जिस बस्ती में मेरा धर है वह पहले एक गांव था, नये राज्य बने, विकास हुआ, जो पहले जिला परिषद के क्षेत्र में आता था वह अब नगर निगम के अधिक...
जिस बस्ती में मेरा धर है वह पहले एक गांव था, नये राज्य बने, विकास हुआ, जो पहले जिला परिषद के क्षेत्र में आता था वह अब नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आ गया । नगर निगम के परिसीमन में नगर निगम ने हमारे गांव को भी शामिल कर लिया, उससे जहाँ कुछ फायदे हुए वहाँ कुछ हानि भी हुई, लेकिन हानि न के बराबर ही है। चूंकि पहले मेरा गांव शहर सीमा से सटा हुआ था अतः मूलभूत सुविधायें उसमें थी ही लेकिन नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते ही वहाँ जो कमी रह गयी थी वह भी पूरी हुई, धीरे धीरे और विकास होगा ऐसा हम सब पूर्ववर्ती गांव वालों का मानना था, हमारे गांव में पहले पंचायती राज्य था अतः पंचायत घर का बनना तो लाजमी था, पूर्ववर्ती प्रधान एक सम्पन्न कृषक परिवार से थे कुछ सरकार द्वारा मिले अनुदान से कुछ लोगों के सहयोग से उन्होंने काफी काम कराया तभी लगातार बीस वर्षों तक वह निर्विरोध प्रधान होते आये थे । हमारे गांव में सभी धर्मों के लोग थे, हिन्दू मुस्लिम, सिक्ख ईसाई जैन एक इंग्लैण्ड की वासी मेम भी थी । पूरा गांव उसे मेम के नाम से ही जानता था असली नाम कम से कम मुझे तो पता नहीं है । हरिजन भी थे, सफाई कर्मी भी थे कभी किसी के साथ न तो हमने कोई झगडा सुना न देखा । कहना अतिशयोक्ति न होगी कि हमारा गांव एक आदर्श गांव था । आपसी भाई चारा, सामाजिक सौहार्द, जाति पाँति के भेद नहीं, सभी अपनी अपनी सीमा पहचानते थे । अधिकतर लोग किसान ही थे और वही उनकी जीविका भी थी । गांव में एक गुरूद्वारा, एक मन्दिर, एक मस्जिद, एक गिरजा घर भी था, एक खैराती अस्पताल भी था जहाँ वैद्य सीताराम थे जबान के कड़वे थे लेकिन दवा सटीक देते थे , एक प्राइमरी पाठशाला भी थी, जो बाद में जूनियर हाई स्कूल बन गया था, लड़कियों और लड़कों को सामूहिक शिक्षा ही दी जाती थी कहने का मतलब की पूरे चैन और सुकून से गांव वाले रहते थे । लोहार, बढई, सुनार और छोटे मोटे किराने वाले थे मुख्य दो दुकानें ही थी एक लाला गोपी चन्द एंव उनके पुत्र किशोरी लाल दूसरी दुकान एक सिक्ख थे हरगोविन्द और उनके भाई दर्शन सिंह, हरगोविन्द सिंह थोडे कांइया किस्म के थे लेकिन दर्शन सिंह बहुत ही हंसी मजाक करने वाले थे । यह वर्णन तब का है जब स्व0 जवाहरलाल नेहरू हमारे प्रधान मंत्री थे । बाद में गांव में और दुकानें भी खुली एक चायवाले की, एक साइकिल की मरम्मत करने वाले की, एक बडी दुकान जरनल मर्चेन्ट की भी खुल गयी एक दो छोटे मोटे आयुर्वेदिक डाक्टर भी आ गये एक होम्योपैथिक के डा0 भी आ गये कहने का मतलब है कि हमारी छोटी मोटी आवश्यकतायें तो गांव से ही पूरी हो जाती थी, शेष के लिये पास का शहर था ही जो गांव से मात्र 6 कि0मी0 की दूरी पर था ।
