(प्रविष्टि क्रमांक - 33) (महत्वपूर्ण सूचना : पुरस्कारों में इजाफ़ा – अब रु. 10,000/- से अधिक के पुरस्कार! प्रतियोगिता की अंतिम तिथ...
(महत्वपूर्ण सूचना : पुरस्कारों में इजाफ़ा – अब रु. 10,000/- से अधिक के पुरस्कार! प्रतियोगिता की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर 2009 निकट ही है. अत: अपने व्यंग्य जल्द से जल्द प्रतियोगिता के लिए भेजें. व्यंग्य हेतु नियम व अधिक जानकारी के लिए यहाँ http://rachanakar.blogspot.com/2009/08/blog-post_18.html देखें)
आज कहीं भी खुदाई होते देख उसके बारे में कुछ भी कहना कठिन है क्योंकि यह खुदाई किसने कराई या क्यों कराई, पर बवाल खड़े हो जाते हैं। रोड़ जाम, यह जाम, वह जाम। ब्रेड पर लगने वाला ''जैम'' जैसी स्थिति हो जाती है।
जब मैं किसी मजदूर को फावड़ा, गैंती के साथ देखता हूं, तो मेरा भारत महान दिखता है क्योंकि यह देश है, वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का, इस देश का यारों क्या कहना! इन्हीं से देश चलता है और यह बेचारे गरीबी की रेखा से नीचे होते हैं, यह बात अलग है कि यही हमारे वोट बैंक और ए0टी0एम0(ऑल टाइम मैन या ऑल टाइम मेहनत ) हैं।
इनका भी देश भक्ति की फेहरिस्त में नाम है। इसलिये मैं इनकी एक इकाई से आपका परिचय करा रहा हूँ। यह हैं ''खुदाई सिंह'' कुएं से लेकर कब्र तक की खुदाई स्वयं ही करते हैं। ''खुदाई'' इनका धर्म और ईमान है। इन्होंने पैदा होते ही नाखून से खुदाई का काम शुरू कर दिया था। अब तो टेलीफोन विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग, जल संस्थान आदि सब इन्ही की खुदाई पर निर्भर हैं।
यह अपने मां-बाप को एक गड्ढे़ में मिले थे। तभी से इनका नाम 'खुदाई सिंह' पड़ गया। यह गॉव और शहर, देश-विदेश कहीं भी खुदाई कर सकते हैं। क्योंकि अब तक इन्होंने न जाने कितने कुएं, तालाबों की खुदाई की, जब इनकी मॉग नहीं रही तो इन्होंने पेटे के वास्ते घरों में सेंध, और पकड़े जाने पर जेल में सुरंग की खुदाई की और फरार हो गये। अब यह ठेकेदार ''फरार सिंह'' के नाम से भी जाने जाते हैं। अब इन्होंने देश में खुदाई के वास्ते चुनाव लड़ने की ठानी है।
इन्हें अब सोते जागते बस खुदाई-खुदाई, खुदाई और खुदाई ही दिखाई देता है। इनके भाई-बिरादर सब इसी धन्धे में हैं। इनका नाम कई विभागों में बड़े सम्मान से लिया जाता हैं। मोहन जोदड़ो-हड़प्पा की खुदाई के बाद से इनकी ऐसी धाक जमीं की अब यह खुदाई के काम के लिये मोहताज नहीं है। पुराने खण्डर को देखकर उनका अनुमान लगाया जा सकता है परन्तु इनको देखकर इनकी आयु का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि जब कोई इनसे उम्र के बारे में पूछता तो यह कहते हैं, ''बस मुझे खुदाई करनी है।''
इस समय देश की संचार व्यवस्था के विस्तार का कार्य इन्ही के कन्धों पर है। सड़कों की मरम्मत एवं उनके विस्तार कार्य में भी इनका बड़ा योगदान है, जितना की टायर के साथ टूयूब का होता है।
ये कुछ रहस्मय खुदाई के राज भी जानते हैं, इनका कहना हैं। कि संसार में जो भी नदियॉ बह रही है वह किसने खोदी हैं ? प्राचीन काल में धन छिपाने के लिये गड्ढे किससे खुदावाये जाते थे? पृथ्वी से निकलने वाले धातुओं और गड़े धन पर किसका अधिकार होना चाहिए, हमारे पूर्वजों का, श्रम भी उसमें सम्मिलित है और सरकार उस पर अपना अधिकार जताती है। इस प्रकार के कार्यो की रॉयल्टी किसे मिलनी चाहिए? आजकल लोग देश को हरा भरा बनाना चाहते हैं। यह काम हमारे भाईयों ''माली'' के सहयोग के बिना कैसे सम्भव है? खुरपी से खुदाई भी तो खुदाई की श्रेणी में आती है और बगैर खुदाई सिंह के कहीं खुदाई हो जाये तो धिक्कार है, खुदाई के नाम को?
