गिरीश पंकज का व्यंग्य : शाम को उसे ‘टच’ मत करना

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बहुत दिनों से इच्छा थी कि  गपोडूराम के घर  जा कर  मिलूँ, कुछ बतियाऊं. कुछ उसकी सुनूं, कुछ अपनी सुनाऊँ, लेकिन टीवी देखने से मुझे फुरसत म...

girish_pankaj
बहुत दिनों से इच्छा थी कि  गपोडूराम के घर  जा कर  मिलूँ, कुछ बतियाऊं. कुछ उसकी सुनूं, कुछ अपनी सुनाऊँ, लेकिन टीवी देखने से मुझे फुरसत मिले तब न।
जब से टीवी ने टीबी की  बीमारी की तरह जोर पकड़ा है, तब से न तो किसी के घर  जाना अच्छा लगता है और न किसी का अपने घर पर  आना। ये ससुरे चैनल चैन नहीं लेने देते। इस चैनल के चक्कर में लोग बेचैन होने लगे हैं। लेकिन दिल है कि मानता नहीं। लगता है पुराने दोस्तों से मिल लिया जाय।
मैंने मित्र हपोड़ूराम से कहा- ‘‘चलो यार, आज शाम गपोड़ूराम के घर चलते हैं।’’
इतना सुनना था कि मित्र बोला- ‘‘अरे... अरे, उसे शाम को  ‘टच’ मत किया  करो। कभी दिन में, हाँ, छुट्टी वाले दिन मिलने चलेंगे न ।’’
मैं समझ गया कि गपोड़ू भी शाम को मेरी तरह टीवीबाजी में व्यस्त हो जाता होगा, इसलिए भाई हपोड़ू मना कर  रहे हैं।


कुछ दिन बाद फिर मेरी इच्छा  ने जोर मारा।
मैंने क हा- ‘‘चलें आज, गपोड़ू भाई के घर ?’’
मित्र  ने मुस्कराते हुए कहा- ‘‘शाम को  उसे ‘टच’ करना ठीक नहीं ।’’
मैंने झल्ला कर कहा- ‘‘अरे यार, तुम अपने मित्र को  इस टी.वी.फ़ोबिया से मुक्त करो। ये क्या  तमाशा है कि  शाम होते ही वह टीवी से चिपक जाता है।’’
मित्र  बोला- ‘‘यह बात नहीं है पार्टनर,  मामला कुछ और है।’’
‘‘क्या ? उसके घर  में कोई  बीमार है, जिसकी सेवा गपोड़ूराम करनी पड़ती है?’’
मित्र हंस कर  बोला- ‘‘यह बात भी नहीं, अब तुम …ज्यादा  जोर दे रहे हो तो बता देता हूं। हमारे मित्र  पीने-पाने के  शौकीन है। किसी बार में तो जा नहीं सकते, सो बेचारे घर पर ही शौक  पूरा कर लेते हैं। दो-चार पैग मारकर मस्त हो जाते हैं। और ऐसे माहौल में तुम उसके पास चले जाओगे तो रंग में भंग हो जाएगा। इसलिए कहता हूं कि भैया, शाम को  उसे  टच मत करना।’’


हमारे-आप के  शहर में भी ऐसे जीवों की भरमार होगी जिन्हें आप शाम को या रात को  टच करना पसंद नहीं करते होंगे। कुछ लोग तो दिन में भी टच न करने की  स्थिति में पाए जाते हैं। ये दारू चीज ही -कुछ ऐसी मस्त-मस्त है कि  जो पीता है, वही इसका  मजा लेता है। ये मैं नहीं कह रहा, वे पियककड  कह रहे हैं जो पीने का भयंकर किस्म का  शौक  पाल चुके  हैं। और हर वक्त ‘मधुशाला’ की  पंक्तियां दोहराते हैं।


मैं उनसे कहता हूं कि  जिस ‘मधुशाला’ की कविता आप सुना रहे हैं उसके कवि ने कभी शराब नहीं पी।
पियककड ने कहा- ‘इसीलिए तो उस ‘मधुशाला’ में वो बात नहीं है जो होना चाहिए। अरे, बिना ‘प्रेक्टिकल किये अच्छे नंबर भी कभी मिलते हैं.भला?’
मैंने कहा- ‘ये शराब का  नशा तो ऐसा है बंधु कि,  पीने के  बाद कुछ होश भी तो रहे। तभी तो किसी  प्रेक्टिकल ज्ञान की  प्राप्ति होगी।’
पियककड  भाई बोले- ‘ये भी ठीक रह रहे हो। लेकिन मैं तो सच-सच कह रहा हूं कि ये चीज बड़ी है मस्त-मस्त।’
उनकी  पंक्ति को  मैंने आगे बढ़ाते हुए -कहा- ‘


