(चित्र में – बाएँ से : दीनदयाल शर्मा, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम, आर.पी.सिंह) रेलवे फाटक बंद था। फाटक को एक दूसरे से जल्दी पार करने क...
(चित्र में – बाएँ से : दीनदयाल शर्मा, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम, आर.पी.सिंह)
रेलवे फाटक बंद था। फाटक को एक दूसरे से जल्दी पार करने की होड़ में दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गई थी। दस-बारह वर्ष की उम्र के कई बच्चे हाथों में खाने का कुछ सामान लिए गाड़ियों के चारों ओर चिल्लाते घूम रहे थे- ले लो मूंगफली पांच रुपए की सौ ग्राम, चना कुरमुरा पांच रुपए.... गजक, रेवड़ी, तिल पापड़ी दस रुपए पैकेट, मूली दो रुपए... सलाद पांच रुपए....।
सुनो, कुछ खाओगी? गाड़ी में बैठे फाटक पर रुके अजय ने अपनी पत्नी कान्ता से पूछा। कान्ता ने ना में सिर हिलाया।
मौसमी चीजें खाने से शरीर की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। मूली से पेट साफ रहता है और शरीर में आयरन की पूर्ति भी होती है और....।
लेकिन मुझे इसकी गंध पसंद नहीं है, कान्ता ने अजय की बात को बीच में ही काटा।
तभी तो आयरन की पूर्ति के लिए दवाई लेती रहती हो।
केवल दवाई से काम नहीं चलेगा, खुले में धुएं व धूल से प्रदूषित चीजें खाने से तो अस्पताल में भर्ती होना भी पड़ सकता है, कान्ता ने सिर खुजाते हुए कहा, पता नहीं, यह फाटक कब तक बंद रहेगा? यहां तो एक फ्लाईओवर होना चाहिए। इससे पेट्रोल व समय की बचत होगी।
कान्ता, प्रत्येक नागरिक विकास के नाम पर सुविधाएं तो चाहता है लेकिन टैक्स देने के नाम पर सरकार को गालियां देना शुरू कर देता है। इस दुनिया में आज सभी को जल्दी लगी है लेकिन सरकार के पास साधन होंगे तभी तो विकास कार्य होगा। सभी चाहते हैं कि सरकार सारे काम मुफ्त में कर दे लेकिन बिना पैसे विकास कैसे होगा?
हमारे हिस्से का टैक्स तो चाहे सरकार आज ही ले लेवें पर इस समस्या से छुटकारा तो मिले।
देखो, सरकार इस फाटक पर फ्लाईओवर बनाने का विचार कर ट्रैफिक सर्वे करवा रही है, सड़क के बाईं ओर लगे एक टैंट की ओर इशारा करते हुए अजय ने कहा।
बाबूजी, आप भी कुछ लेंगे? दस-बारह वर्ष के एक बच्चे ने पास आकर अजय का ध्यान तोड़ा, मूली, गाजर या सलाद? मसाला व नीबू लगाके... अच्छा लगेगा।
तुम पढ़ते क्यों नहीं? इस तरह कब तक गुजारा करोगे?
मतलब तो गुजारे से है साहब। चाहे सलाद बेचकर ही हो।
यह तुमने कहां से सीखा?
दुनिया से सीखा है। मेरे बड़े भाई ने फर्स्ट डिवीजन से एम.एम. बी.एड. पास किया है। नौकरी की तलाश में है। छोटा-मोटा काम करने में उन्हें शर्म आती है, पढ़े लिखे जो हुए। प्रतियोगिता के इस जमाने में क्या पता नौकरी मिले या नहीं। इसलिए मैंने पढ़ाई के साथ-साथ यह धन्धा भी शुरू कर दिया। मैं और मेरे पिताजी दो-तीन सौ रुपए रोज कमा लेते हैं। दिन भर में पन्द्रह रेल गाड़ियां यहां से गुजरती हैं। हर गाड़ी के गुजरने पर फाटक बीस मिनट बंद रहता है। कुल मिलाकर पांच घण्टे फाटक बंद रहता है।
गणित में बड़े होशियार हो?
गणित के आंकड़ों ने ही मुझे कमाने के लिए प्रेरित किया है, बाबूजी।
अभी कमाने लायक हो कहां? तुम तो बाल-श्रम कानून में आ सकते हो।
बाबूजी, पेट पालना भी यदि कानून में आता है, तो सजा करो। जेल में रोटी तो मिलेगी।
फ्लाईओवर बनने के बाद क्या करोगे? तब तुहारी रोजी-रोटी का क्या होगा?
