मनसा आनंद ‘मानस’ की कहानी : बचपन

SHARE:

..... राम शरण भोर में सुबह तीन बजे अलार्म की आवाज़ सुनता, लगता कहीं कोसों दूर से बहती आती ध्वनि मिट्टी हुए शरीर को प्राणों से भर रही है। श...

Image001

..... राम शरण भोर में सुबह तीन बजे अलार्म की आवाज़ सुनता, लगता कहीं कोसों दूर से बहती आती ध्वनि मिट्टी हुए शरीर को प्राणों से भर रही है। शरीर का अंग-अंग, पोर-पोर कैसे टूटा बिखरा पड़ा होता, कितनी मुश्किल से सहजता समेटता था। और ये सर तो मानों जम गया है, बर्फ़ की तरह कैसा निष्क्रिय, बेजान पूरा सर अपना होने पर भी कैसे पराए पन का अहसास देता है। सर क्या शरीर के कितने स्नायु-स्पंदन काम करते या कितनों की ज़रूरत महसूस होती है, कूड़ा, कचरा, और दारू तक ही सिमट सुकुड़ के रह गई है ज़िंदगी, एक बेबस पंछी की तरह तड़पता है, पिंजरे से टकराता हे और फिर सब बन्द, शराब के हाथों कमज़ोर, लाचार, एक जीवित लाश हो गया है। सड़क के किनारे रेलिंग से तिरपाल बाँध कर बनाया हुआ धर, उसी में उसका परिवार एक लड़का और पत्नी तीन प्राणी मात्र। सोने के लिए फटे चीथड़े-गुदड़े, पृथ्वी माता ही उनकी सेज, देखो कितने दिन तक टिकते हैं यहाँ। किसी दिन पुलिस के डंडे पड़ंगे सब खुले आसमान की छाँव में, चमकते चाँद सितारों के नीचे, सरदी, गर्मी, बरसात का न तो इस शरीर पर कोई असर होता है, न ही इस घर का कुछ बिगड़ता है।

बरेली के पास छोटा सा गांव भालसा शहर की मशीनी जिन्दगी से कोसों दूर, कच्चे पक्के तीस-चालीस घर। खेती की 6बिधा जमीन खाने लायक धान, जवार, गेहूँ साग भाजी के लिए छोटी सी बाँड़ी। परिवार के नाम पर माँ बाप और खुद राम शरण। दोनों जून चूल्हा जल जाता था, भगवान भूखे पेट नहीं सुलाता था। चार कोस स्कूल जाकर आठ किलास तक पढ़ाई ने मति खरब कर दी। बहका दिया, शहर में जाकर ख़ूब पैसा मिलेगा, माँ-पिताजी रोए गिड़गिड़ाये, मिन्नत आरजू की समझाया-बुझाया, क्या करेंगे पैसे का यहाँ दो जून खाना कपड़ा मिलता है भगवान की दया से। ''तु हमारी काणे कैसी एक आँख है, दूर मत जा।'' नहीं सुनी किसी की बात, भाग कर आ गया दिल्ली। न यहाँ कोई जान पहचान एक चाय की दुकान पर बरतन भाँन्डे धोए, वहीं पटरी पर सो गया। कुछ ही दिन में पर निकल आए, यार दोस्त भी बन गए। राय मशवरा चला, आख़िर तय किया गया की नौकरी छोड़ कर अपना ही व्यवसाय किया ज़ाए रिक्शा चलाने का, जितनी मेहनत उतनी आमदनी। आमदनी क्या लक्ष्मी बरसने लगी 300-400 रू रोज़ाना 100रू रिक्शा का भाड़ा। आमदनी के साथ शौक भी बढ़े, पान, बीड़ी, सिनेमा कुल मिला कर शाही शान। दो साल बाद होली पर घर पहुँचा तो गाँव के साथी दंग रह गए रामु से राम नारायण शरण कैसे फूला-फूला घूम रहा था गलियों में। माँ-बाप ने सोची शादी की बेडिंयाँ ड़ाल देंगे तो शायद बन्द जाये खूटे से। राम शरण का शाही ठाट लिपि पुति झूठी चमक-दमक लोगो को लगने लगा जिन्दगी तो दिल्ली वालो की, इन्द्र की नगरी है, क्या सड़कें, जगमगाती बिजली की बत्तियां, मानो आप दिल्ली पहुँचे नहीं हरे-हरे नोट लगे बरसने, न जाने कौन पेड़ उगे हैं दिल्ली में, भईया जो भी जाता है भर लाता है जेबें। अब इस राम शरण को ही ले लो नाक बहती रहती थी होठों तक, कुरते की बाजू चमड़ा हुई रहती थी, नाक कन्धे से रगड़ते-रगड़ते। स्कूल में एक शब्द नहीं निकलता मुहँ से किताब हाथ में लिए ऐसे थर-थर काँपता था, मानों खड़ा कर दिया हिमालय पर्वत की चोटी पर। अब देखो शाही शान झक्क सफेद कपड़े, चेहरे पर पोड़र-क्रीम, बालों में तेल-फ़ुलेल की महक दस हाथ पहले ही खबर लग जायेगी आ रही है सवारी राम शरण साहब की। फिर लड़की देने में कौन गुरेज करता, अरे एक के साथ एक फ्री भी तैयार है, कोई हाँ तो भरे। शादी के लिए पास के ही गाँव की लड़की राम दुलारी को पसन्द किया, जो आठ-दस हजार कमा के लाया था, बैंड-तासे बाजा शादी क्या माँ-बाप की जीवन भर की साध पूरी हो गई थी।

