हम लोग कई दिनों से ‘‘चन्दे'' के इंतजार में थे। लोक सभा के नामांकन फॉर्म भरने का सिलसिला पिछले तीन दिन से जारी था, पर चंदे का क...
हम लोग कई दिनों से ‘‘चन्दे'' के इंतजार में थे।
लोक सभा के नामांकन फॉर्म भरने का सिलसिला पिछले तीन दिन से जारी था, पर चंदे का कोई अता-पता नहीं था। चन्दे यानी कि - चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव। कस्बे के लोग उसे चंदे ही कहते हैं।
बी.ए. पास चंदे एक संभागीय अखबार का स्थानीय संवाददाता-सह-एजेन्ट है। वह अखबार की दो सौ प्रतियां हमारे कस्बे में खपा लेता है और महीने में इससे दो हजार रूपये कमाता है। इसके लिये एक हॉकर की मदद से वह खुद भी सुबह अखबार बाँटता है। प्रायः दिन भर चंदे हमको कस्बे की सड़कें नापता मिलता है
-खबरें खोजता हुआ। रानीपुर टेरीकॉट का सफारी सूट या खादी के कुर्ता-पाजामा पहने, पांव में हवाई चप्पल उलझाये वह बार-बार बगल में दबी डायरी के पन्ने फड़फड़ाता रहता है।
मैं सन् अस्सी के आम चुनाव से उसे पूरे उत्साह से चुनाव लड़ता देख रहा हूँ। बीते अठारह वर्षों के हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हमारे यहाँ का मतपत्र चंदे के नाम से विभूषित रहा आया है। संविधान के बताये मुताबिक तो इस अवधि में मात्र तीन-तीन चुनाव होना थे, लेकिन राजनैतिज्ञों के पारस्परिक विद्वेष और दुनिया भर के आंदोलनों, घोटालों के चलते हमारा प्रदेश पांच-पांच चुनाव झेल चुका है, इस जरा सी अवधि में।
हर चुनाव में चन्दे हम पचास लोगों से पचास रूपये प्रति व्यक्ति चन्दा लेता है और बाकायदा रसीद जारी करता है। पांच सौ रूपया जमानत की फीस भरता है। शेष दो हजार रूपया चुनावी दौरों के लिये सुरक्षित रखता है। बस इतने से खर्च का निश्चित बजट है उसके पास, न इससे ज्यादा और इससे कम, चुनाव आयोग बहुत खुश है उससे।
चंदे को हर बार नया चुनाव-चिन्ह मिलता है। वह उस चिन्ह को हार्डबोर्ड में चिपकाकर कटाता है और अपनी साइकिल पर टांग लेता है। फिर निहत्था वह है, उसकी साइकिल है और समूचा चुनाव क्षेत्र है, यानी कि मतदाता हैं, चुनाव कार्यालय है, चुनावी सभायें हैं। रात-दिन दौरे करता है वह अकेला। साथ में भुने हुये चने या फिर भुने आटे की पंजीरी लिये। चंदे अपनी काली डायरी साथ रखता है इन दिनों। इस डायरी में चुनाव क्षेत्र की खास-खास समस्याओं को नोट करके रखता है वह। जाने उसकी अजूबी सी शक्ल-सूरत का कमाल है या कोई दूसरी विशेषता या उसकी आत्मा की अनबुझी प्यास, कि चंदे हरदम बेचैन-सा दिखता है। जब भी हमसे मिलेगा इधर-उधर ताकता आधी-अधूरी सी बेतरतीब बात करेगा। दुनिया-जहान की चिंतायें सीने में पाले रहेगा। फिर यकायक खिसक लेगा, बिना कुछ कहे।
उसकी चुनावी सभाओं में प्रायः पच्चीस आदमी से ज्यादा इकट्ठा नहीं होते हैं। हाँ जब लोगों को मजे लेना होता है तो बाकायदा तख्त और माईक का इंतजाम करा के चंदे से भाषण देने का आग्रह किया जाता है। सच मानिये, चंदे की ऐसी चुनावी-सभाओं में हजार-दो-हजार की भीड़ जुट जाना आम बात है। उसके भाषण सूचनात्मक रहते हैं जिन्हें सुन के लोग हंसी खेल में याद करते हैं फिर दूसरों को सुनाते हैं।
‘‘आपने अब तक धन्ना सेठों को जिताया, अबकी बार एक गरीब को जिताइये।''
‘‘सच कहता हूँ यदि आपने मुझे विधायक बना दिया, तो मैं वादा करता हूँ कि एक ऐम्बुलेंस आप लोगों की बहु-बिटिया की डिलिवरी के लिये जनाना अस्पताल पहुंचाने के काम में हमेशा तैयार रहेगी, यदि ऐम्बुलेंस न हुई तो मैं अपनी कार आपको सौंप दूंगा।''
