हो गया, हो गया! हिन्दी साहित्य में आज तक जो किसी के साथ नहीं हुआ, वो मेरे साथ हो गया। आलोचकों, पाठकों, लेखकों, पत्रकारों, कान धरकर ...
हो गया, हो गया! हिन्दी साहित्य में आज तक जो किसी के साथ नहीं हुआ, वो मेरे साथ हो गया। आलोचकों, पाठकों, लेखकों, पत्रकारों, कान धरकर सुनो, मेरा पुनर्जन्म हो गया है ! हिन्दी के व्यंग्यकारों में मैं पहला हूं, जो पुनर्जीवित हो गया हूं, बाकी या तो मरकर नरक में गये हैं या फिर पृथ्वी पर ही पारलौकिक सुखों का उपभोग कर रहे हैं।
मुझे अपने पूर्वजन्म की सभी वास्तविक-अवास्तविक बातें आज भी अच्छी तरह याद हैं-किस लेखक ने कितने चन्दे से मेरी लाश को जलाने के बजाय अपना पेट भरा, किस आलोचक ने मेरी सड़ी-गली रचनाओं को उच्च-स्तरीय कब और क्यों घोषित किया। यह सरासर झूठ है कि मेरे-जैसा व्यंग्यकार कैंसर-जैसी मामूली बीमारी के कारण हृदय-गति रुकने से मरा। मैं अपनी पूर्वजन्म की स्मृतियों के आधार पर आज घोषित करता हूं कि मैं नेफ्राइटोसिरोसिस व पेरीप्लेनेटा नामक बीमारी से मरा था। यह बीमारी सबसे पहले अमेरिका में फेरेटिमा पोसथूमा को हुई थी; वहां से योरोप के बुद्धिजीवियों को लांघकर भारत में होमो सेपाइन्स को हुई। तब से सभी व्यंग्यकार इसी बीमारी से मरना गौरव की बात समझते हैं।
मेरे मरने के तुरंत बाद मेरे घरवालों ने जो पहला काम किया, वो बीमे के कागजों को सहेजना था। मैं मरा पड़ा था, लेकिन मेरा सूक्ष्म शरीर इन सभी बातों का ध्यान से अध्ययन कर रहा था।
धीरे-धीर स्थानीय बुद्धिजीवी एकत्रित होकर मेरे बारे में बातें करने लगे थे।
वार्तालाप इस तरह चल रहा था-
‘‘चलो अच्छा हुआ, मर गया ! बेचारा बड़ा दुःखी था।‘‘
‘‘हां, गेहूं खरीदने के भी लाले थे !‘‘
‘‘लेकिन यार, लिखता बड़ा अच्छा था !''
‘‘हां-हां, क्यों नहीं, तुम तो यही कहोगे....चमचे कहीं के ! अरे अब तो वह बेचारा मर चुका है, किसी दूसरी पूंछ को पकड़ो !''
‘‘अबे जा !‘‘
शाम को आयोजित शोक-सभा में बड़ी लम्बी, नीरस और बेजान बहस के बाद सर्वसम्मति से शोक-प्रस्ताव पढ़ा गया था। इसे स्थानीय पत्र में छपाने के लिए कौन जाएगा-इस महत्त्वपूर्ण विषय पर कॉफी-हाउस के बेयरे से भी राय मांगी गयी, लेकिन उसने बीड़ी का टोंटा बुझाकर अपनी असमर्थता जता दी। अन्त में यह तय हुआ कि जो भी जाएगा, उसे चन्दे में से कुछ रकम दी जाएगी। हर व्यक्ति को इसी बात की बड़ी फिक्र थी कि उसका नाम कहीं इसमें छपने से न रह जाए।
मेरी एक मात्र महिला मित्र ने (जो कि ऐसे समाज की सदस्या थी, जहां नमस्कार करके फ्लर्ट किया जाता है, आंख मार कर नहीं), मेरी मौत के बाद ज्योंही मेरे पुनर्जन्म की बात सुनी, अपने तमाम पुराने पत्र जो उसने सम्भालकर रखे थे, आग की भेंट चढ़ा दिये। यह करने के बाद उसने मुझसे पिण्ड छुड़ाने के लिये यह शहर भी छोड़ दिया।
मैनें अपने पुनर्जन्म के होते ही, अपने पिछले जन्म की समस्त बातों का ध्यान करना तथा उन्हें रिकार्ड करना षुरू कर दिया है, ताकि परामनोवैज्ञानिक इन बातों से अपना अध्ययन जारी रख सकें। जब वे पचासों बड़े लोगों के पुनर्जन्म पर शोध कर सकते हैं, तो व्यंग्यकार के पूर्वजन्म से उन्हें कई नयी बातें ज्ञात हो सकती हैं। यथा मेरे पूर्वजन्म के समय साहित्य, विज्ञान, दर्शन, राजनीति आदि की क्या स्थिति थी ?
