आज मैं सुख की चर्चा करूंगा। एक जमाना था, जब मैं विवाहित नहीं था। फिर कुछ ऐसा चक्कर चला कि गृहस्थ हो गया। अब हालात ये है कि दिन बाद में ...
आज मैं सुख की चर्चा करूंगा। एक जमाना था, जब मैं विवाहित नहीं था। फिर कुछ ऐसा चक्कर चला कि गृहस्थ हो गया। अब हालात ये है कि दिन बाद में आता है और नहाना पहले पड़ता है। न नहाने की कला में माहिर लोगों का ख्याल है कि सर्दियों में यदि आप नहाने से बच जायें तो समझिये आप गंगा नहा आये। मगर माफ करिये अब वो सुनहरे होस्टल के दिन कहां रहे, जब बिना नहाये कॉलेज जाया जा सकता था। अब तो 'बिना स्नान सब सून' की स्थिति है।
यह सब याद आने का कारण ये है कि पिछले दिनों लन्दन में एक सर्वेक्षण किया गया कि बिजली की अधिक खपत के कारण क्या हैं ? और आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इसका एक कारण लन्दन में बसे भारतीय हैं जो रोजाना नहाने के लिये पानी गर्म करते हैं। आखिर हमारा देश स्नान करने की सुदृढ़ परम्परा का देश है।
स्नान वीरों का है ये देश। हम अपनी स्नान करने की संस्कृति को, परम्परा को विदेशों में भी याद रखते हैं। कौन है जो ये कहता है कि हम अपनी जड़ों से कट रहे हैं, अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं, मेरे प्यारे दोस्तो, आओ........आओ देखों कि स्नान सुख की संस्कृति को हम कहां भूले हैं। विदेशी धरती पर भी हम अपनी स्नान परम्परा को कायम रखे हुए हैं।
सर्दियों में स्नान करना परम पुरूषार्थ हैं। हमारे देश में तो मासिक स्नानों तक का महत्व है। चैती नहाना या कार्तिक नहाना तो हमारी परम्परा का गौरवशाली हिस्सा रहा है। क्या औरतें, क्या पुरूष और क्या युगल और दम्पत्ति, कोई इस स्नान सुख से वंचित नहीं रहना चाहता। अलबत्ता कुछ नासमझ, नई पीढ़ी के बच्चे और युवा इस स्नान ध्यान को पुराना और दकियानूसी समझने लगे हैं, लेकिन यहां तो स्नान कुम्भों की परम्परा है। कभी पूर्णिमा का स्नान, तो कभी गंगा स्नान तो कभी गंगा सागर में मकर संक्रान्ति का स्नान, क्या आस्तिक क्या नास्तिक, सभी स्नान करने में परम् सुख पाते हैं।
पुराने लोग अनुभव करते हैं कि स्नान के साथ-साथ पाप भी धुल रहे हैं, नये लोग मानते हैं कि स्नान के साथ ही शरीर में स्फूर्ति आ रही है। मैल बहकर जा रहा है और टी.वी. वाली पीढ़ी समझती है कि नहाने के तुरन्त बाद वे फलां तारिका या फलां एक्टर जैसी दिखने लग गई है। क्या स्नान को केवल भौतिक या दैहिक स्तर पर सीमित रख दें। नहीं भाई सर्दी कितनी ही पड़े स्नान का धार्मिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और आत्मिक सुख भी है, जो अनिर्वचनीय है। अब चाहे आप स्नान हेतु गलता जायें या पुष्कर या मातृ-कुण्ड्या या फिर बाथरूम सिंगर बनकर स्नान सुख प्राप्त करें, एक बात अवश्य है कि स्नान जीवन की अनुभूति देता है।
जो लोग कठौती में गंगा समझते हैं वे तो काक स्नान से भी तृप्त हो जाते हैं और कुछ एक दो लौटे से ही पवित्र हो जाते हैं, लेकिन स्नान के मामले में जो मजा धूप स्नान का है, वो अन्य स्नानों में कहां। विदेशों में ही नहीं, अपने यहां केरल में कोवलम्-बीच, गोवा और बम्बई के समुद्री तटों पर या पांच सितारा होटल के स्वीमिंग पूलों के किनारे पर धूप सेंकते विदेश जोड़े आपको धूप स्नान का महत्व समझाने को काफी है।
स्नान को भारतीय ऋषि वात्स्यायन ने सोलह श्रृंगारों में से एक माना है। इसके अभाव में सभी श्रृंगार व्यर्थ, अनावश्यक और अछूत नजर आते हैं।
बालक के उत्पन्न होते ही स्नान, उपनयन-संस्कार में स्नान, देव पूजन, राज्योरोहण दीक्षा, ग्रहण में स्नान, शादी में स्नान और अन्तिम संस्कार के पहले भी स्नान।
स्नान का ऐसा महत्व अन्य किसी संस्कृति में उपलब्ध है श्रीमान।
गंावों की बात करूं तो त्यौहारों पर ही स्नान होता है, औरतें तालाब, नदी, नालों पर जाकर स्नान करती हैं और मेलों में जाने से पहले भी नहाना परम्परा है। पुष्कर, फतेह सागर, पिछौला, गलता, मातृ-कण्ड्या आदि स्थानों में नहाने का मजा ही अलग है। ये बात अलग है कि घर-घर में नल संस्कृति ने स्नान संस्कृति को कम कर दिया है, फिर भी ग्रहण के बाद स्नान करने भक्त लोग पवित्र झीलों में पहुंच ही जाते हैं।
लेकिन नल संस्कृति से घबराने की तो बात ही नहीं है, भला हो भारतीय जल संस्थानों का जिनकी कृपा से नलों में पानी कम और हवा ज्यादा आती है, यदा-कदा केचुएं, मछलियां भी कृपापूर्वक सर पर गिरती रहती हैं।
सब स्नानों में श्रेष्ठ स्नान है, वर्षा में स्नान। गर्मी में तपती दोपहरी के तुरन्त बाद जो मजा बारिश में नहाने का है, वो अन्य स्नानों में कहां।
लेकिन सर्दी के इस मौसम में वर्षा स्नान के नाम से ही झुरझुरी छूट रही हैं। कर्म-कांड और वेदों में सैकड़ों प्रकार के स्नानों का वर्णन है।
हिन्दुओं के अलावा अन्य जातियों में भी स्नान का महत्व बताया गया है।
रोमनों, मुस्लिमों, जापानियों, ईसाइयों, तुर्को आदि अनेक लोगों ने स्नान के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक प्रयोग किये हैं।
समझदारी इसमें है कि संसार को एक समुद्र माना जाये और मानव इसमें रोज स्नान करता रहे।
स्नान सुख की यादें जाती सर्दियों में सुखकर हैं। दो स्नानों के बीच में यह लेख प्रसूत हुआ है, क्योंकि प्रसूति स्नान का भी विशेष महत्व है, अतः मैं पुनः नहाने जा रहा हूं, तब तक के लिए क्षमा।
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यशवन्त कोठारी
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