शादी के खर्च में जेब की ठनक बन्द हो गई, तो फिर दिल्ली की याद में उठने लगी गीदड़ की हुकहुकी। पर अब दिल्ली में वो रौनक नहीं लगी, यहाँ बात-बात में झिड़की, कभी सवारी की कभी पुलिस का ड़ंड़ा, गाँव में मान सम्मान का जो गुब्बारा फूला था, रोजाना निकलने लगी हवा। यहीं बातें पहले नहीं चुभती थी, आज कैसे अन्दर तक चीरती हुई चली जाती है। मन करा यहाँ से भाग जाये गाँव में, बिन पैसे के वहां भी क्या इज्जत थी। कर लेगा खतों में काम नहीं रहेगा अब यहाँ। लगता गाँव के खेत, गलियाँ, वो पेड़, नहर पोखरे उसे खींच रहे है। पुरी रात यहीं सपने देखता रेल में बेठ चला जा रहा हे गाँव की तरफ़ पेड़-पहाड़, आसमान, घर कैसे पीछे भागते जा रहे है, अचानक सब रूक जाता है गाड़ी दौड़ती चली जाती है, और खिड़की से पेड़-पहाड़.... गायब खाली कोरी खिड़की सफेद सिनेमा के पर्दे की तरह, रेल गाड़ी फिर भी दौड़ती चली जाती है। अचानक आँखे खुलती है, शरीर पसीने से सरा भोर, गला सूखा, मुहँ भय के मारे रंग पीला..शरीर में मानो प्राण ही न हों, अजीब सपना न सर न पैर, पर चित्त बेचैन रहने लगा। फिर एक दिन सब छोड़-छाड़ धर की तरफ़ चल दिया। धर में फिर रौनक आई माँ की आँखो में नये जीवन के सपने सजने लगे, राम शरण का गौना कर दिया। घर में पायल, चूड़ियों की खनकार समा ही नही रही थी। माँ का मन पाखी बन कैसे तीस साल पीछे फुदक गया, बच्चों के कमरे से छन्न-छन्न के आती गुटरगूं, हँसी ठिठोली की फुसफुसाहट कानों में मिसरी सी घोलती थी। क्या सपने अमीरों की बपौती हे, भाई मन है तो सपने है, छोटे बडे का भेद हो सकता है।

