नए साल का पहला दिन और किसी ने चेक भेज दिया...? वाह..? मैंने लिफाफा खोला तो उसमें से तीन सौ पैंसठ रुपए का चेक निकला। मैं समझ गया कि क...
नए साल का पहला दिन और किसी ने चेक भेज दिया...? वाह..?
मैंने लिफाफा खोला तो उसमें से तीन सौ पैंसठ रुपए का चेक निकला। मैं समझ गया कि किसी पत्रिका से आया होगा लेकिन पत्रिका वाले तो राउंड फिगर में ही चेक भेजते हैं। 365/- का फंडा कुछ समझ में नहीं आया। चेक झुमरीतलैया से आया था। फिर गौर से देखा तो, अरे- अरे....?ये 365 रुपए नहीं, 365 दिन की हंसी का चेक है। मित्र ने भेजा है और लिखा है कि
'' बच्चू, नए साल में हर दिन हंसी-खुशी को अपने (मन के) बैंक से 'कैश' करते रहो। और साल भर ऐश करते रहो'.''
मैं हंस पड़ा. फिर सोचने लगा,कि इस चेक को 'कैश' करवाने की बजाए क्यों न एफ.डी. में डाल दूं। इसके ब्याज से अपनी हंसी का कोटा पूरा हो ही जाएगा। मूलधन भी रहेगा जस का तस। जिंदगी कट जाएगी हंस-हंसकर।
हमने अपने मित्र विचित्र सिंह को 365 की हंसी वाले चेक के बारे में बताया तो वे मुँह बिचकाने लगे -
''ये भी कोई चेक है जी, 365 रुपए का चेक होता, तो कुछ मजा आता. कुछ पार्टी-शार्टी हो जाती। अब हंसी वाले चेक का क्या करें, रोएँ या हंसें? देखकर तो मुझे रोना ही आ रहा है। पैसे की दुनिया है भइये। कहा है न कि, ना बीवी न बच्चा, ना बाप बड़ा ना भैय्या। द होल थिंग इज़ दैट कि भैय्या सबसे बड़ा रुपैय्या। तो रुपइय्या होता तो कोई बात होती। खुशियों की बारात होती।''
मैंने कहा, '' मित्र, संतोष ही असली धन है। उसके सहारे ऐश करो। जब चाहो हंसी कैश करो।''
मित्र बोले - ''खाक ऐश करें। ये तो भरे पेट वालों का फंडा है, दर्शन है । अरे, उनके पास पैसा है इसलिए संतोष है और इधर कड़की है और घर पर महंगाई की तरह तेज़ी से बड़ी होती लड़की है , इसलिए असंतोष है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपईया। ना पूछो हाल। नतीजा ठन ठन गोपाल। इसलिए भैय्या जिनके पास होता है पैसे का कोष, वही सदा कहते रहते हैं कि रखो जरा संतोष। लेकिन यहाँ तो है अफसोस ही अफसोस। यहाँ जेब खाली है, कंगाली ही कंगाली है। रूठी हुई घरवाली है तो काहे न रहे टेंशन। और तुम कहते हो कि संतोष धन से काम चलाओ, हंसी वाले चेक के सहारे जिंदगी को धकेलो। अरे, सीधे-सीधे कहो न खाली पेट दंड पेलो।''
मैंने कहा, ''तुम्हारी तरह मेरी जेब भी खाली है लेकिन देखो न चेहरे पर न सही, होठों पर तो लाली है। अपनी तो रोज ही दीवाली है। अरे जितनी चादर उतना पैर, तभी रहेगी अपनी खैर। इसलिए जब दो रोटी नहीं मिलती तो एक से भी काम चला लेते हैं। आधे पेट रहकर भी जिंदगी का मजा लेते हैं। अरे, ऊपर वाला जितना देना चाहे देता, मानव केवल उतना पाता। जिसकी समझ में ये सब आता। जीवन का सच्चा सुख पाता।''