मेरा तो यहां तक कहना है कि बिल्डिंग और पुल की नींव की खुदाई का काम यदि हमें दे दिया जाये तो भूकम्प की क्या मजाल की वह बिल्डिंग और पुल को हिल दे, ढ़हने की बात की कल्पना करना भी कल्पना है। क्योंकि हम ने पांच पाण्डव और द्रौपदी को सुरंग के रास्ते जिधर चाहा उधर से बाहर निकाल दिया था। हम इस देश की जनता को पुलों के बजाये सुरंगों से जिधर चाहे उधर निकाल सकते हैं। इसके निर्माण में देश का सीमेण्ट, बालू, मौंरग और सरिया सब की बचत। इसे दूसरे देशों में निर्यात करो। खुदाई भी एक हुनर है एक कला है। मैं तो कहता हूं ललित कला है। देश के वास्ते यह किस दिन काम आयेगी। आज के नेता बस अपने बारे में सोचते और राजनीति करते हैं। मुझे छोड़कर एक भी नेता का नाम बता दो जो देश के बारे में सोचता हो? हां, यह बात अलग है कि वह स्वयं एक दूसरे के लिये गड्ढ़े खोदते नजर आ रहे हैं।
मुझसे तो अब इस देश की हालत देखी नहीं जाती। एक दिन दो व्यक्ति आपस में लड़ रहे थे और खुदाई सिंह अर्थात मैं उधर से गुजर रहा था। किसी को लड़ते देख मेरा गुस्सा खुदे हुए गड्ढे़ की तह तक पहुंच जाता है। क्योंकि लड़ाई की वजह मालूम करने पर पता चलता है कि वह लड़ किस बात पर रहें हैं उन्हे भी नहीं पता होता है परन्तु हमारी बात अलग है क्योंकि मुझे खुदाई करनी है और दूसरा भी कहा रहा था, नहीं पहले मुझे खुदाई करनी है। पहले का तर्क था, ''नहीं पहले रोड़ बनेगी, दूसरे का नहीं पहले केबिल पड़ेगा। तब मैने दोनों को एक-एक थप्पड़ लगाया। बोले बेवकूफों आपस में लड़ते हो इस देश के नेताओं को देखा है। ये जनता को बेवकूफ बनाने के लिये आपस में लड़ते है और तुम बेवकूफों अपने काम के लिये आपस में लड़ते हो। अरे लड़ाना सीखो, आपस में लड़ना नहीं। यह तो विभाग का कार्य है। तुम खुदाई नहीं करोगे तो क्या विभाग का बन्द हो जायेगा ?
आपसी लड़ाई की वजह से अब तक हमारे कितने नुकसान हो चुके हैं। पहले लोग तालाब और कुंए खुदवाते थे जिससे हमारे बच्चों का पेट पल जाता था परन्तु यह बहुमंजिली इमारत और कुछ विभागों ने भी हमें नुकसान ही पहुंचाया अपने निजी स्वार्थों के कारण पहले उन्होने तालाब खुदवाया और फिर पटवाया प्रोजेक्ट तैयार कराये और उनका ध्यान हमारी ओर कभी नहीं आया। इसलिये मै तो कहता हूँ कि एक खुदाई विभाग ही अलग होना चाहिए। जिससे पूरे शहर को यह तो पता रहे की कहाँ खुदाई हो रही और कहाँ खुदाई होनी है।
एक पुरात्व विभाग पहले से बना हुआ है यह भी खुदाई का ही काम करते है। इनके पास नाम के लिये विष्ोशज्ञ हैं और इन्हे भी पता नहीं होता है कि कहाँ पर खुदाई करनी है जब कहीं कुछ निकलता या कोई इन्हे ख़्ाबर देता है तब यह खुदाई का काम शुरू करते हैं। शायद इन्हें यह नहीं पता की खुदाई के काम में जरा सी लापरवाही करने पर धरती का बैलेंस बिगड़ सकता है। फिर इसकी जिम्मेदार किस पर आती? विभाग पर, नहीं खुदाई करने वाले के परिवार पर। क्योंकि मजदूर को उसमें दफन होना पड़ता है। उसके परिवार का बैलेंस बिगड़ जाता है। हम धरती पुत्र हैं और जांच कमेटी विभाग पर बैठती है। अरे! हमारे परिवार की कोई जांच नहीं करता। जो पैसा हमारे बच्चों की रोटी पर व्यय होना चाहिए वह जांच कमेटी पर व्यय होता है और नतीजा जहां से शुरू होता है वहीं पर खत्म हो जाता है। जब इन्हें काम नहीं करना होता है तो तकनीकी स्टाफ की कमी बताकर कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
जब खुदाई का काम कोई और संस्था करने को तैयार होती है तो इनका कहना होता है कि किस स्थान पर किस औजार से और कितनी खुदाई करनी है यह इस विभाग से बेहतर कोई नहीं जानता और इस विभाग की अनुमति के बगैर खुदाई नहीं होनी चाहिए। क्योंकि न जाने कहाँ पर कौन सा सांप बिच्छू निकल आये और वह किस काल का हो और उसका बाजार भाव क्या हो? क्योंकि इस विभाग के अनुसार ज़मीन से निकलने वाल सारे रत्न विभाग के होते हैं।
अब तो मशीनों से खुदाई का कार्य शुरू हो गया है इसलिये मजबूर होकर हम सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिये हड़ताल तो नहीं करेंगे पर पूरे शहर के पार्कों की खुदाई करना शुरू कर देगें। क्योंकि हड़ताल से अपने देश का नुकसान होता है और हम देश का नुकसान नहीं चाहते हैं। यदि हमारे परिवार की रोजी-रोटी और हमारी मांगों पर फिर भी सरकार ध्यान नहीं देती तो फिर हम जनता के कंधे से कंधा मिलाकर इन पार्कों को हराभरा बनाने के लिये उनमें पौधों के साथ पेड़ भी लगायेंगे। यदि फिर भी हमें अनदेखा किया गया तो फिर हम प्रदेश के सारे शहरों को खोदने का कार्यक्रम बनायेगें। देश के सारे खुदाई कर्मियों एक हो। अपना नारा होगा ''हमें खुदाई करनी है।''
----
( रमेश चन्द्र पाल )
6/366 विकास नगर,
लखनऊ-22
COMMENTS