राजु.सी.पी, शोधार्थी, एम.एस. विश्वविद्यालय, तिरुनेलवेली। प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी साहित्य में अनेक नये लेखक उभरकर सामने आये हैं। उन्होंने...
राजु.सी.पी, शोधार्थी, एम.एस. विश्वविद्यालय, तिरुनेलवेली।
प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी साहित्य में अनेक नये लेखक उभरकर सामने आये हैं। उन्होंने कथा साहित्य का सृजन कर हिन्दी साहित्य को बहुमूल्य योगदान दिया है। उन उभरते हुए लेखकों में एक महत्वपूर्ण नाम है-भैरव प्रसाद गुप्त। वे हिन्दी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभावान कलाकार है। बहुमुखी प्रतिभा इसलिए कहा जाता है कि उन्होंने हिन्दी साहित्य के उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी तथा रेड़ियो नाटकों में अपनी तूलिका चलाई है।
भैरव प्रसाद गुप्त का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिवानकलाँ नामक गाँव के मध्यवर्गीय - व्यावसायिक परिवार में ७ जुलाई १९१८ को हुआ। गुप्तजी ने अपने गाँव की महाजनी नामक स्कूल में दर्जा चार तक पढ़ाई की। उसके बाद उसने गाँव से दो मील दूर पर स्थित सिकन्दरपूर गाँव के मिड़िल स्कूल से उसने मिड़िल पास किया। गुप्तजी को आगे की पढ़ाई के लिए इर्विग क्रिश्चिन कालेज इलाहाबाद में जाना पड़ा। वहीं स्नातकोत्तर तक पढ़ाई हुई।
जीविकोपार्जन के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ता है। गुप्तजी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अतः वे मद्रास में हिन्दी प्रचारक महाविद्यालय' में सन् १९३८ से सन् १९४० तक अध्यापन कार्य करने लगे। बाद में नेशनल कॉलेज' तथा होली क्रोस' कालेज त्रिच्चिराप्पल्ली में सन् १९४२ तक अध्यापन कार्य किया। वहाँ आकाशवाणी' में भी काम किया। देश में स्वतंत्रता आन्दोलन की लड़ाई चलने के कारण गुप्तजी कानपूर के सेन्ड्रल आर्डनेंस डिपो' में सन् १९४२ से १९४३ तक काम किया। कानपूर में मज़दूर नेता अर्जुन अरोड़ा' से परिचय होने के कारण उनकी प्रेरणा से गुप्तजी को १९४३-१९४४ तक बेग सतरलैंड', कानपूर में काम करने का अवसर मिला। वहीं से सन् १९४४ को लेकर माया', मनोहर' कहानियाँ तथा मनोरमा' के संपादन कार्य सन् १९५४ तक किया।
’कहानी' का संपादन कार्य सन् १९५४ से १९६० तक और नई कहानियाँ' का संपादन सन् १९६० से १९६३ तक किया। सन् १९६३ से लेकर १९७४ तक स्वतंत्र लेखन किया। इलाहाबाद के मित्र प्रकाशन' के संपादकीय विभाग में परामर्शदाता के रूप में सन् १९७४ से १९८० तक काम किया। संप्रति सन् १९८० से १९९५ मृत्यु तक गुप्तजी ने स्वतंत्र लेखन करके अपना जीविकोपार्जन कमाते थे।
भैरव प्रसाद गुप्त की मृत्यु ७ अप्रैल १९९५ को उत्तरप्रदेश के अलिगढ़ में अपनी बेटी के घर पर हुई।
भैरव प्रसाद गुप्त का रचना संसार
भैरव प्रसाद गुप्त के उपन्यास
