(प्रविष्टि क्रमांक - 27) (महत्वपूर्ण सूचना : प्रतियोगिता की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर 2009 निकट ही है. अत: अपने व्यंग्य जल्द ...
(महत्वपूर्ण सूचना : प्रतियोगिता की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर 2009 निकट ही है. अत: अपने व्यंग्य जल्द से जल्द प्रतियोगिता के लिए भेजें. व्यंग्य हेतु नियम व अधिक जानकारी के लिए यहाँ http://rachanakar.blogspot.com/2009/08/blog-post_18.html देखें)
परम आदरणीय महोदय साहेब जी लिब्रहान, क्यों हो रहे हैं आप हलकान? जीवन के सत्रह साल का कर दिया नुकसान. सत्रह साल में तो बच्चा जवान हो जाता है, जवान बूढा हो जाता है बूढा स्वर्ग की सीढियां नापता नज़र आता है. सोचिए साहेब जी कि सत्रह साल और उससे भी अधिक समय से, कहें तो सदियों से जिसके लिए अपनी जान देते आए हैं, वे आखिर हैं कौन? यू पी के दो भैया ही ना, जिसे जब तब हकाल देने, जान से मारने, भीतर घुसने ना देने की बात कही जाती रही है. अब आप सभी ही बताएं कि ये दो भैये कोई आज के हैं क्या कि आप जैसा कहेंगे, वैसा वे कर देंगे? अरे, ये बडे चालाक, बडे जुगाडू और बडे मौका परस्त थे. तभी तो वानर सेना भी बना ली और एक भाई को दूसरे के खिलाफ भडका भी दिया. इनकी जडे बहुत गहरे तक धंसी हुई हैं, त्रेता से लेकार द्वापर तक. बात बडी अजीब सी है और नहीं भी. यह आज की बात नहीं भी है, और है भी. कहते हैं ना कि मानो तो देव नहीं तो पत्थर. यह भी कि इस शीर्षक का बीज मेरे एक मित्र ने छम्मक्छल्लो के मन में बो दिया. अब बो दिया तो वह अंकुराएगा ही.
छम्मक्छल्लो ने देखा कि त्रेता का एक भैया बडो बडों की खाट खडी कर गया. सबसे पहले अपने बाप की खाट श्मशान में पहुंचा दी. मां की आज्ञा मान कर. वह भी क्या तो सौतेली मां. फिर छोटे भाई को भिडा दिया, जा भैया, एक रूपसी अपने रूप पर अभिमान ना करे और हम सबका पुरुषत्व बचा रहे, उसकी कुछ तज़बीज़ कर आ. और देखिए विडम्बना कि इसके लिए उन्हें जो स्थल मिला, नाक कटने के बाद वह स्थान कहलाया -नासिक. जी हां, अंगूर की इस नगरी नासिक में कुम्भ का मेला लगता है और गोदावरी नदी के तट पर राम का अखाडा है, जहां शाही स्नान होता है. वहां सीता गुफा है. कहते हैं कि असली सीता को राम ने अग्नि के हवाले कर दिया था. बहन प्रेमी भाई ने तो बस उसकी छाया का अपहरण किया था और अग्नि परीक्षा के समय अग्नि ने असली सीता को लौटाया था- क्लोनिंग उस ज़माने में भी थी और डबल रोल भी. वहां एक कालाराम का भी मन्दिर है, जिसमें राम सहित सीता, लक्ष्मण सभी की मूर्तियां काले पत्थर की हैं और गोराराम का भी है. सोच कीजिए, कि वहां मूर्तियों का रंग क्या होगा?
यू पी का यह भैया इतने पर ही नही रुका. अपनी नगरी, अपना राज्य छोदकर वह दूसरे राज्य में अपहुंच गय था. ऐसा तो नहीं था कि यू पी में जंगल ही नहीं था. परंतु नहीं नहीं, भूल ह्प गई. देशनिकाला में तो रज्य के जंगल भी शामिल हैं. लिहाज़ा, वह तो नासिक की पंचवटी में था अपनी घरवाली के साथ, जहां नाक कटी बहन के अपमान का बदला लेने भाई पहुंच गया. मामा मायावी था और लोग झूठ ना बुलवाए, अपनी इस मुंबई नगरी को भी मायानगरी ही तो कहा जाता है. कहते हैं कि मामा इसी मायानगरी का था.