राम दुलारी रोजाना मिन्‍नत करती दिल्ली चलने की, राम शरण टाल मटोल करता रहता। धीरे-धीरे मिन्नत कब जिद, फिर तकरार में बदल गई पता ही नहीं चला। कुतब की लाट, इण्ड़िया गेट, लाल किला, दिल्ली-6 की गलियाँ, चाट-पापड़ियाँ.....न जाने क्या-क्या वही चल कर पता चलेगा। राम शरण ने लाख समझाया दिल्ली की मुसीबत पर कौन बिना अनुभव की माने सो ज्ञानी, राम दुलारी तो अकड़ कर ऐसे बैठ गयी शादी राम शरण से न करके गोया दिल्ली शहर से की है। तंग आकर बन्द गया बोरी बिस्तरा दिल्ली की तरफ़, दिल्ली न हो गई कुबेर की राजधानी हो गई सोने की लंका। भरी ठुंसी दिल्ली दो सर और सही, अब ढुन्ड़ो सर छुपाने के लिए रेल गाड़ी नुमा घर, चकोर ऊँचे होते चिड़ियाँ घर के दड़बों की तरह, तीस-तीस, पचास-पचास, कमरे जिनमें आदमीयो की कोई गिनती नहीं। अन्दर ही दाल तरकारी के छौंक बघारे जा रहे है, पापड़, सलाद, चावल, सब्जी, आम,नीबु की अचार, अरे दाल-चावल कोई सब्जी भाजी में आती है, वो तो बनेगी ही, उसे तो गिनती में मत मानो, गरीब है तो कया भोजन नहीं करेंगे, दिन भर कमाते भी तो है गधे की तरह, किस लिए इसी सब भोजन के लिए। अजीब मुसीबत अपना कमाते हें आप नाहाक परेशान हो रहे हो। 700/- में एक रूम राम शरण को भी मिल गया, परन्तु जाना पड़ा दिल्ली के दिल से दूर कोई बात नहीं दिल में न सही पैरो में तो जगह मिली ये क्या कम सौभाग्य है। आस-पास गाँव की जमीन को औने-पौने में मुआवजे के नाम पे ले लिया, पर खाली पड़ी इन गाँव की जमींनों का वसीयत पट्टा ने जाने किस कानूनगो से डी डी ए को मिल गया, अग्रेंज तो चले गये थे, फिर न जाने किस ने ये गीदड़ फर्रा इनको सोंप दिया, बीच में कोलोनाईजर साहबों ने रही सही कसर पूरी कर दी। इन बीस सालों में दिल्ली की आबादी हनुमान की पूछ हो गई है, जो आए लदे जाए, न जाने कौन से पट्टे कमानी लगाए हुए है इस दिल्ली ने। अरे बस भी करो भाइयों, बक्शो दिल्ली को, ऐसा कह कर तो देखो, आपको ऐसे घूर के देखेंगे जैसे आपने कोई गाली दे दी....पूरे देश की है दिल्ली हमारा भी इतना ही हक जितना दिल्ली वालो का,...राजधानी होने का सुख वैभव, श्राप, सब सहा है दिल्ली ने। नादिर शाह, गौरी, तैमूर, के जख्म अभी तक पुरानी दिल्ली की दीवारों पर, हवाओं, गली कूचों में,आज भी भरे-खड़े है। खूनी दरवाजे की शिराओं में छुपे पड़े ये जख्मों के पास आप जरा गये नहीं, की पल भर में सिसक पड़ेंगे आपके हाथ लगाने से भी पहले।

शहर से दूर रहने से काम धन्धा भी वही करना पड़ा, परन्तु पुरानी दिल्ली जैसी न भीड़ न रौनक मेले ही थे। राम दुलारी को दो चार बार दिल्ली दर्शन कराया, पुरानी दिल्ली का दही भल्ला, घण्टे वाले की देशी घी की जलेबी खाने से कैसी चेहरे पर चमक आ गई मानो अमृत पान कर लिया। यार दोस्तों से मिलाया, सबने भाभी के साथ सिनेमा देखा, अव भगत हुई, हँसी ठिठोले हुये, दुर रहने का दुख, फिर आने का निमन्त्रण। अब जाके कहीं शांती आई राम दुलारी के मन को, जैसे सारे कष्टों को पलभर में छीन लिया हो किसी ने। फिर चली दिल्ली की चक्की की पिसाई क्या घुन क्या राम शरण चक्की बेचारी को क्या पता। दाल रोटी के लाले पड़ने लगे, रोजाना कलेश, मार पीट, सब की जड़ ये पैसा। फिर जिनके घर पैसा है उनकी खिड़कियों से झाँक कर तो देखो वहाँ भी महाकलेश, नाहक लक्ष्मी माता को बदनाम करते हो । भरा ये कूड़ा कबाड़ा तुम्हारे भीतर है, खूटी बनी लक्ष्मी जी।