‘‘ यदि आपने मुझे भारी बहुमत से जिताया, तो मै हमारे कस्बे के डालडा कारखाने का सरकारीकरण करवा दूँगा। कस्बे में कई फैक्टरियां खुलवाउंगा।''
‘‘ यदि मैं जीता तो हर चौराहे पर प्याऊ बनवाना मेरा पहला काम होगा।''
‘‘ कस्बे की जनता बूंद-बूंद पानी को तरसती है, मैं सिंध नदी की नहर बनवाकर झलाझल कर दूंगा।''
आरक्षण के मसले पर चंदे के वचन थे - ‘‘ सवर्ण नौजवानों से वायदा करता हूँ कि यदि उन्होंने मुझे जिता दिया तो मैं जितने प्रतिशत पद आरक्षित नहीं हैं यदि कि 31 प्रतिशत पद सवर्णों को आरक्षित करके 69 प्रतिशत पद दूसरे वर्गों के लिये छुड़वा दूंगा।''
सड़क छाप आदमी के ऐसे अकादमिक विचार सुन, लोग उसे शेख चिल्ली समझते थे, उस पर हँसते थे। पर वह क्षेत्र की समस्याओं पर सचमुच बहुत गंभीर रहता था।
एक बार ऐसी ही सभा में उसने देश के प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिये। उसी रात किसी अज्ञात व्यक्ति ने उस पर हमला कर दिया था। कस्बे के पत्रकारों ने चंदे का मामला हाथों-हाथ लिया, कलेक्टर और एस.पी. परेशान हो उठे। चंदे को श्रेष्ठतम चिकित्सा मुहैया कराई गई और आनन-फानन में उसे एक-तीन का सुरक्षा गार्ड दे दिया था।
अब साहब, गार्ड मिले या कमांडो, चंदे अपनी औकात जानता था सो कोई फर्क नहीं पड़ा। उसकी अपनी चुनावी दिनचर्या जारी थी। यानि कि तड़के जगना, गांव बाहर जाकर दिशा मैदान से निवृत्त होना, लौटकर किसी पड़ोसी के घर चाय का सरूटा भरना और फिर चने की पोटली लेकर क्षेत्र में निकल जाना। मुसीबत थी गार्ड की। ऐसे आदमी से खाने की तो बात दूर चाय की भी आशा न थी। तालाब किनारे जाकर इत्मीनान से मलत्याग कर रहे चंदे के चारों ओर सुरक्षा घेरा बनाकर खड़े रहना भी कम कष्टकर न था उनके लिये। पर ड्यूटी तो ड्यूटी थी। चेहरे पर बेबसी लिये वे लोग, चंदे के इर्द-गिर्द रहने को मजबूर थे।
चुनाव अधिकारियों से लेकर चुनाव आयोग तक बल्कि (जब तक कि शेषन रहे सीधा शेषन तक) वह हर चुनाव में सैकड़ों शिकायतें फाइल करता। प्रायः उसे भोला सा विस्मय होता कि जब पोलिंग-बूथों पर उसका अभिकर्ता बनने के लिये सैकड़ों युवक हर बार उससे सम्पर्क करते हैं, तो उसे आखिर उतने वोट भी क्यों नहीं मिल पाते - जितने उसके एजेन्ट बनते हैं। सचमुच एजेन्टों की फौज लगातार बढ़ती थी उसके चुनाव में, वोट भी। एक बार तो ऐसे समीकरण बने कि नेताओं से उकताये लोगों ने चंदे को वोट दिया। वह दूसरे स्थान पर रहा। वैसे हर बार के चुनाव में उसे दो-चार सौ वोट बढ़कर मिलते। वह बाल-सुलभ उत्साह से अपने आर्थिक सहयोगियों के पास आकर ‘‘मतपत्र लेखा'' दिखाते हुये कहता कि देखो हर चुनाव में मेरा जनाधार बढ़ रहा है। अगली बार सब कुछ ठीक रहा तो मै ही जीत रहा हूँ। लोग उस भोले और ईमानदार आदमी का विश्वास न तोड़ते।
मेरी स्टेशनरी की दुकान थी। चंदे मुझसे खूब सारे कागज खरीदता, लिफाफे खरीदता और दर्जनों बाल पेन भी।
मैं पूछता तो बताता कि कस्बे की समस्याओं के बारे में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को वह प्रायः पत्र लिखता रहता है।
मैं आगे पूछता कि इससे क्या कोई हल निकलता है ? तो आँखें चमकाता वह फुसफुसाते हुये बोलता ‘‘ये जो कस्बे में नयी-नयी रोडें डाली जा रही है।, यह मेरी ही बदौलत है। कस्बे की हर समस्या पर मेरी नजर है।'' वह प्रायः कहता ''इतने भ्रष्टाचार और गुण्डागर्दी के बाद भी हमारे देश में अभी न्याय जीवित है। इंसानियत अभी भी खूब फल-फूल रही है और यह समूचा तंत्र अभी भी विश्वास के काबिल है। मेरा लिखा एक भी पोस्ट-कार्ड बेकार नहीं जाता। हमारा संविधान आज भी जीवित है। ये क्या कम बात है कि देश का कोई भी नागरिक किसी भी पद का चुनाव लड़ सकता है, किसी भी अदालत में जाकर निःशुल्क जनहित याचिका लगा सकता है।''
