एलोपैथी चिकित्सा पद्यति अपने पूर्ण यौवन पर है तथा इस पद्यति के माध्यम से पूरी दुनिया में श्रेष्ठतम चिकित्सा विश्व के नागरिकों को मिल ...
एलोपैथी चिकित्सा पद्यति अपने पूर्ण यौवन पर है तथा इस पद्यति के माध्यम से पूरी दुनिया में श्रेष्ठतम चिकित्सा विश्व के नागरिकों को मिल रही हैं। विश्व के कोने कोने में इस पद्यति के श्रेष्ठ अस्पताल है और रोगी लाभ उठा रहे हैं। लेकिन ऐसी कई व्याधियां है जो इस पद्यति की श्रेष्ठतम् जानकारियों के बावजूद ठीक नहीं हो रही है। रोगी इस पद्यति से इलाज से असंतुष्ट हो कर अन्य चिकित्सा पद्धतियों की और मुड़ता हैं वैकल्पिक चिकित्सा पद्यतियों की आवश्यकता इसी समय उभर कर सामने आती है। वैकल्पिक चिकित्सा पद्यतियों में आयुर्वेद, होम्योपैथी, एक्यूपंक्चर एक्यूपे्रशर इलेक्टोपैथी, युनानी, योग, प्राक्तिक, आदि भारतीय पद्यतियाँ आती है। इसी में चीन की पारम्परिक चिकित्सा, तिब्बत की चिकित्सा पद्यति तथा विश्व के अन्य क्षेत्रों में प्रचलित पारम्परिक चिकित्सा पद्यतियों का भी समावेश होता है।
भारत में एलोपैथी के विकास के साथ साथ वैकल्पिक चिकित्सा का भी विकास हुआ। स्वतन्त्रता के बाद तो विकास की गति बहुत तेज हो गई। नये नये संस्थान खुले। महाविद्यालय,विश्वविद्यालय खुले। प्रतिष्ठित चिकित्सक, कालेज, फारमेसीज अस्तित्व में आये।
तेजी से विकास के कारण वैकल्पिक चिकित्सा की दशा और दिशा में कई समस्याएं भी आई। तेज गति के कारण पारम्परिक ज्ञान का हास होना शुरू हुआ। वर्षों पूर्व वैद्य, हकीम या पुराने चिकित्सकों को जो ज्ञान था वो धीरे धीरे नष्ट होने लगा। पचास-साठ वर्पो पूर्व जो ज्ञान था वो आधुनिक चिकित्सा की चकाचोंध में लुप्त हो गया। जो हकीम-वैध स्वयं दवा बनाकर देते थे वे भी बाजारवाद का शिकार हो गये। फारमेसी में दवाईयां थोक में बनने लगी। उनकी गुणवत्ता नष्ट होने लगी। दवाईयों के घटक दृव्यों की जानकारी लुप्त होने लगी। मूल घटक द्रव्यों की अनुपलब्धता के कारण वैकल्पिक द्रव्यों का धड़ल्ले से उपयोग होने लगा। एक औपध की गुणवत्ता के प्रचलित स्तरीय मान दण्ड़ों को अनदेखा किया जाने लगा। संदिग्ध द्रव्यों का, मिलावट वाले द्रव्यों का बोलबाला होने लगा। परिणामस्वरूप घटिया, नकली, हीन गुणों वाली दवाईयां बाजार में आने लगी। युनानी, आयुर्वेद आदि चिकित्सा पद्यतियों में प्रयुक्त होने वाली काली मिर्च, इलायची, लौंग, सौठ, बादाम, वेशलोचन आदि के स्थान पर कम ताकत की दवाईयां मिलने लग गई। चिकित्सकों ने स्वयं दवा बनाना बन्द कर दिया। जडी बूटियों की पहचान तक खोने लगी। बाजार में मिलावट के कारण अच्छी दवाईयां मिलना बन्द हो गई। सरकारी कम्पनियां भी कच्ची दवाइयों की खरीद में टेण्डर प्रक्रिया के कारण घटियां दवाईयां मिलाई जाने लग गई। रोगियों और नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ होने लग गया। भारी धातुओं से बनने वाली दवाईयों को लेकर पश्चिमी देशों में एक नया विवाद प्रारम्भ हो गया कि ये दवाईयां शरीर को नुकसान पहुँचाती हैं।
चिकित्सकों की योग्यताओं और पंजीकरण पर भी सवाल उठने लगे। जो चिकित्सक पंजीकृत नहीं थे वे भी चिकित्सा करने लगे। नीम हकीमों का बोलबाला हो गया। ऐसे कुछ चिकित्सक सरकारी अस्पतालों स्वयंसेवी संस्थाओं में भी घुस गये। वे धडल्ले से चिकित्सा करने लगे। मेडिकल देने लगे। पुनर्भरण के कमीशन खाने लग गये। पढ़ाने लगे। सरकार ने इन पर लगाम कसने की कोई कोशिश नहीं की। हर गली-मोहल्लों में चिकित्सकों ने अपने व्यापार का विस्तार कर लिया। रोगियों के जीवन के साथ मजाक होने लग गया।
वैकल्पिक चिकित्सा पद्यतियों को सरकारी संरक्षण तो मिला मगर चिकित्सा पद्धतियों का विकास नहीं हुआ। उच्च संस्थाओं में तो फिर भी योग्य व्यक्ति आये मगर मध्यम दर्जे की संस्थाओं में चिकित्सकों की तैनाती के बाद ये चिकित्सक भी एलोपैथीदवा -दारू करने लग गये। वैध-हकीम स्वयं को डाक्टर कहलाने में गौरवान्वित समझने लगे। वे स्वयं को एलौपैथी डाक्टर मान कर चिकित्सा करने लगे। परिणाम स्वरूप उनकी स्वयं की पद्यतियां पिछड गई। उनकी पद्यतियों पर से चिकित्सकों का, रोगियों, सामान्य जनता का विश्वास उठ गया। हालात इतने बदले कि ये चिकित्सक स्वयं के घर वालों के इलाज के लिए भी एलौपैथी पर निर्भर हो गये। शायद ही कोई चिकित्सक हो जो घर पर एलौपैथी का प्रयोग नही करता हो। अधिकांश वैकल्पिक चिकित्सा के विशेषज्ञ अपनी डिग्री की आड में एलौपैथी करते है। गांवों में दूर दराज के क्षेत्रों में पारम्परिक चिकित्सा के स्थान पर एलौपैथी का प्रयोग आम बात है।
आखिर इस ज्ञान का क्या होगा ? विश्व की पारम्परिक चिकित्सा पद्यतियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन उन्नत करना चाहता है, सरकारें भी उनकी मदद को आगे रही है। मगर चिकित्सा की दशा बिगड़ती जा रही है और दिशा हीन हो कर भ्रमित हो रही है। वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में शोध, ज्ञान का एकत्रीकरण, आदि की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढि़यों तक यह ज्ञान संरक्षित हो कर जाये। चिकित्सा, औषधियों, व चिकित्सकों की गुणवत्ता पर इन पद्यतियों से जुड़े लोगो को विचार करना चाहिये कि वैकल्पिक चिकित्सा के सतत विकास के लिए वे क्या कर सकते हैं। नहीं तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
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0 0 यशवन्त कोठारी
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