दिन भर रिक्शा का खीचना, पैसे की किल्लत, पत्नी की चिकचिक का एक ही इलाज हे,सोम रस। फिर मनुष्य पहँचा इन्द्र की नगरी मे, ना गाली का असर, न फिकर चिन्ता सब उसकी बदबु में हो जाते हे उड़न छूँ। इस सब के बीच ने जन्म ले लिया लड़के ने, दो चार दिन उसके भविष्य की चिन्ता के कारण राम शरण मानो सूफ़ी बन गये, छोड़ दिया पीना पिलाना, लोट आई रौनक शान्ति घर में, जच्चा के चेहरे पर, लगने लगा मनुष्य जन्म धन्य। कुत्ते की पूछ कब तक सीधी रहती, फिर मुड़ गई, नाहक भ्रम पाला सीधी होने का, ठीक इसके उलटे, कैसे सीधी लकड़ी भी पानी में टेढ़ी दिखाई देती है। दिन भर बच्चा दुध पीता खाने को दाल चावल के लाले, दो रू का दूध घर आता चाय के लिए, घी..राम राम माथे के टीका लगाने को भी नसीब नहीं। मुँ छुपा के रोती, कहाँ दूध इन छातियों में, आज तरसती है बचपन में माँ दुघ देती तो कैसे लगता कोई जहर पीला रहा हो। अब राम शरण को घर चलने को कहती है, न जाने कैसा मन हो गया है। घर जाने के नाम पर पागल कुत्ते की तरह फाड़ने दौड़ता है। आदमी की आस ही उसकी साँसों को चलाके उसे जिन्दा रखे रहती है। बहुत जटिल है प्राणी की जिजीविषा को समझना।

शरीर भी अब रिक्शा खींचने के काबिल नहीं रहा, खाने के लाले भाड़ा कहाँ से भरे कमरे का, चाँद सितारों से सजी संवरी नील छत्री. सब के लिए खुली आराम से लेटो - न किराया न भाड़ा। एक मात्र व्यवसाय बचा जिसमें न हानि का भय, न पुँजी लगानी पड़े आये तो केवल चौखा रंग। राम शरण ने भी यहीं ड़गर पकड़ ली, पत्नी ने लाखा समझाया यहाँ क्या रखा है चलते है अपने देश, न सर पर छत है, न पहनने को कपड़े, नहाना क्या शरीर को

गंगा जल का छींटा मारना ही समझो। परन्तु मनुष्य का अहंकार भी विकट है, न कुछ होने के बाद भी ऐसे फूला होता पूछो ही मत, फिर जिसके पास कुछ है तो सोने पे सुहागा। शायद प्रत्येक को जब पृथ्वी पर आना होता है तो भगवान का दरबान चुपके से कान में कह देता, तुम विशेष दूत हो जरा सम्भालना भू लोक को , किया तुम्हारे हवाले अब कहीं इतनी सदियो के बाद चैन की नींद सोयेंगे भगवान, कितनी मुश्किल से अभूतपूर्व रचना जा के बनी है। शौभी सिहं का क्या है कहते रहे लाख किसी गड़रनी-वड़रनी को ''अभूतपूर्व रचना''रचना तो आपके रूप में घड़ी गई है। अब राम शरण भी कैसे माने वो एक साधारण है, कुछ तो है इस जिजीविषा में जो मनुष्य को ढ़ोये चली जाती है। समय गुजरता गया, अब देखो समय भी गुजरे हम गुजरे कैसा भ्रम जाल फैला रखा है इस भाषा ने, गुजरते तो हम है, समय तो देखता हे खड़ा हुआ। झोपड़ी मालवीय नगर से उठा दी तो साकेत, साकेत नहीं तो ईस्ट आफ़ कैलाश, इसकी व्यवसाय पर कोई असर नहीं पड़ता, नई जगह से आदमी का भुगालीक ज्ञान तो बढ़ता ही है साथ में बढ़ता अपना सर्जनात्मक कार्य भी। पाश इलाकों का कूड़ा विशेष होता है। पत्नी का रंग गौरा था ये तो अंधेरे में जलती ढ़ीबरी ने देखा होगा शरीर के छुपे अंगों में कभी, और तो किसी ने जाना न सूना, आँखें जो कभी कजरारी रही होगी अब तो गहरे में चमके दो छेद लगते हैं। मुँह सुख कर भुनी शकरकन्दी जैसा हो गया था, हां अगर चमकने वाली कोई चीज रह गई थी चेहरे पर तो वो थे दांत जो आज भी चेहरे के रंग रूप की दगा देने के बाद सामने निकले चमकते रहते हैं। अब होठों और चेहरे पर मांस-मज्जा खत्म हो गई तुम दातो को अन्दर चाहा कर भी बन्द नहीं कर सकते हो, तो बेचारे इन दांतों का क्या कसूर छोड़ दिया अनाथों की तरह बहार।