हमारे ही गांव में एक लड़का आया, वह कहाँ से आया कहाँ का था, उसकी जाति क्या थी, कितना पढा लिखा था कोई नहीं जानता लड़का बड़ा हंसमुख था न उसके पास कोई्र सामान, न कोई सम्बन्धी, बस ऐसे ही वह कब गांव का ही आदमी बन गया कोई नहीं जानता बल्कि यों कहा जाये कि वह गांव वालों की आवश्यकता बन गया कोई नहीं जानता था । कई बार जब उससे उसका नाम पूछा गया तो उसने टाल दिया बहुत ही जोर देने पर एक दिन बताया कि मुकसिंहि, अजीब सा नाम था लेने में परेशानी होती थी। एक दिन कुछ लोगों ने उससे उसकी जात पूछी उसने उल्टा सवाल कर दिया '' आपकी क्या जाति है? सबने अपनी अपनी जाति बता दी। '' बस फिर जो तुममें सबसे बड़ी जाति का है वही मेरी भी । अजीब सा रहस्यमय आदमी था । न जाने कब गांव वालों ने ही उसका नाम मसखरा रख दिया । जिसने भी रखा बड़ा सोच समझ के रखा क्योंकि वह था भी बड़ा हंसोड़ बातों बातों में कब वह हंसी की बात निकाल लेता ये युक्ति उसी के बस की बात थी । लेकिन अपने निश्छल स्वभाव के कारण वह सभी का लोकप्रिय था, सभी उससे, उसके स्वभाव से प्रसन्न थे । काम धन्धा तो वह कुछ करता नहीं था लेकिन पूरी बस्ती उसकी देनदार थी, अक्सर दुकानदार तो उसके ऋणी थे, किसी का माल उतरवा देता, किसी का माल चढ़वा देता पैसे लेने पर कहता '' लाला न तो तुम कहीं जा रहे हो न मैं, और फिर मैं कहाँ सभालता रहूंगा अपनी तिजोरी में मेरा माल भी रख लेना, और देखो गड़बड़ मत करना हमेशा याद रखना कि जहाँ पैसे रखे हैं वहाँ मेरे अधिक हैं तुम्हारे कम, जब जरूरत होगी ले लूंगा,।' लेने के मौके आते तो जितना जमा उससे कहीं कम।
एक दिन मुझे तिवाडी जी चायवालों के यहाँ कुछ काम था मैं उनसे बात कर ही रहा था कि मसखरा आ गया नमस्ते की बोला '' पण्डित जी एक चाय बना देना '' । तिवाडी जी ने अपने नौकर से कहा '' भाई इसकी चाय बना देना, और हाँ मसखरे खाने में भी लेगा कुछ '' ''हाँ थोडी सी मूंग की दाल दे देना '' नौकर ने पूछा '' कितने की? '' अरे यार रोटी थेाडी खानी है उस दाल के साथ दे दे जितनी तेरी तबीयत करें, और हाँ पैसे अपनी तन्खवाह में से कटवा देना'' । हम सभी हॅस पडे । कुछ इसी तरह की बातें कर देता । कभी कभी जब हम किसी दुकान या पंचायत घर में किसी समस्या या किसी चुनाव आदि की बातें करते वह जरूर टपक पड़ता अक्सर तो चुप ही रहता लेकिन मौका मिलते ही वही अपनी मसखरी बात जरूर जोड़ देता । हम लोगों को भी उसकी बातें सुनने की आदत हो गयी थी ।
मसखरे ने अपना डेरा पंचायत घर के बरामदे में डाल रखा था । एक रजाई, एक गठरी, जिसमें उसके कपडे थे, कुछ कागज, एक घडा ढका हुआ, बिछाने के लिये एक गद्दानुमा कपडा था जिसमें उसने रूई्र की जगह पुराल (धान में से निकली हुई) वही उसकी सारी सम्पत्ति थी । जहाँ शाम हुई किसी के घर भी चले जाना जो मिलता खा लेता । कहते हैं जो किसी के काम का नहीं वह सबके काम का । ऐसा ही मसखरा था वह किसी के काम का नहीं था लेकिन सबके काम का । गांव के हर स्त्री से हर बच्चे से हर लडकी से उसका नाता था । किसी को मौसी, किसी को चाची, किसी को दीदी, किसी को छोटी दीदी, न तो उसे किसी ने कभी कोई्र अश्लील हरकतें करते देखा न कोई्र नशा पानी करते । ऐसा बस्ती में कोई समारोह नहीं होता जहाँ उसकी उपस्थिति नहीं होती, यदि कहीं न जा पाता तो बच्चे दौडा दिये जाते कि जाओ मसखरे को बुला कर लाओ, उससे कहो ये काम करना हैं वो काम करना ।
