रिंकू बहुत शरारती बालक था। पतंग उड़ाने का उसे बेहद शौक था। कड़कती दोपहर में वह छत पर चढ़कर पतंग उड़ाता। पतंग लूटने के लिए वह दीवारें बिल्...
रिंकू बहुत शरारती बालक था। पतंग उड़ाने का उसे बेहद शौक था। कड़कती दोपहर में वह छत पर चढ़कर पतंग उड़ाता। पतंग लूटने के लिए वह दीवारें बिल्ली की तरह फांद जाता। सारे घर वाले उसकी इस आदत से बहुत परेशान थे। मां अकसर उसे समझातीं। पिता भी बार-बार चेतावनी देते, पर उनकी बातों पर वह बिल्कुल ध्यान नहीं देता था।
क्भ् अगस्त का दिन था। रिंकू आज बहुत प्रसन्न था। अपने मित्र तनु और बीनू के साथ वह चकरी और पतंगे उठाकर छत पर चढ़ गया। उसी समय आसमान से एक कटी पतंग पड़ोस की छत पर आ गिरी। रिंकू ने आव देखा न ताव, झट कूद पड़ा। पैर ठीक न पड़ने पर वह उनके आंगन में जा गिरा और बेहोश हो गया। अड़ोस-पड़ोस में कोहराम मच गया। रिंकू के सिर पर गहरी चोट लगी थी। पिता ने उसे गोद में उठाया और नजदीक के अस्पताल में ले आए। पंद्रह दिन बाद अस्पताल से उसे छुट्टी मिली। घर में उसके लिए अलग कमरा सजाया गया था। मेज पर ढेर सारे कॉमिक्स के साथ ही नंदन पत्रिका भी थी। लेटे-लेटे रिंकू ने नंदन के परी-कथा विशेषांक के मुख-पृष्ठ पर बने परी के चित्र को ध्यान से देखा। उसके पंख सुनहरे थे और हाथ में एक सुनहरी छड़ी थी। फिर उसने कुछ कहानियां पढ़ीं। पढ़ते-पढ़ते उसे नींद आने लगी।
उसे सपने में सुनहरे पंखों वाली वही परी दिखाई दी। परी का रथ धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था। जमीन पर उतरते ही परी ने अपना आंचल फैलाकर रिंकू के गालों को छुआ। उसके स्पर्श मात्र से रिंकू का मुरझाया चेहरा खिल उठा। परी ने सोने के प्याले में उसे कुछ पीने को दिया। पीते ही उसकी सारी कमजोरी दूर हो गई। परी ने कहा- तुमने मुझे याद किया ओर मैं आ गई। अच्छा तो यह बताओ, तुम ऐसी खतरनाक शरारतें क्यों करते हो? तुम अपने ममी-पापा का कहना भी नहीं मानते।
वे मेरी बात कहां मानते हैं? मैं जब खेलना चाहता हूं या आसपास के लड़कों के साथ दोस्ती करता हूं, वे मुझे रोकते हैं-रिंकू बोला।
यह तो अच्छी बात है। वे तुहें गलत संगत से बचाना चाहते हैं। परी ने समझाया।
तनु और बीनू गलत नहीं हैं। वे तो सारा दिन खेलते हैं बस। हां, अकसर क्लास टीचर से उन्हें डांट पड़ती है। अपना होमवर्क भी वे पूरा नहीं करते। रिंकू ने जवाब दिया।
बस यही गलत है। अगर तुम ऐसे बच्चों का साथ नहीं छोड़ोगे, तो तुहारी भी यही हालत होगी। खेलना बच्चों के लिए जरूरी है, पर पढ़ना सबसे जरूरी है। इसलिए तुहारे पापा तुहें पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं। यह तो थी पापा की बात। अच्छा बताओ, तुम ममी की बात क्यों नहीं मानते। परी ने फिर पूछा।
मां सारा वक्त छोटे भैया को देती हैं। उसके साथ सोती है और उसके साथ खेलती हैं। मेरे साथ जब पार्क में घूमने भी नहीं जातीं। रिंकू ने जैसे अपना हृदय ही खोल दिया।
ओह, यह बात है। अच्छा, छोटे भैया कितने बड़े हैं? परी ने प्यार से पूछा।
अभी कल ही चार महीने का हुआ है। रिंकू की बात सुनकर परी जोर से हंस दी।