बेटा अब छ:,सात साल का हो गया है, शरीर पर पहने को एक तागड़ी, उसमें लटकते काले पीले मनके, दो एक चाँदी की धुधरी, गले में लाल डोरे में बन्धा एक ताविज-ए-सुलेमानी, जो मोहन ने चबा-चबा चिबा बना रखा था। इसी चबाने से शायद सूफ़ी-महात्मा की शक्ति ड़र कर भाग गई होगी, वरना तो क्या कारण इतने सालों बाद भी कोई चमत्कार नहीं दिखा पाई। उसे जिद्द चढ़ी है अ-अनार पढ़ने की, रोजाना पापा से कहता है फोटो वाली किताब लाना कबाड़ी की दुकान पे तो हजारो किताबें होंगी एक ला दो बच्चे को। माँ सपने देखती है उसके मोहन को पढ़ने की ललक है, अगर वो पढ़ जाये तो हमारे भी दिन फिर जाऐ। परन्तु न कोई गली दिखती है, न कोई रास्ता ही सूझता है, कहाँ पढ़ाये कोई ठोर ठिकाना पक्का हो तो सरकारी स्कूल ही भेज दे। फिर गाँव की याद आती अब भी चले जाते तो मोहन वहाँ पढ़ लिख ले, आज अपना गाँव कैसा कोरा नहाया स्वर्ग लगता है, वहीं जिद तकरार कर के यहाँ नर्क में सड़ने के लिए आई थी।

राम शरण जब सुबह तीन बजे अलार्म की आवाज से उठता है, जमींन पर सोने से शरीर अकड़ कर कैसे लट्ठ हो जाता है। किसी तरह उसे समेट-सुलेझ के खड़ा होता, अब इस काम में भी प्रतिद्वंद्विता आ गई है, जरा सी देर हुई नहीं की ले जायेगा सारा कूड़ा कचरा बीन कर पहले आने वाला। मुँह पर पानी के दो छिबके मारे, आँखें है जैसे इनमें शीशा भर गया है खुलती ही नहीं। शरीर का रोआ-रेशा, रंद्र-रंद्र टूटे छिटके बिखरे है, न जाने मन के पार है कोई शक्ति जो खींचे चली जा रही है। एक समस्या हो तो अब इन महाराज भैरो के गणों की ही ले, झोला-झन्ड़ा देखा नहीं की चले भौंकने, एक ही सर्जनात्मक काम जानते हैं। महीनों से रोज आते है भई पहचान लो, पुलिस, फौज, साधू महात्मा, नेता सभी विशेषकर ये कौन जन्म का अपमान या सम्मान देते हे, यही देश के रक्षक है, इन्ही के दम पर ये दुनियाँ टिकी है, फिर भला हम कबाड़ियों को इतना सम्मान न दो भाइयों ये सूखा पिजंर सीना सह ना सकेगा। सर ऊँचा कर राम शरण मस्त हाथी की चाल चलते भूल गया गरीबी, दुख-दर्द सब कुत्तों के भौंकने ने हर लिया। ''हाथी चले किनार, कूत्ते भौंके हजार'' का निनाद वातावर्ण् में भर गया। कानों में कैसी मधुरता भर गई, जैसे सारा अस्तित्व उपनिषद के मंत्रों का जय घोष कर रहा हो, उसे लगा वो भी कोई कीड़ा मकोड़ा नहीं एक मानव है, हड्डी मांस मज्जा के अन्दर भी कुछ है, जिसे कोई भौंकता है, जमीन पर दोनो हाथ जोड़ कुत्तों के सामने बैठ गया, है भैरो बाबा के गणों तुमने खूब पहचाना अपने भगत भाइयों को, कुत्ते भी क्षण भर भौंकना भूल अचरज में पड़ गये। तिरछी गर्दन करके देखने लेंगे, अचानक रंग मंच का परिदृश्य ही बदल गया। उन्हे तो आगे के दृश्य में पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही बताया गया था, भौंकने के नेक काम के बदले कोई ड़ड़ा या पत्थर मार सकता है। तुम इसका बुरा मत मानना..... कुत्ते उदास-मायूस से बिना भौंके नीची गर्दन किये कोने में दुबक कर बैठ गये।

