ट्रांसफर ”भाई साहब एक पेज टाइप करवाना है, कर दोगे क्या ?” ”जी हाँ” मैंने कहा। एक पेज पकड़ाते हुए युवक ने कहा, ”बाकी तो सब आपक...
ट्रांसफर
”भाई साहब एक पेज टाइप करवाना है, कर दोगे क्या ?”
”जी हाँ” मैंने कहा।
एक पेज पकड़ाते हुए युवक ने कहा, ”बाकी तो सब आपको ऐसा ही टाइप करना है जैसा इस पेज में लिखा है। बस ट्रांसफर के कारण मैं अलग लिखवाऊँगा?”
युवक के साथ आए उस दौस्त ने पूछा, ”क्यों ? ट्रांसफर के कारण तो ठीक ही लग रहे हैं। मैंने पढ़े हैं।”
अपने दोस्त को समझाते हुए युवक ने कहा, ”अरे यार क्या बताऊँ? इस एप्लीकेशन को मैं इससे पहले तीन बार भेज चुका हूँ। आज तक ट्रांसफर हुआ नहीं। राजीव का ट्रांसफर एक बार में हो गया तो मैंने उससे पूछा कि आपने ऐसा क्या लिखा कि आपका ट्रांसफर एक बार में हो गया? तो राजीव ने बताया कि मैंने सबसे पहले तो यह लिखा कि मेरी माताजी सख्त बीमार रहती है, मेरे पिताजी के सिर का अॉपरेशन तीन बार हो चुका है, मेरे माता-पिता की सेवा करने वाला कोई नहीं और नहीं है। इसलिए मैंने सोचा है कि मैं भी यही कारण लिखकर दूँगा।”
मैंने वो एप्लीकेशन टाइप की, जो कारण उन्होंने बताये वो टाइप किये और प्रिन्ट निकाल कर दे दिया।
अज्ञात शव
रोड़ पर टूटते कीमती सामान और बंद होती दुकानों के शटर को देखकर एक बुढ़िया को फुटपाथ पर बेचने के लिए सजाये हुए खिलौनो का भय सताने लगा। उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुंची बुढ़िया बस इन खिलौने के सहारे ही जीवन काट रही थी। एकदम फटी सी आंखों से एक नौजवान युवक से पूछा, “बेटा, क्या हुआ ? आज तो कोई भी हड़ताल नहीं है, फिर लोग उत्पात क्यों मचा रहे हैं ?” युवक ने बुढ़िया को बताया कि ”कुछ लोग अपनी मांंगों को मनाने के लिए धरने पर बैठे हैं और कुछ लोग इस धरने के समर्थन में दुकानों को बंद करवाने में लगे हुए हैं।” बुढ़िया समझ चुकी थी कि आज भी भूखा सोना पड़ेगा। अपने खिलौनों को इकट्ठा कर ही रही थी कि अचानक एक पत्थर उस बूढ़ी औरत के सिर पर लगा और खून से लथपथ सड़क पर चौबीस घण्टे पड़े रहने के बाद उस बूढ़ी औरत को अज्ञात शव की कैटेगरी में रख दिया गया।
कलयुग की ममता
बच्चा रो रहा है........
पार्टी में व्यस्त एक औरत ने अपने पति को इशारा किया कि आप बच्चे का ध्यान रखें मैं अपनी सहेलियों के साथ थोड़ा वक़्त गुजारना चाहती हूँ।
बच्चा रो रहा है........
काफी नाकाम कोशिशों के बाद पति से रहा नहीं गया, वह बोला, देखो, अभी हमारा बच्चा बहुत छोटा है यह तुम्हारे बगैर नहीं रहेगा। तुम इसको सुलाकर पार्टी में वापस आ जाना।
बच्चा रो रहा है........
पत्नी ने झुंझलाते हुए कहा, ”तुम्हारा दिमाग तो सही है मैं इसे पूरा-पूरा दिन संभालती हूँ तुम महज कुछ मिनटों में ही थक गए।”
बच्चा रो रहा है........
पत्नी की एक सहेली ने कहा, ”तुमने अपने पति को बहुत छूट दे रखी है मेरा पति तो पूरा-पूरा सप्ताह बच्चों को संभालता था।”
बच्चा रो रहा है........