जब तुम छोटे थे, तो मां तुहें भी इतना ही समय देती थीं। तुहें भी ऐसे ही लोरी गाकर सुनाती थी। ऐसे ही अपने हाथ से तुहें खाना खिलाती थीं। वह अब भी तुहें उतना ही प्यार करती हैं। अब तुम बड़े हो गए हो। अच्छे बच्चे सदा आत्मनिर्भर बनना पसंद करते हैं। परी ने रिंकू को समझाया।
रिंकू अब सोचने लगा- ममी - पापा मुझसे बहुत प्यार करते हैं। इसलिए वे मेरी पढ़ाई, सेहत और सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं। एक मैं हूं कि मौज-मस्ती के कारण इतना जिद्दी बन गया हूं। परी बातें रिंकू के मन में हलचल मचा रही थीं।
अरे, कहां खो गए? परी ने उसे हिलाया। रिंकू के साथ बातें करते-करते वह उसे बगीचे में ले आई। रिंकू ने ऐसा बगीचा पहली बार देखा था जहां फूल मिलगर गा रहे थे। पत्ते खुशी से ताली बजा रहे थे। रंग-बिरंगे पक्षी मधुर वाणी में कलरव कर रहे थे।
रात बीत चुकी थी। सवेरा हो रहा था। वह काफी देर तक परी के साथ उसी बगीचे में घूमता रहा। अब रिंकू को चारों तरफ सुंदरता ही सुंदरता दिखाई दे रही थी। पास ही एक झील थी। सारा वातावरण खुशियों और ताजगी से भरा था।
परी और रिंकू की एक ही मुलाकात में गहरी दोस्ती भी हो गई। परी की हर बात रिंकू पर अपना असर छोड़ रही थी। वह उसके एक-एक शद को ध्यान से सुन रहा था। मां का चेहरा, तो काी पिता का चेहरा उसकी आंखों में तैरने लगा। वे उसे संसार के सबसे अच्छे माता-पिता के रूप में दिखाई देने लगे। इसीलिए तो गलती करने भी उन्होंने उसे कभी डांटा नहीं था। आज रिंकू को अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी।
क्यों रिंकू, बगीचा कैसा लगा? कहकर परी ने रिंकू को कल्पना से जगाया।
अच्छा लगा, साथ ही आपकी बातें भी अच्छी लगीं।
तुम बातें तो बउ़ी अच्छी करते हो। परी हंसती हुई बोली।
अब मैं भी अच्छा बनूंगा। रिंकू ने जोश में भरकर कहा। फिर परी के बड़े हाथ को उसने कसकर पकड़ लिया। परी ने हाथ छुड़ाने का जैसे ही प्रयास किया, रिंकू को झटका लगा और उसकी नींद खुल गई। देखा, वह अपने कमरे में था। पास ही पलंग पर मां सोई थीं। वह उनसे लिपट गया।
मां, मैं तुहें बहुत परेशान करता हूं। अब कभी ऐसा नहीं होगा। मैं अच्छा लड़का बनूंगा। तुमने इन पंद्रह दिनों में खाना भी ठीक से नहीं खाया। पापा दिन-रात मेरी सेवा में लगे रहे।
यह कहते हुए रिंकू ने आज फिर मां के उस आंचल में अपना सिर छिपा लिया, जिसमें वह बचपन में जो छिपता था। लग ही नहीं रहा था कि यह वही शरारती और जिद्दी लड़का रिंकू है।
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डॉ. शकुन्तला कालरा, एन डी , पीतमपुरा, दिल्ली ,
प्रेषक : दीनदयाल शर्मा, साहित्य संपादक, टाबर टोल़ी, हनुमानगढ़ जं., , राज.
bahut sunadar.
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल कथा.
जवाब देंहटाएंहम भी बचपन में नंदन, चम्पक, चंदामामा जैसी किताबें खूब चाव से पढ़ते थे जिनमें ऐसी कहानियां छपती थीं. ऐसी कहानियाँ न केवल बच्चों को सवस्थ मनोरंजन प्रदान करतीं है अपितु प्रेरणा स्त्रोत भी बनती हैं.
आज के टी०वी०, कम्पूटर युग में यह कहना मुश्किल है कि बच्चे वही पढ़-देख रहे हैं जो उन्हें चाहिए.
यहाँ इस कहानी को देख कर प्रसन्नता हुई.
सुंदर रचना!
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