लोग उसे क्रैक बताते हैं पर मैं उसे उसके प्रति सहानुभूति ही रखता हूँ और उसके भोले विश्वासों की लम्बी उम्र के लिये खूब प्रार्थनाएं करता हूँ। आखिर हममें से अधिकांश की मान्यताओं को ही तो शब्द दे रहा है न वह।
पिछली बार उसका नामांकन फॉर्म निरस्त किया जाने लगा तो वह खूब चीखा-चिल्लाया। अंततः उसकी बात मानी गई, पर पहली बार उसे लगा कि वह चूँकि निर्दलीय उम्मीदवार है इस कारण उसे चुनाव अधिकारी पर्याप्त सम्मान नहीं दे रहे हैं - मेरे पास आकर वह यही दर्द बयान करता रहा था।
पिछले विधानसभा चुनावों में चंदे बुरी तरह पिटा भी था। दरअसल चुनाव के दिन दूर गाँव के एक पोलिंग-बूथ पर जब वह दौरे पर था तो उसने देखा कि जीप में भर के आये बीस-पच्चीस गुण्डों ने पूरा बूथ घेर लिया है। उनका विरोध करने वह आगे बढ़ा तो दो गुण्डों ने उसकी अच्छी-खासी मरम्मत कर दी थी। उस मतदान-केन्द्र के सारे वोटों पर सत्ताधारी पार्टी के प्रतिनिधि के निशान पर सीलें छपने लगी थीं।
आहत चंदे ने विवश और मायूस हो चारों ओर ताका तो दूर एक सफेद ऐम्बेसडर कार खड़ी नजर आई थी, वह गिरता-पड़ता उधर दौड़ा।
उसने ठीक पहचाना था। काले शीशों वाली उस कार के भीतर निवर्तमान विधायक बैठे थे।
माथा झन्ना गया उसका। वह चीखा चिल्लाया। पर शासन और प्रशासन तक उसकी आवाज कहाँ पहुँचना थी ? उधर जीप में सवार गुण्डे वहाँ से चले और इधर वह सफेद ऐम्बेसडर वहाँ से रवाना हो गई।
बाद में अखबारों से लेकर चुनावी अधिकारियों तक चंदे ने आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन उसकी किसी ने न सुनी। अब हाईकोर्ट में रिट दायर करना चंदे जैसे साधनहीन व्यक्ति को तो संभव था नहीं, सो वह थक हार के चुप बैठ गया था।
पिछले तीन दिन में दर्जनों लोग मुझसे आकर मिले हैं और यही पूछते रहे हैं कि इस बार चंदे ने फॉर्म क्यों नही भरा। मैंने आज शाम को ही घर जाकर चंदे से मिलना तय किया और दुकानदारी में उलझ गया।
चंदे बीमार था शायद।
वह कम्बल लपेटे बैठा था। अपने घर मुझे देखकर पहले वह विस्मित हुआ, फिर मुस्कराया और आगे बढ़कर स्वागत किया। बड़े सम्मान से उसने मुझे तख्त पर बिठाया और खुद खड़ा रहा। मैने उसके घर का मुआयना किया। रियासत के जमाने के घुड़साल के इस कमरे में ही पूरी गृहस्थी थी उसकी, यानि कि एल्यूमिनियम के पांच-सात बरतन, फटे पुराने रजाई-गद्दे तथा अलगनी पर झूलते चंदे और उसकी माँ के घिसे जीर्ण-शीर्ण कपड़े। जब उसकी माँ ने मेरे लिये चाय बनने रख दी तो चंदे कुछ निश्चिंत सा होकर मेरे पास आकर बैठा और मैंने उससे बातचीत शुरू की।
मेरे पूछने पर उसने कहा कि वह अब चुनाव नहीं लड़ेगा।
मैंने उससे कहा कि कहाँ तो तुम इस बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का हौसला बाँध रहे थे और कहाँ लोकसभा चुनाव की हिम्मत नहीं कर पा रहे।
‘‘बहुत महँगा हो गया है, अब चुनाव'' दर्द भरी आवाज में वह कह रहा था ‘‘आप ही बताओ कि दस हजार रूपये जमानत के भरना अब किस गरीब गुरवा के वश की बात है ! पचास रूपये के हिसाब से कितने लोगों से चंदा करने जाऊँगा मैं, और फिर अब तो निर्दलीय उम्मीदवार की जान की भी कोई कीमत नही चुनाव में। मुझे कहीं भी कोई मार डाले, क्या फर्क पड़ेगा ?''
