बंटी के घर पर एक चिड़िया आने लगी। ममी ने उसका नाम रखा ‘चिक’। वह चिक के लिए दाना डालती एक छोटे से बर्तन में पानी पिलाती। चिक बड़ी खुशी से ममी...
बंटी के घर पर एक चिड़िया आने लगी। ममी ने उसका नाम रखा ‘चिक’। वह चिक के लिए दाना डालती एक छोटे से बर्तन में पानी पिलाती। चिक बड़ी खुशी से ममी के हाथ का डाला दाना चुगती, पानी पीती और फुर्र से उड़ जाती। एक दिन चिक एक चिड़े को साथ लेकर आई। ममी दोनों को देखकर बहुत खुश हुई। चिड़ा और चिड़िया दोनों चीं-चीं कर बतियाते और इधर-उधर फुदकते रहते। ममी दोनों को बहुत प्यार करती। बंटी भी काी-कभी उन दोनों को निहारता और अपने हाथ से दाना खिलाता।
एक दिन चिक तथा उसके साथी ने घोंसला बनाने की सोची। वे दोनों दूर से छोटे-छोटे तिनके लाकर रोशनदान में घोंसला बनाने लगे। तिनके यदि फर्श पर गिर जाते तो वे फिर से उठाकर उन्हें रोशनदान में रख देते। एक दिन दो-चार तिनके फर्श पर पड़े रह गए। बंटी स्कूल से आया तो तिनके पड़े देखकर भड़क उठा। उसने ममी को पुकारा, ममी, यह चिड़िया की बच्ची यहां गंदगी फैला रही है। इन्हें बाहर भगाओ।
बंटी ये हमारी दोस्त हैं। तू इनसे इतनी नफरत क्यों करता है? ममी ने उसे समझाया।
नहीं ममी, ये मेरी दोस्त नहीं है। क्या दोस्त किसी दोस्त के घर गंदगी फैलाता है?
तूं इन तिनकों को देखकर गुस्सा कर रहा है। ले अभी साफ कर देती हूं।
ममी, यह फिर तिनके फेंककर कमरा गंदा कर देगी।
तू इनसे इतना जलता क्यों है? ये गंदगी फैलाती है तो हमारा मन ाी तो बहलाती है, फिर ये छोटे-छोटे पक्षी हमारे पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं। यदि ये नहीं होंगे तो शत्रु कीट फसलों को ही चट कर जाएंगे और जहरीले कीड़े-मकोड़ों से तरह-तरह की बीमारियां फैलने लगेंगी। हमारा जीना दूभर हो जाएगा।
कुछ नहीं ममी, इन्हें भगाओ यहां से। हम अपने आप निपट लेंगे कीड़े-मकोड़ों से। दुनिया भर की दवाइयां आ गई हैं कीड़े मारने के लिए। आप नहीं भगाएंगी तो मैं स्वयं ही इन्हें भगा देता हूं। न रहेगा घोंसला और न रहेगी गंदगी।
बंटी की जिद के आगे मां कुछ नहीं बोल पाई। चिड़िया ज्योंही तिनका लाकर घोंसला बनाने की कोशिश करती, बंटी उन तिनकों को बाहर फेंक देता। बेचारी चिड़िया घोंसला नहीं बना पाई और उसने बिना घोंसले ही रोशनदान में अंडा दे दिया। अंडा गोल होने के कारण लुढ़ककर फर्श पर गिरा और टूट गया। चिड़िया वीरान आंखों से अंडे के टुकड़ों को निहार रही थी।
यह देखकर बंटी बोला, ममी ये पेड़ों पर घोंसला क्यों नहीं बनाती?
शहरों में वैसे ही पेड़ कम हैं। हम इनके लिए पेड़-पौधे सुरक्षित रखें तो हमें कभी भी परेशान नहीं करेंगी। यहां जो कुछ पेड़ बच गए हैं वे भी इनके लिए कहां सुरक्षित हैं? सामने जो पेड़ है उस पर झूला है। बच्चों के झूलने से पेड़ हिलता है तो इनका घोंसला गिर जाता है। कभी अण्डे गिर जाते हैं। एक पेड़ के पास बिजली का खंभा है। पिछली बार बिजली के तारों से टकराकर कई पक्षी मर गए थे। आगे उस पेड़ के पास पानी की बड़ी टंकी है। उस टंकी से हमेशा पानी रिसता रहता है। जो इनके घोंसले को गीला कर देता है। हर जगह यही हालत है आखिर ये जाएं कहां?