बाबूजी, बार-बार फाटक बंद होने से परेशानी तो सभी को है लेकिन हम जैसों की रोजी-रोटी भी तो इसी फाटक से है। फ्लाईओवर बनने के बाद कहीं और धंधा ढूंढ़ लेंगे। पेट पालने के लिए समझदारी और लगन चाहिए।
तुम वास्तव में एक मेहनती बच्चे हो। क्या नाम है तुहारा?
सूरज।
लाओ, अच्छी तरह साफ करके एक मूली दो।
सूरज ने अजय को अच्छी तरह से साफ करके एक ताजा मूली दे दी। तभी रेलगाड़ी धड़धड़ करती हुई गुजर गई। गाड़ियों से निकलते हुए तथा पीं-पीं पों-पों ने वायु तथा ध्वनि प्रदूषण को चरम सीमा तक पहुंचा दिया। अजय ने सूरज को दो रुपए का सिक्का थमाया और फाटक खुलते ही अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी। सर्वे के आधार पर फ्लाईओवर बनना निश्चित था। फ्लाईओवर बनने में लगभग छः महीने लगे। उन दिनों फाटक के दोनों ओर वाहनों का जमावड़ा लगा रहता। सूरज व उसके पिता रामदीन ने मिलकर अच्छी कमाई की। रामदीन पहले जितनी कमाई से परिवार पालता और अतिरिक्त कमाई को बचाकर बैंक में जमा करवाता। फ्लाईओवर बनने के बाद गाड़ियां बिना रुके फर्राटे से रेलवे लाइन पार करने लगी। अब गाड़ियों का जमावड़ा नहीं रहता था। एक ओर जनता की परेशानी दूर हुई तो दूसरी ओर फाटक के दोनों ओर फेरी लगाकर रोजी-रोटी कमाने वाले रेहड़ी व खोमचेवाले बेराजगार हो गए थे। वे अपनी बीवी को कोसते व फर्राटे से जाती गाड़ियों पर खीजते। फाटक पर ऊंघते हुए एक रेहड़ीवाले साथी ने एक दिन सूरज को साइकिल पर वहां से गुजरते हुए देखा। उसने जोर से आवाज लगाई, अरे सूरज, ठहर जरा। आजकल तुम बाप-बेटे दिखाई नहीं देते। कहां चले गए, धन्धा छोड़ दिया क्या?
नहीं, बिहारी चाचा। गांधी चौराहे पर हमने एक दुकान किराए पर ले ली है। भगवान की दया से दुकान चल भी निकली है, सूरज ने रुककर कहा।
दुकान? लॉटरी लग गई क्या?
बिहारी चाचा, भगवान उन्हीं की मदद करता है, जो स्वयं अपनी मदद करते हैं। ऐसा मैंने पढ़ा है।
क्यों मुहावरे बुझा रहे हो? भगवान ने तुहारी मदद कैसे की? यह बताओ मुझे।
बिहारी चाचा, पिछले दिनों यह फ्लाईओवर बनते समय लगभग चौबीस घण्टे की फाटक के दोनों ओर वाहनों का जमावड़ा लगा रहता था। एक ओर के वाहन निकालते समय दूसरी ओर के वाहनों को रोकना पड़ता था। इसी से सभी खोमचे-रेहड़ीवाले की अच्छी कमाई हुई थी।
फिर?
हमने उस अतिरिक्त कमाई को बचाया और फाटक के पास का धंधा बंद होते ही उस बचत से हमने दुकान किराए पर ले ली। बिहारी चाचा, है न समझदारी की ‘छोटी सी बात’, कहकर सूरज चलने लगा।
बात तो बहुत छोटी लगती है, पर सोच बहुत बड़ी है, सूरज। हम इस छोटी सी बात को समझ नहीं पाए। हमने तो उस अतिरिक्त कमाई से घर में सोफा खरीदा, रंगीन टीवी खरीदा और न जाने क्या-क्या खरीदा। अब हमारी समझ में आई कि बचत में ही जीवन है, सुख है।
आप ठीक समझे बिहारी चाचा। जो व्यक्ति भविष्य की चिंता किए बिना अपनी कमाई को व्यर्थ में खोता रहता है, वह हमेशा दुखी रहता है।
हां सूरज, अब हम भी तुम्हारी तरह अपनी आवश्यकताओं को कम करके बचत शुरू करेंगे और तुहारी तरह एक निश्चित धंधा शुरू करेंगे, कहते हुए बिहारी चाचा ने आवाज लगाई, मूली दो रुपए...सलाद पांच रुपए प्लेट...।
वह ग्राहक का इंतजार करने लगा।
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प्रेषक : दीनदयाल शर्मा, मानद साहित्य संपादक, टाबर टोल़ी, हनुमानगढ़ जं., राजस्थान
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