नन्दलाल भारती एम.ए . । समाज शास्त्र । एल.एल.बी . । आनर्स पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डे...
नन्दलाल भारती एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट (PGD HRD) कवि, कहानीकार, उपन्यासकार
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संविधान के अधिनियम,नियम एवं समय-समय पर विभिन्न जारी कर सरकार ने केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों की राजभाषा हिन्दी को बनाने का प्रयास जारी है । परिणामस्वरूप हिन्दीभाषी क्ष्ोत्रों में ही नहीं अहिन्दी भाषी क्ष्ोत्रों में भी हिन्दी की पहुंच बढी है परन्तु हमें कहने में तनिक संकोच नहीं होना चाहिये कि राजनीतिक् गुलामी से मुक्त होकर भी भाषा की दृष्टि से गुलाम बने हुए हैं । देखना है हम इस गुलामी से कब मुक्त हो पाते है। दृढतापर्वक कहना कठिन हो गया है क्योंकि यह स्पष्ट नजर आने लगा है कि आर्थिक स्तर पर जितना विकास हो रहा है उतना ही हिन्दी ओर दूसरी क्ष्ोत्रीय भाषाओं के प्रति मोह कम होता जा रहा है । अंग्रेजी के प्रति विशेष मोह उत्पन्न होने लगा है । अंग्रेजी को आधुनिकता, अहम् अभिजात्य होने की परिचायक माना जा रहा है । मैं भाषा का विरोधी नहीं परन्तु जब कोई विदेशी-भाषा अपनेपन, अपने सद्संस्कारों और अपनी सद्सामाजिकता को छीनने लगे तब खतरे का द्योतक बन जाती है और ऐसे समय में सचेत हो जाना चाहिये क्योंकि राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के लिये गंगा है ।
वर्तमान समय हिन्दी के लिये ही नहीं सभी भारतीय भाषाओं के लिये संकट का समय है । अंग्रेजीपन के आधुनिकता, अहम्, अभिजात्यपन की खोखली विचारधारा से ऐसे ग्रसित हो चुके है कि इससे उपजी कुरूपता नजर ही नहीं आ रही है । ब्रिटिश शासन ने हमारे उपर अंग्रेजी लादकर मातृशक्ति से ही नहीं माटी के सोंधेपन से भी अलग कर दिया है । आज अंग्रेजीपन की ही देन है कि हम अपने इतिहास, सभ्यता, संस्कार, नैतिकमूल्य, सद्भावना से इतने दूर जा चुके है कि स्वयं तक को पहचानने में असमर्थ हो गये हैं । सत्य कहा गया है कि किसी देश की सभ्यता संस्कृति को गुलाम बनाना है तो उसकी भाषा को नष्ट कर दिया जाये तो देश अपने आप मर जाता है यही हमारे देश के साथ हुआ और अंग्रेजों ने दो सौ साल तक राज किया । भूमण्डलीयकरण के वर्तमान दौर में भी प्रयास जारी है पर विश्वास है एक दिन जरूर आयेगा जब गंगा मां रूपी हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी दुनिया के माथे की बिंदिया साबित होगी ।
विचारणीय बात ये है कि क्या इस देश के लोग ब्रिटिश शासन के पूर्व भी अंग्रेजी में ही बोलते बतियाते पढ़ते लिखते । इसका जवाब नहीं है क्योंकि हिन्दी का इतिहास बहुत पुराना है ग्यारहवी-बारहवी सदी में भी भारत में हिन्दी लिखी-पढी और बोली जाती थी । आदिलशाही, कुतुबशाही, इमामशाही और िनजामशाही राज्यों में तो हिन्दी सह-राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त थी । अकबर के दरबार में रहीम खानखाना हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे,औैरंगजेब की बेटी जेबुन्निसा हिन्दी में कवितायें लिखती थी । शेरशाहसूरी से लेकर बाद के सिक्कों पर फारसी के साथ हिन्दी का प्रयोग मिलता है । भारतीय राजाओं जैसे पेशवा, होल्कर सिन्धिया आदि सभी की राजभाषा हिन्दी थी वही राजभाषा हिन्दी आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है अपनों के बीच । वही हिन्दी जो आजादी के आन्दोलन की भाषा है । इसी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप ने ब्रिटिश शासन की जड़ें उखाड़ फेंकी। हिन्दुस्तान की सभी भाषायें-भोजपुरी, तेलगु, कन्नड़, मराठी, मलयालम, बंगला, गुजराती, मालवी आदि अपने आप में महान है ,इनका साहित्य समृद्ध है । परन्तु दुर्भाग्यवश अंग्रेजी मोह के कारण हमारा ध्यान अपनी राष्ट्रभाषा और मातृभूमि के गौरव पर नहीं टिकता जबकि हमारी हिन्दी भारतभूमि के लिये गंगा है ।
हिन्दी सम्पूर्ण राष्ट्र की भाषा है क्योंकि आजादी के प्रतीक तथा राष्ट्रीय सम्प्रभुता की द्योतक राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगीत की तरह राष्ट्रभाषा हिन्दी हमारी आजादी की पहचान है । हिन्दी में अमरत्व विद्यमान है जो परी दुनिया को प्रभावित कर सकता है । यही कारण है कि महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ हिन्दी के प्रचार प्रसा का आन्दोलन भी प्रारम्भ किये थे ।राष्ट्रभाषा देश की धमनियों में प्रवाहित होने वाली राष्ट्रीयता की जीवन्त रूधिर धारा है । इसके बिना पारस्परिक सम्पर्क सम्भव नहीं है ।हिन्दी के प्रति अटट आस्था और विश्वास अभिव्यक्त करना देश भक्ति है । हिन्दी का संबंध संस्कृति और संस्कारों से है । राष्ट्रभाषा हिन्दी भारतीयता की प्रतीक है। हिन्दी राष्ट्र की वाणी को मुखरित करने वाली,सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाली,विश्वबन्धुत्व की सद्भावना रखने वाली, मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिये संघर्ष करने वाली राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के जन-जन के अभिव्यक्ति की भाषा है । हमारा भी उत्तरदायित्व बनता है कि हम भारतीय अस्मिता को बनाये रखने के लिये राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार में अपना योगदान दे । राष्ट्रभाषा से सम्बन्धी राष्ट्रीय अवधारणा को सार्थक बनाये रखने के लिये समस्त भारतवासियों का कर्तव्य बनता है कि वे राष्ट्रभाषा की समृद्धि और विकास के लिये आगे आये ताकि राष्ट्रीय एकता को और अधिक बल मिले क्योंकि राष्ट्रभाषा रूपी गंगा को विदेशी भाषा के अतिक्रमण से मुक्त करना है ।
देश की संसद ने राष्ट्रभाषा के बारे में निर्णय लिया है कि सभी राज्यों की आमसहमति के आधार पर राजभाषा के रूप लागू किया जायेगा । यह आम सहमति जितनी तेजी से बनेगी देश की राष्ट्रीय एकता और जनहित के लिये उतनी ही अधिक लाभकारी और उपयोगी सिद्ध होगी। आज समय की मांग है कि राष्ट्रभाषा के उत्थान के लिये हर भारतीय एकजुट हो क्योंकि हिन्दी भारत के लिये गंगा है और दुनिया के लिये विश्वबन्धुत्व का आह्वान।
हिन्दी को मारने का षड़यन्त्र चल रहा है. संस्कृत को मार ही दिया. यद्यपि अब उर्दू, फारसी सीखने का जमाना आने वाला है.
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