मै व्यक्तिगतरूप से उससे बहुत अधिक प्रभावित था क्योंकि पेशे से शिक्षक होने के नाते मैंने उसके अन्दर ऐसा कोई अवगुण नहीं देखा जिसके लिये मैं उसे टोकता । उसकी एक सबसे बडी खासियत थी कि वह लडाई झगडे से दूर रहता था । जहाँ कहीं कोई्र लडाई झगडा होता भागने वालों में सबसे पहले मसखरा होता । फिर उन आदमियों से वह कई दिन तक बात नहीं करता जिनका आपस में झगडा हुआ होता था । कई बार वह ऐसे घरों में भी नहीं जाता था जहाँ सास बहु, पिता पुत्र, भाई भाई में झगडा हुआ हो और अगर जाता तो कई दिनों के बाद । अगर उसके खाना खाते हुये ही किसी घर में झगडा हो जाता तो अपनी थाली लेकर भाग जाता । सुबह मालिक को उसके बरतन अपने घर के बाहर मिलते । उसे लडाई झगडे से इतना डर क्यूं था यह आज तक किसी की समझ में नहीं आया ।
फिर एक दिन टी0वी0 के समाचारों में आया कि बैगलोर, सूरत, आदि में आतंकवादियों ने बम विस्फोट किये । उस दिन वह खाना खाने के बाद हमारे ही घर में बैठा टी0वी0 देख रहा था । जली हुई लाशों, कैमरा मैनों द्वारा पूछते सवाल, लोगों को मदद के लिये दौडना, पुलिस के आदमी संदिग्धों को तलाशते हुये सभी टी0वी0 चैनल बढ़चढ़ कर अपनी रेटिंग बढा रहे थे सभी की यह बात की हम इस घटना को पहले पहले दिखा रहे हैं हमारे संवाददाता घटना स्थल पर ही खडे हैं जहाँ से हम आपको सारा हाल दिखा रहे हैं। मुझे उस दिन मसखरा बहुत ही उदास लगा, मैं उसके मनोविज्ञान को समझ रहा था । मैंने कहा, '' मसखरें ये हमारे यहाँ की घटना नहीं है दूर सूरत बैगलोर की घटना है '' उसने उदास भरे स्वर में कहा'' मरे तो आदमी ही हैं न। फिर वह बिना बताये उठकर चला गया । मैं इस रहस्यमय मसखरे के बर्ताव को लेकर हैरान था । लेकिन कुछ भी कहो मुझे न जाने क्यों उससे कुछ प्यार, बल्कि कहें तो कुछ ज्यादा ही हमदर्दी थी । वह भी मेरी और पत्नी की बहुत इज्जत करता । अंग्रेजी की अंकल आन्टी शब्द मैने उससे किसी के लिये कहते नहीं सुना विशुद्ध भारतीय सामाजिक, पारिवारिक सम्बन्ध रखता था सबसे । कई्र बार इच्छा हुई कि उससे उसके बारे में जानकारी हासिल कॅरू लेकिन जब भी कोई सवाल करता ''कहता जात न पूछो साधू की'' । अपने बारे में अधिक से अधिक उसने कभी न बताया, हमने भी यह सोच कर चैन की सॉस ली चलो इससे कोई खतरा तो नहीं ।
एक घटना और याद आती है, हम आधुनिक आर्थिक उदारीकरण की बातें कर रहे थे किसी का कहना था कि अब कोई्र भी वस्तु खरीदनी कितनी आसान है, बस बैंक में जाओ फार्म भरो और ले आओ अपनी आवश्यकता की वस्तु, इसी तरह की बातें कर रहे थे कुछ गम्भीर और कुछ हल्की फुलकी । तभी अचानक मसखरा ने कहा '' और जब कभी आग लग जाये तो आप लोग तो अपना सामान समेटते रहना और मसखरे के पास तो कुछ हैं नहीं बस आप लोगों को समान समेटते देखता रहूंगा, अपने तो फकत दम गिरधारी लेकिन फिकर मत करो किसी का सामान जलने नहीं दूंगा सभी का कुछ न कुछ तो बचा ही लूंगा ।'' बात तो मसखरे पन की ही थी लेकिन मुझे बडी सटीक लगी । अधिक सामान को जमा करना एक तरह की आफत ही तो है, अब मैं कुछ कुछ उसकी सम्पत्ति न जोडने के मनोविज्ञान को समझने लगा था ।