बात यहीं नहीं रुकी. किशोरावस्था में ही एक मुनि उनको बिहार के बक्सर ले गए उधार मांगकर ताकि राक्षसी ताडका से उनकी रक्षा की जा सके. सोचिए, कितनी बलशाली होती थीं तब बिहार की महिलाएं कि एक ओर ताडका बन कर मिथकीय दुनिया के सबसे बलशाली मुनि की नाक में दम कर रखा था तो दूसरी ओर फूल से भी कोमल सिया सुकुमारी के भीतर भी इतनी ताक़त कि वह शिव का धनुष खिसका दे. यू पी का यह भैया वहां भी नैन सों नैन नाहीं मिलाओ गाने से बाज नहीं आया. यकीन ना हो तो मानस पढ लीजिए, राम सीता के बाग में मिलने की चर्चा, फिर इसके बाद सीता का देवी पार्वती से इसी भैया को पति के रूप में पाने की प्रार्थना और देवी का आशीष कि "सुनु सिय सत्य असीस हमारी, पूजही मनकामना तुम्हारी." तो यू पी के इस भैया ने खुद तो धनुष तोड कर लडकी जीत ही ली, साथ साथ अपने और तीनों भाइयों के लिए भी घरवाली का इंतज़ाम कर लिया.
माता की बात मानकर जंगल चले गए और वहां जो कुछ किया, आपको पता ही है. वानर सेना भी खडी कर ली, भील भीलनी को भी पने बस में कर लिया, नाक कटी के दूसरे भाई को अपने कॉंफिडेंस में लेकर उसकी म्रृत्यु का राज़ जान लिया और चाचा, बेटे सबको मारकर अपना असर मनवा लिया. और तो और, उसकी विधवा भाभी का भी उसके साथ ब्याह करवा दिया. इतना ही नहीं, छोटे भाई को मरणासन्न दुश्मन से सीख लेने के लिए भी भेज दिया तकि बाद में दुनिया अश अश कर उठे.
प्रजा के ताने पर घरवाली को घर से बाहर निकाल दिया. सौतेले भाई से इतना प्रेम कि उसे अपनी खडाऊं दे दी. और यह सब करने के बाद अंतर्ध्यान हो गए, मगर अभी तक लोगों को पानी पिला रहे हैं, एक दूसरे को असली नेता की तरह भिडवा रहे हैं. लोग आज कह रहे हैं कि यू पी के भैया ने कहर मचा रखा है, मगर इसने तो त्रेता से ही गदर मचा रखा है.
दूसरे भैया ने तो जेल में जन्म लिया और ऐसी राजनीति रची कि भारत को महाभारत में बदल दिया. हमारे देश में कानून है कि एक हिन्दू आदमी एक पत्नी के रहते दूसरा ब्याह नहीं कर सकता और उसी के भगवान कहे जानेवाले यू पी के इस भैया एक दो क्या कहें, आठ रानी और साठ हज़ार पटरानी के मालिक बन बैठे. इतने पर भी मन रसिया, मन बसिया कहलाने से बाज़ नहीं आए तो एक अदद प्रेमिका भी कर ली. फिर भी चैन नहीं मिला तो महारास रचा रचा कर सारी ब्याही, अनब्याही, बाल बच्चेवाली गोपिकाओं को अपने पास बुलाने लगे. कहीं जेल का तो यह सब असर नहीं था? एक भैया ने महाराष्ट्र में बहन की नाक काट ली तो एक ने पडोस के गुजरात मे अपना दाखिल कबज़ा कर लिया.
और तो और, नेपाल में जनमे सिद्धार्थ को भी कहीं और ज्ञान नहीं मिला और वह युवा राजकुमार जब "गया गया तो ऐसा गया कि गया ही रह गया" और गया को उसने बोधगया बना दिया. ज्ञान की उसकी गंगा मैदानी भारत में सबसे ज़्यादा फैली तो अपने बाबा साहेब की छांव तले.
अब जब ये सभी लोग त्रेता, द्वापर से ही रार मचाए हुए हैं और बिहार में ही सुन्दरता के साथ साथ ज्ञान को भी केन्द्र मान लिया और अपना दबदबा यूपी से लेकर हर ओर जमा लिया, इतना कि उसके नाम पर बडे से बडे स्मारक ढाह दिए जाते हैं, उनके नाम पर बडी से बडी कमिटी बन जाती है, उनके नाम पर पता नहीं कितनी गोटियां कहां, कहां और कैसे कैसे जमा ली जाती हैं. लोगों का पूरा का पूरा कैरियर ही यू पी के इन दो भैयाओं पर बसा हुआ है- देश से विदेश तक. तो प्रेम से बोलिए, हरे रामा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा हरे रामा! रामा रामा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा हरे रामा!
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