पति बच्चे को गोद में लिए यह सब बेबश सा देख रहा था। उसके कानों में जोर-जोर से एक ही आवाज गूंज रही थी ”क्या आज एक बच्चे की पुकार माँ तक नहीं पहुँच रही है ?”
तलब
शराब की तलब लगते ही मोहन झटपटा उठा। लेकिन उसे याद आया कि उसकी जेब में पैसे नहीं है और मां-बाप ने तो सख्त मना कर दिया था कि अब तुम्हारे नशे के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं।
मोहन ने अपनी पत्नी का मंगलसूत्र छीना, जो उसकी पत्नी के पास सुहाग की आखिरी निशानी थी। बाजार में मंगलसूत्र को बेचकर जब शाम को नशे में घर आया तो आधी खुलती हुई आंखों से देखा कि पत्नी दोनों बच्चों के साथ आखिरी वक्त गुजार चुकी है, अब सिवाय रोने-पीटने के कुछ भी नहीं बचा है।
सूझ-बूझ
मैट्रिक पास टीना इसी बात से चिंतित रहती थी कि पति बेचारे रात-दिन मेहनत करते हैं लेकिन घर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा। आज के समय में मजदूरी करके दो बच्चों का पालन-पोषण और बूढ़े सास-ससुर की जिम्मेदारी निभाना बहुत मुश्किल है।
अगले दिन टीना ने अपने पति के सामने स्वयं के नौकरी करने की इच्छा रखी। पति ने कहा मुझे कोई एतराज नहीं है लेकिन माता-पिता........? राधा ने हिम्मत करके यहीं बात अपने सास-ससुर के सामने रखी। उसके ससुर ने गुस्से में कहा ”हमारी सात पीढ़ियों में आज तक किसी औरत ने नौकरी नहीं की। अब आज हमारी बहु नौकरी करेगी तो समाज में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी ?”
सास भी गुस्से में बोली ”तेरी अक्ल ने भांग तो नहीं खाई है ?”
राधा को एक तरकीब सुझी। उसने चुपके से एक पार्टटाइम नौकरी पता कर ली और रोज माँ से मिलने के बहाने नौकरी पर जाने लगी।
कुछ समय बाद दिनों-दिन घर की हालत और बिगड़ने लगी। पैसे-पैसे के मोहताज हो गये। इस परिस्थिति को देखते हुए राधा ने अपने पास जमा सारी पूंजी अपने ससुर को सौंप दी। ऐसी सूझ-बूझ को देखकर पूरा परिवार स्तब्ध था।
बेगुनाह
परीक्षा हॉल में सभी विद्यार्थी प्रश्नपत्र हल करना शुरू कर चुके थे। अध्यापकों की गुफ्तगू से बार-बार विद्यार्थियों का ध्यान भंग हो रहा था। जब एक विद्यार्थी ने इसका विरोध किया तो अध्यापक ने उसकी उत्तर-पुस्तिका छीन ली और परीक्षा प्रभारी को बुलाकर कहा कि यह विद्यार्थी मना करने के बावजूद नकल कर रहा था।
उस निर्दोष विद्यार्थी के पास अपनी बेगुनाही का कोई सबूत नहीं था। वो तो बस अपने उजड़ते भविष्य को सिर्फ महसूस ही कर पाया।
ये कैसा खेल है?
पैसे की तंगी से परेशान हो एक मां ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने पांचों बेटों में से छोटे बेटे को बेच दिया। एक अमीर औरत ने उस गरीब मां के 9 वर्षीय बेटे को महज चंद रुपयों के बदले अपने पास रख लिया। उस औरत ने सभी को यह विश्वास दिलाया कि उसने एक गरीब मां की मदद की और उसके बेटे के जीवन को बचाने के लिए उस मासूम को अपने पास रख लिया लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। वह अमीर औरत अपने काम के लिए या अपनी ममता की तृप्ति के लिए उस 9 वर्षीय लड़के को नहीं लाई थी बल्कि अपने सगे बेटे के लिए लाई थी जो बेजुबान खिलौनों से खेलकर थक चुका था, उसे चलता-फिरता खिलौना चाहिए था।
पैसे की महिमा
रामू सोच में पड़ गया कि अब पैसा देखूं या योग्यता ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी लड़की का रिश्ता अजय से करूं या विजय से?