..........इस तरह जिन्दगी चल रही थी, फिर अचानक एक दिन शहर में कुछ साम्प्रादायिक माहौल बिगड गया, लाठी चार्ज, गोली, आगजनी और भी न जाने क्या क्या हुआ, सारी खबरें टी0वी0 और रेडियो समाचार पत्रों में आ रही थी मुझे उस दिन मसखरा बहुत उदास लगा बस खबरें सुनता और ऊपर आसमान की ओर देखता, कभी मस्जिद का चक्कर लगा आता, कभी मन्दिर का, कभी गिरजाधर का और कभी गुरूद्वारे का । लेकिन था बडा बेचैन । फिजॉ इतनी खराब हो चुकी थी, कि, आग जनी हुई, लाठी चार्ज, हवाई फायर, भीड को तितर बितर करने के लिये पानी की धारा भी बहाई गयी, धारा 144 लगा दी गई, लेकिन मामला बस में नहीं आ रहा था, प्रशासन का वही पुराना रोना कहाँ से लायें इतनी फोर्स । रात होते होते पूरे जिले में कर्फ्यू लगा दिया गया । किसी को भी अपने घर से बाहर निकलने की इजाजत प्रशासन ने नहीं दी । मैंने मसखरे से कहा आज तुम अपनी जगह पर मत सोना, यहाँ मेरे घर पर ही सोना तुम्हें कोई्र तकलीफ नहीं होगी, माहौल खराब है । उसने कहा, '' गुरूजी मेरा किसी से क्या लेना देना, मेरे पास है क्या,......... मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने कहा,'' अगर मुझे कोई दिक्क्त होगी तो आप के पास ही तो आना है'' मेरे रोकते रोकते वह चला गया ।
मैं सारी रात उसके बारे में ही सोचता रहा मुझे उसके नाम की पहेली मुकसिहि समझ ही नहीं आ रही थी । फिर मैंने मु से मुस्लिम, क से क्रिश्चिन सि से सिक्ख और हि से हिन्दु निकाला । अरे वाह, तो ये थी वो पहेली तभी तो वह सभी धर्मो की इज्जत करता था । एक पूरा इन्सान, एक पूरा मुसलमान, एक पूरा हिन्दु, एक पूरा क्रिश्चन, एक पूरा सिक्ख । मेरा मन न जाने क्यों उसके प्रति इज्जत से भर गया । कितना मुश्किल है न आज के समाज में एक ऐसा आदमी ढूंढना । वाह, मसखरे, कितना महान है तू । मुझे लगा कि आज इस मसखरे के नाम की पहेली हल होते ही कितने सवाल हल हो गये जो अब तक मस्तिष्क में उठ रहे थे श्रद्धा से भर उठा मेरा मन ।
तीन दिन के बाद कर्फ्यू में ढील दी गई सुबह 6 बजे से दिन के 11 बजे तक। सभी लोग अपनी अपनी जरूरतों का सामान लेने के लिये बाहर आये । मैं भी चायपत्ती लेने के लिये अपने घर से बाहर निकला तो पंचायत घर के पास भीड़ थी, पुलिस की गाडी थी, मन शंका से भर गया । पुलिस वाले कह रहे थे कि इस लाश के पास से जो कागजात मिले हैं उसमें इसका नाम है 'मानव काम्बोज' बनारस विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में डाक्टरेट । आप लोगों में से कोई बता सकता है कि डा0 साहब के माता पिता कहाँ है । मैंने पास जाकर देखा तो एक लाश पडी थी चादर ढंकी हुई थी मैंने लोगों से जाना कि किसकी लाश है लोगों ने बताया ''मसखरे की.......... ।
वह ऐसा क्यों था यह आज भी सारे गांव वालों के लिये एक पहेली है ।
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R.K.Bharadwaj
email : rkantbhardwaj@gmail.com
Address: 151/1 Teachers’ colony
Govind Garh, Dehradun(Uttarakhand)
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