उसकी आवाज यकायक फुसफुसाहट के रूप में मंदी हो गई, वह बोला ‘‘आप नहीं जानते बाबूजी, ये सब पैसे वालों और घाघ राजनीतिबाजों के षडयंत्र हैं। ये नहीं चाहते कि अब गरीब लोग चुनकर ऊपर आयें।''
मैंने औपचारिकता वश उसे आश्वस्त किया ‘‘तुम पैसों की चिंता मत करो, बहुत चाहने वाले है। तुम्हारे। ''
फीकी सी हँसी हँसा वह ‘‘ये तो आपकी कृपा है बाबूजी। पर मेरा मन सचमुच खट्टा हो गया है।''
‘‘क्यों ? '' मैने कहा।
मैंने देखा कि मेरी बात का जवाब देने में उसे बड़ी परेशानी हो रही है। शरीर काँप सा रहा था उसका। होंठ फड़क रहे थे और हाथ की मुटि्ठयाँ भींच ली थी उसने, फिर बड़े कड़वे स्वर में बोला था ‘‘दरअसल मेरा इस पूरे तंत्र से विश्वास उठ गया है।''
सुनकर स्तब्ध हो उठा मैं। लगा कि मन-मस्तिष्क में एक भीषण विस्फोट हुआ है, और रह रहकर एक गड़गड़ाहट सी गूंजने लगी है। जैसे टि्वन टॉवर पर लगातार हमले हो रहे हों। मस्तिष्क साथ छोड़ रहा था और मन में एक अजीब सी घबराहट पैदा हो रही थी, बल्कि यूँ कहूँ कि एक अनाम सा भय मेरे मन को जकड़ रहा था। यदि ब्लड प्रेशर नापने की मशीन पास में होती तो मेरा रक्तचाप निश्चित ही 140/240 होता।
फिर मुझसे बैठते नहीं बना वहाँ। चंदे अपनी उत्सुक और प्रश्नाकुल भोली दृष्टि से बेंध रहा था मुझे। वह शायद मेरे कुछ बोलने की उम्मीद कर रहा था। पर मुझमें साहस ही कहाँ बचा था।
उससे नजर न मिलाते हुये मैंने उसके कंधे हौले से थपथपाये और वहाँ से मायूस हो लौट आया - यानी इस बार हमारे मतपत्र में चंदे का नाम नहीं होगा।
तब से बहुत बेचैन हूँ मैं।
मित्रों, हो सकता है किसी और को ये बात बहुत छोटी लगे, पर मुझे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह एक हादसा ही लगता हैं।
एक आम-आदमी का हमारे समूचे तंत्र से विश्वास उठ जाना मेरी नजर में सबसे बड़ा हादसा है। आप क्या सोचते हैं इस विषय में ?
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rajnarayan bohare
LIG-19,housing colony datia m.p.
kahani sach se zyada dur lagti he..
जवाब देंहटाएंdil ko chhoo gai sirji
जवाब देंहटाएंkahani ke patra chande,kya Datia wale'Ramayani'hai? prayash achchha hai.
जवाब देंहटाएंkahani ke patra chade kya datia ke 'Ramayani'ji hai?prayas achchha hai.
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