दिन भर की थकान के बाद राम शरण घर की तरफ़ ऐसे चला आता है, मानो कोई आदमी न होकर कपड़ों से ढंका कंकाल हो। मुँह से ताड़ी की भयंकर दुर्गंध, आस पास के आते जाते सोये हुओ की नींद टूटती और फटाक से दूर छिटक कर चलने लगते थे। मोहन अपनी झोपड़ी के पास खड़ा पापा का इंतजार कर रहा था, दूर से देख दोनों हाथों से ताली बजा-बजा कर कहता है, पापा पापा आये....उसके चेहरे पर कैसी निश्छल निस्कपट खुशी बिखर रही थी, मानो पापा न हो उसके सर्व सब हो, बच्चा कितना अमलिन होता हे, बच्चे का बचपन जितना लम्बा वो इतना ही जवानी से परिपूर्ण शान्त और मनुष्यता से भरा होगा। अगर बच्चों को संस्कारी बनाना है तो उनका बचपन मत छीनों, उन्हे जो आज हम दे रहे शिक्षा और और न जाने कितने अनैतिक कार्य कर रहे है। पिता झूमते-झामते मोहन के सर पर हाथ रखते हुऐ झोपड़ी के कोने में जाकर पड़ जाते हैं। आज भी मोहन का अ-अनार की फोटो वाली किताब लाना भूल जाते हैं। पत्नी मधुर शलोकों का उच्चारण शुरू कर देती है, बेटा पास जा पिता का कन्धे पकड़ बड़े ही र्निबोध भाव से कहता है, पापा-पापा ये आपके काम की तो नहीं मुझे मिली है, एक शराब की खाली बोतल उसे आज मिल गई थी। पापा को खुश करने के लिए सम्भाल-सहेज कर रखी थी। पिता एक बार सर उठा कर देखते है, उसकी पत्थराई निर्जीव आँखों में से कहीं प्राण झाँकते हैं। परन्तु आँखों में आँसू भरे रह गये गिरे नहीं शायद खत्म हो गये, सूख गयी जीवन की नदी। मोहन के चेहरे को प्यार से छू कर कातर निगाहों से उसे देखते है,फिर एक मुर्दे की भांति मुँह फेर कर लेट जाते हैं। बच्चा खुशी के मारे ताली बजाता खुश होता है, उसने भी कोई सर्जनात्मक काम किया अपने पापा के लिए। रात के साथ-साथ धुन्ध बढ़ रही थी, धीरे-धीरे वो झोपड़ी, जलते खम्बे के लेम्प को अवछादित हो ढ़ंक लेगी, फिर समस्त प्रकृति समान भाव में लीन हो जायेगी।

---

(जाह्नवी’’ मासिक अगस्‍त अंक( सवाधीनता विशेषांक) 2009 में पूर्व प्रकाशित)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: मनसा आनंद ‘मानस’ की कहानी : बचपन
मनसा आनंद ‘मानस’ की कहानी : बचपन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJILAXBXowlbxHmsrcnwbvXiuVT-ZotlNbzFmb5l_a3b3fdhUJN8o8cg07hbgnjdiqvKAbifT4qTrnBLxMk-qxYyghW3DjBxxDH-EzNoapO6a0iNAJhnpchLXWTbl_pxQ62RAJ/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJILAXBXowlbxHmsrcnwbvXiuVT-ZotlNbzFmb5l_a3b3fdhUJN8o8cg07hbgnjdiqvKAbifT4qTrnBLxMk-qxYyghW3DjBxxDH-EzNoapO6a0iNAJhnpchLXWTbl_pxQ62RAJ/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/10/blog-post_8144.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/10/blog-post_8144.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content