उसे ठीक-ठाक घर का पता नहीं मालूम। इतना जानती है कि वह रांची में रहती थी। पढाई के नाम पर गांव के स्कूल को दूर से ही देखा था उसने। शायद...
उसे ठीक-ठाक घर का पता नहीं मालूम। इतना जानती है कि वह रांची में रहती थी। पढाई के नाम पर गांव के स्कूल को दूर से ही देखा था उसने। शायद इसलिए घर का फोन नम्बर भी याद रखना उसके वश की बात नहीं। उम्र सोलह-सतरह से कम नहीं है, लेकिन नाम पूछने पर पाँच साल की बच्ची-सी मासूमियत लिए प्यार से कहती है। चमेली जिसे वह हिन्दी और अंग्रेजी, दोनों लिपियों में लिखना जानती है।
पिछले साल उसकी माँ चल बसी और उसके बाद पिता ने भी इस बोझ को ढ़ोने से मना कर दिया। इस तरह विरासत में कुछ भी नहीं पाया चमेली ने। बस, उसे अपनी माँ का चेहरा याद है, जिसने मरते वक्त अपनी अमानत अपनी बेटी को दे दी थी। वह अमानत थी-मंगल-सूत्र। यद्यपि चमेली सीधी-साधी लड़की है, फिर भी वह मंगल-सूत्र की कीमत भली-भाँति जानती है। वह समझती है कि यह धागा विश्वास और पवित्रता का प्रतीक है-यह एक अमूल्य निधि है। वह एक समझदार युवती है। बेसहारा होने के बाद भी उसने ध्ौर्य नहीं खोया। घर-घर जाकर काम करती रही, रोजी-रोटी की कमी कभी नहीं खली। फिर अचानक चमेली की जिंदगी में एक गुलाब आया- हॉ गुलाब ही नाम है उसका। उसने न सिर्फ चमेली के घायल हृदय पर स्नेह का मरहम लगाया, बल्कि कई नये सपने भी दिखाये। वह किसी भी मायने में चमेली से बेहतर नहीं है, फिर भी उस समय चमेली को एक सहारे की जरूरत थी, जिसे गुलाब ने पूरा कर दिया। चन्द दिनों के बाद दोनों राँची से दिल्ली आ गये। ट्रेन का नाम न ही चमेली को पता है और न ही गुलाब को। यहाँ दोनों मेरे मकान के सामने के मकान में किराये पर रहने लगे। दोनों देखने में काले हैं, चमेली नाटी सी है और उसकी नाम इतनी चौड़ी है कि किसी भी दृष्टि से उसे सुन्दर कहना सुन्दरता का अपमान होगा। लेकिन चन्द दिनों में ही मैंने, देख लिया है कि चमेली अन्दर से इतनी अच्छी है कि प्रश्ांसा के ढे़र सारे शब्द छोटे पड़ जायेंगे। मैंने चमेली या गुलाब या दोनों को एक साथ जब भी देखा है, हँसते हुए देखा है। दोनों के चेहरे को देखकर कोई भी कह सकता है कि ये काफी भोले-भाले हैं। तभी एक दिन अचानक चमेली मेरे घर आयी, ठीक वैसे ही जैसे ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चे सीध्ो मेरे कमरे में मेरे टेबुल के पास आकर खड़े हो जाते हैं। मैंने उसकी ओर देखा आँखों में प्रश्नवाचक चिन्ह लिये। वह बोल पड़ी-‘‘हमें आपसे कुछ माँगना है, इसीलिए आये हैं।‘‘ मैंने पूछा-‘‘ क्या माँगना है?‘‘ ‘‘ हमें ये कार्ड चाहिए, शादी के वास्ते।‘‘ उसने मेरी टेबुल पर रखी ग्रीटिंग कार्ड की ओर इशारा किया और बोलती चली गयी। ‘‘हमारी शादी हो रही है न कल।‘‘ इसी के वास्ते, उसने तो सबको कार्ड भी दे दिये। अब हमारा भी तो फर्ज है कि किसी को कोई कार्ड दे दूँ। उसकी मूर्खता पर मैं हँसना चाहता था, लेकिन उसके चेहरे की मासूमियत ने हँसने से रोक दिया। मैंने उसे समझाया ‘‘चमेली ये कार्ड पुराने हैं, तुम्हें तो नये कार्ड चाहिए ना।