मोहन ने कहा ”देख यार जमाना बदल गया है। आज सबसे पहले तो लड़के की योग्यता देखनी चाहिए फिर ही कोई फैसला लेना चाहिए। केवल धन दौलत देखकर लड़की की शादी कर देना कोई अक्लमंदी नहीं है।”
”मोहन, अजय है तो बहुत योग्य लड़का। वह मेरी लड़की के बराबर शैक्षिक योग्यता भी रखता है लेकिन वह बहुत गरीब घर से है उसने यहां तक पढ़ाई कैसे की है यह बात पूरे समाज में किसी से छिपी नहीं है और एक तरफ विजय है जो दसवीं फेल है परन्तु उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं है। आखिर कौन बाप अपनी बेटी को सुखी देखना नहीं चाहता?” रामू ने कहा।
रामू ने समझदारी दिखाते हुए अपनी लड़की का विवाह विजय से कर दिया। लड़की के मना करने के बावजूद उसकी एक नहीं सुनी गई। योग्यता पैसों के आगे बौनी साबित हुई।
कहीं खुशी, कहीं ग़म!
पार्टी की तरफ से राष्ट्रीय स्तर पर हुए सम्मेलन में जब सब खर्चों को जोड़ा गया तो पता चला कि करीब 15 करोड़ रुपये खर्चा आया है। पार्टी आलाकमान, नेता, समाज सेवक, गरीबों के हितैषी सभी खुश थे कि सम्मेलन शांतिपूर्वक हो गया और पार्टी के प्रचार के साथ-साथ हमारा भी प्रचार हो गया। सभी एक दूसरे को बधाईयां दे रहे थे।
सरकार ने भी सम्मेलन में हुए खर्चों की तरफ ध्यान नहीं दिया क्योंकि मामला पार्टी से जुड़ा था।
छोटे-मोटे नेता भी खुश थे क्योंकि पहली बार उन्हें भी अपनी बात कहने का मौका दिया गया था।
भिखारी भी खुश थे क्योंकि उन्हें भाषण के बाद तरह-तरह के व्यंजन जो परोसे गये थे।
दुखी तो सिर्फ वो लोग थे जिन्हें पता था कि इस खर्चे का भार भी हम पर ही पड़ने वाला है।
बिकता बचपन
एक मासूम बच्चे के बचपन का मोलभाव किया जा रहा है। गरीब बच्चे के बचपन को कौड़ियों के भाव खरीदा जा रहा है लेकिन किसी को उस मासूम बच्चे की परवाह नहीं। एक मासूम बच्चे का बचपन सिर्फ पैसों के दम पर इसलिए रौंदा जा रहा है कि उसकी मां गरीब है और वह उसका पालन-पोषण नहीं कर सकती। मासूम बचपन की खुशियां के लिए पैसा ही सबकुछ नहीं होता। ......खैर जब तक एक मां को यह समझ आयेगा तब तक शायद एक मासूम का बचपन छिन चुका होगा।
अनु कम्प्यूटर्स
बड़ी जसोलाई, बीकानेर-01
मो. 09252969180
अच्छी लघुकथाएँ!
जवाब देंहटाएंनया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
संजय जी अच्छा प्रयास है, मगर लघुकथाओं की एक खासियत होती है उनकी फिनिश जानदार पंचलाईन से होती है, आगे ध्यान देंगे तो अच्छा लेखन सामने आयेगा.
जवाब देंहटाएंअन्यथा ना लें. आप मे प्रतिभा है इसलिये ये कहा है. ब्लाग की दुनिया में ढेर सारा कचरा रोज परोसा जा रहा है, हम आप ही अच्छी सामग्री देकर ब्लाग्स का स्तर उठा सकते हैं
yakinan sarthak
जवाब देंहटाएंbahut acchhi aur sacchi..!!
जवाब देंहटाएंअब तक पढें गए सभी ब्लागों मे अच्छा साहित्यिक ब्लाग
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