(प्रविष्टि क्रमांक - 32) (महत्वपूर्ण सूचना : पुरस्कारों में इजाफ़ा – अब रु. 10,000/- से अधिक के पुरस्कार! प्रतियोगिता की अंतिम तिथ...
(महत्वपूर्ण सूचना : पुरस्कारों में इजाफ़ा – अब रु. 10,000/- से अधिक के पुरस्कार! प्रतियोगिता की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर 2009 निकट ही है. अत: अपने व्यंग्य जल्द से जल्द प्रतियोगिता के लिए भेजें. व्यंग्य हेतु नियम व अधिक जानकारी के लिए यहाँ http://rachanakar.blogspot.com/2009/08/blog-post_18.html देखें)
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युगों-युगों से खास आदमी की पूछ होती चली आ रही है। जबकि आम आदमी की पूछ कहीं भी नहीं होती। यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि आम आदमी की पूंछ होती ही नहीं है। जबकि खास आदमी की हर जगह पूछ होती है। जिसके कारण वह व्यस्त रहता है।
खास आदमी एक गम्भीर किस्म को प्राणी होता है जो कम ही बोलता है ( जिसे हम मनहूस भी कह सकते हैं )। खास आदमी की प्रत्येक चीज खास होती है। यह दिन भर कुछ न कुछ खाता रहता है। यह रोटी नहीं होता, क्योंकि रोटी आम आदमी के पेट भरने के लिये होती है। खास आदमी हमेशा कुछ न कुछ पीता रहता है परन्तु यह पानी नहीं होता।
इनकी बीमारियां भी खास होती हैं। यह मीठा नहीं खा सकते, मसाला, तेल घी तो इनके लिये बना ही नहीं है। इनको रात में नींद कम ही आती है और यह दिन में अधिक सोते हैं। यह विलक्षण प्रकृति के होते हैं, इसलिये इन्हे भूख कम लगती। यह दवा के साथ खाना खाते हैं या खाने के साथ दवा खाते हैं यह भी राज की बात है।
यह खुले स्थान पर कम ही पाये जाते हैं। मैं किसी खास आदमी को नहीं जानता, इसलिये उनके साथ उठने-बैठने का अवसर आज तक प्राप्त नहीं हुआ है। मेरी जानकारी के अनुसार यह तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम-खानदानी जो उस खानदान में पैदा हो जाते हैं। दूसरे- अपनी मेहनत से खास बन जाते हैं। तीसरा-कभी-कभी भाग्य के सहारे भी लोगों को खास होते देखा हैं।
इनमें से कोई अंक गणित/बीच गणित/रेखा गणित के सिद्धान्तों को अपनाता है। जो अंक गणित के सिद्धान्त को अपनाता है, वह दो दूना चार, चार दूना आठ की गति से तरक्की करता है।
बीज गणित के सिद्धान्त पर चलने वाला आदमी, बीच की गणित में उलझ कर रह जाता है और मध्य वर्गीय परिवार तक ही सीमित होकर दाल-रोटी के चक्कर में फंस कर रह जाता है और कभी खास आदमी नहीं बन पाता।
रेखा गणित के सिद्धान्त के पर चलने वाला आदमी गरीबी की रेखा के नीचे ही रह जाता है। वह रोजी-रोटी के चक्कर में क्या-क्या नहीं करता। कभी मिली तो ठीक नहीं मिली तो ठीक वह किसी तरह से अपना पेट भर लेता है।
खास आदमी का हृदय सदैव परिवर्तन शील होता है। जब इनका हृदय परिवर्तित होता तो सभी को पता चल जाता है। यह हृदय परिवर्तन उनके स्वार्थ के अनुकूल होते रहते हैं। हृदय परिवर्तन का भी एक अवसर होता है, क्योंकि हमेशा इनके हृदय परिवर्तित नहीं करते।