मैं घोषित करता हूं कि मुझे अपने पूर्वजन्म के स्थानों और पात्रों की याद बड़ी तेजी से आ रही है। ऐसे स्थान भी, जहां मैं कभी नहीं गया हूं, मुझे याद आ रहे हैं।
मैं बरबस याद करता हूं कि मुझे एक अकादमी की गोष्ठी में बुलाया गया है; मंच पर तथाकथित साहित्यकार व मंत्री विराजमान हैं। देश में उपस्थित लोक-संस्कृति की रक्षा हेतु गम्भीर चिन्तन चल रहा है। मंच पर बैठी महिला पान खाने में व्यस्त हैं, मैं उन्हें देखने में व्यस्त हूं। अचानक माइक मुझे थमा दिया गया है। मैं जोश में होश खोकर बोलने लगता हूं और तब तक बोलता रहता हूं, जब तक कि मुझे अपने नये जन्म का आभास नहीं होता।
पूर्वजन्म की एक और घटना मुझे याद आ रही है-एक लघुपत्रिका के स्वनामधन्य सम्पादक ने मुझसे एक रचना मांगी थी; उसे उन्होंने छापा भी था। लेकिन छपने के बाद जो रचना पाठकों के सामने आई थी, वह अपनी मिसाल आप थी। यह रचना मुझे अपनी नहीं, सम्पादक की मौलिक सूझबूझ लगी। मुझे आज भी याद है इस मौलिक रचना का पारिश्रमिक अभी तक नहीं दिया गया है। मैं अपने पुनर्जन्म के कारण अब उपरोक्त सम्पादक जी से पारिश्रमिक की मांग करता हूं !
मैं यह भी घोषित करता हूं कि मेरी मृत्यु के बाद, मेरे नाम से छापी गयी रचनाएं मेरी नहीं है; वे केवल पैसा कमाने के उद्देश्य से अन्य व्यक्तियों द्वारा लिखी गयी हैं। मरने से पूर्व मैंने अपनी समस्त रचनाएं प्रकाशित करा दी थीं और यही कारण है कि मैं शांतिपूर्वक मर सका था। इन जाली रचनाओं से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। ये उन पेशेवर लेखकों द्वारा लिखी गयी हैं, जो हर किसी के मरने के बाद मृतात्मा की रचनाओं से कमा खाते हैं।
मुझे अपने पूर्व जन्म में आलोचकों ने काफी परेशान किया था। वास्तव में आलोचक और लेखक का सम्बन्ध उस बिच्छू और ऋषि का है, जो पानी में खड़ा होकर बिच्छू को हथेली पर रखता है; बिच्छू हर बार डंक मारता है और ऋषि हर बार उसे बचाता है। बहरहाल, इन आलोचकों ने मेरी रचनाओं को फूहड़ कन्टेम्परेरी वर्ल्ड से अलग कहा था; लेकिन मेरी मृत्यु के तुरन्त बाद उन्हें वे ही रचनाएं अच्छी लगने लगी थीं। पूर्वजन्म की इन कटु स्मृतियों के कारण मैं इस जन्म में भी काफी परेशान हूं और चाहता हूं कि मेरे पुर्नजन्म पर भी एक आलोचना लिखी जाए, ताकि सनद रहे और वक्त-जरूरत काम आए।
पूर्वजन्म में मैं एक गरीब मोहल्ले में गन्दी गली के गन्दे मकान की एक अंधेरी कोठरी में पैदा हुआ था । घर का दरवाजा दक्षिण में खुलता था, एक मात्र खिड़की उत्तर में थी, हम पांच भाई व दो बहनें हैं और सभी खुशहाल हैं; लेकिन घर के पीछे खेतों में जो फसल बोई जाती थीं, वह कभी हमें नहीं मिली।
हमारे गांव में कुएं से पानी घर तक लाने के लिए मां सुबह जल्दी उठती थे; लेकिन बाद में नल लग गये थे। हमारे घर में पशु पाले जाते थे। एक घोड़ा, एक भैंस व एक गाय अपने-अपने परिवारों के साथ हमारे ही आसपास रहते थे। मैं छाछ बिलोने से लेकर गोबर के कंडे थापने तक के कार्यों में मां की मदद करता था। मुझे अपनी मां के दाहिने हाथ पर जलने के निशान की भी याद है, जो कढ़ाई के तेल उछलने के कारण बना था। हमारे घर के सामने एक बड़ा चबूतरा था, जिस पर एक पीपल का पेड़ था। इस पेड़ के नीचे बैठकर मैंने साहित्य-साधना शुरू की थी। बाद में पढ़ाई के नाम पर मैंने गांव छोड़ दिया। फिर नौकरी और बीवी के चक्कर में पड़ गया।
पूर्वजन्म की इन बातों की याद बार-बार आकर इस जन्म को भी कसैला कर रही है। अब तो मैं केवल यही चाहता हूं कि कोई परामनोवैज्ञानिक आकर मेरे ऊपर शोध करे और पैरासाइकोलॉजी को समृद्ध करे !
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यशवन्त कोठारी
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जानदार व्यंग्य
जवाब देंहटाएंआशा है - भविष्य में आप इससे भी अच्छे व्यंग्य लिखेंगे!
जवाब देंहटाएंनए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!
सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"
FONT लिखने के चौबीस ढंग
संपादक : "सरस पायस"