इंद्र ने अप्सराओं से घिरे सोने के सिंहासन पर विराज बड़े दिनों बाद पधारे नारद से पूछा,‘ हे नारद! अबके आने में बड़े दिन लगा दिए। कहां रह ग...
इंद्र ने अप्सराओं से घिरे सोने के सिंहासन पर विराज बड़े दिनों बाद पधारे नारद से पूछा,‘ हे नारद! अबके आने में बड़े दिन लगा दिए। कहां रह गए थे? कहीं बालिगों को बनी फिल्म देखने के लिए बच्चों की भीड़ में तो नहीं खो गए थे? क्या लोगे? पेप्सी,कोक या मिरांडा । ये माथे पर चिंता का जाल कैसा?'
‘मत पूछो इंद्र। कितना थक हुआ हूं। भारत की गली गली घूम कर आ रहा हूं। वहां पर मेरा तानपुरा खराब हो गया था!'
‘तो???' क्या अब हम तुम्हारे तानपूरे की मधुर स्वर लहरियां नहीं सुन पाएंगे?' कह इंद्र चिंता में डूब गए। अब अप्सराओं का नृत्य बिन संगीत के ही चलोगे क्या!'
‘सुनेंगे इंद्र, उसी को तो ठीक कराने के चक्कर में इतनी देर हो गई! पर उधर देश के बुरे हाल चले हैं। वहां पर बिन बजाए ही सब बज रहा है। अब तो वहां असली नकली का पता ही नहीं चलता। धर्म भी नकली! कर्म भी नकली । जिस असली समझ गले लगाया, कम्बखत वही नकली निकला और जिसे नकली मान छोड़ता रहा बाद में पता चला कि वह तो असली था। आपके देश के रेहड़े से लेकर सारे बाजार चाइना के माल से पटे हैं।'
‘तो अपने देश के सेज क्या कर रहे हैं?'
‘करेंगे क्या इंद्र! लोगों को शुद्ध दूध के नाम पर सिंथेटिक दूध पिला रहे हैं। चावल में कंकड़ तो आटे में लकड़ी का बुरादा फाइबर के नाम पर डाल चमत्कारी पैकिंग में खिला रहे हैं।'
‘तो सरकार कुछ नहीं कहती क्या?'
‘कहे क्या! चुनाव जीतने के लिए उनसे चंदा जो लिया है इंद्र। अब उनको अपना पैसा वसूलना है, सो सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती। दूसरे सरकार आटा थोड़े ही खाती है। वह तो नोट नोट खाती है। वह बाजार थोड़े ही जाती है। वह तो सू सू करने भी विदेश जाती है। सच पूछो तो उसे बाजार और सरकार का कोई रास्ता भी मालूम नहीं।'
‘तो वहां की जनता ऐसी सरकार को बदल क्यों नहीं देती ?अभी लोकतंत्र ही है न वहां? अगर ऐसे ही चलता रहा तो मेरे देश की अर्थव्यवस्था चौपट नहीं हो जाएगी क्या! वहां की जनता क्या सो रही है?'
‘वह बेचारी क्या करे इंद्र! वह तो बेचारी हर क्षण अपने को बचाने में लगी है। न दिन में चैन से चल पाती है और न रात को सो पाती है। हे भारत पर स्वर्ग से राज करने वाले! आपके देश के लोकतांत्रिक नेताओं के बाद आपकी जय हो! अब तो वहां पर हद हो रही है!' इंद्र के नौकर से बोन चाइना की ट्रे में रखी पेप्सी ले नारद ने पेप्सी का ढक्कन दांतों से खोला और दो लीटर की आधी पेप्सी एक बार में ही पी गए। नारद को यों सब करते देख इंद्र से रहा न गया तो उन्होंने पूछा, नारद ये क्या! क्या मेरे देश में अमृतमयी गंगा का पानी सूख गया! या वहां की मिनरल वाटर के नाम पर सड़ा पानी बेचने वाली कंपनियों को ताले लग गए?'
‘हे इंद्र!! अब तो आपकी गंगा जनता की तरह खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते लड़ते टूट गई है। उसका पानी इतना दूषित हो गया है कि अब उसने भी अपने पानी को पीना बंद कर दिया है। रही बात तालों की तो अब तो आपके देश में ताले बनने ही बंद हो गए हैं। अब तो वहां पर सब कुछ खुला है।'
‘क्यों??'