यह बहुयामी विचारों वाले होते हैं। मुख्यतः यह जातिवाद, धर्मवाद, प्रदेशवाद, देशवाद में ही जीते हैं। यह किसी भी क्षेत्र में पाये जाते हैं या कहिये घुस जाते हैं- नौकरी, व्यवसाय और राजनीति आवश्यकता पड़ने पर यह कुछ भी कर सकते हैं। जबकि एक आम आदमी कानून रूपी मकड़ जाल में फंसने कर रह जाता और बेचारा कुछ नहीं कर पाता है।
यह मेरा आपना भ्रम है कि खास आदमी होता भी है। जिनको आपने देखा है, तो वह होता है। जिसको नहीं देखा वह नहीं होता। हमारे इस भ्रम को दूर करने के लिये मेरे बीज गणित के अध्यापक महोदय ने एक फार्मूला बताया था कि किसी प्रश्न के उत्तर को निकालने के लिये, वह अज्ञात को ''क,ख,ग'' मान लेते थे। आज भी उन व्यक्तियों का मान रखने के लिये वही बीज गणित का फारमूला अपनाता हूं। इससे किसी प्रकार का विवाद भी नहीं होता और प्रश्न का भी हल हो जाता है।
आज तक मैंने किसी खास आदमी से हाथ तक नहीं मिलाया, खड़े होने उठने बैठने की बात तो कभी सोची तक नहीं। मेरे एक पड़ोसी ने कभी एक खास व्यक्ति के साथ भोजन किया था। उन पड़ोसी ने ड्राईंग रूम में एक फोटो आज तक लगा रखी है। उनका कहना है कि मैंने खाना जरूर खास आदमी के साथ खाया परन्तु उस दिन पेट भर खाना नहीं खास सका क्योंकि उनका सारा ध्यान खास आदमी और फोटो खिंचवाने पर था।
एक समय कि बात है कि मोदी इण्डस्ट्री के मालिक हवाई जहाज में सफर कर रहे थे। उनके दाहिनी ओर की कुर्सी पर दिलीप कुमार फिल्म अभिनेता बैठे हुए थे। उस वृद्ध ने आराम की मुद्रा में अपनी आँखें बन्द कर रखी थी। जबकि अन्य लोग दिलीप कुमार को हैलो! हॉय! नमस्कार कर रहे थे। एयर होस्टेस भी उन्हें कुछ अधिक ही सम्मान दे रही थी। सब कुछ सामान्य हो जाने पर वृद्ध ने जब आँखें खोली तो दिलीप कुमार ने स्वयं ही उनसे कहा- '' मैं दिलीप कुमार हूं।'' अच्छा- ''आप क्या करते हैं।'' मैं फिल्म लाईन में हूं। अच्छा, ''आप फिल्में बनाते हैं।'' दिलीप कुमार- '' नहीं ,मैं एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता हूं। क्या आप फिल्म नहीं देखते।'' '' हाँ! गांधी के साथ एक बार ''राम राज्य'' देखी थी उसके बाद मौका ही नहीं मिला।'' तब उन्होने अपना परिचय ''मोदी'' इण्डस्ट्रीज के मालिक के रूप में दिया। उस दिन दिलीप कुमार को बड़ी शर्मिंदगी हुई। उन्हें लगा कि इस व्यक्ति के आगे आज मैं एक सामान्य आदमी हूं।
जब कोई आम आदमी, कभी खास आदमी बन जाता है। तो उससे पूछा जाता है - आपने यहां तक पहुंचने के लिये क्या-क्या किया। आम आदमी के लिये कोई सन्देश देना चाहेंगे आदि-आदि। तो वह वही सारी बातें बताता है जो एक आम आदमी की दिन चर्या होती है। कुछ खास आदमी अपनी सनक या पागलपन की वजह से भी खास आदमी की श्रेणी में आ जाते हैं। यह एक जुनून होता है। खास आदमी कुछ भी करके पछताता नहीं है जबकि आम आदमी बिना किये ही पछताता है। लेकिन किसी को कभी दुःखी नहीं होना चाहिए क्योंकि कोई आम आदमी कभी खास आदमी बन सकता है। यदि वह निरन्तर बिना समय गंवाये अपनी धुन में लगा रहे तो वह भी कभी खास आदमी बन सकता है।
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( रमेश चन्द्र पाल )
6/366 विकास नगर,
लखनऊ-22
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