मित्र बोले, ''तुम केवल शब्दों से खेलते हो, भूखे को रोटी नहीं देते, सिर्फ कविता ही पेलते हो। लेकिन मेरे भाई, कविता से घर का चूल्हा नहीं जलता। पेट की आग नहीं बुझती। जाओ, हंसी वाला नहीं, नोटों वाला चेक लाओ। अब सौ-दो सौ का जमाना नहीं है, करोड़पति बनने-बनाने का दौर है। ऐसे में तुम संतोष का दर्शन समझा रहे हो। लगता है तुम सीधे 'लाफिंग क्लब' से आ रहे हो। और आज का धांसू जोक सुना रहे हो। अरे भाया, ये जीवन भावुकता और आदर्श की बातों से नहीं चलता है। इसके लिए चाहिए नोट, पैसा, मनी। बाकी सब बातें हैं फनी। दुआ करो कि 365 रुपए का चेक आए, तब तुम्हारे साथ हमको कुछ मजा आए।''
मैंने कहा - ''मेरे पास चेक आएगा और तुमको मजा आएगा। यह बात कुछ समझ में नहीं आई। जरा समझाओ मेरे भाई।''
मित्र हंसा - ''अरे बात बिल्कुल साफ है। अरे हम जिंदगी भर आभारी रहेंगे तुम्हारेक्योंकि उनमें से होंगे पैंसठ हमारे।''
मैंने कहा - ''अरे वाह! मेहनत और भाग्य से पैसा हमारे पास आए काका, उस पर तुम जबरदस्ती डालोगे डाका ? क्या किसी राजनीतिक पार्टी में हो या चंदाखोरी की संस्था चला रहे हो। देख परायी चूपड़ी को चीभ ललचा रहे हो।''
मित्र बोला - ''यही वक्त का तकाजा है, जो जितना लूट-खसोट करे उतना ही बड़ा राजा है। इसलिए मेरी मानो, राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो जाओ और अपने मित्र से हंसी का नहीं, नोटों वाल चेक मंगाइए।''
मैंने कहा -''मैं 365 दिन वाले चेक में ही खुश हूँ। यही मेरा खजाना है। मुझे और क्या पाना है। और भइये पैसे का भी कहीं अंत है। आदमी का अंत जरूर हो जाएगा। रोते हुए आते हैं सब हंसता हुआ जो जाएगा, वो मुकद्दर का सिकंदर कहलाएगा। तो मुझे फकीरी में भी हंसना और सिकंदर बनना है। मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में . हरि अनंत हरिकथा अनंता की तरह पैसा अनंत पैसे की चाह अनंता। सो, मोके पैसा नहीं संतोष चाहिए, रोना नहं हंसी चाहिए, कमाई नहीं त्याग चाहिए।''
मित्र विचित्र सिंह बोले - ''तुम ही नहीं सुधरोगे। फकीर के फकीर रहोगे। फूटी हुई तकदीर रहोगे। चलूँ मुझे दलाली में दो पेसे कमाने हैं। रिश्वतखोरी करके मामले सलटाने हैं। बहुत जल्दी खरीदनी है महंगी कार, मैं चलूँ मेरे यार। तुम तीन सौ पैंसठ दिन की हंसी वाले चेक पर नाचो, और भूखे पेट संतोष की रामायण बांचो।''
मित्र चला गया। मैं ३६५ वाला चेक को देखता रहा और सोच रहा था कि मित्र सही है कि मैं?
साथियों नए साल पर फैसला आप करें. आप ही कीजिए तय कि वो सही था या मैं?
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संक्षिप्त परिचय- गिरीश पंकज , संपादक, " सद्भावना दर्पण" सदस्य, " साहित्य अकादमी", नई दिल्ली. आठ व्यंग्य संग्रह, तीन व्यंग्य उपन्यास समेत तीस पुस्तकें भी प्रकाशित. गिरीश पंकज नाम से इनका ब्लॉग भी है, जिसमे आप एक व्यंग्यकार के कवि रूप को भी देख सकते है. संपर्क-जी-३१, नया पंचशील नगर, रायपुर. छत्तीसगढ़. ४९२००१ मोबाइल : ०९४२५२ १२७२०
बहुत सुन्दर,आपको नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाये !
जवाब देंहटाएंएक बहुत सुंदर प्रस्तुति पर और नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कमाना के साथ
जवाब देंहटाएंसादर रचना दिक्षित