‘क्षमा करना इंद्र! ताले लगेंगे कैसे? जुर्म रोकने वाले खुद जुर्मी होकर जेलों में जा रहे हैं। पुलिस वाले जनता को डंडे का डर बता डॉनों की महफिलों में ठुमके लगा वर्दी की शान बढ़ा रहे हैं। जनता का इलाज करने वाले डॉक्टर खुद ही बीमारी का शिकार हुए बैठे हैं। जनता के बिस्तरों का हक मार खुद उन पर लेटे हैं। इनकम टैक्स की चोरी रोकने के लिए जो तैनात किए गए हैं वे खुद ही टैक्स चोरी में मशगूल हैं। मास्टर जी जो बच्चों को पढ़ाने के लिए तैनात हैं वे असल में खुद ही जाली डिगरियां ले अपना कद बढ़ा रहे हैं। लोक निर्माण विभाग वाले सीना चौड़ा करके जनता के निर्माण के नाम पर अपने हवा महल बना रहे हैं। कानून के पहरूओं ने अपने जाल में कानून को उलझा कर रख दिया है। किसी को मरने के बीसियों साल बाद न्याय मिल रहा है तो कोई कचहरी के बाहर न्याय के लिए दशकों से जल रहा है। किलो के दाम दे छः सौ ग्राम जनता पा रही है फिर भी पता नहीं क्यों मल्हार गा रही है। जिधर भी देश में देखो हादसे ही हादसे। हर फाइल हादसों से भरी हुई, हर फाइल जांचों के पांवों में गिड़गिड़ाती पड़ी हुई। जनता के प्रतिनिधि जनता के पैसों पर फाइव स्टार होटलों में डेरा जमाए हैं। जनता की चारपाई में न रस्सियां हैं न पाए हैं। लोकतंत्र में हो रही है राजतंत्र सी मौज। इंद्र! जीभ में कीड़े पड़ें जो झूठ बोलूं राजा से बलशाली हो गई है राजा की फौज! अगर गलती से राजा उनके खिलाफ कुछ भी बोले तो अगले ही क्षण राजा का सिंहासन खतरे में। पीउन हो या डिप्टी क्लक्टर! सब बस राजा की ही ड्यूटी बजा रहे हैं, राज के मुंह से जो बच गया उसे जुगाली कर खा रहे हैं। देश में जनता कम तो अधिक हो रहे हैं घोटाले। जो भी मुझे वहां मिला, उसने मुझसे कहा- यहां पूछने वाला कोई नहीं, हे नारद तू भी जितना खा सकता है खा ले। समाज सेवक रोज अखबारों की शान बढाते हैं। हे इंद्र! आपके रचे देश में वे रोज किसी न किसी सेक्स स्कैंडल में संलिप्त पाए जाते हैं। जो समाज सेवक सेक्स स्कैंडल में नहीं संलिप्त है समझो उसका राजनीतिक करिअर ध्वस्त है। स्विच आफ कर दूं या जारी रखूं आपके देश के ताजा समाचार! हे इंद्र! मेरे हिसाब से अब वहां रहना, जाना देवताओं का है बेकार! सदियों से वहां जमे देवताओं को मंदिर से निकाल वे अपने मंदिर बनवाए जा रहे हैं। जो बचे खुचे देवता अभी भी वहां खरे दिनों के इंतजार में जमे हैं वहां ट्रस्ट बन गए हैं। बेचारे देवता रूखी सूखी खाकर गुजारा कर रहे हैं तो नौकर शाही के पेट भूलोक से लेकर स्वर्गलोक तक तन रहे हैं अतः हे इंद्र सावधान!'
‘बस! नारद बस!!' ये राजा सच क्यों नहीं सुनना चाहते नरो!
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अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड, नजदीक मेन वाटर टैंक सोलन-173212 हि.प्र.
देश की दुर्दशा पर एक बहुत सुन्दर और सटीक व्यंग्य
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग है एक एक को चुन चुन के लाइन मे खड़ा किया है बधाई
जवाब देंहटाएंरचना रवीन्द्र
बहुत ही सटीक सार्थक व्यंग्य है बधाई!!
जवाब देंहटाएं-नरेन्द्र व्यास ’राज’
http://www.aakharkalash.blogspot.com