बंटी अपनी ममी की बात का कोई तर्क संगत जवाब देने की सोच ही रहा था कि उसे सामने दीवार पर जहरीला कीड़ा रेंगता हुआ दिखाई दिया। ऐसे ही एक कीट ने पिछले दिनों उसके मित्र राजू को काट लिया था। उसके पांव में सेप्टिक हो गया था। जिसके कारण उसे कई दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। बंटी इस विषैले कीट को मारने की सोच ही रहा था कि रोशनदान में बैठी हुई चिक उस पर झपट पड़ी और देखते ही देखते उसका काम तमाम कर दिया। बंटी के कानों में ममी द्वारा कहे गए वे शद जैसे पुनः गूंजने लगे। ‘ये गंदगी फैलाती है तो हमारा मन भी तो बहलाती है। फिर ये छोटे-छोटे पक्षी हमारे पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं।.........
जहरीले कीड़े मकोड़ों से तरह-तरह की बीमारियां फैलने लगेंगी। हमारा जीना दूभर हो जाएगा।’ यही सोचते-सोचते बंटी जैसे किसी कल्पनालोक में खो गया। उसने देखा जैसे अचानक सारी चिड़ियाएं कहीं चली गई हैं। उनका चहकना, फुदकना, आकाश में पंक्तियों में उड़ना, सब बंद हो गया है। जहरीले कीड़े दिन-दूना रात चौगुना बढ़ने लगे हैं। उनकी संया हजारों गुणा हो गई है। सभी प्रकार के कीटनाशक छिड़के जा रहे हैं पर कोई असर नहीं हो रहा है। अनेक लोग बीमार पड़े हैं। फसलें चौपट हो गई हैं। लोग भूख से मरने लगे हैं। वह स्वयं बीमार पड़ गया है तथा किसी अस्पताल में एक गंदे से बैड पर लेटा हुआ है। चारों ओर मक्खियां भिनभिना रही हैं। उसकी मां उसका सिर सहला रही है। बेहोशी में उसे मां की बातें याद आती हैं।
वह नन्ही चिड़िया को याद करता है।
चिक तत्काल अपने साथी पक्षियों के साथ कीड़े-मकोड़ों पर धावा बोल देती है। कुछ दिनों में ही कीड़े-मकोड़ों की संया कम होने लगती है। लोग बीमारियों से मुक्त होने लगती है। फसलें लहलहा उठती है। नन्ही चिक जैसे खिड़की में बैठकर उसके स्वस्थ होने का इंतजार कर रही है। बंटी के स्वस्थ होते ही फुदककर वह बंटी के पास आ जाती है। बंटी उसकी पीठ पर हाथ फिराकर कहता है, ‘मेरी प्यारी चिड़िया, अब हमें छोड़कर कभी मत जाना। मैं तुहें घर से कभी नहीं भगाऊंगा।
अचानक जैसे कोई भद्दा सा हाथ चिक के घोंसले की तरफ बढ़ता है। वह चिल्ला उठता है, नहीं........। चिक के घर को यहां से मत हटाओ चिक हमारी मित्र है। यह यहीं रहेगी।
बंटी की आवाज सुनकर ममी उसके पास दौड़कर आई और पूछा, क्या हुआ बंटी, कौन हटा रहा है चिक का घोंसला? होश में आओ बंटी। कोई सपना देखा क्या?
हां ममी, सपना ही तो था, बड़ा डरावना सपना, कहता हुआ बंटी जैसे नींद से जागा। हां ममी हमें किसी ाी पक्षी को नहीं सताना चाहिए।
‘क्या? तुहें कैसे आई यह सुध? कहकर ममी मुस्करा दी।
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आर.पी.सिंह, पुलिस महानिरीक्षक, अजमेर, राज.
प्रेषक : दीनदयाल शर्मा
आर0पी0 सिंह जी और दीनदयाल शर्मा जी को बधाई।
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बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
रचनाकार में मेरे द्वारा भेजी गई आर. पी. सिंह जी की बाल कहानी चिक से दोस्ती पढ़कर बहुत अच्छा लगा. आपको बधाई. दीनदयाल शर्मा.
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