भैरव प्रसाद गुप्त की रचना यात्रा सन् १९४६ में अपना पहला उपन्यास शोले' के प्रकाशन से लेकर उनके मरणोपरान्त सन् १९९७ में प्रकाशित छोटी सी शुरुआत' तक फैली हुई है।??? इस अवधि में उन्होने प्रेमचन्द की तरह शहरीय और ग्राम्य जीवन पर समान अधिकार के साथ लिखते हुए स्वाधीन भारत के बहुविध और जटिल समस्याओं का विश्वसनीय चित्र प्रस्तुत किया है। उनके एक ही उपन्यास एकाधिक परिवर्तन नामों से प्रकाशित होने के कारण उनके नामों और संख्या को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति भी रही है। प्रमुख रूप से गुप्तजी के उपन्यास सोलह माने जा सकते हैं। वे निम्नलिखित हैं।
१. शोले १९४६
२. मशाल १९४८
३. गंगा मैया १९५२
४. जंजीरें और नया आदमी १९५४
५. सतीमैया का चौरा १९५९
६. धरती १९६२
७. आशा १९६३
८. कालिन्दी १९६३
९. अन्तिम अध्याय १९७०
१०. नौजवान १९७२
११. एक जीनियस की प्रेमकथा १९८०
१२. सेवाश्रम १९८३
१३. काशी बाबू १९८७
१४. भाग्य देवता १९९२
१५. अक्षरों के आगे मास्टरजी १९९३
१६. छोटी सी शुरुआत १९९७(मरणोपरांत प्रकाशित)
कहानी संग्रह
एक कहानीकार की हैसियत से भैरव प्रसाद गुप्त की रचनात्मक सक्रियता के संकेत पाचवें दशक के आरंभ से ही मिलने लगे थे। उनकी कहानियों का पहला संग्रह मुहब्बत की राहें' सन् १९४५ में प्रकाशित हुआ और उसी के अगले वर्ष सन् १९४६ में उनकी कहानियों का दूसरा संग्रह फ़रिश्ता' आया। हिन्दी कहानी की दृष्टि से यह वही समय था जब प्रेमतन्द का निधन हुए अधिक समय नहीं बीता था और उनकी परंपरा के रूप में प्रगतिवादी लेखक कहानी के सामाजिक सरोकारों के प्रति पर्याप्त सजग थे। उनके एक ही कहानी एकाधिक परिवर्तन नामों से प्रकाशित होने के कारण उनके नामों को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति भी रही है। मुख्य रूप से गुप्तजी की कहानी-संग्रह बारह माने जा सकते हैं। वे इस प्रकार हैं।
१. मुहब्बत की राहें १९४५
२. फरिश्ता १९४६
३. बिगड़े हुए दिमांग १९४८
४. इंसान १९५०
५. सितार का तार १९५१
६. बलिदान की कहानियाँ १९५१
७. मंज़िल १९५१
८. आँखों का सवाल १९५२
९. महफिल १९५८
१०. सपने का अन्त १९६१
११. मंगली की टिकुली १९८२
१२. आप क्या कर रहे हैं १९८३
नाटक और एकांकी
१. चंदबरदाई (नाटक ) १९६७
२. कसौटी (एकांकी संग्रह) १९४३
अनूदित
माँ, काँदीद, कर्कशा, चेरी की बगिया, ड़ोरी और ग्रे, बुलबुल, हमारे लेनिन, मालवा, माओ-त्से-तुंङ ग्रन्थावली।
भैरव प्रसाद गुप्त आज हमारे बीच नहीं है, फिर भी उनके कथा-साहित्य द्वारा वे आज भी भारतीय समाज में जीवित हैं।
सहायक-ग्रन्थ
क समाजवादी उपन्यासकार भैरव प्रसाद गुप्त, १९९७, डॉ. सुनन्दा पालकर, विकास प्रकाशन, कानपूर।
क हिन्दी कथा साहित्य में ग्रामीण चेतना, २००६, डॉ. शिवाजी सांगोले, समता प्रकाशन, कानपूर।
क भैरव प्रसाद गुप्तः व्यक्तित्व और कृतित्व, संपादक-विद्याधर शुक्ल।
क भैरव प्रसाद गुप्तः भारतीय साहित्य के निर्माता, २०००, मधुरेश, साहित्य अकाड़मी, नई-दिल्ली।
क भैरव प्रसाद गुप्त व्यक्ति और रचनाकार, १९८४, विद्याधर शुक्ल, सभा प्रकाशन, इलाहाबाद।
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