्परागत वस्तुओं की खूब खरीददारी की। शब्बीर जी और मेरी रुचि केवल परिधानों के क्रय तक ही सीमित रही। हितेश दास जी के थैलों को देखकर लगता था कि मानों बाजार के सारे नमूने उनके थैले में सिमट गए हों।
सात अप्रैल की वह सुबह अत्यंत सुहावनी लग रही थी क्योंकि आज की यात्रा सर्वाधिक रोमांचक थी। समस्त साजो सामान के साथ हम लोग जल्दी ही साँगू झील के लिए चल पड़े। इस झील के बारे में पहले ही सुन रखा था कि इसके सुंदरता को देखकर मानसरोवर का भ्रम सा हो जाता है। गाइड ने हमें रास्ते में आने वाले सिटी व्यू प्वाइंट और गणपति टोक भी दिखाया। इस स्थान से गन्तोक धरती के स्वर्ग के समान दिखाई देता है। दोपहर तक हमारा दल साँगू झील पहुँच गया। उस स्थान की मनोहारी सुंदरता देखकर ऐसा लगा ृ कि लोग जो भी इसके बारे में बताते हैं,वह कदाचित् मिथ्या नहीं है। झील के चारों ओर बिखरा हुआ बर्फ जमीन पर बिछी सफेद मखमली चादर का एहसास करा रहा था। वाहन विश्राम स्थल के निकट लगी हुई छोटी-छोटी दुकानें खानपान के सामान से भरी होने के कारण बच्चों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र बन चुकी थीं। डॉ0 अंसारी बर्फ़ को हाथों में थामें आज बचपन की क्रीड़ाओं को करने के लिए आतुर दिखाई दे रहे थे। शब्बीर जी अपने वीडियो कैमरे को हाथ में थामें प्रकृति के इस मोहक दृश्य और अपनी आतुरता भरी छवि को चलचित्र के रूप में कैद करने के लिए व्यग्र दिखाई दे रहे थे। ऐसे समय में मेरा वहाँ पहुँचना उन्हें ठीक वैसा ही लगा जैसा कि प्यासे को तालाब के समीप पहुँचने पर लगता है। मैंने भी उनके मौन निवेदन को सहर्ष स्वीकार कर लिया। उस समय दास बाबू की जिज्ञासा देखते ही बनती थी। वे भी वहाँ पर उपस्थित यॉक के साथ हुई अपनी मुलाकात की स्मृतियाँ सँजोना चाहते थे। दोनों की इस उत्कण्ठा को भी पूर्ण करने में मैंने खासी रुचि दिखाई। प्रकृति का वह सौम्य रूप किसी को भी मंत्र मुग्ध करने में सक्षम जान पड़ रहा था। वहाँ के दुकानदारों से पता चला कि यहाँ से बाबा मंदिर और चीन की भौगोलिक सीमा अधिक दूर नहीं है परन्तु मौसम के बदलते मिज़ाज के कारण वहाँ जाने का विचार त्यागना पड़ा। गाड़ियों में सवार होते ही बर्फ़ की फुहारें गिरनी शुरू हो गईं। आसमान से गिरती बर्फ़ कोमल रूई के समान कोमलता का दामन थामें महसूस हो रही थी
आठ अप्रैल को हमारा दल पैलिंग के लिए रवाना हो गया। दिनभर पहाड़ी रास्तों के सफर के बाद हम पैलिंग पहुँचे। न्यू आर्चिड गेस्ट हाउस में हमारे साथियों के ठहरने की अत्यंत सुंदर व्यवस्था थी। संध्या के समय थकान दूर करने के लिए हम सभी बाजार घूमने निकले लेकिन पहाड़ की भीषण आँधी और तूफान को यह भी मंजूर नहीं था। उसने हमारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। भीषण बारिश का सुफल हमें अगले दिन मिला। होटल की छत से पश्चिम दिशा में देखने पर सोने के समान चमकदार आभा युक्त पर्वत श्रृंखला दिखाई दी। स्थानीय लोगों ने बताया कि इनमें सबसे ऊँची चोटी कंचनजंघा है और बाकी सब उसकी सहायक चोटियाँ हैं। नाश्ते के बाद हम लोगों ने कंचनजंघा जलप्रपात के साथ-साथ अन्य कई दर्शनीय स्थलों को भी देखने का आनंद उठाया। यहाँ छात्रों ने अत्यंत प्राचीन बौद्ध शिलालेखों तथा शिक्षालयों को भी देखा। इन सभी स्थलों की स्वच्छता देखने के बाद सचमुच ऐसा महसूस हुआ कि सिक्किम की सरकार तथा यहाँ की जनता इसे स्वच्छ रखने के लिए कटिबद्धता अपनायी होगी। उनका यही प्रयास इसे स्वर्ग-सा सुंदर बनाने में मदद करता होगा। यात्रा के अगले चरण में यहाँ से बीस किलोमीटर की दूरी पर बना एशिया का दूसरा सबसे बड़ा लोहे के बीम पर झूलने वाला पुल देखा। इसकी मजबूती एवं संरचना देखकर मन आश्चर्य से भर उठता है कि भला इतने भारी लोहे के पुल को किस तरह निर्मित किया गया होगा। लोगों की माने तो इसके निर्माण में न जाने कितने मजदूरों ने अपनी जानें गँवा दीं। लोगों की कुर्बानियों ने इस पुल को एक दर्शनीय स्मारक बना दिया है
दस अप्रैल को हमारा दल वापस लौट पड़ा जहाँ रास्ते में सरकार द्वारा बनाया जा रहा जल विद्युत परियोजना संयंत्र के साथ-साथ पर्यटन का मनोरंजक स्थल भी देखा। दोपहर को तिस्ता नदी के तट पर पहुंचकर हम सभी ने मिलकर इसकी तूफानी लहरों में नौकायन का आनंद भी लिया। छात्रों के द्वारा इस नदी में की गई राफ्टिंग सबसे अधिक पसंद की गई। भयानक नाद करती हुई उठती-गिरती लहरों पर विजय पाने का आनंद वास्तव में एक नयी स्फूर्ति प्रदान करने वाला अनुभव था। इस यात्रा में छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों का उल्लास भी देखते ही बनता था। ऐसा महसूस हो रहा था मानो वे भी अपनी बाल्यावस्था में पुनः पहुँच गए हों। लोगों के मन का आह्लाद उनकी बाह्य प्रतिक्रियाओं के द्वारा स्वतः परिलक्षित हो रहा था।
दोपहर के बाद हम सब बस पर सवार होकर न्यू जलपाई गुड़ी के लिए रवाना हो गए। ट्रेन के आने में विलम्ब था। छात्र नेताओं ने इस दौरान स्टेशन पर ही मनोरंजक क्रियाकलापों की झड़ी-सी लगा दी। ट्रेन के आते ही हम सभी अपनी-अपनी नियत सीटों पर विराजमान हो गए। रास्ते में छात्रों ने ट्रेन में बिकने वाली चीजों की भरपूर खरीददारी कर एक अच्छे खरीदार होने के गुणों को भी आत्मसात कर लिया। विद्यालय पहुँचने पर छात्रों के खिले हुए चेहरे यात्रा की सफलता की कहानी बयान करते दिखाई दे रहे थे। हम सभी के लिए यह यात्रा एक अविस्मरणीय यात्रा बन चुकी थी।
बहुत सुंदर संस्मरण!
जवाब देंहटाएंvery good one sir
जवाब देंहटाएंvery well written sir.
जवाब देंहटाएं