‘ये चीज बड़ी है मस्त-मस्त,
कर देती सब-को त्रस्त-त्रस्त,
हो जाता घर  भी अस्त-व्यस्त,
स्वास्थ्य  भी रहता लस्त-पस्त।
ये चीज है ऐसी मस्त-मस्त।’’


पियककड  महाराज बोले- तुम हमारे शराब संघ के आदमी नहीं हो, जाओ दुगध पान क-रो।
बाद में पता चला कि ये सज्जन भी ऐसे हैं कि  लोगबाग इन्हें  शाम को  ‘टच’ नहीं करते। ऐसे लोगों की संख्या  बढ़ती जा रही है जो शाम होते ही आबकारी  विभाग की  आय में वृद्धि -करने पर तुल जाते हैं। इसमें कुछ तो मौज-मस्ती वाले होते हैं, तो कुछ मजदूर भाई होते हैं जो सोचते हैं कि  दारू पी लो, थकान उतर जाती है। पता नहीं किस चालाक शराब ठेकेदार ने उनके दिमाग में यह  फिट कर  दिया है. जबकि  थकान तो घर पहुंच कर परिवार के  बीच जाने से वैसे ही उतर जाती है। ज़िंदगी की  आपाधापी पतझर है तो घर  एक  मधुमास है। और ये दारू क्या  है? दुष्यंत ने खूब अच्छे  से समझाया है-


दिनभर धूप का  पर्वत काटा,
शाम को  पीने निकले हम,
जिन गलियों में मौत बिछी थी,
उनमें जीने निकले हम।


तो, शाम को मौत की  गलियों में भटकने वाले लोगों की संख्या  बढ़ती जा रही है। कुछ लोग ' घर'  में, कुछ लोग 'बार' में, अब तो जो ज्यादा 'माडर्न' हो गए है, वे लोग ''परिवार' में पीने लगे हैं..कुछ लोग ‘अड्डे’ में शौक  पूरा करते हैं। आपका कोई दोस्त अगर किसी के बारे में यह कहे कि  उसे शाम को  ‘टच’ मत करना, तो आप थोड़ा-सा पुन्य  जरूर कमाएं और उन्हें टच करें और समझाएं कि आप दारू को  टच न करें। क्योंकि ये जब शरीर के भीतरी हिस्से को  टच करना शुरू  करती है तो शरीर ‘बच’ नहीं पाता। और हाँ, इस बात का भी ध्यान रखें, कि दारू छुड़ाने के चक्कर में खुद भी शराबी न बन जाये. मेरे एक मित्र के साथ यही हुआ. अब उनका दरुहा मित्र अपने मित्र की शराब छुड़ाने की कोशिश कर रहा है.
मैं आज शाम अपने मित्र  गपोड़ूराम के घर  जा रहा हूं... उसे ‘टच’ करने। और जाकर बोलूंगा-


छोड़ दे पीना छोड़ शराबी,
बोतल अपनी तोड़ शराबी।
जीले जीवन को मस्ती से,
मौत से ले मत होड़ शराबी।

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गिरीश पंकज
संपादक, " सद्भावना दर्पण"
सदस्य, " साहित्य अकादमी", नई दिल्ली.
जी-३१,  नया पंचशील नगर,
रायपुर. छत्तीसगढ़. ४९२००१

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. काश कि कोई शराबी ध्यान दे

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  2. काश कि कोई शराबी इसे पढ़े और समझे और फिर करे

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  3. जीवन में उतारने लायक सन्देश ....बधाई

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  4. Shaam ko use tuch mat krana...ke liye vyangyakar Girish Pankaj ko badhaee.kisi kavi ne kha hai ki sharaab me nasha hota to nachti botal...peene wala bhi kam nhi...khushi me bhi peeta hai aur gam me bhi peeta hai..Pashchimi sbhyta ham par havi ho rhi hai..hme apne desh ki culture ko bachaana hai..tabhi ham bach sakte hain...Deendayal Sharma..0914514666

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  5. बहुत बहुत सुन्दर व्यंग्य , बधाई हो |

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रचनाकार: गिरीश पंकज का व्यंग्य : शाम को उसे ‘टच’ मत करना
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