‘‘ और उस पर तुम लोगों का ही नाम लिखा होना चाहिये। इस पर उसी ने समझाना शुरू किया। ‘‘कार्ड पुराना है तो क्या हुआ साहब। ‘‘ घर में ही देना है उसको। और वो आपका नाम कैसे पढ़ेगा? कौन सा पढ़ा लिखा है़...मेरी तरह...है। इस बार मैं स्वयं को हँसने से नहीं रोक पाया। उसके लिये उसके पति का पढ़ा-लिखा या मूर्ख होना कोई मायने नहीं रखता। मैं समझ रहा था, फिलहाल चमेली को समझाना संभव नहीं है। मैंने हँसते हुए कार्ड उठाकर उसके हाथ में दे दिये। मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि चमेली यह कार्ड उसे (गुलाब को) क्यों देना चाहती है, जबकि गुलाब से ही तो उसकी शादी हो रही है। कार्ड हाथ में लेकर वह धन्यवाद आदि कहने की कोई जरूरत समझे बिना ही चलने लगी। फिर भी मैंने उसको रोक दिया- लेकिन... तुम ये कार्ड गुलाब को क्यों देना चाहती हो" "कोई नहीं है ना अपना इसी के वास्ते। हम कार्ड किसको देंगे और वही तो हमारी शादी में सब कुछ कर रहा है। पन्द्रह-बीस लोग आयेंगे कल। आप भी आ जाना, बहुत अच्छा खाना बनेगा।‘‘ कहते हुए चली गई चमेली। कितनी सीधी-साधी है चमेली। कुछ भी छिपाना नहीं जानती। आज वह खुश है, मुस्कुरा रही है कल उसकी शादी होने वाली है। उसके चेहरे की खुशी नहीं कहती कि जिन्दगी में उसे हँसने का अवसर बहुत कम मिला है। आज कल के समझदार लोग पूरी जिन्दगी हँसने के लिये अवसर तलाशते हैं। कई अवसर भी आते हैं लेकिन दिल खोलकर हँस नहीं पाते। हमें चमेली से सीखना चाहिये कि छोटे से मौके पर भी कैसे दिल खोलकर हँसा जाता है। अगले ही दिन चमेली और गुलाब की शादी धूमधाम से हो गई।
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सिर्फ शादी के तीन दिन हुये हैं। चमेली बरामदे पर खड़ी है। चारों ओर से लोगों ने घ्ोर रखा है। चमेली तमाशा बनी हुई है, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मगर आस-पास के लोग शायद सब कुछ समझ रहे हैं। कुछ लोगों के लिये चमेली के इस सप्ताह की कहानी एक ख्ोल है, कुछ के लिये हादसा और कुछ के लिये दो-तीन एपिसोड में बनने वाली दूरदर्शन के सीरियल की कहानी। चमेली की आँखें सूखी हैं, शायद आँसू बहाने का काम उसने पहले ही कर लिया है। आज उसके चेहरे से चमक गायब है। माँग रिक्त है और उसने गले से मंगलसूत्र भी निकाल फेंका है। कल ही गुलाब उसे छोड़कर राँची चला गया, उसकी जिन्दगी से दूर.......... काफी दूर, सदा के लिये। हो सकता है वक्त बीतने के साथ गुलाब फिर से बदल जाये, मगर चमेली का क्या होगा? क्या उसका गुलाब के प्रति विश्वास लौट पायेगा। शायद कभी नहीं। क्या वह जूठी मंगलसूत्र फिर से पहनने की गलती करेगी? शायद नहीं। कितना मामूली था यह मंगलसूत्र! तीन दिनों में ही अपना रंग बदल गया।
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अरविंद झा
डिपो सामग्री अधीक्षक
भंडार नियंत्रक कार्यालय
द.पु.म.रेल्वे विलासपुर
९७५२४७५४८१
kahani ne jhakjhor kar rakh diya...........masoom chehre ke peeche ki sachchaiyan koi kaise samajh sakta hai.
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